'ना हम थके हैं ना हमें जल्दी है', क्या है किसानों की आगे की रणनीति?

19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया, लेकिन किसान अभी भी अपनी बाकी मांगों को लेकर आंदोलन जारी रखेंगे. ऐसा क्यों?

Article image

संवैधानिक प्रकिया से जब तक नहीं हट जाता कानून, हम भी नहीं हटेंगे

आने वाली 26 नवंबर को किसान का आंदोलन दिल्ली की सीमा पर अपना एक साल पूरा करने जा रहा है. इस से पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी ने कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी. 5 जून, 2020 को कृषि क्षेत्र में सुधार के नाम पर सरकार ने दो अध्यादेश जारी किए थे. इसे 17 सितम्बर को कानून में तब्दील कर दिया गया. ये तीन कानून हैं- पहला है कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2020. दूसरा- कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 और तीसरा है- आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020.

26 नवंबर को मुख्यतः पंजाब और हरियाणा से किसान सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे. इस दौरान प्रशासन द्वारा उन्हें जगह- जगह रोकने का प्रयास किया गया. उन पर लाठी चार्ज किया गया, आंसू गैस के गोले और वाटर कैनन से रोकने की कोशिश की गई. लेकिन किसान सभी बैरिकेडिंग तोड़कर दिल्ली आ गए. किसान पिछले एक साल से दिल्ली से सटे सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.

25 वर्षीय अनमोल सिंह पिछले 11 महीनों से खालसा ऐड के साथ वालंटियर कर रहे हैं. वह कहते हैं, "सरकार ने हमें पहले भी ऐसे दिलासे दिए हैं. आज हमें खुशी है कि सरकार ने कानून वापस लेने की बात कही लेकिन जब तक संसद में इसे रद्द नहीं किया जाएगा हम नहीं जाएंगे. साथ ही हमारी मांग है कि एमएसपी पर भी कानून बनाया जाए. जब तक ऐसा नहीं हो जाता आंदोलन जारी रहेगा."

बलवीर कौर और जगीर कौर

एक साल से सिंघु बॉर्डर पर रोजाना लंगर चल रहा है. ऐसे ही एक लंगर के पास हमारी भेट तरन तारन की रहने वाली 60 वर्षीय बलवीर कौर से हुई. वह 15 दिन पहले सिंघु बॉर्डर पर आई हैं. हालांकि उनके परिवार के अन्य लोग पिछले एक साल से बॉर्डर पर ही बैठे हैं. उनके पति उन्हें छोड़कर चले गए थे क्योंकि वह बच्चा पैदा नहीं कर पाईं. तब से बलवीर अपने बड़े भाईयों के साथ रह रही हैं. वह कहती हैं, "बॉर्डर पर रहना बहुत कठिन है. लेकिन यह पहली बार नहीं जब मुझे संघर्ष करना पड़ रहा है. हर जगह महिलाएं संघर्ष करती हैं. मुझे घर पर रहने के लिए अपनी जेठानी और देवरानी से लड़ना पड़ता था. अगर महिलाएं घर पर लड़ सकती हैं तो आंदोलन में भाग लेने भी आ सकती हैं. मैं हमेशा से आंदोलन का भाग बनना चाहती थी. मैं खुश हूं कि इस आंदोलन की जीत होती दिखाई दे रही है."

वहीं उनके साथ खड़ीं मोगा जिले की 70 वर्षीय जगीर कौर कहती हैं, "मैं यह सुनकर बहुत खुश हूं कि सरकार काले कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए राजी हो गई है. अब मैं अपने बच्चों के पास लौट सकती हूं."

क्या है आंदोलन की आगे की रूपरेखा?

रणदीप ने हमें बताया कि अलग-अलग गांव से जत्थे दिल्ली आ रहे हैं. सभी लोग 22 तारीख को बॉर्डर पर पहुंच जाएंगे. आने वाले हफ्ते में संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा तय कार्यक्रम उसी तरह होंगे जैसे तय किये गए थे.

प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) द्वारा जारी प्रेस रिलीस में कहा गया, "संयुक्त किसान मोर्चा इस निर्णय का स्वागत करता है और उचित संसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से घोषणा के प्रभावी होने की प्रतीक्षा करेगा. अगर ऐसा होता है, तो यह भारत में एक वर्ष से चल रहे किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत होगी. हालांकि, इस संघर्ष में करीब 700 किसान शहीद हुए हैं. लखीमपुर खीरी हत्याकांड समेत, इन टाली जा सकने वाली मौतों के लिए केंद्र सरकार की जिद जिम्मेदार है."

साथ ही एसकेएम ने मांग की है कि एमएसपी पर सरकार कानूनी गारंटी दे और बिजली संशोधन विधेयक को भी वापस लिया जाए. जब तक ऐसा नहीं हो जाता, किसान बॉर्डर छोड़कर नहीं जाएंगे.

Also see
article imageकिसान आंदोलन में निहंग सिखों की भूमिका?
article imageकिसान अपने घर जाएं, तीनों कृषि कानून वापस: पीएम मोदी
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like