कोरोना महामारी की मार शहरों के बाद अब ग्रामीण इलाकों में भी दिखने लगी है. उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर गांवों में भी हालात दिन-ब-दिन खराब होते जा रहे है. ऐसा ही बरेली का क्यारा गांव है.
पांच मई को छह मौत
अनिल सिंह की मौत के बाद से तो क्यारा में मौतों का जो सिलसिला शुरू हुआ वो अब तक खत्म नहीं हुआ है. 12 मई को जब न्यूजलॉन्ड्री यहां पहुंचा तो एक शव जल रहा था. ग्रामीणों ने बताया की इनकी भी मौत बुखार और जुकाम होने के बाद ऑक्सीजन लेवल गिरने से हुई है. 2500 आबादी वाले क्यारा गांव के लिए सबसे बुरा दिन पांच मई रहा. इस दिन यहां छह लोगों की मौत हुई.
पांच मई को जिन लोगों की मौत हुई उसमें से एक भोलेनाथ पांडेय के पिता 70 वर्षीय रामसेवक पांडेय थे. रामसेवक पांडेय कोरोना टीके की पहली डोज ले चुके थे. उनकी तबीयत बिगड़ी जिसके बाद वे अस्पताल नहीं जा पाए उनकी मौत घर पर ही हो गई.
भोलेनाथ पांडेय न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘मेरे पिताजी पांच छह दिन से काफी बीमार थे. उन्हें बुखार था. पांच मई की शाम को उनको सांस लेने में परेशानी हुई तो हमने आसपास से उन्हें दवाई दिलाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. रात हो गई थी तो हमने सोचा की सुबह अस्पताल ले जाएंगे लेकिन रात में 12 बजे के करीब उनकी मौत हो गई. हम कुछ कर नहीं पाए.’’
भोलेनाथ को लगता है कि पंचायत चुनाव के कारण जमा हुई भीड़ के कारण लोग कोरोना की चपेट में आ रहे हैं और लोगों की मौत हो रही है. रामसेवक पांडेय भी वोट करने गए थे. भोलेनाथ न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘यहां 15 अप्रैल को चुनाव हुआ. उससे पहले यहां किसी को इन्फेक्शन नहीं था और ना ही मौतें हुई थीं. पंचायत चुनाव के बाद से ही यहां लोग बीमार पड़ने लगे और मौत होने लगीं. एक साथ छह मौतें हुई. यह एक गांव में काफी मायने रखती हैं.’’
भोलेनाथ पांडेय के घर से महज 100 मीटर दूरी पर गौरव तोमर का घर है. इनके यहां तीन दिन के अंदर दो महिलाओं, 60 वर्षीय मुन्नी देवी और शांति देवी की मौत हो गई. दोनों गौरव की चाची हैं. मुन्नी देवी की मौत 3 मई को हुई तो शांति देवी की छह मई को.
गौरव न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘एक मई को मेरी चाची मुन्नी देवी को बुखार आया. हमने गांव के झोलाछाप डॉक्टर से दवा लेकर उन्हें दी. वो ठीक हो गईं. दो मई को भी हल्का सा बुखार था, लेकिन उसे गौर नहीं किया. तीन मई की सुबह जब हमने उन्हें उठाया तो ऐसा लगा की उनके हाथ पैर में जान ही नहीं है. उन्हें लेकर हम डीआर अस्पताल गए वहां देखकर अस्पताल ने मना कर दिया. उनको शंका थी कि इन्हें कोरोना है. उसके बाद हम मिशन गए. वहां भी बेड खाली नहीं था. वहां हम एक दो घंटे तक बेड के लिए इंतज़ार किये. वहां हमने उनका ऑक्सीजन लेवल देखा तो वह 85 आया था. उसके बाद उनका ऑक्सीजन लेवल कम होता गया. आखिरी बार जब हमने देखा तो उनका ऑक्सीजन लेवल 65 पर आ चुका था. उनका शरीर ठंडा पड़ गया. करीब चार बजे बिना भर्ती किए उनकी मौत हो गई. सरकार के लोग खाली दावे कर रहे हैं लेकिन लोगों को इलाज भी नहीं मिल रहा.’’
मुन्नी देवी का कोरोना टेस्ट तो नहीं हुआ, लेकिन अलग-अलग अस्पताल के डॉक्टरों ने परिजनों को बताया कि उन्हें कोरोना के सारे लक्षण थे. मुन्नी देवी की मौत के तीन दिन बाद शांति देवी की भी मौत हो गई. परिजनों की माने तो उनमें कोरोना का कोई लक्षण तो नहीं था. वह पांच मई को सोई ही रह गईं. मुन्नी देवी और शांति देवी का निधन तो हो गया, लेकिन उनके परिवार में कई और लोग अभी भी बीमार हैं. कुछ लोगों का टेस्ट हुआ जो निगेटिव आया है.
यहीं हमारी मुलाकात राजेश कुमार सिंह से हुई. राजेश कुमार खुद भी बीमार हैं. वे दो दिन पहले खुद अपना टेस्ट कराकर लौटे हैं. राजेश के भाई की पत्नी 38 वर्षीय राखी सिंह, 17 अप्रैल से बीमार है. उन्हें तेज बुखार और सूखी खांसी है. लेकिन पैसे की कमी के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं कराया जा रहा है. राखी के पति दिल्ली में एक कंपनी में काम करते हैं. राखी ही नहीं गांव में हर घर में कोई ना कोई बीमार है.
डॉक्टर का झूठा दावा गांव में किसी की कोरोना से मौत नहीं..
क्यारा में ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है. यहां के प्रमुख डॉक्टर सौरभ कुमार हैं. वे गांव में किसी की भी कोरोना से हुई मौत से इनकार करते हैं.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते कुमार एक गांव में मरे हुए लोगों की लिस्ट दिखाते हैं. 13 लोगों का नाम इस लिस्ट में नजर आता है और ज़्यादातर लोगों की मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया है. जब हमने उनसे पूछा की आज से पहले इतने दिन में किसी गांव में इतने लोगों की मौत हार्ट अटैक से हुई है? हमारे इस सवाल का कोई साफ़ जवाब नहीं देते हैं. कुमार कहते हैं, ‘‘हार्ट अटैक के भी कई कारण रहे हैं. इसीलिए सिर्फ अटैक लिखा गया है. गांव में ज़्यादातर बुजुर्ग लोगों की मौत हुई है. नेचुरल डेथ है. कोरोना से किसी की मौत नहीं हुई.’’
सौरभ कुमार न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘सरकार ने पांच दिन घर-घर जाकर जानकारी हासिल की. हमारी आशा वॉकर्स इस गांव में भी गईं. हमें यहां करीब 20 लोग संदेहास्पद मिले. हमने सबका टेस्ट कराया लेकिन वे निगेटिव आए. हमारे सामुदायिक केंद्र के अंतर्गत कई गांव आते हैं इनमें हमारी 10 टीम जाकर टेस्ट कर रही हैं. अब तक एक भी शख्स की मौत कोरोना से नहीं हुई है. हम लगातार लोगों का टेस्ट कर रहे हैं. एंटीजन की रिपोर्ट तो हम साथ के साथ दे देते लेकिन आरटी पीसीआर की रिपोर्ट जिले से आती है.’’
क्यारा और आसपास के गांवों से रिपोर्टिंग करने के बाद हमने पाया कि सौरभ कुमार झूठ बोल रहे थे. सिर्फ क्यारा ही नहीं आसपास के गांवों में भी लोगों की मौतों का सिलसिला जारी है. बात क्यारा की करें तो अनिल कुमार सिंह तो कोरोना का इलाज कराते हुए मरे. उमा देवी हो या मुन्नी देवी डॉक्टर ने जांच के बाद ही कोरोना बताया. गांव में ज़्यादातर लोगों की मौत बुखार, जुकाम और सांस लेने में परेशानी की वजह से हो रही है. ये कोरोना के लक्षण ही तो हैं. टेस्ट हो नहीं पा रहा और गांव में लोग डर से टेस्ट करा भी नहीं रहे हैं.
एक तरफ जहां डॉक्टर सौरभ का दावा है कि घर-घर जाकर लोगों की जानकारी ली जा रही है. टेस्ट किया जा रहा है. लेकिन गांव वालों की माने तो अगर ठीक से यहां लोगों की जांच हो जाए तो हर घर से कोरोना मरीज निकलेंगे.
गांव के पूर्व प्रधान सर्वेश सिंह न्यूज़लॉन्ड्री से बताते हैं, ‘‘डॉक्टर सौरभ कुमार झूठ बोल रहे हैं. चार लोग तो अस्पताल में कोरोना का इलाज कराते हुए मरे हैं. मैं खुद उनके साथ अस्पताल गया था. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र वाले हर जांच की रिपोर्ट निगेटिव दिखाकर यह साबित कर रहे हैं कि कोरोना ग्रामीण इलाकों में नहीं है. उन्होंने अनिल की रिपोर्ट निगेटिव दी. वो इनकी रिपोर्ट पर भरोसा कर घर पर ही रहा. उसकी तबीयत बिगड़ती गई और वो मर गया. एक बार ये हमारे गांव आए थे और जितने लोगों का टेस्ट किया सबका निगेटिव आया. हमारे यहां लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं. मेरी समझ से तो कोरोना के कारण ऑक्सीजन की कमी आ रही है. आज भी गांव में एक लड़के को ऑक्सीजन लगा हुआ है.’’
दूसरी बात प्रशासन भले ही किसी की कोरोना से मौत के दावे से इंकार कर रहा हो लेकिन यहां के गांवों में लोगों की मौत बुखार, जुकाम और ऑक्सीजन की कमी से लगातार जारी है. हैरानी की बात यह है कि ज़्यादातर लोग घर पर ही दम तोड़ दे रहे हैं. कुछ इलाज के लिए शहर की तरफ भागते हुए बेड की तलाश में रास्ते में ही दम तोड़ रहे हैं. यह सिर्फ क्यारा का सच नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर गांवों का सच हैं.