अयोध्या में लूट और स्विस बैंक में जमाखोरी के बीच मीडिया की चिरंतन राग दरबारी

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनने का रास्ता तैयार हुआ था. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रधानमंत्रीजी ने एक ट्रस्ट का निर्माण किया है. ट्रस्ट यानी भरोसा. लेकिन एक पुरानी कहावत है कि गांव बसा नहीं लुटेरे पहले पहुंच गए. ट्रस्ट के कुछ सदस्य और मोदीजी के पार्टी के कुछ नेताओं ने आस्थावान भारतीयों के भरोसे को क्षत-विक्षत कर दिया है. अमानत में खयानत जैसा मामला है. देश भर की जनता ने अपनी गाढ़ी कमाई से निकाल कर मंदिर के लिए चंदा दिया था. अब अयोध्या में बैठे ट्रस्ट के कुछ सदस्य और भाजपा के नेता उस पैसे की बंदरबांट में लगे हुए हैं. इस घटना से जुड़ी कुछ एक्सक्लूज़िव रिपोर्ट न्यूज़लॉन्ड्री ने की है. अभी कुछ और रिपोर्ट्स आना बाकी है. इस टिप्पणी में राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा खरीदी गई जमीनों में कमीशनखोरी कर रहे नेताओं की बात ताकि आप समझ सकें कि किस तरह से मंदिर के चंदे के पैसे से कुछ लोग कुटुंब कल्याण योजना चला रहे हैं.

जिस बेशर्मी से अयोध्या कांड चल रहा है कायदे से उस पर खबरिया चैनलों को लंका कांड चला देना चाहिए था लेकिन सरकार के पैरों में लोट रहा मीडिया और दिमाग ताखे पर रख चुके एंकर एंकराओं ने इस मौके पर सुंदरकांड का पाठ करने का फैसला किया है. इतने साफ सबूत होते हुए भी इस घटना के बाकी पहलुओं को खंगालने की कोशिश नहीं की गई.

बीते हफ्ते एक और बड़ी बात सामने आई. स्विटज़रलैंड के स्विस नेशनल बैंक ने एक आंकड़ा जारी करके बताया कि साल 2020 में भारतीयों ने स्विस बैंकों में पैसा जमा करने का 13 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया. गजब पारदर्शिता है. मोदीजी मनमोहनकाल के सारे रिकॉर्ड तो तोड़ ही रहे थे अब स्विस बैंकों में जमा काले धन का रिकार्ड भी तोड़ दिये. स्विस नेशनल बैंक के मुताबिक भारतीयों ने 2020 में 20,700 करोड़ रुपए उनके यहां जमा किये. इतने पैसे में तो मोदीजी एक और सेंट्रल विस्टा बनवा देते. भारतीयों का यह उछाल 300 प्रतिशत है. 2019 में स्विस बैकों में सिर्फ 6,625 करोड़ रुपए जमा हुए थे.

इसके अलावा इस बार की टिप्पणी में पिंजरा तोड़ कार्यकर्ता नाताशा नरवाल, देवांगना कलीता और छात्र नेता आसिफ इकबाल को मिली जमानत पर विस्तार से बातचीत, खासकर दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अनलॉफुल एक्टिविटीज़ प्रीवेंशन एक्ट को लेकर की गई व्याख्या पर टिप्पणी.

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