दिल्ली आने के बाद मुड़की ने तीन घरों में काम किया था. पहले घर में 1 साल, दूसरे घर में दो साल और फिर उसे एक और घर में भेज दिया गया जहां उसने फिर से 2 साल काम किया.
चार
राजन ने मुझसे कहा था कि मुड़की से जल्द से जल्द मिल लेना. मैं भी मुड़की से इस मुलाकात को लेकर काफी उत्सुक था. ट्रेन में खड़ी मुड़की को देखना काफी सुखद था. हर बार अखबारों और खबरों में अपने क्षेत्र के बारे में पढ़ता था कि कैसे राजमहल हिल्स के आसपास बसे गांव मानव तस्करों का गढ़ बनते जा रहे हैं, लेकिन पहली बार किसी लड़की को वापस लौटते हुए देख कर काफी बढ़िया महसूस हो रहा था.
पाकुड़ के अमड़ापाड़ा पहुंचने के बाद सबसे पहले मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक के सामने मुड़की का बयान करवाया गया, फिर देर शाम उसे घर पहुंचा दिया गया.
मैं 8 दिसंबर को अपनी बाइक से पुसरवीटा के लिए निकला. दुर्गम पहाड़ियों में बसे इस गांव के रास्ते को बताने में गूगल आपको बार धोखा-धोखा दे सकता है. सालों इस क्षेत्र में बिताने के बाद भी मैं जंगल के बीचों-बीच बना 4 फुट चौड़ा सीमेंटेड रोड मेरे लिए काफी नया था. मेरे लिए अच्छी बात ये थी कि धर्मनाथ वहां पहले से मौजूद थे. उन्होंने पहले ही मुझे पुसरवीटा को जाने वाली सड़क का थोड़ा-मोड़ा आइडिया दे दिया था.
घर से निकलते वक्त मैंने मुड़की से फोन पर बात की थी, लेकिन रास्ते में फिर से जब उसका नंबर ट्राय किया तो नहीं लगा. मैं बार-बार मुड़की को कॉल कर रहा था लेकिन उसका नंबर अनरीचेबल आ रहा था. राजन ने मुझे पहले ही बता दिया था कि उस गांव में कुछ चुनिंदा जगहों पर ही नेटवर्क आता है.
खैर, जैसे-तैसे मैं पुसरवीटा पहुंच गया. गांव के मुहाने पर ही धर्मनाथ से मुलाकात हो गई. वे मुझे अपने साथ मुड़की के घर तक ले गये. वो घर क्या था, मिट्टी की बनी दीवारों वाला दो कमरों का एक ढांचा. इसी के एक कमरे में मुड़की, उसके मम्मी-पापा और उसका भाई रहते हैं. दूसरा कमरा बकरियों, मुर्गियों और अन्य पालतू जानवरों के लिए था. पास में ही मिट्टी और ईंट से बना एक छोटा सा टैंक था जो थोड़ा पुराना जान पड़ता है. मैंने सुना है कि गर्मी के दिनों में ऐसे मकानों में काफी ठंड रहती है, लेकिन बरसात के दिनों में इनमें रहना बहुत मुश्किल है. सांप निकलना, दीवार गिर जाना, छत से पानी टपकना, ऐसे मकानों में आम बात है.
धर्मनाथ ने मुड़की को आवाज लगायी. भीतर से पारंपरिक परिधान में एक लड़की बाहर आती है. ये मुड़की थी. वो साड़ी में थी और उसका शरीर आभूषणों से लदा हुआ था. एक बार के लिए तो मैं उसे पहचान ही नहीं पाया क्योंकि मुड़की की जिस फोटो को मैंने देखा था उसमें वह वेस्टर्न परिधान में थी. इस इलाके में जनजातीय समुदाय की लड़कियां ऐसी ड्रेस अमूमन साप्ताहिक हाट के दिन पहनती हैं. पूरे सप्ताह काम करने के बाद हाट का दिन ऐसा होता है जब ज्यादातर लोग अच्छे कपड़े पहनते हैं और सप्ताह भर के सामान की ख़रीददारी करते हैं. इसका एक और कारण है कि दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों को भी साप्ताहिक हाट के दिन ही पूरे सप्ताह भर की मजदूरी मिलती है.
साफ झलक रहा था कि मुड़की ने ऐसी ड्रेस मेरे स्वागत में पहनी थी. उसे लगा होगा कि दिल्ली से राजन का पत्रकार साथी उससे मिलने आ रहा है.
सबसे पहले मुड़की आई, पीछे-पीछे उसकी मम्मी आईं. उन्होंने नमस्कार किया, इस बीच मुड़की ने अपने आंगन में एक चारपाई बिछा दी. इसके बाद बातचीत का दौर शुरू हुआ. मैंने मुड़की की मां से पूछा कि इतने दिन बाद आपकी बेटी घर आई है, कैसा लग रहा है? उन्होंने दबी हुई आवाज में कहा कि अच्छा लग रहा है. धर्मनाथ ने बताया कि जिस दिन ये वापस आई थी, इसके अगले दिन इसके पिता ने खस्सी काटा था और उन्हें लगा था कि बेटी वापस आई है तो गांव के लोग बहुत खुश होंगे, लेकिन मामला बिल्कुल उल्टा था.
मैं भी यही सोच कर गया था कि मुड़की अपने गांव वापस आकर काफी खुश होगी. वर्षों के बाद खुद को आजाद महसूस कर रही होगी, लेकिन उससे बात कर के सारी धारणा गलत साबित हो गयी. मुड़की ने मुझे बताया कि गांव का कोई भी इंसान उससे बात नहीं करता. यहां तक की लड़कियां भी उससे बात नहीं करती हैं.
"अभी बस पूरे दिन मैं अकेले घर में पड़ी रहती हूं", मुड़की ने कहा. ऐसा क्यों है, इसका जवाब मुड़की के पास नहीं था.
इसका जवाब धर्मनाथ देते हैं, "जब भी किसी लड़की को धोखे से शहर में बेच दिया जाता है तो गांव के लोग उस लड़की के बारे में कई बातें बनाते हैं, जैसे शहर में उन लड़कियों के साथ गलत काम करवाया जाता होगा या वो लड़की वापस आकर गांव की अन्य लड़कियों को बहका कर शहर में ले जाकर बेच देगी. अगर कोई लड़की किसी शहर में कुछ साल बिता कर आ जाती है तो लोग मान लेते हैं कि वो अब समाज से ज्यादा नहीं जुड़ी हुई है."
पता चला कि जून 2020 में जब धर्मी नाम की लड़की को ट्रैफिकिंग के जाल से छुड़ा कर गांव लाया गया था तब भी कुछ ऐसा ही हुआ था. अंत में उसके माता-पिता ने उसकी शादी करवा दी. धर्मनाथ बताते हैं कि इस इलाके में कई ऐसे परिवार हैं जिनकी बेटी को शहर में बेच दिया गया है लेकिन आज तक उन्होंने एफ़आइआर दर्ज नहीं करवायी की है. इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे पुलिस स्टेशन जाने से डरना, कानूनी जागरूकता की कमी और बदनामी का डर व कई तरह के सामाजिक दबाव.
मैं मुड़की से दोबारा बात करने का प्रयास करने लगा. उससे एक अदभुत बात पता चली कि उसे गांव पसंद नहीं आ रहा है. उसे घर में रहना भी पसंद नहीं है. मुड़की बताती है कि दिल्ली में उसका जीवन बेहतर था, वहां उसे बेहतर खाना मिलता था और रहने के लिए भी अच्छी जगह थी.
मैंने सोचा कि पांच साल पहले जो मुड़की अपने गांव से दिल्ली गई थी, क्या वो सच में वापस आ गई है? उसे आगे क्या करना है, क्या वो जानती है? मैंने पूछा- "तुम वापस क्यों आई फिर?" उसने मुस्कराते हुए कहा, "यहां मम्मी-पापा हैं न!" दिल्ली वापस जाना चाहोगी? इस पर मुड़की कहती है कि अब वो दिल्ली नहीं जाएगी क्योंकि परिवार तो यहां है. अपने भविष्य को लेकर मुड़की आश्वस्त नजर नहीं आती, लेकिन उसे पढ़ने का मन है. नाम लिखवाने के सवाल पर मुड़की शुरू में ना करती है, लेकिन उसकी मम्मी कहती हैं कि वे मुड़की को पढ़ाना चाहते हैं.
शाम होने को थी. अब विदा लेने का वक्त था, लेकिन मुड़की से इस मुलाकात के बाद हम कई सवाल अपने साथ लेकर जा रहे थे. पिछले पांच साल में मुड़की जिस मानसिक प्रताड़ना से गुजरी है, क्या वापस आने के बाद वो अपने गांव, जंगल और परिवार सबको पहले की ही तरह अपना पाएगी? आज उसके पास कोई काम नहीं है. परिवार आर्थिक समस्याओं से गुजर रहा है. जिस कारण से उसने पांच साल पहले गांव छोड़ा था वो आज भी उसी स्थिति में खड़ी है. तो क्या उसके गांव वापस आ जाने मात्र से उसकी सारी समस्याओं का हल हो चुका है? पूरे गांव से अलग-थलग होकर अपने घर में बैठी मुड़की के मन में आखिर क्या चल रहा होगा? उसे ट्रैफिकर्स से तो रेस्क्यू करवा लिया गया, लेकिन उसकी समस्याओं से उसे बाहर निकालने का रास्ता क्या है. इसका जवाब कौन देगा?
(साभार- जनपथ)