कल्पनाओं से भरी हुई है पत्रकार मनदीप पुनिया पर दर्ज हुई दिल्ली पुलिस की एफआईआर

स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया को 30 जनवरी की शाम सिंघु बॉर्डर पर रिपोर्टिंग करने के दौरान दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन पर पुलिस अधिकारियों से दुर्व्यवहार करने का आरोप लगा है.

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

बिना वकील के कोर्ट में हुई पेशी

समयपुर बादली थाने की पुलिस ने बताया कि मनदीप को रोहिणी कोर्ट में पेशी के लिए लेकर जा रहे हैं. वहां 2 बजे उन्हें पेश किया जाएगा, लेकिन पुलिस तिहाड़ कोर्ट कॉम्प्लेक्स-2 लेकर पहुंच गई. वहां डिफेंस के वकील के पहुंचने से पहले ही कोर्ट में पेश कर दिया और 14 दिन की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

मनदीप को पत्नी लीला को तिहाड़ कोर्ट ले जाने की जानकारी थोड़ी देर बाद मिली. वो तिहाड़ पहुंचीं तब पुलिस मनदीप को कोर्ट के अंदर लेकर जा रही थी. वो कहती हैं, ‘‘हमें रोहिणी कोर्ट बताकर पुलिस तिहाड़ लेकर चली आई. दो बजे पेश करने की बात की गई थी. हमारे वकील पहुंचते उससे पहले ही कोर्ट में लेकर चली गई. आखिर ये सब छल क्यों? उसे जेल भेजने की इतनी जल्दबाजी क्यों है.’’

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए मनदीप के वकील सारिम नवेद ने बताया, ‘‘हमें सूचना दी गई थी कि मनदीप को दो बजे कोर्ट में पेश किया जाएगा. हम अपने कागज तैयार कर दो बजे से पहले ही कोर्ट पहुंच गए. हमारे पहुंचने से पहले ही उन्हें कोर्ट में पेश कर दिया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. बिना डिफेंस के वकील के कोर्ट में पेश करना गलत है. यह आरोपी का हक़ होता है कि पेशी के वक़्त उसका वकील मौजूद रहे. हालांकि हमने जमानत के लिए आवदेन दे दिया है जिसपर सोमवार को सुनवाई होगी.’’

कल्पनाओं से भरी मनदीप पर दर्ज एफआईआर

मनदीप पुनिया पर दर्ज एफआईआर कल्पनाओं से भरी हुई है. यह एफआईआर इंस्पेक्टर आदित्य रंजन द्वारा कराई गई है. आदित्य अलीपुर थाने में ही तैनात हैं.

अपनी शिकायत में पुलिस अधिकारी आदित्य रंजन लिखते हैं, ‘‘स्थानीय निवासियों और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प को ध्यान में रखते हुए किसानों के प्रदर्शन स्थल के चारों तरफ बैरिकेड लगाए गए थे. किसी भी व्यक्ति को उनकी तरफ आना जाना मना था. प्रदर्शनकारी शुरुआत से इस व्यवस्था से नाखुश थे. उनके वॉलियंटर्स बार-बार बैरिकेड को क्रास करने की कोशिश कर रहे थे. बार-बार उन्हें समझाकर वापस किया जा रहा था. उन्होंने कई दफा बैरिकेड तोड़ने का प्रयास किया लेकिन वे हर बार विफल रहे.’’

आगे लिखा गया है, ‘‘शाम करीब 6:30 बजे प्रदर्शनकारियों के एक ग्रुप ने एक बार फिर बैरिकेड तोड़ने का प्रयास किया और बैरिकेड पर तैनात पुलिस बल के साथ चिपट गए. उन्हें समझाने का हर संभव प्रयास विफल साबित हुआ. इसी बीच एक शख्स जो कि कॉस्टेबल राजकुमार के साथ चिपटा हुआ था उसे खींचकर प्रदर्शन स्थल की तरफ लेकर जाने लगा. जिसे छुड़ाने की कोशिश की गई तो प्रदर्शनकारी और उग्र होते गए. बिगड़ती कानून व्यवस्था को देखते हुए इसकी सूचना सीनियर अधिकारियों को दी गई और मिमिमल फाॅर्स का इस्तेमाल कर हालात को काबू में किया गया. बाकी लोग प्रदर्शन स्थल की तरफ भाग गए लेकिन एक शख्स जिसने राजकुमार को खींचने की कोशिश की थी सड़क पर नाले में गिर गया जिसे पुलिस के जवानों ने काबू किया जिसका नाम मनदीप पता चला.’’

imageby :

हालांकि इस घटना की आंखों देखी बताने वाले पत्रकारों और हिरासत में लिए जाने के वक़्त के वीडियो से पुलिस की ये एफआईआर बिलकुल मेल नहीं खाती है.

घटना के वक़्त वहां मौजूद रहे हरदीप सिंह न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘किसानों की प्रेस कॉन्फ्रेंस होनी थी इसीलिए तकरीबन सभी पत्रकार वहीं मौजूद थे. हम लोग थोड़ी ही दूरी पर खड़े थे. इतने में हल्ले-गुल्ले की आवाज़ सुनाई दी. हम बॉर्डर की तरफ भागकर गए तब तक एक नौजवान को खींचकर ले जा चुके थे तो हमने पता करने की कोशिश की कि ये नौजवान कौन है. हमारे एक साथी वहां पहले से मौजूद थे उन्होंने तब वीडियो बना ली थी. हमने उस वीडियो को देखा तो वो मनदीप पुनिया थे. लगातार इस संघर्ष को वो कवर कर रहा है. उससे पहले एक और नौजवान को पुलिस लेकर चली गई थी जिसका नाम धर्मेंद्र था. तब वहां पर जो अधिकारी थे उनसे हमने जानकारी लेने की कोशिश की कि हमारे साथी पत्रकार है हमने उनकी पहचान कर ली है. वो कहां हैं. आप उन्हें क्यों नहीं छोड़ रहे हैं. उन्होंने हमें कोई जानकारी नहीं दी.’’

मनदीप और धमेंद्र सिंह ने क्या किया था कि पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया. इस सवाल के जवाब में हरदीप सिंह कहते हैं, ‘‘उन्होंने क्या किया था इसका साफ तौर पर पता नहीं चल सका, लेकिन वहां लोकल लोग बॉर्डर से आगे जाने की कोशिश कर रहे थे. पुलिस और अर्धसैनिक बल के जो लोग वहां तैनात हैं उन्होंने साफ तौर पर बॉर्डर को बंद कर दिया है. लोगों को आने जाने में दिक्कत आ रही थी. इसी की वे दोनों वीडियो बना रहे थे. वहां जो लोग खड़े थे उनसे हमें ये बात पता चली. इसी बात पर पुलिस ने उन्हें खींच लिया.’’

अव्वल तो एफआईआर में मनदीप को पुलिस ने पत्रकार ही नहीं माना है उन्हें प्रदर्शनकारी बताया गया है. जबकि मनदीप बीते तीन साल में सैकड़ों ग्राउंड रिपोर्ट अलग-अलग वेबसाइड पर लिख चुके हैं. जो आरोप लगे हैं उसके मुताबिक, मनदीप पुलिसकर्मी को खींचकर ले जा रहे थे. बाकी प्रदर्शनकारी भाग गए और मनदीप नाले में गिर गए. वहां से उन्हें काबू में किया गया.

पत्रकारों द्वारा मनदीप पुनिया को हिरासत में लेते जाने के वक़्त का वीडियो में साफ दिख रहा है कि मनदीप को बैरिकेड के पास से कई पुलिस वाले मिलकर घसीटकर ले जा रहे हैं. अगर नाले में गिरे होते तो शरीर का कोई हिस्सा तो भींगा होता. वीडियो में ऐसा कुछ नजर नहीं आता. पूरी रात मनदीप उसी कपड़े में थे तो क्या पुलिस भींगा हुआ कपड़ा पहने दी?

वहां मौजूद जो पत्रकार उस वक़्त का वीडियो बना रहे थे उनके पास नाले से पकड़ते हुए का वीडियो तो नहीं है. उन्होंने देखा तक नहीं कि पुलिस ने उन्हें नाले में से काबू किया. अगर मनदीप को नाले में काबू किया गया तो धर्मेंद्र को क्यों हिरासत में लिया गया? देर रात तक उन्हें थाने में रखा गया. उन्होंने क्या किया था?

मनदीप को हिरासत में लेते वक़्त दिल्ली पुलिस के कई जवान और अर्धसैनिक बल के जवान नजर आ रहे हैं. पुलिस के दावे के मुताबिक उस वक़्त कई प्रदर्शनकारी बेरिकेड तोड़ने की कोशिश कर रहे थे. अधिकारियों से चिपट गए थे. मिनिमल फ़ोर्स का इस्तेमाल भी किया गया. ऐसे में सिर्फ मनदीप को ही पुलिस पकड़ पाई वो भी तब तक जब वो नाले में गिर गए. बाकी सभी लोग भाग गए. ऐसे कैसे मुमकिन है. सब भाग जाए और एक शख्स जो नाले में गिरे उसे पुलिस कथित तौर पर काबू कर पाए.

जब ये बैरिकेड पुलिस ने 'स्थानीय' लोगों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प ना हो इसके लिए लगाया है तो सबसे बड़ा सवाल प्रदर्शनकारी क्यों बैरिकेड तोड़ने की कोशिश करेंगे. वे अपना प्रदर्शन कर रहे हैं.

ये कुछ सवाल हैं जिसका जवाब पुलिस को देना चाहिए.

न्यूजलॉन्ड्री ने इस मामले को लेकर कई पुलिस अधिकारियों से बात करने की कोशिश की उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. इस मामले के इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर सुरेंद्र मालिक भी इस एफआईआर में किए गए दावों को लेकर उठते सवाल पर कोई जवाब नहीं देते हैं. पुलिस की तरफ से इस मामले पर बस इतना ही बयान आया कि पुलिस अधिकारियों से दुर्व्यवहार करने और सरकारी काम में बांधा पहुंचाने को लेकर मनदीप पुनिया पर एफआईआर दर्ज की गई है.

बिना वकील के कोर्ट में हुई पेशी

समयपुर बादली थाने की पुलिस ने बताया कि मनदीप को रोहिणी कोर्ट में पेशी के लिए लेकर जा रहे हैं. वहां 2 बजे उन्हें पेश किया जाएगा, लेकिन पुलिस तिहाड़ कोर्ट कॉम्प्लेक्स-2 लेकर पहुंच गई. वहां डिफेंस के वकील के पहुंचने से पहले ही कोर्ट में पेश कर दिया और 14 दिन की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

मनदीप को पत्नी लीला को तिहाड़ कोर्ट ले जाने की जानकारी थोड़ी देर बाद मिली. वो तिहाड़ पहुंचीं तब पुलिस मनदीप को कोर्ट के अंदर लेकर जा रही थी. वो कहती हैं, ‘‘हमें रोहिणी कोर्ट बताकर पुलिस तिहाड़ लेकर चली आई. दो बजे पेश करने की बात की गई थी. हमारे वकील पहुंचते उससे पहले ही कोर्ट में लेकर चली गई. आखिर ये सब छल क्यों? उसे जेल भेजने की इतनी जल्दबाजी क्यों है.’’

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए मनदीप के वकील सारिम नवेद ने बताया, ‘‘हमें सूचना दी गई थी कि मनदीप को दो बजे कोर्ट में पेश किया जाएगा. हम अपने कागज तैयार कर दो बजे से पहले ही कोर्ट पहुंच गए. हमारे पहुंचने से पहले ही उन्हें कोर्ट में पेश कर दिया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. बिना डिफेंस के वकील के कोर्ट में पेश करना गलत है. यह आरोपी का हक़ होता है कि पेशी के वक़्त उसका वकील मौजूद रहे. हालांकि हमने जमानत के लिए आवदेन दे दिया है जिसपर सोमवार को सुनवाई होगी.’’

कल्पनाओं से भरी मनदीप पर दर्ज एफआईआर

मनदीप पुनिया पर दर्ज एफआईआर कल्पनाओं से भरी हुई है. यह एफआईआर इंस्पेक्टर आदित्य रंजन द्वारा कराई गई है. आदित्य अलीपुर थाने में ही तैनात हैं.

अपनी शिकायत में पुलिस अधिकारी आदित्य रंजन लिखते हैं, ‘‘स्थानीय निवासियों और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प को ध्यान में रखते हुए किसानों के प्रदर्शन स्थल के चारों तरफ बैरिकेड लगाए गए थे. किसी भी व्यक्ति को उनकी तरफ आना जाना मना था. प्रदर्शनकारी शुरुआत से इस व्यवस्था से नाखुश थे. उनके वॉलियंटर्स बार-बार बैरिकेड को क्रास करने की कोशिश कर रहे थे. बार-बार उन्हें समझाकर वापस किया जा रहा था. उन्होंने कई दफा बैरिकेड तोड़ने का प्रयास किया लेकिन वे हर बार विफल रहे.’’

आगे लिखा गया है, ‘‘शाम करीब 6:30 बजे प्रदर्शनकारियों के एक ग्रुप ने एक बार फिर बैरिकेड तोड़ने का प्रयास किया और बैरिकेड पर तैनात पुलिस बल के साथ चिपट गए. उन्हें समझाने का हर संभव प्रयास विफल साबित हुआ. इसी बीच एक शख्स जो कि कॉस्टेबल राजकुमार के साथ चिपटा हुआ था उसे खींचकर प्रदर्शन स्थल की तरफ लेकर जाने लगा. जिसे छुड़ाने की कोशिश की गई तो प्रदर्शनकारी और उग्र होते गए. बिगड़ती कानून व्यवस्था को देखते हुए इसकी सूचना सीनियर अधिकारियों को दी गई और मिमिमल फाॅर्स का इस्तेमाल कर हालात को काबू में किया गया. बाकी लोग प्रदर्शन स्थल की तरफ भाग गए लेकिन एक शख्स जिसने राजकुमार को खींचने की कोशिश की थी सड़क पर नाले में गिर गया जिसे पुलिस के जवानों ने काबू किया जिसका नाम मनदीप पता चला.’’

imageby :

हालांकि इस घटना की आंखों देखी बताने वाले पत्रकारों और हिरासत में लिए जाने के वक़्त के वीडियो से पुलिस की ये एफआईआर बिलकुल मेल नहीं खाती है.

घटना के वक़्त वहां मौजूद रहे हरदीप सिंह न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘किसानों की प्रेस कॉन्फ्रेंस होनी थी इसीलिए तकरीबन सभी पत्रकार वहीं मौजूद थे. हम लोग थोड़ी ही दूरी पर खड़े थे. इतने में हल्ले-गुल्ले की आवाज़ सुनाई दी. हम बॉर्डर की तरफ भागकर गए तब तक एक नौजवान को खींचकर ले जा चुके थे तो हमने पता करने की कोशिश की कि ये नौजवान कौन है. हमारे एक साथी वहां पहले से मौजूद थे उन्होंने तब वीडियो बना ली थी. हमने उस वीडियो को देखा तो वो मनदीप पुनिया थे. लगातार इस संघर्ष को वो कवर कर रहा है. उससे पहले एक और नौजवान को पुलिस लेकर चली गई थी जिसका नाम धर्मेंद्र था. तब वहां पर जो अधिकारी थे उनसे हमने जानकारी लेने की कोशिश की कि हमारे साथी पत्रकार है हमने उनकी पहचान कर ली है. वो कहां हैं. आप उन्हें क्यों नहीं छोड़ रहे हैं. उन्होंने हमें कोई जानकारी नहीं दी.’’

मनदीप और धमेंद्र सिंह ने क्या किया था कि पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया. इस सवाल के जवाब में हरदीप सिंह कहते हैं, ‘‘उन्होंने क्या किया था इसका साफ तौर पर पता नहीं चल सका, लेकिन वहां लोकल लोग बॉर्डर से आगे जाने की कोशिश कर रहे थे. पुलिस और अर्धसैनिक बल के जो लोग वहां तैनात हैं उन्होंने साफ तौर पर बॉर्डर को बंद कर दिया है. लोगों को आने जाने में दिक्कत आ रही थी. इसी की वे दोनों वीडियो बना रहे थे. वहां जो लोग खड़े थे उनसे हमें ये बात पता चली. इसी बात पर पुलिस ने उन्हें खींच लिया.’’

अव्वल तो एफआईआर में मनदीप को पुलिस ने पत्रकार ही नहीं माना है उन्हें प्रदर्शनकारी बताया गया है. जबकि मनदीप बीते तीन साल में सैकड़ों ग्राउंड रिपोर्ट अलग-अलग वेबसाइड पर लिख चुके हैं. जो आरोप लगे हैं उसके मुताबिक, मनदीप पुलिसकर्मी को खींचकर ले जा रहे थे. बाकी प्रदर्शनकारी भाग गए और मनदीप नाले में गिर गए. वहां से उन्हें काबू में किया गया.

पत्रकारों द्वारा मनदीप पुनिया को हिरासत में लेते जाने के वक़्त का वीडियो में साफ दिख रहा है कि मनदीप को बैरिकेड के पास से कई पुलिस वाले मिलकर घसीटकर ले जा रहे हैं. अगर नाले में गिरे होते तो शरीर का कोई हिस्सा तो भींगा होता. वीडियो में ऐसा कुछ नजर नहीं आता. पूरी रात मनदीप उसी कपड़े में थे तो क्या पुलिस भींगा हुआ कपड़ा पहने दी?

वहां मौजूद जो पत्रकार उस वक़्त का वीडियो बना रहे थे उनके पास नाले से पकड़ते हुए का वीडियो तो नहीं है. उन्होंने देखा तक नहीं कि पुलिस ने उन्हें नाले में से काबू किया. अगर मनदीप को नाले में काबू किया गया तो धर्मेंद्र को क्यों हिरासत में लिया गया? देर रात तक उन्हें थाने में रखा गया. उन्होंने क्या किया था?

मनदीप को हिरासत में लेते वक़्त दिल्ली पुलिस के कई जवान और अर्धसैनिक बल के जवान नजर आ रहे हैं. पुलिस के दावे के मुताबिक उस वक़्त कई प्रदर्शनकारी बेरिकेड तोड़ने की कोशिश कर रहे थे. अधिकारियों से चिपट गए थे. मिनिमल फ़ोर्स का इस्तेमाल भी किया गया. ऐसे में सिर्फ मनदीप को ही पुलिस पकड़ पाई वो भी तब तक जब वो नाले में गिर गए. बाकी सभी लोग भाग गए. ऐसे कैसे मुमकिन है. सब भाग जाए और एक शख्स जो नाले में गिरे उसे पुलिस कथित तौर पर काबू कर पाए.

जब ये बैरिकेड पुलिस ने 'स्थानीय' लोगों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प ना हो इसके लिए लगाया है तो सबसे बड़ा सवाल प्रदर्शनकारी क्यों बैरिकेड तोड़ने की कोशिश करेंगे. वे अपना प्रदर्शन कर रहे हैं.

ये कुछ सवाल हैं जिसका जवाब पुलिस को देना चाहिए.

न्यूजलॉन्ड्री ने इस मामले को लेकर कई पुलिस अधिकारियों से बात करने की कोशिश की उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. इस मामले के इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर सुरेंद्र मालिक भी इस एफआईआर में किए गए दावों को लेकर उठते सवाल पर कोई जवाब नहीं देते हैं. पुलिस की तरफ से इस मामले पर बस इतना ही बयान आया कि पुलिस अधिकारियों से दुर्व्यवहार करने और सरकारी काम में बांधा पहुंचाने को लेकर मनदीप पुनिया पर एफआईआर दर्ज की गई है.

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like