उत्तर प्रदेश: “मुझे 103 बुखार था, तब भी पंचायत चुनाव कराने के लिए बुलाया गया”

ग्रामीण कोरोना को गांव-गांव पहुंचाने में पंचायत चुनाव की बड़ी भूमिका मान रहे हैं.

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कोरोना की दूसरी लहर में उत्तर प्रदेश के गांवों की बदहाल स्थिति है. यहां इलाज के अभाव में लोगों की मौत हो रही है. न्यूजलॉन्ड्री ने सात जिलों में अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि मौतों का सिलसिला पंचायत चुनाव के बाद ज़्यादा तेजी से बढ़ा. ग्रामीण कोरोना को गांव-गांव पहुंचाने में पंचायत चुनाव की बड़ी भूमिका मान रहे हैं.

पंचायत चुनाव के समय ड्यूटी कर रहे कर्मचारियों की भी मौतें हुई. अकेले शिक्षक संघ ने दावा किया है कि 1621 शिक्षकों की मौत इस दौरान हुई है. जबकि योगी सरकार दावा कर रही है कि सिर्फ तीन शिक्षकों की मौत चुनावी ड्यूटी के समय हुई है. हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री ने सिर्फ गोरखपुर जिले में ही उन तीन शिक्षकों के परिजनों से मुलाकात की थी जिनकी मौत पंचायत चुनाव से लौटने के बाद हो गई थी.

पंचायत चुनाव को सुपर स्प्रेडर कहा जाने लगा जिसका सरकार बचाव करती रही, लेकिन उन्नाव के रहने वाले शिक्षक सहायक आलोक कुमार की कहानी बताती है कि चुनाव के दौरान घनघोर लापरवाही की गई. कर्मचारियों का जीवन खतरे में डाला गया.

उन्नाव जिले के पाटन गांव के रहने वाले 42 वर्षीय आलोक कुमार शिक्षक सहायक हैं. 22 घंटे के अंतराल में इनकी मां और छोटे भाई की मौत हो गई. कुमार को 103 डिग्री बुखार था. कोरोना का टेस्ट हुआ था. इसके बावजूद चुनावी ड्यूटी पर आने के लिए मज़बूर किया गया. अधिकारियों ने उनकी एक नहीं सुनी.

आलोक की मां 70 वर्षीय राधा देवी इनके छोटे भाई 40 वर्षीय हरीश कुमार के साथ रहती थीं. केयरटेकिंग का काम करने वाले हरीश कई दिनों से बीमार थे. उन्हें बुखार था और सांस लेने में परेशानी हो रही थी. इसी बीच राधा देवी की भी तबीयत बिगड़ गई.

आलोक कहते हैं, ‘‘मुझे पता चला कि मां बीमार हैं तो मैं उनसे मिलने गया. वह खाना नहीं खा पा रही थीं. उनमें कोरोना का कोई लक्षण तो नहीं था, लेकिन छोटे भाई को बुखार था. गले में खराश और सर्दी जुकाम भी था. उसका इलाज चल रहा था. ऐसे में मैं मां को दवाई लाकर दिया. लेकिन 22 अप्रैल को मां का निधन हो गया. मैं उन्हें गंगा किनारे बक्सर घाट अंतिम संस्कार करने ले गया. वहां से लौटा तो मुझे काफी तेज बुखार हो गया. मेरे साथ मेरी पत्नी को भी बुखार हो गया. करीब 22 घंटे बाद अगले दिन सुबह पांच बजे मेरे छोटे भाई की भी मौत हो गई. इधर मुझे 103- 104 डिग्री बुखार हो गया था.’’

कुमार बताते हैं, ‘‘मैं अपने भाई के अंतिम संस्कार में भी नहीं जा पाया. उसकी मौत सांस फूलने और बुखार के बाद हुई थी तो गांव वालों ने भी कोई मदद नहीं की. कोई घर के आसपास नहीं आ रहा था. हमने प्रशासन से जलाने में मदद मांगी, लेकिन कोई साथ नहीं आया. ऐसे में कुछ रिश्तेदार गंगा घाट पर भाई को दफना आए.’’

कुमार के भाई और मां

एक तरफ जहां सरकार दावा कर रही है कि घबराने की ज़रूरत नहीं सरकार आपके साथ है. वहीं आलोक कुमार बताते हैं, ‘‘मां के निधन वाले दिन भाई की तबीयत ज़्यादा बिगड़ गई. हमने कई बार 102 और 108 नंबर पर एम्बुलेंस के लिए फोन किया, लेकिन कोई भी उसे लेने नहीं आया. हमने सरकार के हेल्पलाइन नंबर पर भी फोन कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उसका कोरोना टेस्ट नहीं हुआ था, लेकिन सारे लक्षण थे. सांस लेने में परेशानी बढ़ती गई और वो मर गया. इलाज के अभाव में मेरे भाई की मौत हो गई. सबसे ज़्यादा दुख मुझे इस बात का है कि मैं अपने भाई को ठीक से अंतिम विदाई भी नहीं दे पाया. उसे दफनाना पड़ा. आज तक मेरे परिवार में किसी को दफनाया नहीं गया है.’’

एक तरफ जहां आलोक कुमार की मां और भाई का निधन हुआ था दूसरी तरफ उन्हें और उनकी पत्नी को तेज बुखार था. खांसी भी शुरू हो गई. ऐसे में 23 अप्रैल को उन्होंने कोरोना टेस्ट कराया. कुमार बताते हैं, ‘‘हम दवाई ले रहे थे, लेकिन बुखार कम नहीं हो रहा था. 26 अप्रैल को होने वाले पंचायत चुनाव में मेरी ड्यूटी लगी हुई थी. जिसके लिए मुझे 25 अप्रैल को पहुंचना था. मैंने फोन करके अधिकारियों को बताया पर कोई नहीं सुना. ऐसे में बुखार से तपते हुए मैं सुमेरपुर ब्लॉक ऑफिस पहुंचा. अपने बेटे को साथ लेकर गया था ताकि कुछ गड़बड़ हो तो वह साथ रहेगा. 25 अप्रैल की सुबह तक मेरा कोरोना रिपोर्ट तो नहीं आया था, लेकिन मुझे बुखार, खांसी और गले में खराश थी.’’

जैसे तैसे कुमार सुमेरपुर ब्लॉक ऑफिस पहुंचे वहां इन्होंने प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) से अपनी सारी परेशानी साझा की. कुमार बताते हैं, ‘‘मैंने बीडीओ साहब से बोला कि 22 अप्रैल को माताजी का निधन हो गया. 23 को छोटे भाई का. हमारी तबीयत सही नहीं है. हमारी ड्यूटी काट दीजिए. लेकिन उन्होंने कहा कि तुमको ड्यूटी करनी पड़ेगी. तहसीलदार साहब वहां के प्रभारी बनाए गए थे. उनसे भी हमने बोला, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था. वहां सेक्टर मजिस्ट्रेट थे उन्होंने कहा कि तुम ड्यूटी कर लो वहां कुछ करना नहीं होगा. आपको केवल लिस्ट ही देखनी है. मैंने फिर सोचा की चलो ठीक है. अब क्या करें मज़बूरी में हमको जाना पड़ा.’’

चुनाव ड्यूटी का पत्र जो जिलाधिकारी की तरफ से मिला

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की गाइडलाइंस के मुताबिक कोरोना टेस्ट कराने वाले शख्स को रिपोर्ट आने तक खुद को आइसोलेट रखना होता है, लेकिन अधिकारियों के दबाव में कुमार को बाहर निकलने पर मज़बूर होना पड़ा. उनकी तबीयत बेहतर होने के बजाय खराब होती गई. और 25 अप्रैल की शाम उनका और उनकी पत्नी दोनों का कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई. जब उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तब वे अपने साथी कर्मचारियों के साथ चुनाव ड्यूटी के लिए प्राथमिक पाठशाला नरीखेड़ा पूर्व पर मौजूद थे.

उन्नाव के अधिकारियों ने आईसीएमआर के नियमों को तोड़ आलोक कुमार को बस से चुनाव ड्यूटी के लिए भेज दिया. उस बस में 20 से ज़्यादा शिक्षक और दूसरे मतदानकर्मी मौजूद थे. इस तरह कुमार के साथ-साथ दूसरों की जिंदगी को भी मुश्किल में डाल दिया गया. मतदान केंद्र पर काफी संख्या में सुरक्षाकर्मी पहले से मौजूद थे. उसके बाद पीठासीन अधिकारी और तीन मतदान अधिकारी पहुंच गए. सबको साथ ही रहना था. इसी बीच देर शाम कुमार की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई.

शासकीय लापरवाही आगे भी जारी रही. आलोक कुमार बताते हैं, ‘‘जब मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो हमने एसडीएम, तहसीलदार और सेक्टर मजिस्ट्रेट को फोन किया कि हमारी व्यवस्था कीजिए. अस्पताल लेकर चलिए. उन्होंने कहा कि सुबह ले चलेंगे अभी इतने समय कोई व्यवस्था हो नहीं सकती है. इसके बाद वहां जो पोलिंग अधिकारी थे वो कहने लगे कि अगर इनको नहीं ले जाओगे तो हम चले आएंगे. हम चुनाव नहीं कराएंगे. तो रात साढ़े बारह बजे मुझे एम्बुलेंस से ट्रामा सेंटर उन्नाव भेजा गया.’’

यहां पीठासीन अधिकारी पीएलकेपी इंटर कॉलेज, कालू खेड़ा के सहायक प्रोफेसर श्यामू प्रसाद थे. न्यूजलॉन्ड्री ने प्रसाद से संपर्क किया. प्रसाद कहते हैं, ‘‘ब्लॉक पर ही आलोक ने बताया था कि मै अस्वस्थ हूं और जाने की स्थिति में नहीं हूं. ऐसे में हम लोग कह रहे थे इनको नहीं ले जाएंगे, लेकिन वहां कोई कहां सुनता है. हमने सेक्टर मजिस्ट्रेट से भी बोला. आलोक भी ब्लॉक में चिल्लाकर अधिकारियों को बता रहे थे. हमने उनसे कहा कि आप अधिकारियों को बता दीजिए. अब ये सुने या न सुने आप घर जाइए, लेकिन डर के कारण वे रुके रहे. अंत में उन्हें बहला फुसलाकर बस में हमारे साथ भेज दिया गया. बताइए उसी बस (टाटा मिनी बस) में वे भी बैठे थे और करीब 20-22 और कर्मचारी थे.’’

26 अप्रैल को मतदान कराने के बाद घर लौटे श्यामू प्रसाद तीन मई को मतगणना में भी गए. वहां से लौटने के बाद पॉजिटिव हो गए. अब उनकी रिपोर्ट निगेटिव आ गई है, लेकिन अब भी वे परेशानियों से गुजर रहे हैं. प्रसाद कहते हैं, ‘‘आलोक के साथ बेहद लापरवाही की गई. साथ ही हम सब की जिंदगी को भी खतरे में डाला गया.’’

देर रात करीब 12 बजे एम्बुलेंस से कुमार को उन्नाव के जिला अस्पताल में भेजा गया. वहां की बदहाली देख अगली सुबह ये चुपचाप अपने घर चले गए. घर पर ही इलाज किया और रिपोर्ट निगेटिव आ गई. हैरानी की बात है कि कोई कोरोना मरीज जिला अस्पताल से अपने घर चला गया पर अस्पताल और जिला प्रशासन ने उसकी खबर तक नहीं ली.

कुमार न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘जिला अस्पताल में कोई व्यवस्था नहीं थी. वहां कोई देखने वाला नहीं था. केवल दो खुराक दवा दी गई. हम वहां घूमते रहे लेकिन कोई डॉक्टर देखने तक नहीं आया. कहने लगे कि आप दवा खा लो. वहां कोई पानी भी नहीं दे रहा था. फिर हम मास्क लगाकर बाहर गए. वहां एक कप चाय पी और एक बोतल पानी लिया और दुकानदार से वहीं पर गर्म कराया. वहीं पीते रहे.’’

कुमार आगे कहते हैं, ‘‘कुछ देर बाद मुझे सीएमओ ऑफिस से फोन आया. उनसे मैंने बताया कि यहां कोई व्यवस्था नहीं है. कोई सुनने वाला नहीं है. उन्होंने बोला ठीक है. इसपर मैंने कहा कि मुझे अपने घर भेज दो. हम अपने घर पर दवा पानी कर लेंगे. उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. कुछ देर बाद मैंने वहां से बैग उठाया और हमने ना किसी को बताया और न ही हमसे किसी ने पूछा. हम वहां से निकलकर प्राइवेट गाड़ियों से घर आ गए. अपने घर आकर लखनऊ से दवा मंगाकर खाते रहे तब हमारी रिपोर्ट पॉजिटिव से निगेटिव आई.’’

आलोक कुमार और उनकी पत्नी निगेटिव होकर स्वस्थ हैं

यहां के सेक्टर मजिस्ट्रेट पशु चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर कुंवर रविंद्र सिंह बनाए गए. न्यूजलॉन्ड्री ने रविंद्र सिंह से संपर्क किया. वे कहते हैं, ‘‘किसी की ड्यूटी लगाने या हटाने की जिम्मेदारी मेरी नहीं थी. यह जिम्मेदारी एसडीएम और तहसीलदार की थी. वे मुझे कर्मचारी उपलब्ध करा रहे थे और मुझे चुनाव कराना था. जैसे ही मुझे पता चला कि इनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई है. मैंने फटाफट एंबुलेंस भेजकर इन्हें जिला अस्पताल भिजवाया.’’

हमने सिंह से पूछा कि उनके घर में दो लोगों की मौत हुई थी. उनमें से एक की मौत सांस लेने की परेशानी से हुई थी. उन्हें खुद 103 डिग्री बुखार था. कोरोना टेस्ट हुआ था. ऐसे में ड्यूटी पर बुलाना लापरवाही नहीं है. इस सवाल के जवाब में सिंह कहते हैं, ‘‘उस वक़्त तक इनकी रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आई थी. ऐसे में कोरोना है या नहीं है यह तय करना मुश्किल था. अगर उनके मौखिक कहने पर जाने दिया जाता तो कोई दूसरा भी इसी तरह की बात कह देगा कि उसे बुखार है. कोई रिपोर्ट तो लगाएंगे तभी तो आपको छुट्टी मिलेगी.’’

कुंवर रविंद्र सिंह पेशे से डॉक्टर होने के बाद भी लक्षण होने के बावजूद टेस्ट रिपोर्ट होने की बात बार-बार दोहराते नजर आते है. वे एक हैरान करने वाली जानकारी साझा करते हैं. सिंह बताते हैं, ‘‘हमारे एक आरओ थे. जिनका 22 अप्रैल को कोरोना टेस्ट हुआ था. उसका नतीजा 27 अप्रैल को पॉजिटिव आया. लेकिन इस बीच वे लगातार काम करते रहे. जब तक रिपोर्ट नहीं आएगी तब तक कोई भी निर्वाचन अधिकारी किसी को कैसे छुट्टी दे देगा.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने यहां के एसडीएम दयाशंकर पाठक से भी संपर्क किया. हमारे सवाल पूछने के बाद उन्होंने नाराजगी में जवाब देते हुए कहा, ‘‘तब मैं खुद कोरोना पॉजिटिव था.’’ इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया. उसके बाद हमने उनसे संपर्क करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई.

हमने जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार से भी संपर्क करने की कोशिश की. कई बार उन्हें फोन लगाया लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया.

आलोक कुमार की कहानी यह बताने के लिए काफी है कि पंचायत चुनाव के दौरान प्रशासन ने किस तरह लापरवाही कर कोरोना को फैलने का भरपूर मौका दिया. जिसका असर आज प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल रहा है. लोग बिना इलाज मरने को मज़बूर हैं. सरकार उनकी गिनती कोरोना से मरने वालों में नहीं कर रही है. सरकार पॉज़िटिव और मरने वालों की संख्या कम बता अपनी पीठ खुद थपथपा रही है, लेकिन गंगा किनारे से आ रही तस्वीरें यह बताने के लिए काफी हैं कि कोरोना ने कैसे यहां लोगों की जान ली है.

आज कुमार और उनकी पत्नी निगेटिव होकर स्वस्थ हैं, लेकिन उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि प्रशासन ने उनके साथ लापरवाही पर लापरवाही की. उनकी जिंदगी से खेला गया.

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