"यह सिर्फ एक ट्रेलर है, दिल्ली को खुद को सुधारना और संवारना बहुत ज़रूरी है"

पहले दिल्ली की बरसात और दिल्ली की सर्दी का मज़ा लेने लोग यहां आया करते थे और आज हाल ये है कि लोग बारिश आने पर कहते हैं कि क्या मुसीबत आ गई.

WrittenBy:हृदयेश जोशी
Date:
Article image

सवाल– आपने शुरुआत में कहा कि दिल्ली में बुधवार की बारिश तो एक ट्रेलर थी बस, आगे अभी समस्या और बढ़ेगी. तो क्या आप यह कह रहे हैं कि यह एक जुड़ी हुई समस्या है. एक ओर खराब नगर प्रबन्धन और दूसरी ओर क्लाइमेट चेंज?

जवाब– नहीं मैं यह नहीं कह रहा हूं. मैं यह बिल्कुल नहीं मानता. क्लाइमेट चेंज को आज के हालात के लिये बहाना नहीं बनाया जा सकता. हां क्लाइमेट चेंज हालात को और खराब कर सकता है. समस्या बढ़ा सकता है लेकिन असली समस्या है म्युनिसिपल नगर प्रबंधन. यह क्लाइमेट चेंज के कारण पैदा हुई समस्या नहीं है.

सवाल– तो इसका निदान क्या है?

जवाब– देखिये सबसे बड़ी समस्या है कि दियर आर टू मैनी कुक्स (अधिकारियों/एजेंसियों की भरमार है) करीब दस अलग-अलग एजेंसियां हैं जिनको दिल्ली के स्टॉर्म वाटर सिस्टम से लेना-देना है. इनमें पांच तो म्युनिसिपल अथॉरिटीज़ हैं जिनमें तीन एमसीडी, एक एनडीएमसी और कैन्टोन्मेंट शामिल है. एक पीडब्ल्यूडी है. एक नेशनल हाइवे है. एक दिल्ली जलबोर्ड है और एक डीडीए है. फिर डिपार्टमेंट ऑफ इरीगेशन एंड फ्लड कंट्रोल (कृषि और बाढ़ नियंत्रण विभाग) है अब इतनी सारी एजेंसी हैं और उनके पास ड्रेन्स (नाले) बंटे हुये हैं जिन्हें साफ करने की उनकी ज़िम्मेदारी हैं. ये सब अपना काम यानी अपने-अपने ड्रेन साफ करने का दावा करते हैं और जब बाढ़ आ जाती है तो सब कहते हैं कि मैंने तो कर दिया था इन्होंने नहीं किया. क्योंकि दिल्ली में ऐसी भी स्थिति है कि एक नाले की ज़िम्मेदारी चार लोगों के पास है. तो जब ऐसी स्थिति बनेगी तो यही होगा.

इसका यही समाधान है कि आप कोई एक एजेंसी ले लें और उसी को सारी ज़िम्मेदारी दे दें. उसी को ड्रेनेज की समस्या को देखना चाहिये और यमुना नदी को भी वही देखें. अब देखिये डिपार्टमेंट ऑफ इरीगेशन और फ्लड कंट्रोल नाम की एजेंसी इसी सरकार में है जिसके पास आज की तारीख में कोई खास काम नहीं है. जब यमुना में फ्लड आता है तभी उनको कोई काम करना होता है. क्यों नहीं इस विभाग को आप एकमात्र एजेंसी बनायें जो यमुना और सारे स्टॉर्म वॉटर ड्रेन के बारे में काम करें.

सवाल– दिल्ली के बाहर अगर पूरे देश की बात करें तो फिर अलग-अलग छोटे बड़े शहरों को देखें तो क्या कहेंगे. क्या एक समग्र नीति होनी चाहिये या हर जगह के लिये अलग-अलग नीति होगी?

जवाब– देखिये मामला तो शहरी निर्माण विभाग को देखना है क्योंकि ये समस्या शहरीकरण की है और गलत तरीके से हो रहे शहरीकरण की है. इसमें एक एंगल हम अभी भी मिस कर रहे हैं. हमारी सड़कों का त्रुटिपूर्ण डिज़ाइन. शहरों में सड़कें और फ्लाई ओवर्स का गलत डिज़ाइन. हमारे शहर हमारी सड़कों के कारण भी डूब रहे हैं. टू मैनी कुक्क और सड़कों का त्रुटिपूर्ण डिज़ाइन. अगर ये दोनों चीज़ें ठीक हो जायें तो शहरों में इस तरह बाढ़ की समस्या काफी हद तक हल हो जायेगी. मैं तो यह कहूंगा कि बस पानी को बहना चाहिये. वॉटर मस्ट फ्लो. अगर आप यह सुनिश्चित कर दें कि पानी बहता रहे. रुके नहीं तो फिर यह सब नहीं देखना पड़ेगा.

(साभार- कार्बन कॉपी)

Also see
article image2050 तक सर्दियों की अवधि घटेगी, तेज़ गर्मी, भारी बारिश और बाढ़ की घटनाएं बढ़ेंगी: आईपीसीसी रिपोर्ट
article imageजलवायु संकट: "मौसम में आए बदलाव ने करीब 6 अरब लोगों को जोखिम में डाला"

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like