दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इसी तरह का एक और चुटकुला सुधीरजी ने पेश किया. उन्होंने बताया कि ‘सिर्फ 33 प्रतिशत” नॉन व्हाइट लोग एनवाइटी में काम करते हैं. यह कहते हुए उनकी जुबान लड़खड़ा गई. दरअसल यह लड़खड़ाहट उस अहसास की परिणति थी कि यह आंकड़ा तो सिर्फ लगाने लायक नहीं है. डीएनए का डीएनए में हम आपको बताएंगे कि 1978 से ही अमेरिका के तमाम अखबार और खबरिया चैनल अपने कर्मचारियों की नस्ली संरचना का खुलासा करने के लिए डाइवर्सिटी एंड इंक्लूज़न रिपोर्ट प्रकाशित करते आ रहे हैं.
इसके जरिए वो पारदर्शी तरीके से अपने न्यूज़रूम में अपने देश की सामाजिक विविधता को स्थान देने की कोशिश करते हैं. एक जिम्मेदार, जागरूक और जवाबदेह संस्था के तौर पर अमेरिका के अखबारों और टीवी चैनलों ने यह जिम्मेदारी स्वत: अपने ऊपर ली है, ऐसा करने की कोई कानूनी या संवैधानिक बाध्यता नहीं है.
सुधीरजी ने इसी मौके पर एक मार्के की बात कही. उन्होंने कहा कि वाशिंगटन पोस्ट चीन से पैसे लेता है. उन्होंने यह नहीं बताया कि ज़ी न्यूज़ के मालिक सुभाष चंद्रा ने अपना घर चीन का दूतावास खोलने के लिए दे रखा है. जहां तक विज्ञापन का सवाल है तो विज्ञापन चाहे ज़ी न्यूज़ ले या न्यूयॉर्क टाइम्स या फिर वाशिंगटन पोस्ट. यह विज्ञापन का पैसा ही पत्रकारिता की बदहाली की जड़ है. न्यूज़लॉन्ड्री के जरिए हमारा प्रयास विज्ञापन से मुक्त मीडिया को खड़ा करना है ताकि खबरों पर, पत्रकारिता पर सरकार या कारपोरेट के हितों का दबाव न पड़े. इसके लिए आपको बस छोटा सा काम करना है, न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना है. आप हमें सब्सक्राइब करेंगे तो हम आपके प्रति जवाबदेह रहेंगे. इसीलिए तो हम कहते हैं- आपके खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.