सरसों तेल में 20 फीसदी मिश्रण बंद: 30 वर्षों में लोगों को न मिली अच्छी सेहत और न हुआ किसानों को फायदा

दिल्ली में सरसो तेल खाने से 1998 में महामारी फैली थी. सरकार ने बचाव की रणनीति बनाई और प्रचार किया कि सरसो तेल का उपभोग न करें, उसमें बीमारी फैलाने वाली मिलावट है.

WrittenBy:विवेक मिश्रा
Date:
Article image

अब सरकार ने सरसों तेल में ब्लेंडिंग यानी मिश्रण को खत्म करके रिफाईंड में ब्लेंडिंग की इजाजत दे दी है. लेकिन विशेषज्ञों की राय में नतीजा यह निकला है कि सरसो के तेल में ब्लेंडिग ने न सिर्फ लोगों की स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर दिया बल्कि सरसो पैदा करने वाले किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा है. वहीं, कुछ संगठन रिफाइंड में भी ब्लेंडिंग की खिलाफत कर रहे हैं.

वर्ष 1990 में खाद्य वनस्पति तेलों में ब्लेंडिंग यानी मिश्रण को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इजाजत दी थी. 23 अप्रैल, 1990 को जारी अधिसूचना (जीएसआर 457 (ई)) के जरिए इसे वैधता दे दी गई थी. वर्ष 2006 में एफएसएसआई ने इसके लिए रेग्युलेशन बनाए.

ब्लेंडिंग करने वाली और निर्माता कंपनियों के लिए एग्रीकल्चर प्रोड्यूस (ग्रेडिंग एंड मार्किंग) एक्ट (एगमार्क) सर्टिफिकेशन को लागू किया गया. यह भी कहा गया कि किस प्रकृति का तेल मिश्रित किया गया है पैक के पीछे और सामने उसे लिखना होगा. ब्लेंडिंग करने वाली कंपनियां इसकी खूब वकालत करती हैं. हालांकि, इसके अनियंत्रित इस्तेमाल के आरोपों पर सरकारें लंबे समय तक चुप रही हैं.

सरसों में ब्लेडिंग का निर्णय न्यूट्रिशनल प्रोफाइल, टेस्ट और तेल को ज्यादा गर्म कर देने पर भी गुणवत्ता बनी रहने के लिए लिया गया था. ऐसा दावा था कि सीमित ब्लेंडिंग से तेल की गुणवत्ता बढ़ जाएगी. डॉ. प्रमोद इस ब्लेंडिग के दुष्परिणाम सामने रखते हैं, वह बताते हैं, "प्रोसेसिंग करने वालों ने ब्लेंडिंग का खूब गलत फायदा उठाया. ब्लेंडिंग के दौरान सरसों तेल में कहीं-कहीं सस्ते आयात होने वाले पॉम ऑयल का मिश्रण 80 फीसदी तक रहा. इसकी वजह से किसानों के लिए सरसों की लाभकारी कीमत खत्म हो गई."

शायद इसीलिए आयात पर हम निर्भर होते चले गए. लेकिन यह तथ्य काफी रोचक है कि एक समय ऐसा भी आया कि देश सरसों तेल के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1990-91 में भारत जरूरत का 98 फीसदी खाद्य तेल उत्पादन कर रहा था.

इसकी एक वजह टीएमओ योजना भी थी. वर्ष 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने टेक्नोलॉजी मिशन ऑन ऑयलसीड्स (टीएमओ) की शुरुआत की थी. इसकी अध्यक्षता सैम पित्रोदा कर रहे थे. इसका मकसद खाद्य तेलों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाना था. टेक्नोलॉजी की वजह से न सिर्फ तिलहन का क्षेत्र बढ़ा था बल्कि उत्पादन भी बढ़ा था.

डॉ. प्रमोद बताते हैं, "सरसों के बारे में सबसे चिंताजनक बात यह है कि पिछले 25 वर्षों में सरसों का क्षेत्र बढ़ा ही नहीं. यह 5.5 से 6 मिलियन हेक्टेयर के बीच में ही बना हुआ है. किसानों को न ही सपोर्ट दिया गया और न ही नीतियां कारगर रहीं. खाद्य तेलों खासतौर से पॉम आयल के आयात को खूब प्रोत्साहित किया गया, यहां तक कि आयात ड्यूटी शून्य तक पहुंचा दिया गया."

बीते कुछ वर्षों से आयात ड्यूटी बढ़ाई गई है, इसके अलावा मिनिमम सपोर्ट प्राइस मिला है, किसानों ने तकनीकी अपनाया है, जिसकी वजह से कुछ लाभ मिलना शुरू हुआ है. हालांकि एरिया नहीं बढ़ा. बीते 10 वर्षों में एरिया में कंपाउंड एनुअल ग्रोथ-2 फीसदी है. हालांकि प्रति यूनिट उत्पादन 1.5 टन औसत आ गई है. ब्लेंडिंग खत्म करने का निर्णय किसानों को प्रोत्साहित करेगा. वहीं बाजारों में बिना मिश्रण वाला सरसो तेल 8 जून से लाया गया है. इसकी कीमत 150 से 160 रुपए के आस-पास है.

(साभार- डाउन टू अर्थ)

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like