उत्तराखंड में झीलों की नगरी नैनीताल और उसके आसपास का इलाका कई वजहों से संकट में है.
क्या प्रशासन बरतेगा सावधानी?
प्राधिकरण सचिव पंकज कुमार उपाध्याय ने कहा तो है कि निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि पेड़ न कांटे जाएं, और सीमेंट का उपयोग सीमित रखा जाए, परन्तु सातताल कंज़र्वेशन क्लब के लोगों को प्रशासन के इस आश्वासन पर भरोसा नहीं. उनके मुताबिक झील के किनारे दुकानें, और 40 मीटर लंबी सुरक्षा दीवार जैसे काम सीमेंट के बिना नहीं होंगे. निर्माण कार्यों के लिए भारी मशीनों का प्रयोग भी होगा ही.
पिछली 24 जून को यहां सातताल झील के किनारे एक जे.सी.बी. मशीन देखे जाने से लोगों की आशंका को बल मिला, लेकिन के.एम.वी.एन. के प्रबंध निदेशक नरेंद्र भंडारी के मुताबिक जे.सी.बी. झील के किनारे रास्ता बनाने के लिए लाई गई थी ताकि निर्माण कार्य हेतु इस रास्ते से भविष्य में वाहन लाए जा सकें. सातताल कंज़र्वेशन क्लब के सदस्य विक्रम कंडारी, जो कि प्रत्यक्षदर्शी हैं, झील के उस छोर की ओर इशारा करते हैं जहां उन्होंने जे.सी.बी. द्वारा मलबे को झील में डलता हुआ देखा था. उनका कहना है, “कुछ वर्ष पूर्व प्रशासन द्वारा झील के किनारे सजावट के लिए कुछ पेड़ लगाए गए थे. जे.सी.बी. ने वह भी उखाड़ दिए.”
जानकारों की राय
हाइड्रोजियोलॉजिस्ट हिमांशु कुलकर्णी ‘एडवांस्ड सेंटर फॉर वॉटर रिसोर्स डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट’ के कार्यकारी निदेशक हैं. उनके मुताबिक, “इस प्रोजेक्ट पर किसी भी प्रकार का कार्य अध्ययन के आधार पर ही होना चाहिए, वर्ना कैसे पता चलेगा कि इन कार्यों का पर्यावरण और जैव-विविधता पर कितना प्रभाव पड़ेगा?”
प्राधिकरण सचिव उपाध्याय का मानना है कि इस परियोजना में विशेषज्ञों के दिशा-निर्देश की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह सिर्फ़ स्थानीय पर्यटन को बढ़ाने और झील के पास बनी अवैध दुकानों और रेस्टोरेंट को हटाने हेतु है.
रोज़गार की शिकायत
प्रशासन के दावों के बावजूद, यहां लोगों को अवैध दुकानों के बदले सरकारी दुकानें देने से लेकर उनके रहने की व्यवस्था को लेकर कई सवाल हैं. माधुली देवी (50) अपने परिवार के साथ यहां एक रेस्टोरेन्ट चलाती हैं. इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत उनको जो दुकान मिलनी है, वह उनकी पूर्ववर्ती दुकान की एक-तिहाई है. रेस्टोरेन्ट के पीछे ही वह अपने परिवार के साथ रहती हैं. वह कहती हैं, “मुझे यहां रहते हुए 30 साल से ज़्यादा हो गए हैं. मेरे बच्चे यहीं पैदा हुए. पति की मृत्यु यहीं हुई. पर प्रशासन कहता है हमें अपनी दुकान के बदले एक छोटी दुकान ही मिलेगी. ऐसे में हम रहेंगे कहां?”
लगभग 8-10 परिवार यहां अपने-अपने रेस्टोरेन्ट के पीछे ही अस्थाई बसेरे बनाए हुए हैं. बाहर से इन सभी बसेरों की दीवारें टिन की दिखती हैं. अंदर कुछ दीवारें सीमेंट की हैं, तो कुछ केवल प्लाईवुड की. यह सभी स्टेकहोल्डर (हितधारक) प्रयासरत हैं कि प्रशासन इनसे बात करे, परन्तु अभी तक कोई सफलता नहीं मिल पाई है.
गौरी राणा (50), इस झील के समीप एक कैम्पिंग साइट चलाते हैं. उनका दावा है कि वह पिछले 25 वर्षों में कई पेड़ सातताल के जंगलों में लगा चुके हैं. वह कहते हैं, “हम केवल इतना चाहते हैं कि प्रशासन के अधिकारी स्टेकहोल्डर्स से बात करें. बातचीत करने से ही हल निकलेगा.”
अस्थाई होने के कारण अभी अधिकांश दुकानें प्लाईवुड की हैं. परन्तु, नई दुकानें सीमेंट की होंगी. स्थानीय लोगों को डर है कि कहीं यह सातताल के नैनीताल जैसा कंक्रीट का जंगल बनने की शुरुआत तो नहीं! राणा कहते हैं, “नैनीताल ‘पॉइंट ऑफ नो रिटर्न’ पर पहुंच गया है. चाहे कुछ भी हो जाए, हम सातताल को दूसरा नैनीताल नहीं बनने देंगे.”
प्रशासन के अनुसार, स्टेकहोल्डर्स से बात तो हुई है लेकिन वर्ष 2014 में. प्राधिकरण सचिव उपाध्याय कहते हैं कि तब 20 दुकानदार चिन्हित किए गए थे जिन्हें उनकी अवैध अस्थाई दुकानों के बदले सीमेंट की पक्की, सरकारी दुकानें दी जानी थीं. उन्होंने कहा, “हर वर्ष कुछ नए व्यापारी यहां आते हैं, और पुराने व्यापारी अपना क्षेत्र बढ़ाते ही जा रहे हैं. इन सभी को संतुष्ट करना हमारे लिए संभव नहीं है. इसलिए हम 2014 के सर्वे के अनुसार चिन्हित किए गए 20 दुकानदारों को ही दुकानें देंगे.”
कविता उपाध्याय पत्रकार और शोधकर्ता हैं जो हिमालयी क्षेत्रों के पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर लिखती हैं. वे ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से वॉटर साइंस, पॉलिसी एंड मैनेजमेंट में ग्रेजुएट हैं.
(साभार- कॉर्बन कॉपी)
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?