राजस्थान में कई मज़दूर और गरीब ई-मित्र केंद्र जाते हैं पर उन्हें कह दिया जाता है कि नए नाम नहीं जोड़े जा रहे, और पोर्टल बंद है.
क्या है राजस्थान खाद्य सुरक्षा योजना?
राजस्थान सरकार ने खाद्य सुरक्षा योजना प्रारम्भ की है. इसके तहत राशन उचित मूल्य तथा काफी कम दाम पर मिलेगा. इस योजना का लाभ वो उठा सकते हैं जिनके पास राशन कार्ड है. इसके लिए लाभार्थी को ई- मित्र केंद्र पर जाकर खाद्य सुरक्षा योजना का फॉर्म भरना पड़ेगा. फॉर्म जमा कराने के 20-25 दिन के अंतराल नाम सूची में जोड़ दिया जाता है जिसके बाद से लाभार्थी को उचित दर पर सरकारी दुकान से राशन मिलने लगता है.
चन्द्रकला एकल नारी संस्था से जुडी हुई हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री के साथ एक सूची साझा की. 12 मार्च 2020 को जारी इस नोटिस में नौ लोगों के नाम जारी किये गए.
"इन नामों को खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत जोड़ने का निर्देश दिया गया. लेकिन एक साल से ज़्यादा हो गया, अभी तक इन नामों को नहीं जोड़ा गया है. राज्य में ऐसी कई महिलाएं हैं जो विधवा हैं या अकेले घर चला रही हैं. एनएफएसए पोर्टल बंद होने कारण उनका नाम योजना में नहीं जोड़ा जा रहा. हम जल्द ही कोर्ट में याचिका दायर करेंगे." चन्द्रकला ने बताया.
चंद्रकला शर्मा अविवाहित, विधवा, तलाकशुदा और परित्यक्त महिलाओं के लिए काम करने वाली संस्था एकल नारी शक्ति संगठन की राज्य समन्वयक (स्टेट कॉर्डिनेटर) हैं.
राजस्थान की गहलोत सरकार ने अगस्त 2020 में घोषणा की थी कि वह नवंबर तक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना (एनएफएसए) के तहत लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराएगी. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के साथ-साथ एनएफएसए के तहत लाभार्थियों को प्रति व्यक्ति पांच किलो गेहूं और प्रति परिवार एक किलो चना दिया जाएगा. लेकिन राशन देना तो दूर की बात, लाभार्थियों के नाम भी योजना में दर्ज नहीं किये जा रहे.
न्यूज़लॉन्ड्री ने कोटा के जिला मजिस्ट्रेट उज्जवल राठौड़ से बात की. उन्होंने बताया, “राज्य सरकार ने लाभार्थियों की संख्या हासिल कर ली है इसलिए पोर्टल बंद है. सीएम अशोक गहलोत ने कहा था कि राज्य की 2011 की जनसंख्या 6.86 करोड़ को आधार मानकर, केंद्र 4.46 करोड़ लोगों के लिए हर महीने 2.32 लाख टन गेहूं आवंटित करता है. हालांकि, 2019 तक, राज्य की आबादी 7.74 करोड़ थी, और एनएफएसए के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या 5.04 करोड़ हो गई है. केंद्र और राज्य सरकार की आपसी बहस के बीच कविता और बुरी बाई जैसी महिलाएं फंसकर रह गई हैं.”