योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में 4.5 लाख नौकरियां देने का दावा किया है. जानिए क्या है इस दावे की सच्चाई.
"बेरोजगारी पर मुखर होकर बोले तो होगी कार्रवाई"
20 वर्षीय विकास पटेल सोनकर लॉज में रहते हैं. वह आईईआरटी कॉलेज में बीटेक की पढ़ाई कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि 25 जनवरी को पुलिस उनके कमरे में घुस आई और उनका मोबाइल ले गई. विकास को आज तक उनका मोबाइल नहीं मिला है.
युवा मंच के नाम से मशहूर स्थानीय छात्र मंच के संयोजक राजेश सचान पिछले साल 120 दिनों तक बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन पर बैठे थे. इस साल एनटीपीसी आरआरबी के विरोध के हिंसक होने के तुरंत बाद कर्नलगंज पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर में उन्हें अचानक मुख्य आरोपी के रूप में नामित किया गया और पांच दिनों के लिए जेल में रखा गया.
सचान का दावा है कि उन्हें टारगेट किया गया क्योंकि उन्होंने छात्रों के लॉज में हुई हिंसा का वीडियो एनएचआरसी को भेजा था. "मैंने यह वीडियो एनएचआरसी, चुनाव आयोग और पीएमओ को टैग कर ट्वीट किया था. मुझे निशाने पर लेने के लिए यह तात्कालिक वजह बनी." सचान कहते हैं.
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के संयोजक, 40 वर्षीय अवनीश कुमार पांडेय, अखिलेश यादव के कार्यकाल में यूपीपीसीएस 2016 परीक्षा भर्ती में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस लड़ रहे हैं. यही नहीं वह यूपी-पीसीएस (मेंस) 2011 में आरक्षण नीति में अनियमता और फिर 2015 में पेपर लीक में जांच के लिए भी लड़ाई लड़ रहे हैं.
इसके लिए 2014 और 2017 के बीच अवनीश को वर्तमान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से समर्थन भी मिला था और उस समय उन्होंने विरोध-प्रदर्शन में भी भाग लिया था.
अवनीश कहते हैं, "पूर्व सरकार में हमने कई बार आंदोलन किया. अब भी कर रहे हैं. हम कोर्ट के चक्कर भी लगा रहे हैं. लेकिन न पूर्व सरकार, न ही इस सरकार में कुछ मिल रहा है. हम चाहते हैं पूर्व सरकार में जांच का जो आश्वासन मिला था, वह पूरी कराई जाए. सीएम योगी आदित्यनाथ का नौकरियों पर आंकड़ा 3.5 लाख से शुरू हुआ और 4.5 लाख पर पहुंच गया है. सरकार केवल इतना सार्वजनिक कर दे कि किस विभाग में उसने कितनी नौकरियां दी हैं. सच पता चल जाएगा कि पूर्व सरकार की भर्तियों को जोड़कर यह आंकड़ा बनाया गया है और अभी भी भर्ती नहीं हुई है. छात्र कोर्ट में मुकदमा लड़ रहे हैं. सरकार दमन का तरीका अपना रही है जो उचित नहीं है."
मध्य प्रदेश के रीवा जिले से इलाहबाद विश्वविद्यालय से पीजी की पढ़ाई कर रहे छात्र सत्यम कुशवाहा पिछले पांच वर्षों से यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं. वह कहते हैं, "यूपी में छात्रों का बोलना मना है. अगर छात्र आंदोलन करते हैं तो उन पर लाठी-डंडे बरसाए जाते हैं. अगर आप तब भी बात नहीं मानेंगे तो जेल में उठाकर डाल दिए जाओगे. मैं खुद इसका गवाह रहा हूं. मेरी उम्र केवल 22 वर्ष है और मुझपर 17 मुकदमे दर्ज कर चुकी है केवल इसलिए क्योंकि मैंने बेरोजगारी के खिलाफ बोला."
वह आगे कहते हैं, "यहां कई छात्र आत्महत्या कर रहे हैं. छात्र यहां दस-दस साल तैयारी करते हैं. उनकी उम्र निकल जाती है लेकिन नौकरियों पर भर्ती नहीं होती. छात्र-छात्राएं फ़्रस्ट्रेट हो जाते हैं और मजबूरी में आत्महत्या करते हैं. "
सुमित गौतम शिक्षा भर्ती की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने हमें बताया, "उत्तर प्रदेश सरकार कह रही है कि उसने 1 लाख 37 हजार शिक्षक भर्ती निकाली हैं. दरअसल पिछली सरकार में 1.37 हजार शिक्षा मित्रों का समायोजन हुआ था. योगी सरकार ने उसे रद्द कर दिया और उन्हीं भर्तियों को निकाला. 2021 में यूपीटीईटी का एग्जाम रद्द कर दिया था क्योंकि पेपर लीक हो गया."
छात्र सिद्धांत बहुत नाउम्मीदी के साथ कहते हैं, "नेताओं को मालूम है कि जनता को जाति और धर्म में उलझा कर रखो. यूपी में क्षेत्रवाद और जातिवाद बहुत ज्यादा है. मुख्य मुद्दे दब जाते हैं. सरकार बार-बार परीक्षा टाल देती है. ऐसे में घर से भी दबाव रहता है. घर वाले बहुत उम्मीद के साथ लड़कों को इलाहबाद भेजते हैं लेकिन समय जितना बढ़ता जाता है, उनकी अपेक्षाएं भी खत्म होने लगती हैं."
द लास्ट बंगलो: राइटिंग्स ऑन इलाहाबाद नामक पुस्तक में लेखक अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा ने प्रयागराज में प्रचलित विविध संस्कृति की व्याख्या करते हुए लिखा है कि अंग्रेजों के समय से शहर में जनसांख्यिकी में कैसे बदलाव आया. इलाहबाद में रेलवे और डाकघर हुआ करते थे. इसी के साथ विभिन्न राज्यों के लोगों को औपनिवेशिक शहर इलाहाबाद में लाया गया क्योंकि उन्हें बेहतर भविष्य के लिए अवसर और आशा मिली. आज, शहर के लगभग हर गली में कोचिंग संस्थानों से भरा हुआ है. फिर भी रोजगार को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है.