कई राज्यों में वायु प्रदूषण दमघोंटू स्तर पर

उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में नॉक्स प्रदूषण का बुरा हाल है.

WrittenBy:हृदयेश जोशी
Date:
Article image

- क्लीन एयर प्रोग्राम लॉन्च किये जाने के करीब तीन साल बाद भी इसके तहत आने वाले शहरों में प्रदूषण का बुरा हाल है.

- नवंबर माह में लिये गये सीपीसीबी के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुल डेढ़ दर्जन शहरों में हानिकारक नाइट्रोजन डाइआक्साइड (एनओ2) का स्तर तय सुरक्षित मानकों से कहीं अधिक रहा.

- इन तीन राज्यों में कुल 22 जगह एनओ2 की मात्रा सुरक्षित मानक सीमा के दोगुने से अधिक पाई गई.

- सल्फर और अमोनिया की तरह ही एनओ2 भी एक हानिकारक प्रदूषण है जो द्वितीयक प्रदूषक कणों पीएम 2.5 के बनने की कारण है. इसके कारण हानिकारक ओजोन का स्तर बढ़ता है.

सर्दियों में एक बार फिर कई राज्यों में वायु प्रदूषण दमघोंटू स्तर पर है. पिछले दिनों दीवाली की आतिशबाजी, खेतों में पराली जलाने और उद्योगों के धुयें के साथ मौसमी कारकों से दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कई जगह एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 400 से भी ऊपर रहा. बीते शुक्रवात को चीनी मिलों से हो रहे प्रदूषण पर सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह तक कहा कि अधिकतर प्रदूषण पाकिस्तान से आ रही हवा से हो रहा है, जिस पर कोर्ट को कहना पड़ा कि क्या पाकिस्तान के उद्योगों पर रोक लगा दें. यह हालात एक बार फिर वायु प्रदूषण की भयावहता को बता रहे हैं.

इस बीच केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड यानी सीपीसीबी के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि दिल्ली और उत्तर प्रदेश और राजस्थान के डेढ़ दर्जन शहरों में हानिकारक एनओ2 का स्तर तय सुरक्षित मानकों के दोगुने से अधिक है. इन तीन राज्यों में कम से कम 22 जगहों (मॉनीटरिंग स्टेशनों) पर एनओ2 सुरक्षित मानकों से दोगुना से अधिक पायी गयी. कोरोना महामारी के बढ़ते ग्राफ और नई लहर के संभावित खतरे को देखते हुये यह वायु प्रदूषण चिन्ता का विषय है. इसके बावजूद राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा से पहले यह कोई चुनावी मुद्दा बनता नहीं दिखता.

क्यों खतरनाक हैं एनओ2 और नाइट्रोजन के अन्य ऑक्साइड?

नाइट्रोजन के ऑक्साइड को नॉक्स भी कहा जाता है. यह बेहद हानिकारक प्रदूषक हैं. यह जीवाश्म ईंधन के जलने से निकलते हैं इसलिये वाहनों, बिजलीघरों और उद्योग-धन्धों को इनका स्रोत माना जाता है. कृषि क्षेत्र को भी एनओ2 का एक स्रोत माना जा रहा है. महत्वपूर्ण है कि जहां हवा में मौजूद प्राथमिक प्रदूषक पीएम-10 धूल के कण होते हैं जिन्हें रोकने के लिये मानव शरीर में प्राकृतिक कवच (जैसे नाक के बाल आदि) है वहीं पीएम 2.5 प्रदूषण के द्वितीयक कण होते हैं, जिनके बनने में सल्फर के साथ नाइट्रोजन के आक्साइड और अमोनिया जैसे तत्व ज़िम्मेदार हैं. एनओ2 के साथ नाइट्रोजन के दूसरे ऑक्साइड (नॉक्स) हवा में मौजूद रासायनिक तत्वों के साथ मिलकर पार्टिकुलेट मैटर और ओजोन बनाते हैं.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
गुरुग्राम में प्रदूषण का हाल.

यानी पीएम 2.5 के स्तर को कम करने के लिये जरूरी है कि सल्फर के साथ–साथ नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे हानिकारक प्रदूषकों पर रोक लगायी जाये. पीएम 2.5, पीएम 10 की तुलना में आकार में छोटे होने के कारण आसानी से फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और कई बीमारियों का कारण बनते हैं. इनमें सिरदर्द, अस्थमा, आंखों में जलन, ब्लड प्रेशर और हार्ट अटैक समेत कई बीमारियां शामिल हैं. चूंकि वाहनों से निकलने वाला धुंआं भी इसका स्रोत है इसलिये स्कूली बच्चों के अलावा बेघर लोगों और रेहड़ी-पटरी पर काम करने वालों के लिये एनओ2 का बढ़ना घातक है.

क्या कहते हैं एनओ2 के आंकड़े?

कार्बन कॉपी और रेसपाएरर लिविंग साइंस के संयुक्त प्रयास से चलने वाली वेबसाइट एनसीएपी ट्रैकर ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) में शामिल शहरों में प्रदूषण की निरंतर मॉनीटरिंग के लिये लगे स्टेशनों के आंकड़ों का अध्ययन किया. सरकार ने जनवरी 2019 में एनसीएपी की घोषणा की जिसमें देश के करीब 100 शहरों को शामिल किया गया. इनमें साल 2024 तक हवा 20% से 30% तक (2017 के प्रदूषण को आधार मानते हुये) साफ करने का लक्ष्य रखा गया. एनसीएपी में आज कुल 131 शहर शामिल हैं.

इस अध्ययन में किया गया आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि उत्तर भारत के तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में एनओ2 का औसत स्तर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी सीपीसीबी की तय सीमा से कहीं अधिक है. सीपीसीबी के मानकों के हिसाब से हवा में एनओ2 सालाना औसत स्तर 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिये जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के हिसाब से यह सीमा 10 माइक्रोग्राम है. लेकिन सीपीसीबी के नवंबर के आंकड़ों के हिसाब से दिल्ली में एनओ2 का औसत स्तर 66 रहा यानी सुरक्षित मानकों से डेढ़ गुना से भी ज्यादा. महत्वपूर्ण है कि अक्टूबर माह में इन्हीं शहरों में एनओ2 सुरक्षित मानकों में था.

दिल्ली और एनसीआर के प्रदूषण में उछाल

राजधानी के सभी 40 मॉनीटरिंग स्टेशनों से मिले नवंबर के आंकड़े बताते हैं कि आनन्द विहार में एनओ2 का स्तर 131 माइक्रोग्राम और डॉ करनी सिंह शूटिंग रेन्ज में 133 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा. इसके अलावा दिल्ली में कम से कम 6 और जगह ऐसी रहीं जहां यह आंकड़ा 100 के ऊपर पाया गया. इनमें ओखला फेज-2 (110), पूर्वी अर्जुन नगर (125), इंदिरा गांधी एयरपोर्ट (111), दिलशाद गार्डन (105), जवाहरलाल नेहरू (109) और नेहरू नगर (108) शामिल हैं.

वायु प्रदूषण की वजह से दिल्ली का बुरा हाल

उधर दिल्ली से सटे गाजियाबाद, नोएडा और ग्रेटर नोएडा तीनों ही रेड जोन में थे. जहां गाजियाबाद में एनओ2 का स्तर 70 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर मापा गया वहीं नोएडा में यह 57 और ग्रेटर नोएडा में 65 रहा. गाजियाबाद और नोएडा में मिलाकर कुल आठ जगह निरंतर मॉनीटरिंग स्टेशन हैं इनमें से केवल लोनी में एनओ2 सुरक्षित सीमा में मापा गया.

वायु प्रदूषण विशेषज्ञ और दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंन्मेंट में रिसर्च और सलाह की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी कहती हैं, “जब हम सीपीसीबी के इस साल सर्दियों की शुरुआत के आंकड़ों को देखते हैं तो सिर्फ पार्टिकुलेट मैटर ही नहीं बढ़ा है बल्कि हानिकारक गैसों खासकर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में बड़ा उछाल आया है. यह बात बड़ी आसानी से समझी जा सकती है कि जाड़ों में मौसमी कारकों की वजह से– जब ठंड हो और हवा न चल रही हो तो हवा में पार्टिकुलेट मैटर ही नहीं फंसे रह जाते बल्कि अलग-अलग स्रोतों से आने वाली गैसों की मात्रा भी हवा में बढ़ जाती है."

रॉय चौधरी याद दिलाती हैं कि कैसे दीपावली की आतिशबाजी और खेतों में पराली के कारण दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का ग्राफ नवंबर में उछल गया. उनका कहना है, “जब हवा में इन महीन कणों और हानिकारक गैसों का मिश्रण हो तो वह स्वास्थ्य के लिये कहीं अधिक खतरनाक हो जाती है. विशेष रूप से नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड को लेकर मैं कहूंगी कि यह ज्यादातर वाहनों या उद्योगों से आती है और हमें यह पता चलता है पूरे गंगा के मैदानी इलाके में मोटरीकरण (और औद्योगिकीकरण) का कितना खतरनाक प्रभाव हुआ है. नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड के कारण हमारे श्वसन तंत्र पर बहुत खराब प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह पार्टिकुलेट मैटर को बढ़ाने के साथ एक अन्य खतरनाक गैस ओजोन को बनाती है. इस साल सर्दियों में हम देख रहे हैं कि ओजोन का स्तर भी बढ़ा है.”

क्या है उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों का हाल?

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एनओ2 का औसत स्तर 58 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है. यहां तालकटोरा इंडस्ट्रियल सेंटर में यह स्तर 78 और सेंट्रल स्कूल इलाके में 109 मापा गया. उधर कानपुर के नेहरू नगर इलाके में एनओ2 का स्तर 131 माइक्रोग्राम दर्ज किया गया जबकि किदवई नगर और कल्याणपुर के स्टेशन में यह मात्रा 34 और 22 मापी गई जिस कारण औसत स्तर 62 माइक्रोग्राम रहा. उधर मेरठ (59), मुजफ्फरनगर (52), बागपत (60), बुलंदशहर (59) और फिरोजाबाद (47) में भी नवंबर में एनओ2 का औसत स्तर सीपीसीबी की तय सुरक्षित सीमा से अधिक रहा.

राजधानी के सभी 40 मॉनीटरिंग स्टेशनों से मिले नवंबर के आंकड़े बताते हैं कि आनन्द विहार में एनओ2 का स्तर 131 माइक्रोग्राम और डॉ करनी सिंह शूटिंग रेन्ज में 133 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा.

इन आंकड़ों की रिसर्च और विश्लेषण कर रही टीम के सदस्य और रेस्पाइरर लिविंग साइंसेज के प्रमुख रौनक सुतारिया कहते हैं, “पीएम 2.5 को कम करने के लिये यह ज़रूरी है कि हम एनओ2 पर नियंत्रण करें क्योंकि यह पीएम 2.5 तो सेकेंडरी पार्टिकल हैं और असल में एनओ2 जैसी गैसें ही पीएम 2.5 का प्रीकर्सर (जन्मदाता) है. हवा में एनओ2 की इतनी अधिक उपस्थिति अच्छा संकेत नहीं है और स्वास्थ्य के लिये बहुत खतरनाक है.”

आश्चर्यजनक रूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में लगे मॉनीटर में एनओ2 का स्तर 1 पाया गया है जो बाकी मॉनीटरों के आंकड़ों को देखते हुये अव्यवहारिक लगता है. सुतारिया कहते हैं, “गोरखपुर के मॉनीटर से जो डाटा मिला है वह इतना कम है कि वास्तविक ही नहीं लगता. इससे यह संकेत मिलता है कि मॉनीटर ठीक से काम नहीं कर रहा और इसकी जांच होनी चाहिये. इसे दुरुस्त किये जाने की जरूरत है.”

राजस्थान के शहरों में भी बेलगाम प्रदूषण

राजस्थान के जिन आठ शहरों में निरंतर निगरानी के मॉनीटर लगे हैं उनमें पांच में से नवंबर में एनओ2 का स्तर सुरक्षित सीमा (40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से अधिक पाया गया. जयपुर में यह 70 माइक्रोग्राम और जोधपुर में 72 दर्ज किया गया. राजस्थान में प्रदूषण एक बड़ी समस्या है और साल 2017 में प्रति लाख आबादी में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले में राज्य नंबर वन रहा. राज्य में स्टोन क्रशर्स और कारखानों का बेलगाम प्रदूषण एक चिन्ता का विषय रहा है. महत्वपूर्ण यह भी है कि तीनों ही राज्यों में इक्का-दुक्का शहरों को छोड़कर सभी जगह अक्टूबर में एनओ2 स्तर सुरक्षित सीमा में था.

सरकार ने संसद में दिया भरोसा

वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने गुरुवार को संसद में कहा कि सरकार 132 शहरों में हवा की क्वॉलिटी पर नजर रखने के लिये मॉनीटरिंग स्टेशन लगाये हैं और शहरों की जरूरतों के हिसाब से नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम चलाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि मॉनीटरिंग नेटवर्क बढ़ाने से लेकर कचरा प्रबंधन की सुविधायें देने और ग्रीन बफर बनाने के लिये 355.44 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं. इसके अलावा पांचवें वित्त आयोग की सिफारिशों के तहत 2020-21 में 42 शहरों के लिये 4,400 करोड़ रुपए दिये गये और साल 2021-26 के बीच एयर क्वॉलिटी सुधारने के लिये 12,139 करोड़ रुपये दिये जा रहे हैं.

अनुमिता रॉय चौधरी के मुताबिक, “यह अच्छी बात हुई है कि पहली बार वायु प्रदूषण से निपटने के लिये अलग से फंड रखे गये हैं और 10 लाख से अधिक आबादी वाले 40 से अधिक शहरों को केवल प्रदूषण से लड़ने के लिये यह पैसा दिया गया है. शर्त यह है कि ये पैसा इन शहरों की काम और प्रदूषण से लड़ने में उनके प्रोग्राम की कामयाबी के आधार पर दिया जायेगा. उन्हें अगले पांच साल तक हर साल प्रदूषण को 5% कम करना है लेकिन फिर भी मैं कहूंगी कि इस बात पर माइक्रो लेवल पर नज़र रखनी होगी. अब दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र को देखिया जहां हम इतनी बड़ी समस्या देख रहे हैं लेकिन यहां पैसा केवल गाजियाबाद और फरीदाबाद में काम के लिये ही दिया गया है यानी प्रदूषण से लड़ने के लिये कोई रीजनल एप्रोच नहीं है क्योंकि प्रदूषण तो पूरे रीजन में फैलेगा.”

पारदर्शिता की कमी, उत्तर प्रदेश में ऑनलाइन पोर्टल तक नहीं!

साल 2019 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के आंकड़ों और तस्वीरों से पता चला कि भारत हानिकारक सल्फर डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन में चीन और अमेरिका को पीछे छोड़कर नंबर वन हो गया है. इसके बावजूद एक बार फिर यह बात सामने आई है कि दिल्ली-एनसीआर इलाके के बिजलीघर और उद्योग अपने प्रदूषण उत्सर्जन पर रोक लगाना तो दूर उसकी कोई प्रभावी मॉनिटरिंग तक नहीं कर रहे हैं.

दिल्ली स्थित गैर लाभकारी संस्था सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद दिल्ली-एनसीआर के बिजलीघर और उद्योग प्रदूषण पर निरन्तर मॉनटरिंग प्रणाली (सीईएमएस) से प्रदूषण के आंकड़े रियल टाइम और ऑन लाइन नहीं दिखा रहे. रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के पास सीईएमएस के आंकड़े ऑनलाइन दिखाने के लिये कोई पोर्टल तक नहीं है. एक और महत्वपूर्ण बात ये कि उत्तर प्रदेश उन राज्यों में है जहां उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर के साथ अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. उत्तर प्रदेश के इन चुनावों को 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल कहा जा रहा है लेकिन इतने महत्वपूर्ण इलेक्शन में हवा में घुला जहर कोई चुनावी मुद्दा नहीं है.

(साभार- MONGABAY हिंदी)

Also see
article imageज्यादातर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड छिपाते हैं जरूरी जानकारियां, नहीं बरतते पारदर्शिता
article imageएसओई 2021: कहीं डेढ़ गुना तो कहीं दोगुना बढ़ा औद्योगिक प्रदूषण
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like