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एनएल चर्चा 158: केजरीवाल का हिंदुत्व कार्ड, स्कैनिया घोटाला और ममता बनर्जी की चोट

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ़्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

     
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एनएल चर्चा के 158वें एपिसोड में स्कैनिया घोटाले, ममता बनर्जी को रैली में लगी चोट, महुआ मोइत्रा के खिलाफ विशेषाधिकार हनन नोटिस, स्वीडन के वी-डेम इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में भारत को बताया गया इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी और दिल्ली सरकार का बुज़ुर्गो को मुफ्त अयोध्या राम मंदिर दर्शन की घोषणा आदि जैसे विषयों का जिक्र हुआ.

इस बार चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चर्चा की शुरुआत अरविन्द केजरीवाल द्वारा दिल्ली के बजट में अयोध्या की मुफ्त यात्रा की घोषणा से हुई. अतुल ने कहा, ''ये अरविन्द केजरीवाल की पॉपुलिस्ट स्कीम का हिस्सा है और ऐसी स्कीमों का इस्तेमाल बहुत सारी पार्टियां करती हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों में रामराज्य का ज़िक्र अरविन्द केजरीवाल की पॉलिटिक्स में आया है, उनके विधायकों का अलग अलग मौकों पर हनुमान चालीसा पाठ, सुंदरकान्ड पाठ करना ये दिखाता है की भारतीय राजनीति के चरित्र में एक बड़ा बदलाव आया है पिछले सात-आठ सालों में. हिंदुत्ववाद या बहुसंख्यकवाद की पॉलिटिक्स जिसे बीजेपी और आरएसएस ने मिलकर काफी मजबूत किया है, वह अब इतना मजबूत हो गई है कि किसी विपरक्षी पार्टी में इतनी शक्ति नहीं है की वो इसका खुलकर विरोध कर सके. धर्म को राजनीति से अलग रखने की हिम्मत अब किसी विपक्षी दल में बची नहीं है. न तो कांग्रेस में न किसी और दल में और अरविंद केजरीवाल बहुत खुले तरीके से इसका इस्तेमाल कर रहे है.''

अतुल, प्रशांत टंडन से सवाल करते हैं, “अरविंद केजरीवाल की ये जो राजनीति है, क्या यह स्थायी बदलाव है भारत की राजनीति में? क्या अब हिंदुत्व के दाएं-बाएं और किसी राजनीति के सफल होने की संभावना बहुत कम हो गयी है?''

प्रशांत कहते है, ''आम आदमी पार्टी को सोशल मीडिया और अन्य राजनीतिक हलकों में बीजेपी की बी टीम कहा जाता है. हालांकि मैं उस विषय पर नहीं जाऊंगा. लेकिन इसके दो पहलू हैं जिस पर चर्चा होनी चाहिए. एक है नैतिकता, राजनीति में शुचिता और संवैधानिक दायरा. हमारा संविधान समाजवाद की बात करता है और वो कहता है की ''हम भारत के लोग'' इस लाइन में वह धर्मनिरपेक्ष राज्य की बात करता है. लेकिन इसमें एक नैतिकता का भी सवाल है की आप पूरे देश में सीना चौड़ा करके कहते है कि 'अनेकता में एकता का देश है भारत''. तो उस विविधताओं के देश में आप एक तबके की राजनीति करेंगे और दूसरे तबके को मजबूर करेंगे की बीजेपी को दूर रखना है तो हमें वोट दो, (मुसलमानों को) लेकिन हम पॉलिटिक्स तो हिन्दूवादी ही करेंगे, तो ये नैतिक बात नहीं है.''

प्रशांत आगे कहते हैं, “दूसरी बात राजनीति की करें तो बीजेपी और आरएसएस का कार्ड है हिंदुत्ववाद. इस राजनीति का उपयोग राजीव गांधी भी कर चुके है. जिसका नतीजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा था. वही घाटे की राजनीति आम आदमी पार्टी भी कर रही है, लेकिन उसे समझना होगा कि जिसका कार्ड है, फायदा सिर्फ उसी को मिलेगा.”

यहां चर्चा में आनंद शामिल होते हैं, "मैं एक बार पटना से दिल्ली सफर करते हुए देखा दिल्ली सरकार के कर्मचारियों को तीर्थ यात्रा के लिए एक स्पेशल ट्रेन चल रही थी. तो मुझे यही लगता है की पिछले 2-3 सालों से दिल्ली सरकार अपने कर्मचारियों को ये तीर्थ यात्रा का पैकेज दे रही है. बस इस बार इसमें अयोध्या जोड़ दिया गया है.”

आनंद आगे कहते हैं, “दूसरी बात हिंदूवादी राजनीति की है. किसी भी राजनीति के चुनावी समीकरण में कुछ चरण होते है जो कभी भी पूरी तरह से सफल या विफल नहीं होते. अलग-अलग पार्टी अभी उन चरण में हैं. लोगों को कुछ ऐतिहासिक शिकायतें हैं की उनका समुदाय पीछे रह गया और कुछ समुदायों को जरूरत से ज्यादा लाभ मिला है. इसी को भाजपा तथा अन्य कई संगठनों ने राजनीतिक मुद्दा बनाया ताकि वह किसी दूसरी पार्टी से कम न दिखें. यह चरणबद्ध राजनीति का हिस्सा है, इसका भी एक समय आएगा जब यह नीतियां काम नहीं करेंगी.”

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अतुल चर्चा में मेघनाथ को शामिल करते हुए स्वीडन के वी-डेम इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट पर सवाल पूछते है, ''पिछले कुछ सालों बार-बार अंरराष्ट्रीय संस्थाएं बता रही हैं की भारत में लोकतंत्र की स्तिथि ख़राब हो रही है, हम आंशिक रूप से आज़ाद है, हमारे यहां इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी आ गयी है. तो ये सब जो नए तमगे हैं, इसका ताज किसके सर पे जायेगा? मोदी जी ने जो भारत को मान और सम्मान दिलाने की बात की, लेकिन ये जो अपमान हो रहा है , क्या ये भी मोदी जी के खाते में जायेगा? या मोदीजी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता?''

मेघनाद इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहते हैं, ''एक बहुत ही रोचक चीज़ हुई संसद में इसी रिपोर्ट को लेकर. राज्यसभा मे संसद के एक सदस्य ने एक नोटिस उठाने की कोशिश की वी डेम इंस्टीट्यूट में बोला गया है की अब हम एक इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी बन रहे हैं. उनको बीच में ही रोकते हुए सभापति वेंकैया नायडू जो उपराष्ट्रपति भी हैं, कहते हैं, ''व्हाट इस दिस वी डेम?'' क्या बात कर रहे हो, तो सांसद ने बताया की यह एक रिपोर्ट है. इस पर वेंकैया नायडू ने कहा कि, आप स्वीडन को बोलना की अपने इंटरनल मैटर अपने आप रखे, हमारे देश की बात ना करें और उन्होंने इस नोटिस को रिकार्ड में आने ही नहीं दिया. तो आप सोचिये की सरकार इस पर कुछ करेगी यह तो दूर की बात है, वह सुनने के लिए ही तैयार नहीं है.''

इस विषय के अलावा अन्य विषयों पर भी विस्तार से चर्चा हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.

टाइम कोड

00:50 - 04:01 हेडलाइन

04:02 - 13:18 अरविंद केजरीवाल का बुज़ुर्गों को मुफ्त अयोध्या पैकेज

13:19 - 38:58 इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी

39:00 - 55:19 स्केनिया बस घोटाला

55:20 - 1:02:09 सलाह और सुझाव

पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए.

आनंद वर्धन

द राइज़ एंड फॉल ऑफ़ नेटफ्लिक्स - आर्टिकल

मेघनाद एस

साउथ 24 परगना जिला बंगाल की राजनीति में क्यों महत्वपूर्ण है - न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित

वीप : हॉटस्टार सीरीज

प्रशांत टंडन

1984 जॉर्ज ऑरवेल की किताब

1984 जॉर्ज ऑरवेल: उपन्यास पर बनी फिल्म

हाउ डेमोक्रेसीस डाई - किताब

अतुल चौरसिया

बॉम्बे बेगमस : नेटफ्लिक्स सीरीज

गैस की जंग: परंजय गुहा ठाकुर्ता

***

प्रोड्यूसर- लिपि वत्स

रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार

एडिटिंग - सतीश कुमार

ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह.

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इस बार चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चर्चा की शुरुआत अरविन्द केजरीवाल द्वारा दिल्ली के बजट में अयोध्या की मुफ्त यात्रा की घोषणा से हुई. अतुल ने कहा, ''ये अरविन्द केजरीवाल की पॉपुलिस्ट स्कीम का हिस्सा है और ऐसी स्कीमों का इस्तेमाल बहुत सारी पार्टियां करती हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों में रामराज्य का ज़िक्र अरविन्द केजरीवाल की पॉलिटिक्स में आया है, उनके विधायकों का अलग अलग मौकों पर हनुमान चालीसा पाठ, सुंदरकान्ड पाठ करना ये दिखाता है की भारतीय राजनीति के चरित्र में एक बड़ा बदलाव आया है पिछले सात-आठ सालों में. हिंदुत्ववाद या बहुसंख्यकवाद की पॉलिटिक्स जिसे बीजेपी और आरएसएस ने मिलकर काफी मजबूत किया है, वह अब इतना मजबूत हो गई है कि किसी विपरक्षी पार्टी में इतनी शक्ति नहीं है की वो इसका खुलकर विरोध कर सके. धर्म को राजनीति से अलग रखने की हिम्मत अब किसी विपक्षी दल में बची नहीं है. न तो कांग्रेस में न किसी और दल में और अरविंद केजरीवाल बहुत खुले तरीके से इसका इस्तेमाल कर रहे है.''

अतुल, प्रशांत टंडन से सवाल करते हैं, “अरविंद केजरीवाल की ये जो राजनीति है, क्या यह स्थायी बदलाव है भारत की राजनीति में? क्या अब हिंदुत्व के दाएं-बाएं और किसी राजनीति के सफल होने की संभावना बहुत कम हो गयी है?''

प्रशांत कहते है, ''आम आदमी पार्टी को सोशल मीडिया और अन्य राजनीतिक हलकों में बीजेपी की बी टीम कहा जाता है. हालांकि मैं उस विषय पर नहीं जाऊंगा. लेकिन इसके दो पहलू हैं जिस पर चर्चा होनी चाहिए. एक है नैतिकता, राजनीति में शुचिता और संवैधानिक दायरा. हमारा संविधान समाजवाद की बात करता है और वो कहता है की ''हम भारत के लोग'' इस लाइन में वह धर्मनिरपेक्ष राज्य की बात करता है. लेकिन इसमें एक नैतिकता का भी सवाल है की आप पूरे देश में सीना चौड़ा करके कहते है कि 'अनेकता में एकता का देश है भारत''. तो उस विविधताओं के देश में आप एक तबके की राजनीति करेंगे और दूसरे तबके को मजबूर करेंगे की बीजेपी को दूर रखना है तो हमें वोट दो, (मुसलमानों को) लेकिन हम पॉलिटिक्स तो हिन्दूवादी ही करेंगे, तो ये नैतिक बात नहीं है.''

प्रशांत आगे कहते हैं, “दूसरी बात राजनीति की करें तो बीजेपी और आरएसएस का कार्ड है हिंदुत्ववाद. इस राजनीति का उपयोग राजीव गांधी भी कर चुके है. जिसका नतीजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा था. वही घाटे की राजनीति आम आदमी पार्टी भी कर रही है, लेकिन उसे समझना होगा कि जिसका कार्ड है, फायदा सिर्फ उसी को मिलेगा.”

यहां चर्चा में आनंद शामिल होते हैं, "मैं एक बार पटना से दिल्ली सफर करते हुए देखा दिल्ली सरकार के कर्मचारियों को तीर्थ यात्रा के लिए एक स्पेशल ट्रेन चल रही थी. तो मुझे यही लगता है की पिछले 2-3 सालों से दिल्ली सरकार अपने कर्मचारियों को ये तीर्थ यात्रा का पैकेज दे रही है. बस इस बार इसमें अयोध्या जोड़ दिया गया है.”

आनंद आगे कहते हैं, “दूसरी बात हिंदूवादी राजनीति की है. किसी भी राजनीति के चुनावी समीकरण में कुछ चरण होते है जो कभी भी पूरी तरह से सफल या विफल नहीं होते. अलग-अलग पार्टी अभी उन चरण में हैं. लोगों को कुछ ऐतिहासिक शिकायतें हैं की उनका समुदाय पीछे रह गया और कुछ समुदायों को जरूरत से ज्यादा लाभ मिला है. इसी को भाजपा तथा अन्य कई संगठनों ने राजनीतिक मुद्दा बनाया ताकि वह किसी दूसरी पार्टी से कम न दिखें. यह चरणबद्ध राजनीति का हिस्सा है, इसका भी एक समय आएगा जब यह नीतियां काम नहीं करेंगी.”

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04:02 - 13:18 अरविंद केजरीवाल का बुज़ुर्गों को मुफ्त अयोध्या पैकेज

13:19 - 38:58 इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी

39:00 - 55:19 स्केनिया बस घोटाला

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1984 जॉर्ज ऑरवेल की किताब

1984 जॉर्ज ऑरवेल: उपन्यास पर बनी फिल्म

हाउ डेमोक्रेसीस डाई - किताब

अतुल चौरसिया

बॉम्बे बेगमस : नेटफ्लिक्स सीरीज

गैस की जंग: परंजय गुहा ठाकुर्ता

***

प्रोड्यूसर- लिपि वत्स

रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार

एडिटिंग - सतीश कुमार

ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह.

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