मीडिया के विभिन्न क्षेत्रों में समाज के पिछड़े वर्गों से आने वाली आवाजों का अभाव है.
अखबार, टीवी और डिजिटल मीडिया के शीर्ष पदों पर 218 में से 191 कर्मचारी सामान्य वर्ग से आते हैं. मुख्यधारा के मीडिया में कहीं भी शीर्ष पदों पर एससी-एसटी समुदाय के लोग नहीं हैं, सिर्फ दो डिजिटल मीडिया में एससी-एसटी वर्ग से जुड़े लोग शीर्ष पद पर हैं.
यह जानकारी न्यूज़लॉन्ड्री और ऑक्सफैम इंडिया की ताजा रिपोर्ट में सामने आई है. जिसे न्यूज़लॉन्ड्री के सालाना कार्यक्रम द मीडिया रंबल में रिलीज किया गया. रिपोर्ट में बताया गया कि 60 प्रतिशत से ज्यादा हिंदी और अंग्रेजी भाषा के अखबार में लेख लिखने वाले लोग सामान्य वर्ग से आते हैं. रिपोर्ट में सामने आया है कि सिर्फ पांच प्रतिशत लेख ही एससी-एसटी वर्ग से जुड़े लोगों ने लिखे हैं.
इस रिपोर्ट में जो जानकारी दी गई है वह अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक एकत्रित की गई है. जिसमें सात समाचार पत्र, 12 मैगजीन और 9 डिजिटल मीडिया संस्थान शामिल हैं.
इस रिपोर्ट को लेकर मीडिया रंबल में मीडिया की विविधता विषय पर चर्चा की गई. बातचीत का संचालन मूकनायक की संस्थापक संपादक मीना कोटवाल ने किया. सत्र में न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया, ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर, स्क्रोल की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा और एकलव्य इंडिया के सीईओ राजू केंद्रे शामिल हुए.
मीडिया में विविधता विषय पर अमिताब बेहर ने कहा, “आज के दौर में सोशल जस्टिस बहुत जरूरी है इसलिए मीडिया में जाति की विविधता पर रिपोर्ट होनी चाहिए, ताकि लोगों को इस बारे में पता चल सके.”
इस पर सुप्रिया कहती हैं, “मीडिया में सवर्ण जातियों का दबदबा है, इसलिए वह इसको बरकरार रखना चाहते हैं. लेकिन अब दलितों की संख्या मीडिया में बढ़ रही है. लेकिन वह संख्या अभी बहुत कम है.”
रिपोर्ट में बताया गया कि टीवी मीडिया में 56 प्रतिशत अंग्रेजी चैनल के एंकर और हिंदी चैनल के 67 प्रतिशत एंकर अगड़ी जातियों से हैं. टीवी डिबेट करने वाले एंकर्स में कोई भी एससी-एसटी वर्ग के एंकर नहीं हैं.
ऐसे ही डिजिटल मीडिया में 55 प्रतिशत लेखक सामान्य वर्ग से आते हैं और पांच प्रतिशत से कम लेखक एससी-एसटी वर्ग से हैं.
मीडिया में जाति को लेकर अतुल कहते हैं, “हिंदी हो या अंग्रेजी, मुख्यधारा के मीडिया में सब जगह दलितों का स्थान कम है. हमारे समाज में जो जाति व्यवस्था है वह मीडिया में भी दिखाई देती है.”
वह आगे कहते हैं, “ऑनलाइन मीडिया आने की वजह से दलित समुदाय को मौका मिला है. इससे मीडिया में विविधता देखने को मिल रही है. जिसका उदाहरण है हाल के दिनों में बहुत से प्लेटफॉर्म देखने को मिले हैं. जैसे की दलित दस्तक, नेशनल दस्तक, जनता लाइव आदि. इन प्लेटफॉर्म्स की पहुंच दिखाती है कि दलित समुदाय के लोग उनसे जुड़ी खबरें चाहते है.”
मुख्यधारा की मीडिया में दलितों की संख्या पर राजू कहते हैं, “मुख्यधारा की मीडिया में दलित समुदाय के लोग आगे नहीं बढ़ पाते. इसलिए जरूरी है वहां उनकी संख्या बढ़े.”
रिपोर्ट बताती है कि टीवी न्यूज़ में जो एससी-एसटी समुदाय के लोगों की समस्याओं के बारे में होने वाली बहसों की संख्या बहुत कम है. हिंदी न्यूज़ चैनलों की सिर्फ 1.6 प्रतिशत प्राइम टाइम डिबेट में एससी-एसटी वर्ग के बारे में बात की गई. चैनल वार बात करें तो सबसे ज्यादा डिबेट एनडीटीवी ने की हैं. एनडीटीवी ने 3.6 प्रतिशत, एबीपी न्यूज़ ने 2.4, आजतक ने 1.8, संसद टीवी 1.3, ज़ी न्यूज़ 1.3, इंडिया टीवी ने 0.8 प्रतिशत डिबेट इन विषयों पर की हैं. सीएनएन न्यूज़18 और रिपब्लिक भारत ने एक भी डिबेट दलित समुदाय के लोगों को लेकर नहीं की.
अमिताभ इस रिपोर्ट को लेकर कहते हैं, “मुख्यधारा की मीडिया में विविधता की समस्या को समझने के लिए हमें दूसरे क्षेत्रों को भी समझना होगा. इस तरह की रिपोर्टस को आधार बनाकर मुख्यधारा की मीडिया संस्थानों से उनके यहां विविधता के विषय पर बात की जानी चाहिए.“
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