एनएल इंटरव्यू: मुसहर समुदाय पर बनी फिल्म "भोर" क्यों है खास

कई अंतरराष्ट्रीय अवार्ड जीत चुकी फिल्म "भोर" के निर्देशक कामाख्या नारायण सिंह से बातचीत.

WrittenBy:बसंत कुमार
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समाजवाद की लड़ाई भले ही बिहार से लड़ी गई लेकिन जातिवाद वहां हमेशा हावी रहा है. राज्य में सबसे पिछड़ा मुसहर समुदाय आज भी वहां हाशिएं पर है. करीब 6 प्रतिशत आबादी वाले इस समुदाय को उसकी संख्या के बराबर राजनीति में उतना अवसर नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए. इसी समुदाय की परेशानियों और उसके सामाजिक विकास को बहुत ही खूबसूरत तरीके से अपनी नई फिल्म भोर में कामाख्या नारायण सिंह ने पिरोया है.

नंवबर 2018 से लेकर साल 2021 तक कई फिल्म फेस्टिवल में अपना जलवा बिखेर चुकी यह फिल्म हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुई. फिल्म के शीर्षक ''भोर'' पर बसंत कुमार पूछते हैं, ''भोर का नाम रखने के पीछे क्या कारण है, क्योंकि भोर का मतलब होता है एक नए दिन की शुरुआत, इसको थोड़ा बताइएं?''

इस पर नारायण सिंह कहते हैं, ''इस फिल्म में तीन चार जो विषय हैं, वो हैं शिक्षा, स्वच्छता और जाति व्यवस्था. ये जब अंतिम व्यक्ति यानी मुसहर तक पहुंचते हैं, तब वो इस चीज़ पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं. जैसे जब शिक्षा उन तक पहुंचती है तो उनकी ज़िन्दगी में भोर हो रहा है, एक नयी शुरुआत हो रही है, तो उसके ऊपर ये शीर्षक है. ऐसे ही जब सरकार वहां शौचालय बनवाती है, स्कूलों में पोस्टर लगते है, सरकार स्वच्छता के लिए पैसे दे रही है, तो मुसहर समुदाय को जो महसूस होता है, वो भोर है. तीसरा, जब जाति व्यवस्था में सशक्तिकरण आ रहा है, तो भोर आ रहा है. इन सब के साथ एक और चीज़ जुडी हुई है कि जो महिलाएं हैं वो भोर में ही यानी सूर्य उदय होने से पहले और रात ख़त्म होने के बाद ही शौचालय के लिए घर से बाहर जाती हैं. तो इस तरीके से हमने फिल्म को भोर नाम दिया है.''

यहां देखिए फिल्मकार कामाख्या नारायण सिंह से हुई पूरी बातचीत-

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समाजवाद की लड़ाई भले ही बिहार से लड़ी गई लेकिन जातिवाद वहां हमेशा हावी रहा है. राज्य में सबसे पिछड़ा मुसहर समुदाय आज भी वहां हाशिएं पर है. करीब 6 प्रतिशत आबादी वाले इस समुदाय को उसकी संख्या के बराबर राजनीति में उतना अवसर नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए. इसी समुदाय की परेशानियों और उसके सामाजिक विकास को बहुत ही खूबसूरत तरीके से अपनी नई फिल्म भोर में कामाख्या नारायण सिंह ने पिरोया है.

नंवबर 2018 से लेकर साल 2021 तक कई फिल्म फेस्टिवल में अपना जलवा बिखेर चुकी यह फिल्म हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुई. फिल्म के शीर्षक ''भोर'' पर बसंत कुमार पूछते हैं, ''भोर का नाम रखने के पीछे क्या कारण है, क्योंकि भोर का मतलब होता है एक नए दिन की शुरुआत, इसको थोड़ा बताइएं?''

इस पर नारायण सिंह कहते हैं, ''इस फिल्म में तीन चार जो विषय हैं, वो हैं शिक्षा, स्वच्छता और जाति व्यवस्था. ये जब अंतिम व्यक्ति यानी मुसहर तक पहुंचते हैं, तब वो इस चीज़ पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं. जैसे जब शिक्षा उन तक पहुंचती है तो उनकी ज़िन्दगी में भोर हो रहा है, एक नयी शुरुआत हो रही है, तो उसके ऊपर ये शीर्षक है. ऐसे ही जब सरकार वहां शौचालय बनवाती है, स्कूलों में पोस्टर लगते है, सरकार स्वच्छता के लिए पैसे दे रही है, तो मुसहर समुदाय को जो महसूस होता है, वो भोर है. तीसरा, जब जाति व्यवस्था में सशक्तिकरण आ रहा है, तो भोर आ रहा है. इन सब के साथ एक और चीज़ जुडी हुई है कि जो महिलाएं हैं वो भोर में ही यानी सूर्य उदय होने से पहले और रात ख़त्म होने के बाद ही शौचालय के लिए घर से बाहर जाती हैं. तो इस तरीके से हमने फिल्म को भोर नाम दिया है.''

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