अलीगढ़ शराब कांड: “मेरे लिए अब हमेशा रात है”

हर मृतक के परिजनों की एक ही कहानी है, शराब पीने के बाद उन्हें उल्टी शुरू हुई. थोड़ी देर बाद आंखों की रोशनी चली गई. अस्पताल लेकर भागे लेकिन रास्ते में ही शरीर नीला पड़ गया और मौत हो गई.

WrittenBy:बसंत कुमार
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बीजेपी से पीड़ितों के परिजन क्यों नाराज़ हैं ?

अंडाला गांव के रहने वाले विशाल पाठक बेहद नाराज़ होकर कहते हैं, ‘‘जब हमारे गांव में लोग मर रहे थे तो कोई भी बीजेपी वाला नहीं आया. एक दिन यहां के सांसद सतीश गौतम सड़क पर आए और चले गए. किसी पीड़ित से मिले तक नहीं. वहीं नूरपुर में जाकर भाषण देकर आए थे. मेरा पूरा गांव बीजेपी का वोटर रहा है लेकिन अबकी बार इनको सबक सिखाएंगे.’’

छेरत गांव ठाकुर बाहुल्य गांव हैं. यहां आठ लोगों की शराब पीने से मौत हुई. यहां एक दिन में पांच लोगों की मौत हो गई थी. लेकिन यहां किसी भी पीड़ित के घर कोई भी बीजेपी के नेता नहीं पहुंचे. 28 मई को यहां के मनोज चौहान की मौत भी शराब पीने से हो गई थी.

मनोज के छोटे भाई रामखिलवान चौहान बीजेपी सांसद सतीश गौतम पर शराब माफियाओं को बचाने का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, ‘‘इस घटना के बाद जहां एक तरफ जिलाधिकारी आरोपियों पर कार्रवाई कर रहे हैं वहीं हमारे सांसद आरोपियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. वे एक बार भी हम लोगों से मिलने नहीं आए जबकि यहां एक दिन में पांच लोगों की मौत हुई थी. चुनाव के बाद से अब तक वो हमारे गांव में आए ही नहीं हैं.’’

ऋषि मिश्रा के फार्म हाउस के बाहर लगा बोर्ड. जो उनके बीजेपी में होने की गवाही दे रहा है

लोगों का बीजेपी पर शक तब और बढ़ गया जब सांसद सतीश गौतम प्रशासन के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिए. उन्होंने जिलाधिकारी पर कई आरोप लगाए. ऐसा वो तब कर रहे थे जब प्रशासन आरोपियों पर कार्रवाई कर रहा था.

दरअसल जिला प्रशासन ने विजेंद्र कपूर नाम के एक व्यापारी को गिरफ्तार किया है. कपूर अवैध रूप से मिथाइल अल्कोहल का स्टैक रखे हुए थे. पुलिस ने जांच में पाया था कि शराब बनाने के लिए मिथाइल अल्कोहल कपूर की ही फैक्ट्री से गया था.

पुलिस द्वारा विजेंद्र कपूर को गिरफ्तार करने के बाद ही सांसद उनके बचाव में उतर आए. उन्होंने कहा, ‘‘अगर व्यापारी गलत है तो इसकी पूरी जांच की जाए. उसका उत्पीड़न न किया जाए. जिला प्रशासन अपनी तानाशाही चला रहा है. अपनी तानाशाही से किसी को दोषी नहीं बना सकते हैं. किसी निर्दोष व्यापारी का मैं उत्पीड़न सहन नहीं करूंगा और किसी निर्दोष को फंसने भी नहीं दूंगा. विजेंद्र कपूर सज्जन और खानदानी जमीदार आदमी हैं.’’

एक स्थानीय पत्रकार नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि सांसद और व्यवसायी विजेंद्र कपूर ना सिर्फ पड़ोसी हैं बल्कि कारोबारी पार्टनर भी हैं. जिस कारण सांसद उनके बचाव में उतर गए और जिलाधिकारी पर ही आरोप लगाने लगे. पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया लेकिन विजेंद्र की गिरफ्तारी के खिलाफ सांसद क्यों खड़े हो गए? यह सवालों के घेरे में तो है. इन आरोपों पर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए सांसद सतीश गौतम कहते हैं, ''मैंने विजेंद्र कपूर का बचाव नहीं किया था. हमने यह कहा कि किसी भी व्यवसायी को नाजायज नहीं फंसाया जाए. अगर दोषी है तो किसी को बख्शा न जाए.''

लेकिन आप एक सांसद है. पुलिस का आरोप है कि विजेंद्र कपूर के यहां से ही मिथाइल अल्कोहल लेकर शराब में मिलाया गया. ऐसे में उनका बचाव करना गलत नहीं है. इतने लोग गिरफ्तार हुए आपने सिर्फ कपूर के लिए आवाज़ क्यों उठाई. इस सवाल के जवाब में गौतम कहते हैं, ‘‘जिस सोसायटी में वीरेंद्र कपूर रहते हैं. उसी सोसायटी में मैं भी हूं. पड़ोसी होने के नाते उनके बच्चे और पत्नी मेरे पास आए. उन्होंने बताया कि वे निर्दोष है. ऐसे में मानवता के नाते मैंने बोला कि किसी निर्दोष को फंसाया न जाए. मेरी जगह होते तो आप क्या करते. योगी सरकार के शासन में प्रशासन में किसी की दखल नहीं होती है. जहां तक रही उनके साथ व्यवसाय की बात तो मेरा या मेरे परिवार का अलीगढ़ में कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है.’’

बीजेपी के नेता मृतकों के घर नहीं जा रहे इसका एक बड़ा कारण छेरत गांव के शराब ठेके पर लिखा ठेकेदार का नाम भी है. यह ठेका ममता शर्मा के नाम पर है. जो ऋषि शर्मा के परिवार से हैं. ऋषि आरएलडी नेता अनिल चौधरी और विपिन यादव के साथ इस मामले का मुख्य आरोपी है. आरएलडी नेता अनिल और विपिन को पुलिस ने शुरूआती दिनों में ही गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन ऋषि फरार था. पुलिस ने शर्मा के बेटे और भाई समेत कई लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इसके बाद भी शर्मा पुलिस के सामने हाजिर नहीं हुए तो पुलिस ने उनपर एक लाख का इनाम रख दिया. छह जून को उन्हें पकड़ लिया गया.

छेरत गांव में ऋषि मिश्रा का ठेका

ऋषि शर्मा का परिवार पहले ब्याज पर पैसे देने का काम करता था. 90 के दशक में वे शराब के पेशे में आए और आज शराब के बड़े व्यापारी है. उनके पास करोड़ो की संपत्ति है. शर्मा को प्रधान और बीडीसी चुनाव में मात देने वाले अब्दुल चमन खां सिद्दीकी न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बताते हैं, ‘‘ऋषि के दादा रामजी लाला और दादी गोपी पंडिताइन यहां ब्याज पर पैसे चलाने का काम करते थे. इस गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांव में भी लोग उनसे ही पैसे लेते थे. साल 1990 के दशक में शराब के पेशे में आए. पहले इनके पास एकाध ठेका था, लेकिन अब इनके कई ठेके हैं.’’

ऋषि शर्मा के राजीतिक जुड़ाव को लेकर सिद्दीकी बताते हैं, ‘‘अभी वो बीजेपी से जुड़े हुए हैं. साल 2017 में उनकी पत्नी बीडीसी का चुनाव बीएसपी से जीती थीं. प्रदेश में सरकार बदलने के बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए. तब से बीजेपी में ही हैं. उनका पूरा परिवार बीजेपी में ही है. उनके चाचा के लड़के ओमप्रकाश भारद्वाज उर्फ़ लालू बीजेपी के मंडल अध्यक्ष हैं. उनके चाचा के दूसरे लड़के ललित कुमार की पत्नी को बीजेपी ने हाल ही में किसान ग्रामीण बैंक का चुनाव जितवाया था. वे बीजेपी में थे. उनके कार्यक्रमों में जाते थे. यहां प्रचार करते थे.’’

बीएसपी से जुड़े सिद्दीकी बताते हैं कि पहले भी इनपर एकबार शिकायत हुई थी लेकिन इस तरह पुलिस पकड़ने नहीं आई थी. तब कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.

जानकारों की माने तो ऋषि शर्मा बीएसपी सरकार में मंत्री रहे जयवीर सिंह के सहयोगी हैं. जब तक सिंह बीएसपी में थे शर्मा भी बीएसपी में रहे. जब 2017 में सिंह बीजेपी में शामिल हो गए तो उनके साथ शर्मा भी बीजेपी में शामिल हो गए. जवां गांव के रहने वाले ऋषि शर्मा भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए हैं. जिसकी तस्दीक उनके घर के आसपास लगे बोर्ड भी कर रहे हैं. भगवा और हरे रंग के बीजेपी के बोर्ड पर रैना शर्मा का नाम लिखा हुआ है. रैना शर्मा, ऋषि शर्मा की पत्नी हैं जो बीते चुनाव तक जवां ब्लॉक की पंचायत प्रमुख थी. ऋषि शर्मा की कई तस्वीरें बीजेपी नेताओं के साथ वायरल हुईं.

ऋषि शर्मा को बीजेपी में लाने का श्रेय लोग बीजेपी जिला महामंत्री शिवनारायण शर्मा को देते हैं. हालांकि शर्मा इस बात से इंकार करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए शर्मा कहते हैं, ‘‘नहीं-नहीं ऋषि कभी बीजेपी में शामिल नहीं हुए हैं. हो सकता है कि मिस कॉल मारकर शामिल हुए हों. ऐसे तो कई लोग शामिल हुए हैं. वे कभी किसी पद पर नहीं रहे और ना ही बीजेपी के किसी कार्यक्रम में शामिल हैं. जहां तक रही उन्हें जानने की बात तो प्रमुख थे तो उनको सब जानते ही थे.’’

बीजेपी नेताओं का पीड़ितों के परिवार से मिलने के सवाल पर शर्मा कहते हैं, ‘‘ऐसा नहीं है. हमारे तमाम नेता, चाहे सांसद हो या विधायक. जिला अध्यक्ष हो या बाकी कोई भी नेता. सब पीड़ितों से मिले हैं. हमारी सरकार तमाम आरोपियों को गिरफ्तार कर रही है. उनकी संपत्ति जब्त कर रही है. जब बीजेपी की सरकार कार्रवाई कर रही है तो हम क्यों नहीं पीड़ितों से मिलेंगे.’’

जिला अस्पताल में एक मरीज को देखते डॉक्टर

एक तरफ जहां बीजेपी के नेता दावा कर रहे हैं कि ऋषि बीजेपी में शामिल नहीं हुआ था वहीं अलीगढ़ बीजेपी अध्यक्ष ऋषिपाल सिंह ने उसकी गिरफ्तारी के बाद पार्टी से निकाल दिया था. जब शामिल ही नहीं हुए थे तो निकाला क्यों. इस सवाल के जवाब में ऋषिपाल सिंह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘मीडिया हमपर सवाल उठा रहा था. ऋषि किसी पद पर तो था नहीं. हो सकता है मिस कॉल मार कर सदस्य बना हो. करोड़ो लोग इसी तरह हमारे सदस्य बने हैं. हमने उसकी प्राथमिक सदस्यता रद्द कर दी है.’’’

जिलाधिकारी चन्द्र भूषण सिंह न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘इसका पूरा नेटवर्क हमने पता लगा लिया है. और जितने माफिया चिन्हित किये गए हैं उनपर कठोर कार्रवाई हो हो रही है.’’

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने बड़े स्तर पर शराब माफिया मिलावट का कारोबार कर रहे थे लेकिन स्थानीय प्रशासन की नींद तब खुली जब 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई.

स्थानीय सांसद सतीश गौतम भी इसी की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘‘आबकारी विभाग के बिना यह सब कैसे चल सकता है. आबकारी विभाग के अधिकारी रोज ठेके में जाकर रजिस्टर देखते हैं. उसका निरीक्षण करते हैं. तो कैसे नकली शराब बिक सकती है. बिना अधिकारीयों के मिले हुए. आबकारी विभाग 100 प्रतिशत मिला हुआ है. इतने लोगों की जान गई है. जहां तक रही जिलाधिकारी पर सवाल की बात तो अगर जिले में कुछ अच्छा होता है तो उसका क्रेडिट वो लेते हैं तो इसकी भी जिम्मेदारी उन्हें लेनी होगी, क्योंकि जिले के मालिक तो वो ही हैं.’’

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