विकसित देशों में वैक्सीनेशन तेज होने से अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है, लेकिन गरीब देशों को उबरने में समय लगेगा.
उदाहरण के लिए अफ्रीका महाद्वीप में वैक्सीन की कवरेज दुनिया में सबसे कम है और वैक्सीन का डोज उपलब्ध न होने के चलते वहां वैक्सीनेशन रोकने की नौबत आ सकती है. दुनिया में जहां औसतन 11 फीसदी लोग वैक्सीन की पहली डोज ले चुके हैं, जबकि अफ्रीका के लिए यह संख्या केवल दो फीसदी है. इसलिए यह अप्रत्याशित नहीं है कि अफ्रीका महाद्वीप में सबसे धीमी आर्थिक रिकवरी दर्ज की जा रही है. इसकी भी आशंका है कि आगे उसे कोरोना की नई लहरों का सामना करना पड़ सकता है.
इसी तरह, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत में वैक्सीन अभियान के लड़खड़ाने के चलते रिकवरी भी सबसे धीमी दर्ज की जा रही है. विश्व बैंक के मुताबिक, "कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओ में इस साल पिछले 20 सालों में सबसे धीमी वृद्धि की आशंका है, साल 2020 इसका अपवाद है. इन देशों में वैक्सिनेशन की गति भी बेहद कम है."
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक ने एक अनुमान लगाया कि महामारी से संबंधित आधारभूत ढांचे में निवेश के परिणाम कैसे होंगे, इसमें वैक्सीन को भी शामिल किया गया था. नतीजे में पाया गया कि इसमें आज 50 बिलियन डॉलर का निवेश करने से 2025 तक अतिरिक्त वैश्विक उत्पादन में कुल नौ ट्रिलियन डॉलर कमाए जा सकेंगे.
इससे पता चलता है कि वैक्सीन केवल महामारी से बचने के लिए ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में भी निर्णायक भूमिका निभाने जा रही है. वैक्सीन तक पहुंच ही बाकी सारे निर्णायक कारकों जैसे आर्थिक और प्राकृतिक पूंजी, मानव संसाधन और सामाजिक- राजनीतिक वातावरण को तय करेगी.
(डाउन टू अर्थ से साभार)