दलित बच्चों पर कहर बन रहा है फूलों की खेती का जहर: रिपोर्ट में खुलासा

भोपाल गैस त्रासदी को याद करते हुए जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल का खर्च निकालने के लिए फूल के खेतों में काम करने वाले बच्चे जहरीले कीटनाशकों के संपर्क में आकर बीमार पड़ रहे हैं.

WrittenBy:विवेक मिश्रा
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इस मसले पर एसआरईडी की कार्यकारी निदेशक डॉ फातिमा बर्नड ने कहा, '' हम 21 वीं सदी में हैं और दुनिया के विकास की कीमत फूलों के खेतों में काम करने वाले दलित बच्चों के शोषण पर आधारित है. यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाल अधिकार मानकों का स्पष्ट उल्लंघन है. कॉरपोरेट मुनाफाखोर दलित बच्चों का खून चूस रहे हैं. ये एग्रोकेमिकल निगम अपने स्वास्थ्य और शिक्षा पर कीटनाशकों के कारण होने वाले नुकसान के साथ दलित बच्चों के भविष्य को नष्ट कर रहे हैं. हम इस कॉर्पोरेट घुसपैठ की हमारे गांवों, हमारे कृषि और हमारे देश में निंदा करते हैं.

वहीं, अत्यधिक खतरनाक कीटनाशक (एचएचपी) बनाने वाली कंपनियों के माल और दुकानों की सुरक्षा जांच की गई तो पाया गया कि फूलों की खेती के खेतों में उपयोग किए जाने वाले एचएचपी के अग्रणी निर्माता स्थानीय और ट्रांसनैशनल एग्रोकेमिकल कंपनियां हैं जिनमें धानुका एग्रीटेक, सिनजेन्टा, बेयर क्रॉप साइंस, डॉव एग्रोसाइंस और रैलिस इंडिया शामिल हैं.

अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक कीटनाशकों से जुड़े खुदरा दुकानों में बहुत ही सीमित जगह व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) पाए गए जबकि केवल पांच कीटनाशक उत्पादों में स्थानीय भाषा में लिखित उपयोग के निर्देश थे.

पैन इंडिया के सहायक निदेशक दिलीप कुमार ने कहा कि जमीनी हकीकत यह है कि फूलों की खेती में किए जा रहे खतरनाक कीटनाशकों का इस्तेमाल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों का खुला उल्लंघन है. खतरनाक कीटनाशकों के जद में आने वाले बच्चों के पुराने स्वास्थ्य प्रभावों को यह बढ़ाने वाला साबित हो सकता है. इस वर्ष के शुरुआत में सरकार ने अपने मसौदे में कुछ खतरनाक रसायनों के प्रतिबंध की बात कही थी, जो कि निश्चित एक अच्छा कदम था लेकिन यह कब लागू होगा अभी तक पता नहीं है.

पीएएनएपी के मुताबिक, कीटनाशक कंपनियों को बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के उल्लंघन के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, जैसे कि जीवन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, और स्वास्थ्य के उच्चतम मानक का आनंद लेने का अधिकार हैं.

अध्ययन रिपोर्ट में सिफारिश करते हुए कहा गया है कि बालश्रम को रोका जाना चाहिए और ऐसे कीटनाशकों पर तत्काल रोक लगनी चाहिए जिनका स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम पड़ रहा है. इसके लिए एक्शन प्लान भी बनना चाहिए. साथ ही लेबलिंग, सेफ्टी प्रीकॉशन्स और ट्रेनिंग स्टैंडर्ड को भी सख्ती से जांचा जाना चाहिए.

पैन इंडिया के दिलीप कुमार ने कहा कि सरकार को बच्चों के स्वास्थ्य का ख्याल करते हुए वैकल्पिक गैर रसायनिक फार्मिंग अभ्यास पर जोर देना चाहिए. साथ ही उचित प्रयास नीति के जरिए उठाए जाने चाहिए.

इस अध्ययन में तिरवल्लुर जिले के 24 किसान परिवार से जुड़े बच्चों ने अध्ययन में भागीदारी की. यह बच्चे फूलों की खेती में प्रत्यक्ष भागीदार हैं और कीटनाशक रसायनों के स्प्रे से लेकर फूलों को तोड़ने व ढ़ोने आदि का काम आदि करते हैं. भागीदारी करने वाले बच्चे दलित वर्ग से ताल्लुक रखते हैं.

डाउन टू अर्थ से साभार

इस मसले पर एसआरईडी की कार्यकारी निदेशक डॉ फातिमा बर्नड ने कहा, '' हम 21 वीं सदी में हैं और दुनिया के विकास की कीमत फूलों के खेतों में काम करने वाले दलित बच्चों के शोषण पर आधारित है. यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाल अधिकार मानकों का स्पष्ट उल्लंघन है. कॉरपोरेट मुनाफाखोर दलित बच्चों का खून चूस रहे हैं. ये एग्रोकेमिकल निगम अपने स्वास्थ्य और शिक्षा पर कीटनाशकों के कारण होने वाले नुकसान के साथ दलित बच्चों के भविष्य को नष्ट कर रहे हैं. हम इस कॉर्पोरेट घुसपैठ की हमारे गांवों, हमारे कृषि और हमारे देश में निंदा करते हैं.

वहीं, अत्यधिक खतरनाक कीटनाशक (एचएचपी) बनाने वाली कंपनियों के माल और दुकानों की सुरक्षा जांच की गई तो पाया गया कि फूलों की खेती के खेतों में उपयोग किए जाने वाले एचएचपी के अग्रणी निर्माता स्थानीय और ट्रांसनैशनल एग्रोकेमिकल कंपनियां हैं जिनमें धानुका एग्रीटेक, सिनजेन्टा, बेयर क्रॉप साइंस, डॉव एग्रोसाइंस और रैलिस इंडिया शामिल हैं.

अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक कीटनाशकों से जुड़े खुदरा दुकानों में बहुत ही सीमित जगह व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) पाए गए जबकि केवल पांच कीटनाशक उत्पादों में स्थानीय भाषा में लिखित उपयोग के निर्देश थे.

पैन इंडिया के सहायक निदेशक दिलीप कुमार ने कहा कि जमीनी हकीकत यह है कि फूलों की खेती में किए जा रहे खतरनाक कीटनाशकों का इस्तेमाल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों का खुला उल्लंघन है. खतरनाक कीटनाशकों के जद में आने वाले बच्चों के पुराने स्वास्थ्य प्रभावों को यह बढ़ाने वाला साबित हो सकता है. इस वर्ष के शुरुआत में सरकार ने अपने मसौदे में कुछ खतरनाक रसायनों के प्रतिबंध की बात कही थी, जो कि निश्चित एक अच्छा कदम था लेकिन यह कब लागू होगा अभी तक पता नहीं है.

पीएएनएपी के मुताबिक, कीटनाशक कंपनियों को बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के उल्लंघन के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, जैसे कि जीवन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, और स्वास्थ्य के उच्चतम मानक का आनंद लेने का अधिकार हैं.

अध्ययन रिपोर्ट में सिफारिश करते हुए कहा गया है कि बालश्रम को रोका जाना चाहिए और ऐसे कीटनाशकों पर तत्काल रोक लगनी चाहिए जिनका स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम पड़ रहा है. इसके लिए एक्शन प्लान भी बनना चाहिए. साथ ही लेबलिंग, सेफ्टी प्रीकॉशन्स और ट्रेनिंग स्टैंडर्ड को भी सख्ती से जांचा जाना चाहिए.

पैन इंडिया के दिलीप कुमार ने कहा कि सरकार को बच्चों के स्वास्थ्य का ख्याल करते हुए वैकल्पिक गैर रसायनिक फार्मिंग अभ्यास पर जोर देना चाहिए. साथ ही उचित प्रयास नीति के जरिए उठाए जाने चाहिए.

इस अध्ययन में तिरवल्लुर जिले के 24 किसान परिवार से जुड़े बच्चों ने अध्ययन में भागीदारी की. यह बच्चे फूलों की खेती में प्रत्यक्ष भागीदार हैं और कीटनाशक रसायनों के स्प्रे से लेकर फूलों को तोड़ने व ढ़ोने आदि का काम आदि करते हैं. भागीदारी करने वाले बच्चे दलित वर्ग से ताल्लुक रखते हैं.

डाउन टू अर्थ से साभार

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