देश में धार्मिक जनगणना तो सरकार करवाती है लेकिन जातिवार गिनती से उसे दिक्कत है.
देश भर में एक बार फिर जातिवार जनगणना की मांग उठ रही है. विपक्षी दलों के साथ-साथ केंद सरकार के सहयोगी भी इस मांग को उठा रहे हैं. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब जातिवार जनगणना को लेकर विवाद हो रहा है. इससे पहले भी समय-समय पर नेता और एक्टिविस्ट यह मांग उठाते रहे हैं. बता दें कि जातिगत जनगणना के आंकड़े आखिरी बार आजादी के पहले 1931 में जारी हुए थे. उसके बाद से देश में जातियों की गिनती नहीं हुई. 2011 की जनगणना में इसके आंकड़े जरूर इकट्टा किए गए लेकिन सरकार ने इसे जारी नहीं किया.
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बयान बताते हैं कि वे जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में नहीं हैं. इस वर्ष जनगणना होनी थी लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह प्रक्रिया देर से शुरू होगी. ऐसे में वो तमाम राजनीतिक दल जो ओबीसी का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं वे जातिगत जनगणना की मांग जोर शोर से उठाने लगे हैं. क्या है जातीवार जनगणना की सियासत, सारांश के इस अंक में हम इसे स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे.