प्रियंका गांधी की प्रेस वार्ता के तुरंत बाद प्रदेश के अन्य दलों की ताबड़तोड़ प्रतिक्रिया आनी शुरू हुई. होना तो यह चाहिए था कि इस फैसले का स्वागत होता लेकिन टीवी मीडिया ने इसको शुरू से ही सियासी रंग दे दिया.
भारतीय जनता पार्टी बार-बार यह भूल जाती है कि उनके बलात्कार आरोपी विधायक को महीनों बचाया गया, स्वामी चिन्मयानंद पर एक लड़की ने रेप का आरोप लगाया और सरकार ने पीड़िता पर ही मुकदमा लाद दिया. कश्मीर में एक रेप के आरोपी के समर्थन में वहां के भाजपा के लोगों ने रैली निकाली.
टीवी पर भाजपा के प्रवक्ता कह रहे हैं कि इससे प्रिविलेज्ड महिलाओं को फायदा होगा! अगर यह सही भी है तब भी कांग्रेस का यह फैसला बेहतरीन है क्योंकि हमारे यहां पुरुषों के सामने महिलाएं कभी प्रिविलेज्ड नहीं होतीं! सिर्फ ऑब्जेक्ट होती हैं! मज़ेदार बात ये है कि प्रिविलेज्ड महिलाओं को फायदा होने पर सारे सवाल पुरुष कर रहे हैं- पत्रकार के रूप में, प्रवक्ता के रूप में, चिंतक के रूप में.
किसान बिल से ज़्यादा जरूरी है संसद में महिलाओं को 50 फीसदी हिस्सेदारी देना. तो क्यों नहीं भाजपा इसका बिल पास करवा देती? बस टीवी पर इनके प्रवक्ता यह कहते हैं कि “देश को पहली महिला वित्तमंत्री हमने दिया”. भाजपा ने तो पुरुष मंत्रियों को फैसला नहीं लेने दिया, महिलाओं का तो ‘महिला’ होने से ही काफी है. सब मिट्टी के माधो हैं- वो पहली हों या दूसरी! ख़ैर! दो को छोड़ जिसका पूरा मंत्रिमंडल ही “मार्गदर्शक मंडल” हो, उसकी बात पर क्या टिप्पणी!
जब तक ‘पहली महिला, दूसरी महिला’ वाला राग चलता रहेगा तब तक यह समझने में कोई मुश्किल नहीं है कि महिलाओं को क्या मिला अभी तक. डॉक्टर अम्बेडकर के शब्दों में- जिसका भाव यह है कि किसी भी मुल्क/समाज की वास्तविक स्थिति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां की महिलाओं की स्थिति कैसी है!
आज जरूरी है कि महिलाओं के लिए कानून बने न बने, लेकिन जहां कानून बनता है वहां महिलाएं पहुंचें. तभी इतनी बड़ी गैर-बराबरी समाप्त हो सकती है क्योंकि सशक्तिकरण का असली अर्थ है फैसले लेने की स्वतंत्रता मिलना.
(साभार-जनपथ)