ग्राउंड रिपोर्ट: यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की विधानसभा सीट सिराथू की पड़ताल

सिराथू विधानसभा सीट से एक बार फिर केशव प्रसाद मौर्य चुनावी मैदान में हैं, लेकिन इस बार यह लड़ाई पहले जितनी आसान नहीं दिख रही है.

22 वर्षीय बिपिन कुमार ने बचपन से केशव प्रसाद मौर्य को केसरिया गांव में आते-जाते देखा है. वह पेशे से वेल्डर हैं, लेकिन लॉकडाउन के बाद से उनके पास कोई काम नहीं है. उनका मानना है कि केशव प्रसाद मौर्य ने युवाओं के रोजगार के बारे में कभी नहीं सोचा. वे कहते हैं, "अगर पार्टी में हमारे बीच से भी कोई है लेकिन उसे हमारी चिंता नहीं है, तो हम कब तक उसके बारे में सोचते रहेंगे?"

बिपिन आगे कहते हैं, “हमें मुफ्त राशन नहीं चाहिए. सरकार ने मुफ्त राशन और मुफ्त सिलिंडर दिया है लेकिन कोई हमें गैस भरवाने के लिए 900 रुपए कहां से देगा?"

भाजपा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं ने मतदाताओं के भीतर निराशा भी पैदा की है. साल 2020 में, पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने भाजपा की कल्याणकारी योजनाओं के लिए 'नया कल्याणवाद' शब्द का प्रयोग किया था. इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखे एक लेख में उन्होंने कहा था कि एक मतदाता, मुफ्त राशन और सिलेंडर हमेशा याद रखता है. मतदाता को शायद उसे मिलने वाले मौलिक अधिकारों, जैसे शिक्षा के अधिकार से ज्यादा फर्क न दिखाई पड़े, लेकिन घर पर रखा मुफ्त सिलेंडर हमेशा उसके सामने रखा है जो उसे सरकार की योजनाओं की याद दिलाता रहता है.

केसरिया गांव से करीब 200 मीटर दूर एक दलित बस्ती है. यहां पर अभी भी कच्ची सड़कें और गंदे नाले हैं.

35 वर्षीय नानकी दिहाड़ी मजदूर हैं और दिन का 250 रुपए कमा लेती हैं. वह परेशान हैं क्योंकि उन्हें विधवा पेंशन नहीं मिल रही. नानकी बताती हैं, "मुझे अभी भी मासिक विधवा पेंशन नहीं मिलती है. पीएम आवास योजना के तहत घर मिला है लेकिन यहां शौचालय नहीं बना था. शौचालय के निर्माण के लिए हमें अपनी जेब से 4000 रुपए भरने पड़े थे."

जब हमने उनसे पूछा कि वह किसे वोट देने का सोच रही हैं? नानकी ने सोचकर जवाब दिया, "अभी मैंने अपना मन नहीं बनाया है."

हालांकि हर कोई अपनी चुनावी पसंद को लेकर नानकी की तरह अनिश्चित नहीं है. मार्च 2020 में लगे लॉकडाउन के बाद देशभर में लाखों मजदूरों ने अपने गांव वापस पलायन शुरू कर दिया था. उसी दौरान इसी बस्ती में रहने वाले दिलीप कुमार, सरोज और बौद्ध राम, अम्बाला से पैदल चलकर सिराथू लौटे थे. उसके बाद से तीनों बेरोजगार हैं.

दिलीप ने हमसे कहा, "हम समझ नहीं पा रहे हैं कि काम के लिए जुगाड़ कैसे किया जाए. हमने अपना मन बना लिया है कि इस सरकार को पूरी तरह से उखाड़ फेंका जाना चाहिए."

53 वर्षीय अबरार अहमद इस बार शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य पर वोट देना चाहते हैं. अबरार और केशव आठवीं कक्षा तक साथ पढ़े हैं. दोस्ती के नाते वह चाहते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य ही चुनाव जीतें. हालांकि योगी आदित्यनाथ द्वारा दिए गए "80 बनाम 20" वाले भाषण से वह आहत हुए हैं. वह कहते हैं, "मुख्यमंत्री का ऐसा कहना अशोभनीय है. सरकार हमारे माता-पिता समान है, और आप ही हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं?"

अबरार भाजपा के काम से खुश नहीं हैं लेकिन केशव प्रसाद मौर्य के साथ उनके पुराने रिश्ते के नाते वह उन्हीं को वोट देंगे. "मैं चाहता हूं केशव प्रसाद मौर्य चुनाव जीते और इस बार उपमुख्यमंत्री नहीं बल्कि मुख्यमंत्री बनाए जाए."

जीत का रास्ता कितना आसान है?

दलित बस्ती के पीछे और अबरार के घर से 100 मीटर दूर ही केशव प्रसाद मौर्य का घर है.

बस्ती के कई लोग कहते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य का भतीजा रवि मौर्य और उसका दोस्त आशु मौर्य स्थानीय दबंग हैं. एक शख्स ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया, "पिछले साल13 फरवरी को आशु सोनकर पर कथित रेप का आरोप लगा था और उस पर एफआईआर दर्ज हुई थी. जिसके बाद पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. आशु और रवि साथ घूमा करते थे. आज भी इनका दबदबा है." स्थानीय पत्रकारों ने इन आरोपों की पुष्टि की है.

जिन लोगों ने भी हमें ये बातें बताई सब के अंदर एक डर था और इसलिए वे अपनी पहचान गुप्त रखना चाहते हैं.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में गैर- ओबीसी वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में ओबीसी का कुल वोटिंग प्रतिशत 40 प्रतिशत रहता है. इन में 7 प्रतिशत यादव, 5 प्रतिशत मौर्य, और 5 प्रतिशत कुर्मी निर्णायक वोट बैंक साबित होते हैं. 2017 चुनाव की तरह इस बार भी, भाजपा का पूरा जोर गैर-ओबीसी और गैर-जाटव मतदाताओं को लुभाने में है.

लेकिन इस बार पल्लवी पटेल की उम्मीदवारी ने सिराथू में इस बार मुकाबला रोचक बना दिया है. अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल, डॉ. सोनेलाल पटेल की बेटी हैं और समाजवादी पार्टी के निशान पर केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरी हैं.

1995 में बसपा के प्रसिद्ध नेता डॉ. सोनेलाल पटेल ने कांशीराम से मतभेदों के चलते पार्टी से किनारा कर लिया था और अपना दल की नींव रखी. पिछड़े तबकों, मुख्यतः कुर्मी व मौर्य समाज के प्रतिनिधित्व के हक़ पर बनी इस पार्टी को 2014 के लोक सभा चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन कर सफलता मिली. लेकिन पारिवारिक खटास के चलते, 2015 में पार्टी दो हिस्सों -अपना दल (कमेरावादी) और अपना दल (सोनेलाल) में बंट गई. अपना दल (कमेरावादी) की कमान डॉ. सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल ने संभाली है, जो इस बार का चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ रही हैं. वहीं अपना दल (सोनेलाल) का नेतृत्व उनकी दूसरी बेटी अनुप्रिया पटेल के पास है जो भाजपा के साथ गठबंधन में हैं.

पल्लवी पटेल ने न्यूज़लॉन्ड्री को दिए इंटरव्यू में कहा, "मैं चुनाव शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर लड़ रही हूं. भाजपा गुंडों की पार्टी है. उसे जनता खुद हटाकर सबक सिखाएगी." पल्लवी पटेल का मानना है कि सिराथू की जनता इस बार अपनी "बहू" पल्लवी को अपना नेता चुनेगी.

(दिलशाद अहमद के सहयोग से)

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