कई बार यह समझ नहीं आता कि ऐसी क्या मजबूरी है कि ग्रामीण भारत की इतनी बड़ी खबरों पर ऐसी भयंकर चुप्पी सारे संपादक क्यों साध लेते हैं.
हिंदी अखबारों की बात करें तो दैनिक भास्कर के हिसार संस्करण ने लीड खबर छापी है. हिंदी पायनियर ने सेकेंड लीड बनाया है. जनसत्ता ने सेकेंड लीड बनाया है, अमर उजाला ने हरियाणा संस्करण में लीड और राष्ट्रीय संस्करण में फ्रंट पेज पर छोटी सी खबर छापी है. राष्ट्रीय सहारा तो खबर छापना ही भूल गया है. हरिभूमि ने सातवें पेज पर खबर छापी है और खबर की शुरुआत में ही किसानों को ‘तांडवकारी’ लिखा है.
दैनिक जागरण ने फ्रंट पेज पर किसानों को हमलावर, बर्बर और आम लोगों को परेशान करने वाला बताया है. किसान आंदोलन से संबंधित हर खबर में जागरण भाजपा की आईटी सेल का प्रोपेगेंडा ही छापता है. पंजाब केसरी ने चौथे पेज पर खबर छापी है. विज्ञापनों से अटे पड़े नवभारत टाइम्स ने अपने अखबार की जैकेट में मुख्य लीड बनाकर खबर छापी है.
अंग्रेजी अखबारों के बीच सबसे अधिक हिम्मत द टेलीग्राफ ने दिखायी है और सिर फोड़ने के आदेश देने वाले एसडीएम को सीधा जनरल डायर लिखते हुए खबर मुख्य लीड के रूप में छापी है. दि हिंदू के चंडीगढ़ एडिशन ने छठे पेज पर छोटी सी खबर छापी है. 38 पेज वाले टाइम्स ऑफ इंडिया के सातवें पेज पर छोटी सी दो कॉलम की खबर छपी है, हालांकि वह अखबार का मुख्य पन्ना है. यही हाल हिंदुस्तान टाइम्स का है. अखबार के कई पन्ने विज्ञापनों में खर्च करने के बाद खुलने वाले जैकेट में खबर को प्रमुखता से छापा है.
इंडियन एक्सप्रेस ने यह खबर बतौर सेकेंड लीड छापी है. एशियन ऐज ने फ्रंट पेज पर छोटी सी खबर छापी है. फाइनेंशिएल एक्सप्रेस ने कोई खबर नहीं छापी है. जाहिर है, यह अखबार उनके लिए छपता है जिनके फयदे के लिए कृषि कानून बनाये गये हैं, किसानों के लिए नहीं.
मनदीप पुनिया स्वतंत्र पत्रकार हैं और किसान आंदोलन पर करीबी नजर रखते हैं.
(साभार- जनपथ)