सर्वोच्च न्यायालय में गुजरात दंगों के मामले में दिवंगत कांग्रेस विधायक एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया की याचिका पर सुनवाई हुई.
सिब्बल ने कहा, "यह सबसे हानिकारक और चिंताजनक तथ्य है कि एसआईटी ने तहलका की स्टिंग ऑपरेशन रिपोर्ट को अनदेखा किया"
सिब्बल ने बताया कि नरोदा पाटिया मामले में सीबीआई और गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा इन टेपों को प्रमाणित किया गया था. उन्होंने स्टिंग ऑपरेशन रिपोर्ट के अंश भी पढ़े.
जब पीठ ने उनसे पूछा कि क्या स्टिंग रिपोर्ट के बयानों से किसी 'बड़ी साजिश' के बारे में कुछ पता चलता है, तो सिब्बल ने कहा, "बात यह है कि एसआईटी ने इसकी जांच नहीं की. तो आप एक 'बड़ी साजिश' को कैसे सिद्ध कर सकते हैं?”
उन्होंने कहा कि साजिश के मामलों में कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है; यह केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की जांच, सबूत इकट्ठा करने, बयान दर्ज करने आदि के माध्यम से पता लगाया जा सकता है. लेकिन एसआईटी ने ऐसा कुछ नहीं किया, उन्होंने कहा.
सिब्बल ने यह भी उल्लेख किया कि कैसे नरोदा गाम मामले में गिरफ्तार किए गए विहिप नेता जयदीप पटेल को आधिकारिक तौर पर साबरमती ट्रेन में मारे गए 54 लोगों के शव सौंप दिए गए थे.
"यह एक गंभीर मुद्दा है," सिब्बल ने कहा. इसकी विस्तार से जांच होनी चाहिए कि क्या हुआ था, उन्होंने कहा.
एसआईटी ने शवों को सौंपने के लिए एक मामलातदार को जिम्मेदार ठहराया था. सिब्बल ने कहा, “क्या आप कभी कल्पना कर सकते हैं कि एक राष्ट्रीय त्रासदी के समय मामलातदार जैसा निम्न स्तर का अधिकारी यह निर्णय ले रहा है, और वह विहिप को शव सौंपने का फैसला करता है? असंभव! क्या इस स्थिति में सबूतों की जांच करने की आवश्यकता नहीं थी? आप सिर्फ बयान दर्ज करते हैं और फिर भूल जाते हैं."
दंगों के बाद गुजरात के सहायक पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार ने सरकार के खिलाफ बयान दिया था. उनका दावा था कि पुलिस को अपने कर्तव्यों का पालन करने से रोका गया था. सिब्बल ने पीठ को याद दिलाया कि श्रीकुमार की गवाही को एसआईटी ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि वह पदोन्नति से वंचित रह गए थे.
सिब्बल ने कहा, "उनकी गवाही की पुष्टि अन्य अधिकारियों ने की थी और इसलिए इसे खारिज नहीं किया जा सकता था."
उन्होंने आगे कहा, “क्या एसआईटी आरोपियों को बचाने की कोशिश कर रही है? इसे सबूत इकट्ठा करना था, बयान दर्ज करना था और फिर प्रथम दृष्टया एक निष्कर्ष पर आना था. अनुच्छेद 21 कहता है कि आपको विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से लोगों की रक्षा करनी होगी. यदि आप इसका उल्लंघन करते हैं, तो आप एक आरोपी हैं. एसआईटी को यह बताना होगा कि उन्होंने ऐसा कुछ क्यों नहीं किया.”
'सिर्फ इस मामले के लिए नहीं बल्कि भविष्य के बारे में'
हत्याकांड में पुलिस की भूमिका पर सिब्बल ने बताया कि कैसे विहिप के आचार्य गिरिराज किशोर को पुलिस ने सोला सिविल अस्पताल पहुंचाया.
"क्या लॉर्डशिप यह कल्पना कर सकते हैं?" सिब्बल ने कहा. “कानून-व्यवस्था पर ध्यान देने की बजाय पुलिस विहिप के एक पदाधिकारी की रक्षा कर रही है? उस व्यक्ति को जो सामूहिक उन्माद फैलाने की कोशिश कर रहा था और (गोधरा के मृतकों के) अंतिम संस्कार में 5,000 लोगों की भड़काऊ भीड़ के साथ था.”
उन्होंने मामले से पल्ला झाड़ने के लिए मजिस्ट्रेट की खिंचाई भी की. सिब्बल ने कहा, 'सच्चाई क्या है, झूठ क्या है, इसकी जांच की जरूरत है. “मजिस्ट्रेट इसे नहीं देख रहे हैं, उच्च न्यायालय इस पर ध्यान नहीं दे रहा है. यह हैरान करने वाला है.”
गुजरात दंगों, दिल्ली दंगों और विभाजन के बीच समानताएं बताते हुए सिब्बल ने कहा, “इस तरह से निर्दोष व्यक्तियों पर हमला क्यों होता है? यह विधि शासन नहीं है. यह साजिश नहीं तो और क्या है?
अंत में उन्होंने कहा, "सांप्रदायिक हिंसा ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे की तरह है. यह संस्थागत हिंसा है... वह लावा जहां भी छूता है, पृथ्वी को दाग देता है. और भविष्य में बदला लेने के लिए उपजाऊ जमीन तैयार करता है."
यह सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.
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