दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इस बार के बीटिंग रीट्रीट की एक धुन है- दुनिया में लोगों को धोखा कभी हो जाता है. इसी संदेश को आत्मसात करते हुए न्यूज़लॉन्ड्री की यह टिप्पणी. पचास सालों से इंडिया गेट के नीचे जल रही अमर जवान ज्योति जो वहां नहीं जलेगी. अब यह ज्योति राष्ट्रीय समर स्मारक में जलेगी. अमर जवान ज्योति हिंदुस्तान के ज्ञात इतिहास में हासिल की गई सबसे बड़ी युद्ध विजय का उद्घोष था, यह हिंदुस्तानी शौर्य की सबसे बुलंद मुनादी थी.
आज लड़ाई चल रही है अमर जवान ज्योति अपनी पुरानी जगह पर जले, नई जगह पर जले या फिर दोनों जगहों पर जले. इसे देखने का एक तीसरा नजरिया भी है, और इस नजरिए को दर्ज करने के कई खतरे हैं, फिर भी आज इसे कहना जरूरी है. यह पर्यावरणीय नजरिया है.
एक होता है सृजन का रास्ता, दूसरा विध्वंस का रास्ता. आजादी के वक्त भारत ने सृजन का रास्ता चुना था. उसने अंग्रेजी दौर की सड़कों, भवनों के नाम बदलकर उसे हिंदुस्तानी धारा में मिला लिया, उसे नेस्तनाबूद नहीं किया. आज सत्तर साल बाद भारत विध्वंस के रास्ते पर चल पड़ा है. इसे आप उसी इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन को जाती सड़क के जरिए समझ सकते हैं. सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत वो ऐतिहासिक इमारतें गिराई जा रही हैं जो आजाद भारत की यात्रा का हिस्सा थे. इनमें से एक राष्ट्रीय संग्रहालय है. यह 1960 में बना था.
इसी सब उठापटक के बीच राजपथ पर सेना के रंगरूट जब बीटिंग रीट्रीट में यह धुन बजाएंगे, जिसके बोल हैं- दुनिया में लोगों को धोखा कभी हो जाता है तब राजपथ पर विडंबना स्वयं आत्महत्या कर लेगी.