मेरठ के लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड में लोग जमीन पर लेटकर इलाज करा रहे हैं. मरीजों के परिजनों का आरोप है कि यहां के स्वास्थ्यकर्मी ऑक्सीजन देने के बदले पैसे मांग रहे हैं.
मेरठ के सबसे बड़े अस्पताल लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के आपातकालीन वार्ड के गेट पर एक बड़ा सा पोस्टर लगा है, जिस पर लिखा है- इस अस्पताल में बाहर से ऑक्सीजन लेकर न आएं. अस्पताल प्रशासन ने पोस्टर के बड़े-बड़े अक्षरों में दावा कर दिया है कि उसके पास ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है लेकिन हमने यहां ऐसे परिजनों को पाया जिनके करीबी ऑक्सीजन की कमी से काल के गाल में चले.
मेरठ के माधोपुरम इलाके में रहने वाले कमल छाबड़ा अपनी भाभी लता को लेकर मेडिकल कॉलेज पहुंचे थे. यह मेरठ के सबसे प्रतिष्ठित अस्पतालों में से एक है. लता को सांस लेने में परेशानी हो रही थी. छाबड़ा न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘अस्पताल में ऑक्सीजन के लिए पैसे लिए जा रहे हैं. मैंने और भाभी के बेड के पास वाले मरीज के परिजनों ने एक-एक हज़ार रुपए देकर एक सिलिंडर लिया. दोनों को एक ही सिलेंडर से ऑक्सीजन दिया जा रहा है. यहां कोई इलाज नहीं हो रहा है.’’
हमसे बातचीत के थोड़ी देर बाद ही छाबड़ा की भाभी लता का निधन हो गया. उनकी शादी दो महीने पहले ही हुई थी.
जिस अस्पताल के गेट पर लिखा है कि बाहर से ऑक्सीजन लाने की ज़रूरत नहीं है उस अस्पताल ने लता के अंतिम संस्कार के कागज पर मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी लिखा है.
वहीं पर हमारी मुलाकात एक और परिवार से होती है. 35 साल की आस्था की शादी हरिद्वार में हुई थी. उनके पिता मेरठ के कमिश्नर के यहां काम करते हैं. अपनी बीमार बेटी को उन्होंने इलाज के लिए मेरठ बुला लिया. उन्हें भरोसा था कि उनकी पैरवी से आस्था को इलाज मिल जाएगा, लेकिन ऑक्सीजन की कमी के कारण आस्था की मौत हो गई.
आस्था के पति संजय कुमार राठौड़ रोते-रोते बार-बार कहते हैं कि ऑक्सीजन दे देते तो मेरी पत्नी बच जाती. सरकारी सिलेंडर को अस्पताल कर्मचारियों द्वारा ब्लैक में बेचने का आरोप कई मरीजों के परिजन लगाते हैं.
मेडिकल कॉलेज के कोरोना वार्ड और आपातकालीन वार्ड की स्थिति बेहद खराब है. यहां लोग फर्श पर अपना चादर बिछाकर इलाज कराते नजर आए.
48 वर्षीय रेखा वर्मा अपनी मां चमेली देवी को लेकर यहां पहुंची थीं. वो अपने साथ चारपाई, बिस्तर लेकर आई थी. चमेली देवी को ऑक्सीजन ज़रूरत थी लेकिन घंटों इंतज़ार करने के बाद जब ऑक्सीजन नहीं मिला तो वो अपनी मां को लेकर अस्पताल से चली गईं. उन्होंने हमें बताया, ‘‘यहां कोई इलाज नहीं मिल रहा है. घर लेकर जा रहे हैं. अगर ऑक्सीजन मिल गया तो ठीक नहीं तो योगीजी ने मरने के लिए छोड़ ही दिया है. वे ये नहीं कह रहे कि गरीबी हटाओ बल्कि गरीबों को ही हटाने की कोशिश कर रहे हैं.’’
हम अजीब सी विडंबना के सामने खड़े थे. एक तरफ हमारे सामने लोगों की ऑक्सीजन से मौत हुई. दूसरी तरफ हमारे सामने लिखा था यहां अपना ऑक्सीजन लेकर न आएं, ऑक्सीजन उपलब्ध है. परिजन चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि ऑक्सीजन मिल जाता तो उनके मरीज की जान बच जाती लेकिन मेरठ के सीएमओ अखिलेश मोहन कहते हैं, ''शहर के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है. तमाम कोरोना अस्पतालों में मांग के अनुरूप ऑक्सीजन पहुंचाया जा रहा है.''
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