उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में राजभर जाति का वोट लुभाने के लिए सभी पार्टियों ने कोशिश की है, लेकिन किस ओर जाएंगे राजभर?
उत्तर प्रदेश का गाजीपुर प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में आता है. यहां की जहूराबाद विधानसभा में राजभर समुदाय का निर्णायक वोट बैंक रहता है, लेकिन उनके विकास के लिए कोई काम नहीं किया गया है.
35 वर्षीय सरोज बांस के डंडों पर खड़ी एक झोपड़ी में रहती हैं. उनके छह छोटे बच्चे हैं. धरवार कलां गांव में उनके जैसे कई और राजभर परिवार हैं जो घर, शौचालय और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं से अब तक वंचित हैं. उनके पति नैनीताल में मजदूरी का काम करते हैं और यह राजभर समुदाय में लगभग हर परिवार की कहानी है. नौकरी के अवसरों से वंचित, राजभर परिवार का कोई न कोई पुरुष सदस्य, राजस्थान और गुजरात जैसे दूसरे राज्यों में पैसे कमाने के लिए जाता है.
सरोज के पति हर महीना केवल 6000 रुपए ही कमा पाते हैं. बढ़ती महंगाई के चलते, सरोज ने पिछले एक साल से सिलिंडर में गैस नहीं भरवाई है. यह सिलिंडर उन्हें उज्वला योजना के तहत मिला था.
"हमारे पास इतना पैसा नहीं बचता कि सिलिंडर भरवा सकें. रास्ते से लकड़ियां बटोरकर ले आती हूं." सरोज की झोपडी के अंदर एक कोने में मिट्टी का चूल्हा बना हुआ है. वह पिछले एक साल से इसी चूल्हे पर खाना बना रही हैं. यह अनाज उन्हें सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुफ्त राशन की बदौलत मिलता है.
सरोज बताती हैं, "मैं चार साल से प्रधानमंत्री आवास योजना में मकान के लिए आवेदन कर रही हूं. एक दिन प्रधान का कॉल आया था. मैं फोटो खींचकर लेकर गई थी, लेकिन मकान नहीं मिला."
उनके घर के आसपास शौचालय तक नहीं है. "सुरक्षित नहीं लगता, लेकिन शौच के लिए पास के ईंटों की भट्टी के किनारे जाना पड़ता है." सरोज ने कहा.
सरोज की पड़ोसी 28 वर्षीय पूनम राजभर को पीएम आवास योजना के लिए एक लाख 20 हजार रुपए मिले थे, जिससे उन्होंने ईंटों पर एक घर खड़ा कर लिया. पर वो कहती हैं कि यह घर बनवाने के लिए उन्हें अपने प्रधान को इस राशि का कुछ हिस्सा घूस के रूप में देना पड़ा.
इस घर के दो कमरे बनवाने के लिए उन्हें एक लाख रूपए कर्ज भी लेना पड़ा था. पूनम कहती हैं, "हमारे सर पर छत है. गैस मिली है. मुफ्त राशन मिलता है. फिलहाल हम इसी से खुश हैं."
पूनम के पति गुजरात में मजदूर हैं. लेकिन काम न होने के कारण पिछले चार महीने से गांव में ही रह रहे हैं, वरना वह 5000 रुपए महीना कमाते थे.
इस समय घर को पूनम चला रही हैं. वह खेतों में जाकर मजदूरी करती हैं. इसके लिए उन्हें पैसे नहीं मिलते बल्कि काम के बदले गेहूं मिलता है. जहां एक तरफ महिलाएं सरकार की इस कल्याणकारी योजना का फायदा उठा रही हैं, वहीं पुरुष नौकरियों में अपना हिस्सा चाहते हैं.
40 वर्षीय मुन्ना राजभर के बेटे की लाश गांव के पास एक तालाब में मिली थी. आगे की कहानी मुन्ना खुद बताते हैं, "इस सरकार में प्रशासन नाम की कोई चीज ही नहीं है. 13 फरवरी को मेरा बेटा गायब हुआ था. 17 तारीख को मुझे उसकी लाश तालाब में मिली. पुलिस ने मेरी एफआईआर तक नहीं लिखी. मुझे अदालत का सहारा लेना पड़ा."
मुन्ना भी गांव के अन्य पुरुषों की तरह ही काम की तलाश में मुंबई, दिल्ली और गुजरात घूमते रहते हैं.
उत्तर प्रदेश में राजभर समाज का लगभग चार फीसदी वोट है, जो आम तौर पर दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं. फिलहाल राजभर समाज, अन्य-पिछड़े वर्ग यानी ओबीसी में आते हैं, लेकिन उनकी मांग है कि उनकी गिनती अनुसूचित जाति (एससी) में की जाए.
उन्हें आने वाली सरकार से जातिगत जनगणना की उम्मीद है, ताकि उनके समाज से आने वाले लोगों को नौकरियों में अधिक आरक्षण मिल सके. राजभर समुदाय के नेता ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, इस बार का चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ रही है.
योगी सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री रहे ओमप्रकाश राजभर ने 2019 में ही इस्तीफा देकर भाजपा से किनारा कर लिया था. वे कई बार सार्वजानिक तौर पर बयान दे चुके हैं कि उन्होंने ऐसा, जातिगत जनगणना की उनकी बात नहीं माने जाने के कारण किया.
मुन्ना कहते हैं, "अगर जातिगत आधार पर सीटें बंट जाएगी तो चाहे डीएम हो, एसपी हो या क्लर्क- जिसकी भी नौकरी खाली होगी उस पर अपनी जाति के प्रतिशत के हिसाब से आरक्षण मिल जाएगा."
राजभर समाज का वोट काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है. इनका प्रभाव यूपी के 15 जिलों की 150 सीटों पर देखने को मिलता है जिनमें वाराणसी, अयोध्या, मऊ, गाजीपुर और बलिया अहम हैं.
जगदीशपुर कलां गांव में रहने वाले 50 वर्षीय भाजपा कार्यकर्ता दीनानाथ राजभर कहते हैं, "भाजपा सरकार में हमें वृद्धा पेंशन मिल रही है, जो 500 रुपए से बढ़कर 3000 रुपए हो गई है."
उन्हीं के बगल में खड़े राम लाल यादव, दीनानाथ को बीच में टोकते हुए बोलते हैं, "रोजगार खत्म हो चुका है. हमारे दोनों लड़के सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन दो-दो साल से नतीजे अटके हुए हैं."
30 वर्षीय चिंता देवी के दो बच्चे हैं. एक 8वीं और दूसरा 12वीं कक्षा में पढता है. वह गांव में यादवों से परेशान हैं. चिंता बताती हैं, "हम यादवों के खेत में काम करते हैं लेकिन हमें सही से दिहाड़ी नहीं मिलती. हमारे गांव के प्रधान भी यादव हैं, लेकिन गांव में सड़क नहीं बन पाई है अब तक."
आपको किस पार्टी से उम्मीदें हैं? हमने पूछा.
चिंता ने जवाब में कहा, "ओम प्रकाश राजभर कभी गांव में नहीं आए, लेकिन वह हमारी जाति के नेता हैं, और इसलिए हम उन्हें वोट देंगे भले ही उन्होंने सपा के साथ गठबंधन कर लिया हो."
गाजीपुर की जहूराबाद विधानसभा सीट से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर, सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं. बसपा ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और जहूराबाद विधानसभा की पूर्व विधायक सैयद शादाब फातिमा को अपने प्रत्याशी के तौर पर घोषित किया है. वहीं भाजपा ने भी राजभर समाज के ही कालीचरण राजभर को उम्मीदवार बनाकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है.
गाजीपुर की सभी विधानसभा सीटों पर 7 मार्च को मतदान होगा और 10 मार्च को नतीजों की घोषणा की जाएगी.