दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
कवि हरिवंश राय बच्चन की मशहूर कविता का शीर्षक सरकार ने चुन लिया है- अग्निपथ. यह नाम है सेना में जवानों की भर्ती वाली नई योजना का. इसकी दो व्याख्याएं हो सकती हैं. फिलहाल यह योजना सरकार के लिए अग्निपथ बन गई है. दूसरे तरीके से आप कह सकते हैं कि सिर मुंडाते ही ओले पड़ गए. यह हिंदी भाषा की खासियत है कि दो सरासर विपरीत गुण वाले तत्व एक ही भाव को व्यक्त करने के काम आ जाते हैं, आग और बर्फ.
हालात नाजुक हैं. फौज में नौकरी करने की चाह रखने वाले युवा अग्निपथ योजना को धोखा बता रहे हैं. पेंशन रहित, बिना किसी सामाजिक सुरक्षा योजना वाली चार साल की सेना की नौकरी युवाओं को रास नहीं आ रही. बीते दो सालों से सरकार ने फौज में नियुक्तियां रोक रखी थीं, और अब ये नया शगूफा. खार खाए युवा इस नीति के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं.
योजना की घोषणा के वक्त सरकार ने दावा किया कि इस योजना के बारे में लंबे समय से सभी स्टेकहोल्डर्स से विमर्श चल रहा था. पर ये विमर्श कुछ ऐसे चल रहा था कि मोदी सरकार के हाथ हवन करते ही जल गए.
उधर कांग्रेस पार्टी के भावी अध्यक्ष राहुल गांधी से प्रवर्तन निदेशालय बोले तो ईडी ने कई दिन तक पूछताछ की. अभी भी उनकी पूछताछ पूरी नहीं हुई है. यह पूछताछ नेशनल हेराल्ड मामले में हो रही है. अपने नेता को सरकारी एजेंसी के सामने पेश होता देख, कांग्रेस के नेता एक झटके में अपनी आरामगाहों से निकल कर जेठ की तपती दुपहरी में दिल्ली की सड़कों पर आ गए.
नेशनल हेराल्ड का मामला थोड़ा संक्षेप में समझने के लिए यह टिप्पणी देखी जाइए.
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