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एनएल चर्चा 185: आयकर विभाग का सर्वे, ईडी के छापे और गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ़्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

     
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एनएल चर्चा के 185वें अंक में न्यूज़लॉन्ड्री और न्यूज़क्लिक पर आयकर विभाग का सर्वे, सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर के घर और दफ्तर पर ईडी का छापा, फिल्म अभिनेता सोनू सूद के घर पर आयकर विभाग का छापा, तमिलनाडु सरकार द्वारा कृषि बिल और सीएए के मामले में पांच हज़ार से अधिक केस की वापसी, इलाहबाद हाई कोर्ट द्वारा कफील खान के सस्पेंशन आर्डर पर रोक, सीएम योगी आदित्यनाथ का अब्बाजान वाला बयान आदि हमारी चर्चा का विषय रहे.

इस बार चर्चा में बतौर मेहमान वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन शामिल हुए. साथ में न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सहसंपादक शार्दूल कात्यायन ने भी चर्चा में हिस्सा लिया. संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चर्चा की शुरुआत आयकर विभाग की सक्रियता से हुई जिस पर प्रशांत कहते हैं, "अच्छी बात यह है कि आयकर विभाग के इन सर्वे के बाद ये संस्थान डरे नहीं. दैनिक भास्कर ने कहा कि वे अपनी पत्रकारिता उसी प्रकार जारी रखेंगे, न्यूज़क्लिक डरा नहीं, राणा अय्यूब पर कई केस हुए, सिद्धार्थ वरदराजन पर केस किया गया और यह सारे लोग अपनी पत्रकारिता उसी ढंग से कर रहे हैं जैसे कर रहे थे और आयकर विभाग द्वारा छापे मारने का सरकार का मंसूबा कामयाब होता नहीं दिख रहा."

वे आगे कहते हैं, "लेकिन इससे एक संदेश यह ज़रूर जाता है कि सरकार अपने मंसूबों के लिए अपने पॉलिटिकल फायदे के लिए सरकारी एजेंसियों को इस्तेमाल कर रही है. दूसरा संदेश यह जाता है कि यदि आप सरकार की आलोचना कर रहे हैं, सरकार की कमियां दिखा रहे हैं जैसा कि कोरोना के समय में सोनू सूद ने किया तो उन्हें डराने का भी काम किया जा रहा है. न्यूज़लॉन्ड्री जैसे संस्थान जो जनता के सहयोग से चलते हैं, इस तरह से उनके सब्सक्राइबर्स को डराने का एक तरीक़ा है. किसी भी लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता, यह अघोषित इमरजेंसी है.”

आयकर विभाग के सर्वे पर अतुल कहते हैं, "तमाम संस्थानों में डर की स्थिति इसलिए नहीं है क्योंकि डर तब तक होता है जब तक आपने रेड नहीं मारी होती है. जब तक कार्रवाई नहीं हुई है तब तक डर होता है कि इसके नतीजे क्या होंगे? छापे के बाद लोगों का डर ख़त्म हो जाता है."

इसी विषय पर अतुल पूछते हैं, "अधिकतर मीडिया संस्थान सरकार के कंट्रोल में हैं, जिससे उसे कोई चैलेंज नहीं मिल सकता. कुछ पत्रकार और डिजिटल संस्थान ही बचे हैं जो सरकार से सवाल पूछ रहे हैं. चाहे वह नए आईटी नियमों के रूप में दिखाई दे रहा है या आईटी के छापे के रूप में. क्या सब्सक्राइबर्स को डराकर उन्हें दूर कर देना यह सरकार की रणनीति हो सकती है?"

इस प्रश्न के जवाब में मेघनाद कहते हैं, "ब्रॉडकास्ट मीडिया विज्ञापन से चलता है और विज्ञापन पर चलने वाले मीडिया को कंट्रोल करना बहुत आसान होता है. लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री का मॉडल अलग है. यह सब्सक्राइबर्स के समर्थन से चलता है तो हमें डरने की ज़रूरत नहीं है."

इस मुद्दे बात रखते हुए शार्दूल कहते हैं, "सर्वे हमेशा विरोधी आलोचकों पर ही होते है. मैं यह मानने को तैयार हूं कि हो सकता है कहीं कोई गड़बड़ी हो, लेकिन हमारा हमें पता है हम कोई गड़बड़ी नहीं कर रहे. पर अगर हम मान भी लें कि गड़बड़ी हो भी रही है तो भारत का तंत्र ऐसा है जहां गड़बड़ी अधिकतर कंपनियों में मिल जाएगी मगर यह छापेमारी तभी होती है जब वो सरकार के खिलाफ बोलना शुरू कर दें.”

इस विषय के अलावा अन्य विषयों पर भी विस्तार से बातचीत हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए पूरे पॉडकास्ट को जरूर सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.

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