दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
अफगानिस्तान में तालिबान वापस आ गया है. यह कठिन समय है, यहां पर आपको एक मिनट रुकना होगा, सोचना होगा. आज इक्कीसवीं सदी में लोकतंत्र शासन के तमाम विकल्पों में सबसे कम बुरा विकल्प है. अपनी तमाम बुराइयों के बावजूद इससे बेहतर शासन व्यवस्था का विकल्प आज दुनिया के पास नहीं है. भेड़िये से बचने के लिए बकरियां बाघों से दोस्ती नहीं कर सकती, ये कोई विकल्प नहीं है. तालिबान भागा फिर वापस आ गया , अब अमेरिका भाग गया. इससे पहले रूस भाग चुका है इन तमाम घटनक्रमों को कुछ बुेलटप्वाइंट में जान लीजिए.
1- तालिबान ने अमेरिका और नेटो गठजोड़ को हरा दिया है. उन्हीं ताकतों को जिन्होंने तालिबान को खड़ा किया था. बिल्कुल भस्मासुर की तरह. उस लिहाज से इस पूरे घटनाक्रम की तार्किक परिणति एक न एक दिन पाकिस्तान की तबाही में भी होना है. क्योंकि तालिबान की जड़़ें वहीं हैं.
2- आधुनिक लोकतंत्र के तमाम दावों के बावजूद यह बात साफ हो चुकी है कि अफगान समाज का बहुसंख्यक तबके में तालिबान की स्वीकार्यता, लोकप्रियता बाकी किसी भी विचार से कहीं ज्यादा है. यह रक्तहीन सरेंडर इसकी पुष्टि है.
3- यह अस्मिता और स्वाभिमान का भी मसला है. शायद अफगानियों को अमेरिकापरस्त शासन के मुकाबले तालिबानी शासन ज्यादा अपना लगता हो.
4- तालिबान की सत्ता में वापसी के साथ ही दुनिया भर में नाइन इलेवेन के बाद शुरू हुआ आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध पूरी तरह से खत्म हो चुका है. या कहिए कि पश्चिम और अमेरिका वो युद्ध हार चुके हैं.
5- तालिबान की वापसी ने दुनिया के समीकरणों को लंबे समय के लिए बदल दिया है. अमेरिकी चौधराहट को हमेशा के लिए महसूस होने वाली चोट लगी है. तालिबान की वापसी और चीन के उत्कर्ष के मद्देनजर अब अमेरिका की वो धमक नहीं रहेगी जो साठ से लेकर नब्बे के दशक तक रही है.
6- महिलाओं और बच्चों की बेहतरी बीस सालों से अमेरिकापरस्त सत्ता को जायज ठहराने का जरिया था. लेकिन तालिबानियों की वापसी ने उन तमाम लोगों की कलई खोल दी है. न तो अमेरिका ने अफगानिस्तान छोड़ते वक्त उन महिलाओं-बच्चों की परवाह की न ही उन अफगान मर्दों ने जो एयरपोर्ट पर जहाजों के पीछे भाग रहे थे. उनमें कोई महिला नहीं थी. जाहिर है वो अपनी औरतों और बच्चों को उनकी किस्मत पर छोड़कर भाग रहे थे.
भारत पर भी तालिबान की वापसी का प्रभाव पड़ेगा लेकिन उसके लिए हमें इंतजार करना होगा बिना इंतजार किए भारत में जो कुछ हुआ वह ज्यादा हैरान करने वाला है. कट्टर, धर्मांध, हिंसक और नफरती तालिबानियों को कुछ लोगों ने बधाई संदेश दिए. उनका तर्क है कि अभी तो तालिबान आया है, उसे मौका दीजिए, अभी से निंदा क्यों.
अफगानिस्तान में तालिबान लौटा तो भारत के घोघाबसंतों में यकायक नैतिकता का विस्फोट हो गया. इन्हीं तमाम मुद्दों पर इस हफ्ते की टिप्पणी.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
ContributeGeneral elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?