पत्रकार आशीष शर्मा का इलाज जयपुर के निजी अस्पताल में चल रहा था जहां प्रशासन ने उनका फोन बंद कर दिया ताकि वो अस्पताल प्रशासन की पोल न खोल दें.
आशीष को नहीं चल पाया उनकी मां की मौत का सच
आशीष को बिना बताए ही आभा और रिचा ने मां का अंतिम संस्कार कर दिया. आशीष हर दिन बहनों से मां के लिए पूछता था लेकिन आशीष के खराब स्वास्थ्य को देखते हुए उन्होंने आशीष को नहीं बताया कि उनकी मां अब इस दुनिया में नहीं रही. आशीष को हर समय उसकी मां की चिंता सताती थी. वो कई बार पैनिक हो जाता था.
आशीष की तबीयत भी लगातार बिगड़ती जा रही थी. 28 मई को आशीष को वेंटीलेटर पर रखा गया. बहुत संघर्ष के बाद तीन जून को आशीष की भी मौत हो गई. जबकि आशीष के पिता अभी भी आईसीयू में ही मौत से जंग लड़ रहे हैं.
इतना सब होने के बाद भी पत्रिका अखबार और सरकार की तरफ से परिवार को अभी तक कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है. जबकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आशीष के लिए ट्वीट कर लिखा, “राजस्थान पत्रिका में कार्यरत प्रदेश के युवा पत्रकार श्री आशीष शर्मा के असामयिक निधन पर मेरी गहरी संवेदनाएं. ईश्वर से प्रार्थना है कि शोकाकुल परिजनों को इस बेहद कठिन समय में सम्बल दें एवं दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें.”
आभा दुखी मन से कहती हैं, “अभी तक हमें आशीष का मृत्यु सर्टिफिकेट भी नहीं मिला है. ताकि वह दिवंगत पत्रकारों को मिलने वाली आर्थिक सहायता के लिए अप्लाई कर सकें.”
बता दें कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाल ही में राज्य में पत्रकारों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के तहत दिए जाने वाले लाभों को बढ़ाने का फैसला किया है. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने गंभीर बीमारी की स्थिति में पत्रकारों को दी जाने वाली सहायता राशि को एक लाख रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये करने को मंजूरी दी है. वहीं राजस्थान सरकार ने राज्य में कोविड-19 के कारण मरने वाले राशन डीलरों और मान्यता प्राप्त पत्रकारों के परिजनों को 50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने का भी एलान किया था. इसके लिए मृत्यु सर्टिफिकेट, प्रेस आईडी जैसे दस्तावेज़ों की ज़रूरत पड़ती है.
'नो पे' पर काम कर रहे ताहिर अहमद की ब्लैक फंगस से मौत
मृत्यु सर्टिफिकेट न मिल पाने का मामला केवल अकेले आशीष का ही नहीं है. बल्कि ऐसे अन्य परिवार भी मृत्यु सर्टिफिकेट न मिलने से परेशान हैं. पत्रकार तनवीर अहमद की दो जून को ब्लैक फंगस से मौत हो गई थी. वह दैनिक भास्कर में कार्यरत थे. जयपुर के महात्मा गांधी अस्पताल, सीतापुरा में उनका इलाज चल रहा था. ताहिर 'नो पे' पर काम कर रहे थे. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले साल उनके खराब स्वास्थय और किडनी ट्रांसप्लांट के लिए उन्होंने कई छुट्टियां ली थीं. बावजूद इसके कंपनी ने उनको पूरा पैसा दिया था. इसलिए अभी वह सिर्फ बिना पैसे के ही काम कर रहे थे.
ताहिर अहमद के परिवार में पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं. ताहिर के जाने के बाद परिवार के सामने बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. उन्हें भी सरकार से आर्थिक मदद की आवश्यकता है. लेकिन डॉक्टर ने कोई रिपोर्ट नहीं दी है. सभी डॉक्यूमेंट अपने पास रखे हैं. उन्हें एक पर्ची देकर कहा गया कि उन्हें डेथ सर्टिफिकेट नगर निगम से मिलेगा. नगर निगम पहुंचकर परिवार को पता चला कि अभी तक अस्पताल से रिकॉर्ड नहीं आया है. अस्पताल हर 15 दिन का रिकॉर्ड भेजते हैं. ताहिर के परिवार को बिना डेथ सर्टिफिकेट और डाक्यूमेंट्स के सरकार की तरफ से पत्रकारों को मिलने वाली सहायक राशि नहीं मिल पाएगी.
ताहिर के भाई सैयद अहमद ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "हम एक हफ्ते से नगर निगम और अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं लेकिन डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिल पा रहा. उसके बिना हमें सरकारी आर्थिक सहायता नहीं मिलेगी."
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