लॉकडाउन के एक साल बाद हमने उन कुछेक लोगों से दोबारा मुलाकात की जो साल भर पहले जैसे-तैसे अपने घर भाग रहे थे.
मज़बूरी में लौट आए दिल्ली
पहले तो बिहार सरकार ने कहा कि जो भी बिहार निवासी जहां है वहीं रहें. सरकार उन्हें मदद पहुंचाएगी. कुछ लोगों को बिहार सरकार ने एक-एक हज़ार रुपए मदद के तौर पर भेजा भी पर लोगों का वापस लौटने का सिलसिला जारी रहा.
बिहार सरकार ने तब कहा था कि जो भी प्रवासी वापस आ रहे हैं उन्हें उनके काबिलियत के मुताबिक काम दिया जाएगा. पर ऐसा हुआ नहीं और लोगों को दोबारा काम की तलाश में शहर की तरफ भगाना पड़ा.
सद्दाम और उनके साथियों के साथ भी यही हुआ. ऑटो से घर जाने वालों में से एक सउद अंसारी कहते हैं, ‘‘मैं घर पर अकेला कमाने वाला हूं. खेती-बाड़ी तो अपनी है नहीं. दूसरों के खेतों में काम करते थे. जहां पहले मज़दूरी 200 रुपए मिलती थी, वहां सौ रुपए मिल रहा था. कम मज़दूरी में ही कुछ रोज काम किए. कर्ज बढ़ता जा रहा था तो वापस दिल्ली आ गए. मैं ऑटो का काम छोड़ दिया. अब एक नर्सरी में काम करता हूं. बाकी लोग अभी भी ऑटो ही चलाते हैं.’’
दिल्ली के संत नगर इलाके के तीन हज़ार के कमरे में चार लोग रहते हैं. तनवीर अंसारी इसमें से एक हैं. ये भी ऑटो चलाते हैं. दोनों पैरों से विकलांग तनवीर भी कटिहार जाने वालों में शामिल थे. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए तनवीर कहते हैं, ‘‘बिहार सरकार से हमें कुछ नहीं मिला. कर्जा लेकर खाए. जब कर्ज बढ़ता जा रहा था तो दिल्ली आ गए. यहां भी कमाई नहीं हो रही है.’’
‘आज भी उस सफर को याद कर नींद नहीं आती’
काम की तलाश में ये लोग दिल्ली तो लौट आए हैं लेकिन परेशानियां खत्म नहीं हो रही है. कोरोना के कारण लोगों का घरों से निकलना कम हो रहा है जिस कारण ऑटो में सवारी नहीं मिल पा रही है.
ये लोग आज भी उस सफर को याद करके रोने लगते हैं. सउद बताते हैं, ‘‘रास्ते में हमने लोगों को रोते हुए देखा. किसी के चेहरे पर हंसी नहीं थी. हम लोग भी भूखे गए. रास्ते में पुलिस वालों ने मारा. आज भी उस दिन को याद करके अकेले में रोते है.’’