उत्तर प्रदेश: लव जिहाद मामलों की जांच के बाद एसआईटी ने पाया था कि कुछ युवाओं ने अपना धर्म छुपाया, लेकिन क्या यह सच है?

दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने हंगामा कर पुलिस पर लव जिहाद के मामले की जांच के लिए एसआईटी बनाने का दबाव बनाया. इसके बाद पुलिस ने एसआईटी का गठन किया और 11 मामलों की जांच की.

WrittenBy:बसंत कुमार
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उत्तर प्रदेश के कानपुर में बीते साल लव जिहाद एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था. दरअसल शालिनी यादव द्वारा फैजल से निकाह करने के बाद क्षेत्र के दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों ने हंगामा करना शुरू कर दिया था. एक तरफ जहां बालिग शालिनी वीडियो जारी करके कहती रहीं कि उन्होंने अपने मन से यह फैसला लिया है. उनकी शादी को लव जिहाद न कहा जाए, लेकिन मीडिया का एक बड़ा हिस्सा, शालिनी का परिवार, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता लगातार इसे लव जिहाद बताते रहे.

कानपुर पुलिस, शालिनी और फैजल को तलाश ही रही थी, उसी दौरान शालिनी ने दिल्ली की एक कोर्ट में हाजिर होकर अपना बयान दर्ज करा दिया. इसके बाद भी विवाद थमा नहीं. दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने हंगामा जारी रखा और पुलिस पर लव जिहाद के मामले की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम ( एसआईटी ) बनाने का दबाव बनाते रहे. पुलिस ने इसको लेकर एसआईटी का गठन किया और 11 मामलों की जांच की.

दक्षिणपंथी संगठनों का कहना था कि लव जिहाद के पीछे पूरा एक गिरोह काम करता है. मुस्लिम लड़के अपना नाम बदलकर, हिंदू होने का अभिनय करते हैं और जब लड़कियां उनके ‘चंगुल’ में फंस जाती हैं तो अपनी असली पहचान बताते हैं.

एसआईटी अपनी जांच में इन मामलों में किसी गिरोह के शामिल होने का तथ्य हासिल तो नहीं कर पाई, लेकिन उसने पाया कि कुछ लड़कों ने अपना नाम छुपाकर हिन्दू लड़कियों के साथ रिश्ते बनाए थे. न्यूज़लॉन्ड्री ने ऐसे ही कुछ आरोपियों और पीड़ितों के परिवारों से मुलाकात की जिन मामलों में पुलिस ने नाम छुपाने की बात बताई थी.

'17 महीने तक छुपाई रखी शादी'

कानपुर में एसआईटी के गठन के बाद जांच के लिए 11 मामले सामने आए. इसमें से कुछ मामले साल 2019 के थे तो कुछ 2020 के.

पुलिस के पास ये मामले कैसे आए इस सवाल के जवाब में डीआईजी मोहित अग्रवाल न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘जब हमने एसआईटी के गठन की घोषणा की तो लोग आते गए और हम शिकायत दर्ज करते गए. जो भी मामले हमारे सामने आए उसे हमने एसआईटी में शामिल किया और उसकी जांच की.’’

कानपुर पुलिस के सामने सबसे ज्यादा मामले नौबस्ता थाने के आए. नौबस्ता थाने के दो मामलों में एसआईटी ने पाया था कि आरोपियों ने अपने नाम बदले. ऐसा एक मामला मुख़्तार अहमद उर्फ़ राहुल सिंह का है. एसआईटी की जांच के मुताबिक राजीव नगर, मछरियावा के रहने वाले मुख़्तार अहमद ने अपना नाम बदलकर आवास विकास हंसपुरम की रहने वाली मानसी शर्मा से दोस्ती की और उसके बाद फर्जी कागज बनाकर उससे कोर्ट मैरिज की. इसको लेकर पीड़ित मानसी ने 20 सितंबर को मामला दर्ज कराया जिसके बाद आरोपी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. अभी वो जेल में ही है.

जब हम पीड़िता मानसी के घर पहुंचे तो वो अपने घर पर नहीं थीं. इस दौरान उनकी मां 40 वर्षीय सुशीला शर्मा और पिता रामलड़ैत शर्मा से हमारी मुलाकात हुई.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए वो साफ-साफ कहते हैं, ‘‘उस लड़के ने अपना धर्म छुपाकर हमारी बेटी को प्रेम में फंसाया. लड़की पढ़ने जाने के दौरान उससे मिलती-जुलती थी. दोनों ने छुपकर शादी कर ली. इस लड़के की पहले से ही शादी हुई थी यह बात भी उसने मेरी बेटी से छुपाकर रखी. हमें जब दूसरे लोगों से इस शादी के बारे में पता चला तो हमने अपनी बेटी से पूछा, लेकिन उसने ऐसा कुछ होने से इंकार कर दिया. हमने अपनी बेटी के बाहर आने जाने पर भी रोक लगा दी थी.’’

सुशीला बताती हैं, ‘‘जब लड़की बाहर आती जाती नहीं थी तो वह एक रोज हमारे घर आ पहुंचा और कहने लगा तेरी बेटी से मेरी शादी हो गई है. मैं इसे लेकर जाऊंगा. हमने उसे बैठाकर समझाया कि देखो तुम्हारी पहले से शादी हुई है. दोनों को साथ कैसे रख पाओगे. हमारा धर्म भी अलग है. तुमसे भी गलती हुई है और मेरी बेटी से भी. तुम भी अपना परिवार संभालो और हम भी इसकी शादी कर देते हैं. लेकिन वो मानने को तैयार नहीं था.’’

सुशीला आगे कहती हैं, ‘‘हम लोग शांति से इस मामले को खत्म करना चाहते थे. हमें समाज में इज्जत का डर था. वो नहीं माना. एक रोज वो अपने दोस्तों के साथ आया. उसके दोस्त बाहर खड़े थे. वो अंदर आया और खाट पर सोई मेरी बेटी को लात मारते हुए बोला कि तू मेरे साथ चल. मेरी बेटी उसके साथ नहीं जाना चाहती थी. अब मां-बाप के सामने कोई उसके बच्चों को मारे तो बुरा लगता है. इन्होंने (अपने पति की तरफ इशारा करते हुए) उसे धक्का देते हुए बाहर जाने के लिए कहा. फिर वो मारपीट करने लगा. पानी सर से बाहर जा चुका था तो हमने पुलिस को फोन करके बताया. पुलिस आई और उसे घर से पकड़कर ले गई.’’

सुशीला कहती हैं, ‘‘मेरी बेटी ने बताया था कि उसने अपना नाम राहुल सिंह बताया था. अपनी शादी के बारे में छुपाया था. मेरी बेटी को उसके धर्म के बारे में तब पता चला जब वो कोर्ट में शादी करने गई. उसने मेरी बेटी से उसके डॉक्यूमेंट ले लिए थे और उसमें उसका नाम फातिमा करा दिया था. डॉक्यूमेंट में हम दोनों का नाम भी बदल दिया था. जब यह मेरी बेटी को पता चला तो वो हैरान हुई, लेकिन प्रेम में थी. जानते ही हो प्रेम में आदमी कुछ भी कर जाता है. वो शादी कर ली लेकिन ये बात उसने हमसे छुपाकर रखी.’’

आप लोग राहुल सिंह को पहले से जानते थे, इस सवाल का जवाब सुशीला ना में देती हैं. वो कहती हैं, ‘‘पहली बार हम तब मिले जब वो हमारे घर आया था. उसने तब हमसे कहा था कि उसका नाम मुख़्तार है. वो अपनी पहली बीबी से तलाक ले लेगा और मेरी बेटी के साथ रहेगा. लेकिन आप ही बताओ हम हिन्दू हैं. कैसे एक मुस्लिम से अपनी बेटी की शादी कर देते. हम लोग इस पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहते थे. विवाद से बचने के लिए मैं अपनी बेटी को लेकर कन्नौज के अपने गांव लेकर चली गई. ये वहां भी पहुंच गया था. हम थक हार कर पुलिस के पास गए.’’

इस मामले में नौबस्ता थाने में आईपीसी की धारा 420 (छल करना) और दस्तावेजों को हेरफेर के लिए, 467, 468, 471 के तहत मामला दर्ज किया गया. एसआईटी ने अपनी जांच के नतीजे में बताया कि पीड़िता मानसी शर्मा ने कोर्ट के सामने दिए अपने 161 के बयान में एफआईआर का समर्थन किया है.

एफआईआर में और पीड़िता की मां सुशीला ने जो कुछ न्यूजलॉन्ड्री को बताया वो अलग-अलग है. 20 सितंबर को दर्ज एफआईआर में जहां पीड़िता के हवाले से बताया गया है कि मुख़्तार अहमद ने राहुल सिंह बनकर मुझसे दोस्ती करने के बाद फर्जी कागजात लगाकर कोर्ट मैरिज की. जब मुझे इस बात की जानकारी हुई तो मैंने इसका विरोध किया और अपने परिवार को बताया. फिर घरवालों ने इसकी जानकारी की तो पता चला कि मुख़्तार अहमद का नाम पता फैज़ाबाद का है.’’

हालांकि सुशीला हमसे कहती हैं कि दोनों ने 17 महीने तक अपनी शादी हमसे छुपाकर रखी. उन्हें इस बात की जानकरी दूसरे लोगों से मिली थी. जब ये बात उन्होंने अपनी बेटी से पूछी तो उसने ऐसा कुछ होने से इंकार कर दिया था.

‘वो लड़की हमको दीदी कहती थी’

मानसी को आप जानती थीं? इस सवाल के पूरा होने से पहले ही मुख़्तार की पत्नी श्रुति सिंह कहती हैं, ‘‘अरे भैया, खूब जानती थी. मेरे घर आती थी. मेरे पति ने अपनी दोस्त बताकर उससे मिलाया था. वो मुझे दीदी कहती थी. पुलिस तो हमारी सुन ही नहीं रही. मैं यह नहीं कहती की मेरा आदमी गलत नहीं किया, लेकिन गलती तो उस लड़की की भी है. मेरे पति मुस्लिम हैं यह वो भी जानती थी और उसे यह भी पता था कि वो शादीशुदा है.’’

मुख़्तार और श्रुति सिंह की शादी 14 साल पहले हुई थी. दोनों का प्रेम विवाह है. श्रुति बताती हैं, ‘‘हम दोनों ने भागकर शादी की थी. हमारी 12 साल की एक बेटी है. मानसी मेरी बेटी के जन्मदिन में भी आती थी. मेरी बेटी उसे दीदी कहती थी. आप चाहे तो उससे भी पूछ सकते हैं. मानसी हमारी शादी और लम्बे समय से मेरे परिवार से अलग रहने के बारे में भी जानती थी. उसे सब पता था. न जाने उसने ऐसा क्यों किया?’’

श्रुति को इस बात का अफ़सोस है कि उनके पति ने उनसे झूठ बोला. 17 महीने पहले शादी हुई थी इसकी जानकारी भी मुख़्तार की गिरफ्तारी की बाद ही उन्हें पता चली.

याद करते हुए श्रुति बताती हैं, ‘‘एक शाम मेरी और मुख़्तार की लड़ाई हुई थी. लड़ते हुए उसने मुझे तलाक देने की बात बोली थी. मैंने भी गुस्से में बोल दिया था कि तुमको जाना है तो जाओ. दूसरे दिन सुबह वो माफ़ी मांगते हुए सबकुछ भूलने के लिए कहने लगा. फिर सबकुछ ठीक हो गया. मैं समझ नहीं पाई कि उसके मन में क्या चल रहा है. फ़ोन में उन दोनों के बीच बातचीत है. उसे सुनी तो हैरान थी. मानसी उसे, मुझसे तलाक देने के लिए कह रही थी और जवाब में यह भी कह रहा था कि मैं इसको लेकर बात करूंगा. दोनों ने मुझसे झूठ बोला. हालांकि एक बार मुझे इनको लेकर शक हुआ था. मुख़्तार का एक्सीडेंट हुआ था. मैं ऑफिस गई थी. मेरी तबीयत बेहतर नहीं थी तो मैं समय से पहले ही लौट आई. मैंने इन दोनों को देखा. मुझे अजीब लगा कि घर में सिर्फ ये दोनों थे. तब मेरे पति ने बताया कि मुझे देखने आई है. मेरा मन नहीं माना. उसके बाद मैंने काम करने जाना बंद कर दिया और घर पर ही सिलाई का काम शुरू कर दिया. फिर यह सब हो गया.’’

राहुल सिंह नाम फिर कैसे सामने आया? इस सवाल के जवाब में श्रुति कहती हैं, ‘‘उनका नाम राहुल सिंह भी है. जब मेरी शादी हुई तो मैंने ही उन्हें यह नाम दिया था. दरअसल मैं अपने रिश्तेदारों से यह छुपाना चाहती थी कि वो मुस्लिम हैं. ऐसे में मैंने उन्हें ये नाम दिया. मेरे मां-बाप को छोड़ बाकी कोई नहीं जानता कि वो मुस्लिम है. मेरे घर और रिश्तेदारी में होने वाले किसी भी कार्यक्रम में हम जाते हैं तो मैं उन्हें राहुल ही कहकर बुलाती हूं. धीरे-धीरे ये नाम भी उनके जानने वालों के बीच चल गया. आज मुझे अफसोस हो रहा कि आखिर मैं उन्हें क्यों यह नाम दी.’’

श्रुति ये भी दावा करती हैं कि मानसी ही नहीं उनके परिजन भी पहले से मुख़्तार को जानते थे. वो कहती हैं, ‘‘मेरे पति कारपेंटर हैं. उन्होंने उन्हें टेबल बनाने का आर्डर दिया था. वो टेबल यहीं घर पर बना था. दो साल पहले मेरे पति का अकाउंट 15 जनवरी 2019 को खुलवाया था तब उसमें गवाह मानसी की मां सुशीला ही बनी थी. तो ऐसे कैसे वो कह सकते हैं कि वे नहीं जानते थे.’’

श्रुति अपने पति की रिहाई की लड़ाई लड़ रही हैं. इतने छल के बावजूद इस लड़ाई के पीछे वो प्रेम को बताती हैं. वो कहती हैं, ‘‘मैं मानसी से मिलकर कहना चाहती हूं कि तुम केस वापस ले लो. भले ही तुम उसके साथ रहो. मैं खुद ही तलाक ले लूंगी. मैंने उस आदमी के लिए अपना सबकुछ छोड़ दिया था. वो जेल में है. अकेले परिवार को संभालना है. केस भी लड़ना है. पुलिस हमारी कोई मदद नहीं कर रही है. समझ नहीं आता क्या होगा.’’

बैंक के डॉक्यूमेंट मांगने पर श्रुति कहती हैं, ‘‘मुख़्तार की गिरफ्तारी के बाद पुलिस उनसे जुड़े तमाम कागजात लेकर गई थी. कई कागज तो उन्होंने वापस कर दिए लेकिन लेवर कार्ड और बैंक का अकाउंट कार्ड खो गया है. इसके बाद हम बैंक गए तो बैंक वाले हमें कोई कागज नहीं दे रहे हैं. उनका कहना है कि जिसका अकाउंट है उसे ही हम कागजात दे सकते हैं. ऐसे में हमें कागज नहीं मिल सका. हालांकि मेरे वकील ने कहा है कि इन सब की ज़रूरत नहीं है. केस हल्का है. हालांकि हमें लगातार डेट पर डेट मिल रही हैं और जमानत नहीं मिल रही है.’’

इस मामले की जांच करने वाले नौबस्ता थाने के एसआई बृजेश कुमार से न्यूजलॉन्ड्री ने बात की. वे कहते हैं, ‘‘इस लड़के ने अपना नाम बदलकर लड़की को भ्रमित किया. लड़की के नकली कागज बनवाए. नकली कागज बनाने में फातिमा नाम की एक वकील की भूमिका थी जिसने 20-22 हज़ार रुपए लिए थे. लड़की को इस बात की जानकारी शादी के समय चली. तब लड़के ने कहा कि अरे इससे कुछ नहीं होता, परेशान न हो. लड़की उससे प्रेम करती थी इसीलिए उसने उसका कहा मान लिया. बाद में जब एक बार वो लड़के के घर गई तब उसे पता चला कि लड़का वास्तव में मुसलमान है. तब उसने अपने घरवालों को बताया कि मैंने जिससे शादी की है वो मुसलमान है. फिर परिवार के लोगों ने शिकायत की और हमने उसे गिरफ्तार करवाया.’’

बृजेश आगे कहते हैं, ‘‘मुख़्तार की पहली पत्नी श्रुति ने भी हमें बताया था कि इस मुख़्तार ने मुझसे भी धर्म छुपाया था और शादी के बाद जब मैं मुंबई चली गई तब मुझे पता चला कि ये मुस्लिम है. जिस रोज उसकी गिरफ्तारी हुई उस रोज श्रुति ने कहा कि मेरा और इनका तलाक हो चुका है. बाद में उसने कहा था कि मैं झूठ बोली थी. हम साथ ही रहते हैं.’’

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आरोपी के परिवार, पीड़िता के परिवार और पुलिस तीनों के बयान अलग-अलग

हैरान करने वाली बात है कि पीड़िता के परिवार का बयान और जांच अधिकारी का बयान भी आपस में मेल नहीं खाता है.

पीड़िता का परिवार जहां किसी तीसरे शख्स से जानकारी मिलने पर इस मामले के बारे में जानने की बात कर रहा है. वहीं पुलिस का कहना है कि लड़की ने खुद ही अपने परिवार को बताया था. वहीं लड़की के परिवार का कहना है कि लड़की को बाद में पता चला कि आरोपी की पत्नी है, लेकिन पुलिस का कहना है कि लड़की को पहले ही पता चल गया था कि आरोपी शादीशुदा है. वहीं आरोपी की पत्नी अलग ही दावा करती है कि लड़की उनके यहां आती जाती थी. लड़की का परिवार भी उसके पति को जानता था.

श्रुति बृजेश के उस बयान को भी गलत बताती है, ‘‘मुख़्तार ने उससे शादी से पहले झूठ बोला था कि वह हिन्दू है. वह जानती थी कि जिससे शादी कर रही है वो मुस्लिम है. दोनों तब पड़ोसी थे.’’

लड़की की मां आरोपी को अपना बेटा बताती थी

एक दूसरा मामला नौबस्ता थाने से ही सामने आया था जिसमें पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि फतेह खान नाम का शख्स अपना नाम बदलकर आर्यन मल्होत्रा बन गया था. नाम बदलकर वह अंजू गुप्ता से लगभग दो साल तक अवैध संबंध बनाता रहा. पुलिस ने इस मामले में आर्यन को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया है.

पुलिस ने बताया है कि पीड़िता अंजू ने कोर्ट के सामने अपने दिए 164 के बयान में बताया है कि मैं और फतेह खान उर्फ आर्यन एक ही मकान में किरायेदार हैं. उसकी उम्र 25 साल है. उसने 6 तारीख को मेरा रेप किया और मुझे मारा भी था एवं कहा कि चिल्लाओगे तो तुम्हारे मम्मी-पापा को भी मारेंगे. मुकदमा मेरे चाचा ने लिखवाया.

पुलिस ने बताया कि लड़का फतेह खान व आर्यन मल्होत्रा के नाम से अलग-अलग फर्जी आधार कार्ड बनाकर उसका प्रयोग करता था.

हम उस जगह पहुंचे जहां अंजू का परिवार और आर्यन मल्होत्रा किराए पर रहते थे.आर्यन अब जेल में है और अंजू के मां-बाप इस घर को छोड़कर जा चुके हैं. वे कहा हैं इसकी जानकरी ना पुलिस को है और ना ही इस पूरे प्रकरण के दौरान उनकी मदद करने वाले राष्ट्रीय बजरंग दल के स्थानीय नेता रामजी तिवारी को. रामजी तिवारी के दावे के मुताबिक पुलिस में शिकायत दर्ज कराने और आरोपी को गिरफ्तार कराने में उनके संगठन की भूमिका थी. पीड़िता के चाचा उनके पास मदद के लिए आए थे.

हम मकान मालकिन और उनके बेटे से मिले. वे बात करने से बचते नजर आते हैं. मकान मालिक के लड़के ओम जी मिश्रा कहते हैं, ‘‘तकरीबन एक साल पहले वे हमारे यहां रहने आए थे. लड़का भी उनके साथ ही था. उन्होंने हमें बताया कि ये हमारा बेटा है. इसको लेकर उनके छह बच्चे थे. ये लड़का भी उन्हें मम्मी-पापा कहता था. उन्होंने एक कमरा किराए पर लिया था. हमने आधार कार्ड मांगा तो पति-पत्नी ने अपना दे दिया. लड़के ने कहा कि मेरा बना ही नहीं है. वे दोनों गुप्ता थे तो हमें लगा कि लड़का की गुप्ता ही होगा. हम जानते थे कि वे इनका ही बेटा है. सब साथ ही आए थे.’’

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एक साल तक कोई आदमी अपनी पहचान छुपाकर रह सकता है. आप लोगों को कभी नहीं लगा कि वो लड़का इनके अपने परिवार का नहीं है. अगर कोई किसी को पहले से जानता नहीं हो तो उसे अपना बेटा बनाकर क्यों रखेगा.

इस सवाल के जवाब में ओम जी मिश्रा कहते हैं, ‘‘अब भैया हम क्या बताये. उन्होंने कहा कि ये मेरा बेटा है. उसने कहा मेरी मम्मी है. यहां भी महिला कहती थी कि ये मेरा बच्चा है. दोनों लोग साथ रहते थे. एक रोज उनके चाचा आए और उन्हें लेकर गए. वो पास में ही रहते थे. उसके बाद क्या बवाल हुआ हमें नहीं पता. हम लोग ऊपर के कमरे में रहते थे. महीने के 2500 रुपए किराया लेते थे, इससे ज़्यादा हमें उनसे कोई मतलब नहीं था. पुलिस यहां नहीं आई थी लड़की के चाचा यहां से उसे लेकर गए थे. हमें उनके बारे में कोई नॉलेज नहीं है. यहां से दो तीन महीने पहले चली गई.’’

लड़के ने आर्यन मल्होत्रा वाला कार्ड मकान मालिक को भी दिखाया था. इसको लेकर ओम जी मिश्रा कहते हैं, ‘‘जब हमने इसको लेकर सवाल किया तो लड़की की मां ने कहा कि ये अनाथ है. हमारे साथ रहता है. हमने उसी समय कहा था कि कमरा खाली कर दीजिए. फिर ये सब बवाल हुआ था.’’

सिर्फ मकान मालिक का परिवार ही नहीं बल्कि गोपाल नगर स्थित उस घर के आसपास के रहने वाले लोग भी यही बताते हैं. पड़ोस में ही रहने वाली एक महिला से जब हमने पूछा कि क्या उस लड़के और परिवार के बारे में आपको पता था तो वो कहती हैं, ''वैसे तो वे लोग दूसरों से बात कम ही करते थे लेकिन वो लड़का एक साल से उनके साथ ही रह रहा था. परिवार की तरह ही सब रहते थे. हमें तो जब पुलिस आई तब पता चला कि वो उनका बेटा नहीं है.’’

इस मामले की एफआईआर की कॉपी पुलिस ने हमें देने से इंकार कर दिया. वहीं यूपी पुलिस के एप पर जहां 858/20 और 860/20 नंबर का एफ़आईआर उपलब्ध है, 859/20 उपलब्ध नहीं है.

उत्तर प्रदेश के कानपुर में बीते साल लव जिहाद एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था. दरअसल शालिनी यादव द्वारा फैजल से निकाह करने के बाद क्षेत्र के दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों ने हंगामा करना शुरू कर दिया था. एक तरफ जहां बालिग शालिनी वीडियो जारी करके कहती रहीं कि उन्होंने अपने मन से यह फैसला लिया है. उनकी शादी को लव जिहाद न कहा जाए, लेकिन मीडिया का एक बड़ा हिस्सा, शालिनी का परिवार, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता लगातार इसे लव जिहाद बताते रहे.

कानपुर पुलिस, शालिनी और फैजल को तलाश ही रही थी, उसी दौरान शालिनी ने दिल्ली की एक कोर्ट में हाजिर होकर अपना बयान दर्ज करा दिया. इसके बाद भी विवाद थमा नहीं. दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने हंगामा जारी रखा और पुलिस पर लव जिहाद के मामले की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम ( एसआईटी ) बनाने का दबाव बनाते रहे. पुलिस ने इसको लेकर एसआईटी का गठन किया और 11 मामलों की जांच की.

दक्षिणपंथी संगठनों का कहना था कि लव जिहाद के पीछे पूरा एक गिरोह काम करता है. मुस्लिम लड़के अपना नाम बदलकर, हिंदू होने का अभिनय करते हैं और जब लड़कियां उनके ‘चंगुल’ में फंस जाती हैं तो अपनी असली पहचान बताते हैं.

एसआईटी अपनी जांच में इन मामलों में किसी गिरोह के शामिल होने का तथ्य हासिल तो नहीं कर पाई, लेकिन उसने पाया कि कुछ लड़कों ने अपना नाम छुपाकर हिन्दू लड़कियों के साथ रिश्ते बनाए थे. न्यूज़लॉन्ड्री ने ऐसे ही कुछ आरोपियों और पीड़ितों के परिवारों से मुलाकात की जिन मामलों में पुलिस ने नाम छुपाने की बात बताई थी.

'17 महीने तक छुपाई रखी शादी'

कानपुर में एसआईटी के गठन के बाद जांच के लिए 11 मामले सामने आए. इसमें से कुछ मामले साल 2019 के थे तो कुछ 2020 के.

पुलिस के पास ये मामले कैसे आए इस सवाल के जवाब में डीआईजी मोहित अग्रवाल न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘जब हमने एसआईटी के गठन की घोषणा की तो लोग आते गए और हम शिकायत दर्ज करते गए. जो भी मामले हमारे सामने आए उसे हमने एसआईटी में शामिल किया और उसकी जांच की.’’

कानपुर पुलिस के सामने सबसे ज्यादा मामले नौबस्ता थाने के आए. नौबस्ता थाने के दो मामलों में एसआईटी ने पाया था कि आरोपियों ने अपने नाम बदले. ऐसा एक मामला मुख़्तार अहमद उर्फ़ राहुल सिंह का है. एसआईटी की जांच के मुताबिक राजीव नगर, मछरियावा के रहने वाले मुख़्तार अहमद ने अपना नाम बदलकर आवास विकास हंसपुरम की रहने वाली मानसी शर्मा से दोस्ती की और उसके बाद फर्जी कागज बनाकर उससे कोर्ट मैरिज की. इसको लेकर पीड़ित मानसी ने 20 सितंबर को मामला दर्ज कराया जिसके बाद आरोपी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. अभी वो जेल में ही है.

जब हम पीड़िता मानसी के घर पहुंचे तो वो अपने घर पर नहीं थीं. इस दौरान उनकी मां 40 वर्षीय सुशीला शर्मा और पिता रामलड़ैत शर्मा से हमारी मुलाकात हुई.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए वो साफ-साफ कहते हैं, ‘‘उस लड़के ने अपना धर्म छुपाकर हमारी बेटी को प्रेम में फंसाया. लड़की पढ़ने जाने के दौरान उससे मिलती-जुलती थी. दोनों ने छुपकर शादी कर ली. इस लड़के की पहले से ही शादी हुई थी यह बात भी उसने मेरी बेटी से छुपाकर रखी. हमें जब दूसरे लोगों से इस शादी के बारे में पता चला तो हमने अपनी बेटी से पूछा, लेकिन उसने ऐसा कुछ होने से इंकार कर दिया. हमने अपनी बेटी के बाहर आने जाने पर भी रोक लगा दी थी.’’

सुशीला बताती हैं, ‘‘जब लड़की बाहर आती जाती नहीं थी तो वह एक रोज हमारे घर आ पहुंचा और कहने लगा तेरी बेटी से मेरी शादी हो गई है. मैं इसे लेकर जाऊंगा. हमने उसे बैठाकर समझाया कि देखो तुम्हारी पहले से शादी हुई है. दोनों को साथ कैसे रख पाओगे. हमारा धर्म भी अलग है. तुमसे भी गलती हुई है और मेरी बेटी से भी. तुम भी अपना परिवार संभालो और हम भी इसकी शादी कर देते हैं. लेकिन वो मानने को तैयार नहीं था.’’

सुशीला आगे कहती हैं, ‘‘हम लोग शांति से इस मामले को खत्म करना चाहते थे. हमें समाज में इज्जत का डर था. वो नहीं माना. एक रोज वो अपने दोस्तों के साथ आया. उसके दोस्त बाहर खड़े थे. वो अंदर आया और खाट पर सोई मेरी बेटी को लात मारते हुए बोला कि तू मेरे साथ चल. मेरी बेटी उसके साथ नहीं जाना चाहती थी. अब मां-बाप के सामने कोई उसके बच्चों को मारे तो बुरा लगता है. इन्होंने (अपने पति की तरफ इशारा करते हुए) उसे धक्का देते हुए बाहर जाने के लिए कहा. फिर वो मारपीट करने लगा. पानी सर से बाहर जा चुका था तो हमने पुलिस को फोन करके बताया. पुलिस आई और उसे घर से पकड़कर ले गई.’’

सुशीला कहती हैं, ‘‘मेरी बेटी ने बताया था कि उसने अपना नाम राहुल सिंह बताया था. अपनी शादी के बारे में छुपाया था. मेरी बेटी को उसके धर्म के बारे में तब पता चला जब वो कोर्ट में शादी करने गई. उसने मेरी बेटी से उसके डॉक्यूमेंट ले लिए थे और उसमें उसका नाम फातिमा करा दिया था. डॉक्यूमेंट में हम दोनों का नाम भी बदल दिया था. जब यह मेरी बेटी को पता चला तो वो हैरान हुई, लेकिन प्रेम में थी. जानते ही हो प्रेम में आदमी कुछ भी कर जाता है. वो शादी कर ली लेकिन ये बात उसने हमसे छुपाकर रखी.’’

आप लोग राहुल सिंह को पहले से जानते थे, इस सवाल का जवाब सुशीला ना में देती हैं. वो कहती हैं, ‘‘पहली बार हम तब मिले जब वो हमारे घर आया था. उसने तब हमसे कहा था कि उसका नाम मुख़्तार है. वो अपनी पहली बीबी से तलाक ले लेगा और मेरी बेटी के साथ रहेगा. लेकिन आप ही बताओ हम हिन्दू हैं. कैसे एक मुस्लिम से अपनी बेटी की शादी कर देते. हम लोग इस पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहते थे. विवाद से बचने के लिए मैं अपनी बेटी को लेकर कन्नौज के अपने गांव लेकर चली गई. ये वहां भी पहुंच गया था. हम थक हार कर पुलिस के पास गए.’’

इस मामले में नौबस्ता थाने में आईपीसी की धारा 420 (छल करना) और दस्तावेजों को हेरफेर के लिए, 467, 468, 471 के तहत मामला दर्ज किया गया. एसआईटी ने अपनी जांच के नतीजे में बताया कि पीड़िता मानसी शर्मा ने कोर्ट के सामने दिए अपने 161 के बयान में एफआईआर का समर्थन किया है.

एफआईआर में और पीड़िता की मां सुशीला ने जो कुछ न्यूजलॉन्ड्री को बताया वो अलग-अलग है. 20 सितंबर को दर्ज एफआईआर में जहां पीड़िता के हवाले से बताया गया है कि मुख़्तार अहमद ने राहुल सिंह बनकर मुझसे दोस्ती करने के बाद फर्जी कागजात लगाकर कोर्ट मैरिज की. जब मुझे इस बात की जानकारी हुई तो मैंने इसका विरोध किया और अपने परिवार को बताया. फिर घरवालों ने इसकी जानकारी की तो पता चला कि मुख़्तार अहमद का नाम पता फैज़ाबाद का है.’’

हालांकि सुशीला हमसे कहती हैं कि दोनों ने 17 महीने तक अपनी शादी हमसे छुपाकर रखी. उन्हें इस बात की जानकरी दूसरे लोगों से मिली थी. जब ये बात उन्होंने अपनी बेटी से पूछी तो उसने ऐसा कुछ होने से इंकार कर दिया था.

‘वो लड़की हमको दीदी कहती थी’

मानसी को आप जानती थीं? इस सवाल के पूरा होने से पहले ही मुख़्तार की पत्नी श्रुति सिंह कहती हैं, ‘‘अरे भैया, खूब जानती थी. मेरे घर आती थी. मेरे पति ने अपनी दोस्त बताकर उससे मिलाया था. वो मुझे दीदी कहती थी. पुलिस तो हमारी सुन ही नहीं रही. मैं यह नहीं कहती की मेरा आदमी गलत नहीं किया, लेकिन गलती तो उस लड़की की भी है. मेरे पति मुस्लिम हैं यह वो भी जानती थी और उसे यह भी पता था कि वो शादीशुदा है.’’

मुख़्तार और श्रुति सिंह की शादी 14 साल पहले हुई थी. दोनों का प्रेम विवाह है. श्रुति बताती हैं, ‘‘हम दोनों ने भागकर शादी की थी. हमारी 12 साल की एक बेटी है. मानसी मेरी बेटी के जन्मदिन में भी आती थी. मेरी बेटी उसे दीदी कहती थी. आप चाहे तो उससे भी पूछ सकते हैं. मानसी हमारी शादी और लम्बे समय से मेरे परिवार से अलग रहने के बारे में भी जानती थी. उसे सब पता था. न जाने उसने ऐसा क्यों किया?’’

श्रुति को इस बात का अफ़सोस है कि उनके पति ने उनसे झूठ बोला. 17 महीने पहले शादी हुई थी इसकी जानकारी भी मुख़्तार की गिरफ्तारी की बाद ही उन्हें पता चली.

याद करते हुए श्रुति बताती हैं, ‘‘एक शाम मेरी और मुख़्तार की लड़ाई हुई थी. लड़ते हुए उसने मुझे तलाक देने की बात बोली थी. मैंने भी गुस्से में बोल दिया था कि तुमको जाना है तो जाओ. दूसरे दिन सुबह वो माफ़ी मांगते हुए सबकुछ भूलने के लिए कहने लगा. फिर सबकुछ ठीक हो गया. मैं समझ नहीं पाई कि उसके मन में क्या चल रहा है. फ़ोन में उन दोनों के बीच बातचीत है. उसे सुनी तो हैरान थी. मानसी उसे, मुझसे तलाक देने के लिए कह रही थी और जवाब में यह भी कह रहा था कि मैं इसको लेकर बात करूंगा. दोनों ने मुझसे झूठ बोला. हालांकि एक बार मुझे इनको लेकर शक हुआ था. मुख़्तार का एक्सीडेंट हुआ था. मैं ऑफिस गई थी. मेरी तबीयत बेहतर नहीं थी तो मैं समय से पहले ही लौट आई. मैंने इन दोनों को देखा. मुझे अजीब लगा कि घर में सिर्फ ये दोनों थे. तब मेरे पति ने बताया कि मुझे देखने आई है. मेरा मन नहीं माना. उसके बाद मैंने काम करने जाना बंद कर दिया और घर पर ही सिलाई का काम शुरू कर दिया. फिर यह सब हो गया.’’

राहुल सिंह नाम फिर कैसे सामने आया? इस सवाल के जवाब में श्रुति कहती हैं, ‘‘उनका नाम राहुल सिंह भी है. जब मेरी शादी हुई तो मैंने ही उन्हें यह नाम दिया था. दरअसल मैं अपने रिश्तेदारों से यह छुपाना चाहती थी कि वो मुस्लिम हैं. ऐसे में मैंने उन्हें ये नाम दिया. मेरे मां-बाप को छोड़ बाकी कोई नहीं जानता कि वो मुस्लिम है. मेरे घर और रिश्तेदारी में होने वाले किसी भी कार्यक्रम में हम जाते हैं तो मैं उन्हें राहुल ही कहकर बुलाती हूं. धीरे-धीरे ये नाम भी उनके जानने वालों के बीच चल गया. आज मुझे अफसोस हो रहा कि आखिर मैं उन्हें क्यों यह नाम दी.’’

श्रुति ये भी दावा करती हैं कि मानसी ही नहीं उनके परिजन भी पहले से मुख़्तार को जानते थे. वो कहती हैं, ‘‘मेरे पति कारपेंटर हैं. उन्होंने उन्हें टेबल बनाने का आर्डर दिया था. वो टेबल यहीं घर पर बना था. दो साल पहले मेरे पति का अकाउंट 15 जनवरी 2019 को खुलवाया था तब उसमें गवाह मानसी की मां सुशीला ही बनी थी. तो ऐसे कैसे वो कह सकते हैं कि वे नहीं जानते थे.’’

श्रुति अपने पति की रिहाई की लड़ाई लड़ रही हैं. इतने छल के बावजूद इस लड़ाई के पीछे वो प्रेम को बताती हैं. वो कहती हैं, ‘‘मैं मानसी से मिलकर कहना चाहती हूं कि तुम केस वापस ले लो. भले ही तुम उसके साथ रहो. मैं खुद ही तलाक ले लूंगी. मैंने उस आदमी के लिए अपना सबकुछ छोड़ दिया था. वो जेल में है. अकेले परिवार को संभालना है. केस भी लड़ना है. पुलिस हमारी कोई मदद नहीं कर रही है. समझ नहीं आता क्या होगा.’’

बैंक के डॉक्यूमेंट मांगने पर श्रुति कहती हैं, ‘‘मुख़्तार की गिरफ्तारी के बाद पुलिस उनसे जुड़े तमाम कागजात लेकर गई थी. कई कागज तो उन्होंने वापस कर दिए लेकिन लेवर कार्ड और बैंक का अकाउंट कार्ड खो गया है. इसके बाद हम बैंक गए तो बैंक वाले हमें कोई कागज नहीं दे रहे हैं. उनका कहना है कि जिसका अकाउंट है उसे ही हम कागजात दे सकते हैं. ऐसे में हमें कागज नहीं मिल सका. हालांकि मेरे वकील ने कहा है कि इन सब की ज़रूरत नहीं है. केस हल्का है. हालांकि हमें लगातार डेट पर डेट मिल रही हैं और जमानत नहीं मिल रही है.’’

इस मामले की जांच करने वाले नौबस्ता थाने के एसआई बृजेश कुमार से न्यूजलॉन्ड्री ने बात की. वे कहते हैं, ‘‘इस लड़के ने अपना नाम बदलकर लड़की को भ्रमित किया. लड़की के नकली कागज बनवाए. नकली कागज बनाने में फातिमा नाम की एक वकील की भूमिका थी जिसने 20-22 हज़ार रुपए लिए थे. लड़की को इस बात की जानकारी शादी के समय चली. तब लड़के ने कहा कि अरे इससे कुछ नहीं होता, परेशान न हो. लड़की उससे प्रेम करती थी इसीलिए उसने उसका कहा मान लिया. बाद में जब एक बार वो लड़के के घर गई तब उसे पता चला कि लड़का वास्तव में मुसलमान है. तब उसने अपने घरवालों को बताया कि मैंने जिससे शादी की है वो मुसलमान है. फिर परिवार के लोगों ने शिकायत की और हमने उसे गिरफ्तार करवाया.’’

बृजेश आगे कहते हैं, ‘‘मुख़्तार की पहली पत्नी श्रुति ने भी हमें बताया था कि इस मुख़्तार ने मुझसे भी धर्म छुपाया था और शादी के बाद जब मैं मुंबई चली गई तब मुझे पता चला कि ये मुस्लिम है. जिस रोज उसकी गिरफ्तारी हुई उस रोज श्रुति ने कहा कि मेरा और इनका तलाक हो चुका है. बाद में उसने कहा था कि मैं झूठ बोली थी. हम साथ ही रहते हैं.’’

आरोपी के परिवार, पीड़िता के परिवार और पुलिस तीनों के बयान अलग-अलग

हैरान करने वाली बात है कि पीड़िता के परिवार का बयान और जांच अधिकारी का बयान भी आपस में मेल नहीं खाता है.

पीड़िता का परिवार जहां किसी तीसरे शख्स से जानकारी मिलने पर इस मामले के बारे में जानने की बात कर रहा है. वहीं पुलिस का कहना है कि लड़की ने खुद ही अपने परिवार को बताया था. वहीं लड़की के परिवार का कहना है कि लड़की को बाद में पता चला कि आरोपी की पत्नी है, लेकिन पुलिस का कहना है कि लड़की को पहले ही पता चल गया था कि आरोपी शादीशुदा है. वहीं आरोपी की पत्नी अलग ही दावा करती है कि लड़की उनके यहां आती जाती थी. लड़की का परिवार भी उसके पति को जानता था.

श्रुति बृजेश के उस बयान को भी गलत बताती है, ‘‘मुख़्तार ने उससे शादी से पहले झूठ बोला था कि वह हिन्दू है. वह जानती थी कि जिससे शादी कर रही है वो मुस्लिम है. दोनों तब पड़ोसी थे.’’

लड़की की मां आरोपी को अपना बेटा बताती थी

एक दूसरा मामला नौबस्ता थाने से ही सामने आया था जिसमें पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि फतेह खान नाम का शख्स अपना नाम बदलकर आर्यन मल्होत्रा बन गया था. नाम बदलकर वह अंजू गुप्ता से लगभग दो साल तक अवैध संबंध बनाता रहा. पुलिस ने इस मामले में आर्यन को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया है.

पुलिस ने बताया है कि पीड़िता अंजू ने कोर्ट के सामने अपने दिए 164 के बयान में बताया है कि मैं और फतेह खान उर्फ आर्यन एक ही मकान में किरायेदार हैं. उसकी उम्र 25 साल है. उसने 6 तारीख को मेरा रेप किया और मुझे मारा भी था एवं कहा कि चिल्लाओगे तो तुम्हारे मम्मी-पापा को भी मारेंगे. मुकदमा मेरे चाचा ने लिखवाया.

पुलिस ने बताया कि लड़का फतेह खान व आर्यन मल्होत्रा के नाम से अलग-अलग फर्जी आधार कार्ड बनाकर उसका प्रयोग करता था.

हम उस जगह पहुंचे जहां अंजू का परिवार और आर्यन मल्होत्रा किराए पर रहते थे.आर्यन अब जेल में है और अंजू के मां-बाप इस घर को छोड़कर जा चुके हैं. वे कहा हैं इसकी जानकरी ना पुलिस को है और ना ही इस पूरे प्रकरण के दौरान उनकी मदद करने वाले राष्ट्रीय बजरंग दल के स्थानीय नेता रामजी तिवारी को. रामजी तिवारी के दावे के मुताबिक पुलिस में शिकायत दर्ज कराने और आरोपी को गिरफ्तार कराने में उनके संगठन की भूमिका थी. पीड़िता के चाचा उनके पास मदद के लिए आए थे.

हम मकान मालकिन और उनके बेटे से मिले. वे बात करने से बचते नजर आते हैं. मकान मालिक के लड़के ओम जी मिश्रा कहते हैं, ‘‘तकरीबन एक साल पहले वे हमारे यहां रहने आए थे. लड़का भी उनके साथ ही था. उन्होंने हमें बताया कि ये हमारा बेटा है. इसको लेकर उनके छह बच्चे थे. ये लड़का भी उन्हें मम्मी-पापा कहता था. उन्होंने एक कमरा किराए पर लिया था. हमने आधार कार्ड मांगा तो पति-पत्नी ने अपना दे दिया. लड़के ने कहा कि मेरा बना ही नहीं है. वे दोनों गुप्ता थे तो हमें लगा कि लड़का की गुप्ता ही होगा. हम जानते थे कि वे इनका ही बेटा है. सब साथ ही आए थे.’’

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एक साल तक कोई आदमी अपनी पहचान छुपाकर रह सकता है. आप लोगों को कभी नहीं लगा कि वो लड़का इनके अपने परिवार का नहीं है. अगर कोई किसी को पहले से जानता नहीं हो तो उसे अपना बेटा बनाकर क्यों रखेगा.

इस सवाल के जवाब में ओम जी मिश्रा कहते हैं, ‘‘अब भैया हम क्या बताये. उन्होंने कहा कि ये मेरा बेटा है. उसने कहा मेरी मम्मी है. यहां भी महिला कहती थी कि ये मेरा बच्चा है. दोनों लोग साथ रहते थे. एक रोज उनके चाचा आए और उन्हें लेकर गए. वो पास में ही रहते थे. उसके बाद क्या बवाल हुआ हमें नहीं पता. हम लोग ऊपर के कमरे में रहते थे. महीने के 2500 रुपए किराया लेते थे, इससे ज़्यादा हमें उनसे कोई मतलब नहीं था. पुलिस यहां नहीं आई थी लड़की के चाचा यहां से उसे लेकर गए थे. हमें उनके बारे में कोई नॉलेज नहीं है. यहां से दो तीन महीने पहले चली गई.’’

लड़के ने आर्यन मल्होत्रा वाला कार्ड मकान मालिक को भी दिखाया था. इसको लेकर ओम जी मिश्रा कहते हैं, ‘‘जब हमने इसको लेकर सवाल किया तो लड़की की मां ने कहा कि ये अनाथ है. हमारे साथ रहता है. हमने उसी समय कहा था कि कमरा खाली कर दीजिए. फिर ये सब बवाल हुआ था.’’

सिर्फ मकान मालिक का परिवार ही नहीं बल्कि गोपाल नगर स्थित उस घर के आसपास के रहने वाले लोग भी यही बताते हैं. पड़ोस में ही रहने वाली एक महिला से जब हमने पूछा कि क्या उस लड़के और परिवार के बारे में आपको पता था तो वो कहती हैं, ''वैसे तो वे लोग दूसरों से बात कम ही करते थे लेकिन वो लड़का एक साल से उनके साथ ही रह रहा था. परिवार की तरह ही सब रहते थे. हमें तो जब पुलिस आई तब पता चला कि वो उनका बेटा नहीं है.’’

इस मामले की एफआईआर की कॉपी पुलिस ने हमें देने से इंकार कर दिया. वहीं यूपी पुलिस के एप पर जहां 858/20 और 860/20 नंबर का एफ़आईआर उपलब्ध है, 859/20 उपलब्ध नहीं है.

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