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एनएल चर्चा 153: किसान आंदोलन पर भारतीय बनाम विदेशी हस्तियां और बजट 2021

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ़्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

     
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एनएल चर्चा का 153वां एपिसोड विशेषतौर पर किसान आंदोलन को लेकर भारतीय और विदेशी हस्तियों द्वारा किए गए ट्वीट पर केंद्रित रहा, इसके अलावा पत्रकार मनदीप पुनिया और कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को मिली जमानत, संसद में पेश हुआ बजट 2021 और म्यांमार में हुआ तख्तापलट समेत अन्य मुद्दों का भी जिक्र हुआ.

इस बार चर्चा में फिल्म समीक्षक मिहिर पंड्या, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सह संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

अतुल ने इस सप्ताह चर्चा की शुरूआत सब्सक्राइबर्स के द्वारा पिछले सप्ताह के एपिसोड को लेकर उठाए गए सवाल से की. मेघनाथ की लाल किले पर निहंग साहब का झंडा फहराने वाली बात से असहमति जाहिर करते हुए एक सब्सक्राइबर ने सवाल किया था, जिसपर अतुल मेघनाथ से सवाल पूछते हुए कहते हैं कि आप इस सवाल पर क्या कहना चाहते हैं?

मेघनाथ कहते हैं, “एक तरह से देखें तो हमारे सब्सक्राइबर का जवाब कुछ हद तो सही है, क्योंकि अगर हमने इस तरह किसी धर्म के झंडे को नहीं रोका या सवाल नहीं किया तो फिर आगे क्या होगा. लेकिन जो मेरा कहना था कि लाल किला एक धरोहर है जिसपर किसी न किसी समय में कोई ना कोई झंडा फहराया गया होगा. यह भारत सरकार का नहीं है. लेकिन अगर यही झंडा संसद भवन, राष्ट्रपति भवन या किसी कोर्ट पर फहराया गया होता तो मेरी उस पर काफी आपत्ति होती.”

इस पर अतुल कहते हैं, “लाल किला कोई संवैधानिक बिल्डिंग नहीं है. दूसरी बात यहां साल भर में कई धर्मों का आयोजन किया जाता है, जिसमें कई धर्मों के झंडे लगाए जाते हैं. अगर हम अपनी सरकार को देखें तो वह खुद ही धर्म के रंग से रंगी हुई है, तो फिर आप धर्मनिरपेक्षता कि उम्मीद जनता से क्यों करते हैं.”

एक बार फिर से मेघनाथ इस विषय पर अपनी राय रखते हुए कहते हैं, “जैसा मैंने पहले कहां यह मेरी व्यक्तिगत राय है कि लाल किला कोई संवैधानिक बिल्डिंग नहीं है. लेकिन कुछ लोगों की राय मुझसे अलग हो सकती है. मुझे ज्यादा खतरा झंडा लगाने के तरीके से हुआ जो उस समय उस भीड़ ने किया.”

इस विषय पर शार्दूल कहते हैं, “जैसा मैंने पिछले सप्ताह कहा था, झंडा कोई भी लगा हो यह गलत है फिर चाहें वह भगवा रंग का हो या हरे रंग का. यह व्यक्तिगत हो सकता है कि आप को यह सहीं लगा या नहीं लेकिन मुझे लगता है कि लाल किले पर झंडा लगाना गलत था.”

इस मुद्दे पर मिहिर कहते हैं, “अगर आप मेरी व्यक्तिगत राय पूछें तो मुझे वह झंडा लगाना सही नहीं लगा. क्योंकि मैं अपने जीवन में उस तरह की धर्मिकता को नहीं मानता लेकिन हां हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां अलग-अलग धर्म हैं और समाज उन सभी धर्मों के साथ जी रहा है. भारत में खासकर यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि कहां आपका व्यक्तिगत जीवन है और कहां से धर्म की एंट्री होती है. जैसा मेघनाथ ने कहा, राज्य का कोई धर्म नहीं होगा, व्यक्तिगत तौर पर सबका धर्म हो सकता है. व्यक्ति के तरीके और जगह में समस्या हो सकती है लेकिन किस धर्म का झंडा फहरा रहे हैं उसमें नहीं.”

इस विषय के तमाम और पहलुओं पर भी पैनल ने अपनी राय विस्तार से रखी. इस बार की चर्चा आम दिनों के मुकाबले काफी लंबी रही. क्योंकि बहुत से महत्वपूर्ण विषय इस बार चर्चा में शामिल रहे. इसे पूरा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.

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क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.

मिहिर पंड्या

प्रतीक वत्स की फिल्म - इब आले वो

हाल-चाल ठीक है- पॉडकास्ट

मेघनाथ

डेविल नेक्स्ट डोर - नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री

मनदीप पुनिया के साथ अतुल चौरसिया का इंटरव्यू

शार्दूल कात्यायन

द अटलांटिक काउंसिल पर अमेरिका और चीन के रिश्तों को लेकर प्रकाशित लेख

हाउ टू फिक्स ए ड्रग्स स्कैंडल -नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री

मनदीप पुनिया के साथ अतुल चौरसिया का इंटरव्यू

अतुल चौरसिया

किसान आंदोलन से जुड़ी न्यूज़लॉन्ड्री की ग्राउंड रिपोर्टिंग

पत्रकार ब्रजेश राजपूत की किताब - ऑफ़ द स्क्रीन

***

प्रोड्यूसर- लिपि वत्स

रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार

एडिटिंग - सतीश कुमार

ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह.

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इस बार चर्चा में फिल्म समीक्षक मिहिर पंड्या, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सह संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

अतुल ने इस सप्ताह चर्चा की शुरूआत सब्सक्राइबर्स के द्वारा पिछले सप्ताह के एपिसोड को लेकर उठाए गए सवाल से की. मेघनाथ की लाल किले पर निहंग साहब का झंडा फहराने वाली बात से असहमति जाहिर करते हुए एक सब्सक्राइबर ने सवाल किया था, जिसपर अतुल मेघनाथ से सवाल पूछते हुए कहते हैं कि आप इस सवाल पर क्या कहना चाहते हैं?

मेघनाथ कहते हैं, “एक तरह से देखें तो हमारे सब्सक्राइबर का जवाब कुछ हद तो सही है, क्योंकि अगर हमने इस तरह किसी धर्म के झंडे को नहीं रोका या सवाल नहीं किया तो फिर आगे क्या होगा. लेकिन जो मेरा कहना था कि लाल किला एक धरोहर है जिसपर किसी न किसी समय में कोई ना कोई झंडा फहराया गया होगा. यह भारत सरकार का नहीं है. लेकिन अगर यही झंडा संसद भवन, राष्ट्रपति भवन या किसी कोर्ट पर फहराया गया होता तो मेरी उस पर काफी आपत्ति होती.”

इस पर अतुल कहते हैं, “लाल किला कोई संवैधानिक बिल्डिंग नहीं है. दूसरी बात यहां साल भर में कई धर्मों का आयोजन किया जाता है, जिसमें कई धर्मों के झंडे लगाए जाते हैं. अगर हम अपनी सरकार को देखें तो वह खुद ही धर्म के रंग से रंगी हुई है, तो फिर आप धर्मनिरपेक्षता कि उम्मीद जनता से क्यों करते हैं.”

एक बार फिर से मेघनाथ इस विषय पर अपनी राय रखते हुए कहते हैं, “जैसा मैंने पहले कहां यह मेरी व्यक्तिगत राय है कि लाल किला कोई संवैधानिक बिल्डिंग नहीं है. लेकिन कुछ लोगों की राय मुझसे अलग हो सकती है. मुझे ज्यादा खतरा झंडा लगाने के तरीके से हुआ जो उस समय उस भीड़ ने किया.”

इस विषय पर शार्दूल कहते हैं, “जैसा मैंने पिछले सप्ताह कहा था, झंडा कोई भी लगा हो यह गलत है फिर चाहें वह भगवा रंग का हो या हरे रंग का. यह व्यक्तिगत हो सकता है कि आप को यह सहीं लगा या नहीं लेकिन मुझे लगता है कि लाल किले पर झंडा लगाना गलत था.”

इस मुद्दे पर मिहिर कहते हैं, “अगर आप मेरी व्यक्तिगत राय पूछें तो मुझे वह झंडा लगाना सही नहीं लगा. क्योंकि मैं अपने जीवन में उस तरह की धर्मिकता को नहीं मानता लेकिन हां हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां अलग-अलग धर्म हैं और समाज उन सभी धर्मों के साथ जी रहा है. भारत में खासकर यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि कहां आपका व्यक्तिगत जीवन है और कहां से धर्म की एंट्री होती है. जैसा मेघनाथ ने कहा, राज्य का कोई धर्म नहीं होगा, व्यक्तिगत तौर पर सबका धर्म हो सकता है. व्यक्ति के तरीके और जगह में समस्या हो सकती है लेकिन किस धर्म का झंडा फहरा रहे हैं उसमें नहीं.”

इस विषय के तमाम और पहलुओं पर भी पैनल ने अपनी राय विस्तार से रखी. इस बार की चर्चा आम दिनों के मुकाबले काफी लंबी रही. क्योंकि बहुत से महत्वपूर्ण विषय इस बार चर्चा में शामिल रहे. इसे पूरा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.

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