रिपोर्टर की डायरी: 26 जनवरी को जो कुछ हुआ वो ऐतिहासिक था या कलंक?

गाजीपुर से लाल किले तक किसानों के साथ चलते हुए जो कुछ देखा सुना.

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
Article image

लाल किला

लाल किला पर गाजीपुर के अलावा सिंघु बॉर्डर से भी किसान पहुंचे थे. यहां पहुंचते-पहुंचते किसानों का यह झुंड कुछ हद तक धार्मिक रंग ले चुका था.

सिख समुदाय से जुड़े लोगों ने लाल किले के प्राचीर पर चढ़कर अपना धार्मिक झंडा (निशान साहिब) लगा दिया. सिख धर्म को मानने वालों का कहना था कि लाल किले पर पहले हमारा झंडा लगा रहता था. बाद में उसे हटा दिया गया. आज हमने फिर लगा दिया. यहां पर जितनी मुंह उतनी बातें हो रही थी. हालांकि लाल किले पर भारत के तिरंगे के अलावा कोई और झंडा शायद ही किसी भारतीय को पसंद आए.

इसी बीच सोशल मीडिया पर एक और प्रोपेगैंडा चला कि प्रदर्शनकारियों ने तिरंगे को हटा दिया. बिल्कुल ऐसा नहीं हुआ. भारत का झंडा अपनी जगह पर मौजूद रहा. उसके आसपास दूसरे झंडे लगाए गए. सोशल मीडिया पर यह झूठ भी खूब फैलाया गया. इसमें मुख्यधारा के टीवी चैनलों ने भी योगदान दिया.

लाल किला पर मौजूद प्रदर्शनकारी

ख़ैर, लाल किले के ऊपर हज़ारों की संख्या में लोग मौजूद थे. आसपास के बुजुर्ग लोगों की माने तो उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लाल किले पर ऐसी तस्वीर नहीं देखी. करीब आधे घण्टे तक वहां लोग रहे लेकिन देखते-देखते पुलिस ने उन्हें वहां से भगा दिया. इस दौरान कई प्रदर्शनकारी और पुलिसकर्मी घायल हुए. अफवाह ये उड़ी की अंदर पुलिस ने गोली चलाई है, लेकिन इसकी कोई स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई. थोड़ी देर बाद करीब पांच एम्बुलेंस में घायल पुलिस वालों को ले जाया गया. कई प्रदर्शनकारी भी लाल किले के सामने खून से लथपथ नजर आए.

यहां अफरा तफरी का माहौल था. पत्रकारों का कैमरा तोड़ दिया गया. मोबाइल तोड़ा गया. तोड़ने और मारने की धमकी लगातर दी जा रही थी.

imageby :बसंत कुमार

यहां पहुंचने के बाद कोई भी किसान पत्रकारों से बात नहीं करना चाह रहा था. पंजाब से आए एक बुजुर्ग किसान से जब हमने पूछा कि लाल किला आने का फैसला सही था. इतनी हिंसा हुई जबकि आपका आंदोलन शांतिपूर्ण था. उन्होंने कहा, "दिल्ली में दो महीने से शांतिपूर्ण ही प्रदर्शन कर रहे थे. उसके पहले पंजाब में किए. कोई हादसा सुना आपने. हमारे 53 से ज़्यादा लोग दो महीने में ठंड से मर गए. बारिश हुई. कड़ाके की ठंड पड़ी. हम खुले आसमान के नीचे थे. सरकार मीटिंग पर मीटिंग करती रही लेकिन कानून वापस नहीं ली. हमारे लिए कानून बना और हमें ही मारा जा रहा था. थक गए थे हम लोग."

बुजुर्ग ने कहा, "ट्रैक्टर परेड रैली के लिए दिल्ली आने की मांग जब हमने कि तो हमें मूर्ख बनाते हुए इधर-उधर घूमने की इजाजत दी गई. आप बताओ हम ठंड में मरते रहें हर रोज. आप लोगों को (मीडिया को) तो हमारे लोगों के मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता. आज हिंसा हुई तो सब चिल्ला रहे हैं. ठंड में रहते-रहते, हर रोज अपनों को खोते हुए सब परेशान हो गए है. गलती है लेकिन मज़बूरी में की गई. सरकार सुन नहीं रही है."

थोड़ी देर बाद किसानों को पुलिस ने लाल किले से बाहर कर दिया, लेकिन तभी निहंग सिखों का एक जत्था वहां पहुंच गया. निहंग, सिख समुदाय का वो तबका जो योद्धा कहलाता है. उनके पास अक्सर कई तरह के शस्त्र होते हैं. निहंगों के पहुंचने के बाद एक बार फिर से किसान लाल किले के भीतर आ गए. उसके बाद देर रात तक आते जाते रहे. लाल किले के बाहर सेल्फी लेते रहे. पुलिस के नियंत्रण से लाल किला बाहर हो गया था.

लाल किले के पास गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल अलग अलग राज्यों का झांकियां रखी हुई थी. किसान उस पर चढ़ गए. किसानों के चेहरे पर जीत का भाव था. अब धीरे-धीरे वे वहां से लौटने लगे. देर रात को पुलिस ने भारतीय झंडे के अलावा बाकी झंडों को लाल किले से उतार दिया. कुछेक किसान नीचे हंगामा करते रहे.

कुछ सवाल

एक तरफ पुलिस ने हंगामा करने वालों की जांच की बात की है वहीं किसान संगठनों ने आंदोलन जारी रखने की बात कही है. आरोप-प्रत्यारोप का दौर जा रही है. नेशनल मीडिया दो हिस्सों में बंट गया है. एक हिस्सा आंदोलन को कोस रहा है दूसरा हिस्सा सरकार के रवैये को कोस रहा है. लेकिन कुछ सवाल हैं जिनका जवाब आना अभी बाकी है.

1. गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में सबसे ज़्यादा सुरक्षा होती है. तमाम सुरक्षा एजेंसियां सक्रिय रहती है. कहां चूक हुई कि यह पता नहीं चल पाया कि किसानों का एक हिस्सा दिल्ली आने की बात कर रहा है. जबकि प्रदर्शन स्थलों पर कई लोग इस तरह की बात करते नजर आ रहे थे कि वे सरकारी रूट को नहीं मानेंगे और दिल्ली जाएंगे.

2. दिल्ली पुलिस जो प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए कई स्तर पर बैरिकेड लगाती है लेकिन कल एक हद तक खामोश क्यों रही. आईटीओ और लाल किले को छोड़ दिया जाए तो कहीं भी पुलिस इन्हें रोकने की कोशिश करती नज़र नहीं आई.

3. दो महीने से दिल्ली में किसानों का जो आंदोलन शांतिमय चल रहा था. पुलिसकर्मियों को जो किसान लंगर खिलाते नजर आए थे. वे उनसे ही क्यों लड़ने को तैयार हो गए?

4. लाल किला पर जो भीड़ गई वो नेतृत्वहीन थी. कम से कम मैंने पूरी यात्रा के दौरान ऐसा ही पाया. उनका कोई नेता नहीं था. हमें तो कोई नेता नजर नहीं आया. किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने दीप सिधु को इसके लिए जिम्मेदार बताया है. क्या उन्होंने ऐसा किया?

5. अब आंदोलन का क्या होगा? सरकार क्या तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेगी. अभी तक इसका कोई संकेत नहीं मिला. वहीं किसान संगठन अपने आंदोलन को सफल बताते हुए आगे इसे जारी रखने का ऐलान कर चुके हैं.

6. सबसे बड़ा सवाल एक साल के भीतर दिल्ली में दो बड़े हादसे हुए. बीते साल दिल्ली दंगा, हुआ जिसमें 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई. दंगे की बरसी से पहले ही एक और हादसा. इसके लिए कौन जिम्मेदार है? किसी की जिम्मेदारी बनती भी है या नहीं?

कल जो कुछ हुआ वो ऐतिहासिक था या कलंक यह एक अलग बहस है.

Also see
article imageकौन हैं वे किसान संगठन जो कृषि क़ानूनों पर मोदी सरकार को दे रहे हैं समर्थन?
article image'मोदी जी ये भूल गए हैं कि हम किसान हैं जो बंजर मिट्टी से भी अन्न उपजाना जानते हैं'

लाल किला

लाल किला पर गाजीपुर के अलावा सिंघु बॉर्डर से भी किसान पहुंचे थे. यहां पहुंचते-पहुंचते किसानों का यह झुंड कुछ हद तक धार्मिक रंग ले चुका था.

सिख समुदाय से जुड़े लोगों ने लाल किले के प्राचीर पर चढ़कर अपना धार्मिक झंडा (निशान साहिब) लगा दिया. सिख धर्म को मानने वालों का कहना था कि लाल किले पर पहले हमारा झंडा लगा रहता था. बाद में उसे हटा दिया गया. आज हमने फिर लगा दिया. यहां पर जितनी मुंह उतनी बातें हो रही थी. हालांकि लाल किले पर भारत के तिरंगे के अलावा कोई और झंडा शायद ही किसी भारतीय को पसंद आए.

इसी बीच सोशल मीडिया पर एक और प्रोपेगैंडा चला कि प्रदर्शनकारियों ने तिरंगे को हटा दिया. बिल्कुल ऐसा नहीं हुआ. भारत का झंडा अपनी जगह पर मौजूद रहा. उसके आसपास दूसरे झंडे लगाए गए. सोशल मीडिया पर यह झूठ भी खूब फैलाया गया. इसमें मुख्यधारा के टीवी चैनलों ने भी योगदान दिया.

लाल किला पर मौजूद प्रदर्शनकारी

ख़ैर, लाल किले के ऊपर हज़ारों की संख्या में लोग मौजूद थे. आसपास के बुजुर्ग लोगों की माने तो उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लाल किले पर ऐसी तस्वीर नहीं देखी. करीब आधे घण्टे तक वहां लोग रहे लेकिन देखते-देखते पुलिस ने उन्हें वहां से भगा दिया. इस दौरान कई प्रदर्शनकारी और पुलिसकर्मी घायल हुए. अफवाह ये उड़ी की अंदर पुलिस ने गोली चलाई है, लेकिन इसकी कोई स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई. थोड़ी देर बाद करीब पांच एम्बुलेंस में घायल पुलिस वालों को ले जाया गया. कई प्रदर्शनकारी भी लाल किले के सामने खून से लथपथ नजर आए.

यहां अफरा तफरी का माहौल था. पत्रकारों का कैमरा तोड़ दिया गया. मोबाइल तोड़ा गया. तोड़ने और मारने की धमकी लगातर दी जा रही थी.

imageby :बसंत कुमार

यहां पहुंचने के बाद कोई भी किसान पत्रकारों से बात नहीं करना चाह रहा था. पंजाब से आए एक बुजुर्ग किसान से जब हमने पूछा कि लाल किला आने का फैसला सही था. इतनी हिंसा हुई जबकि आपका आंदोलन शांतिपूर्ण था. उन्होंने कहा, "दिल्ली में दो महीने से शांतिपूर्ण ही प्रदर्शन कर रहे थे. उसके पहले पंजाब में किए. कोई हादसा सुना आपने. हमारे 53 से ज़्यादा लोग दो महीने में ठंड से मर गए. बारिश हुई. कड़ाके की ठंड पड़ी. हम खुले आसमान के नीचे थे. सरकार मीटिंग पर मीटिंग करती रही लेकिन कानून वापस नहीं ली. हमारे लिए कानून बना और हमें ही मारा जा रहा था. थक गए थे हम लोग."

बुजुर्ग ने कहा, "ट्रैक्टर परेड रैली के लिए दिल्ली आने की मांग जब हमने कि तो हमें मूर्ख बनाते हुए इधर-उधर घूमने की इजाजत दी गई. आप बताओ हम ठंड में मरते रहें हर रोज. आप लोगों को (मीडिया को) तो हमारे लोगों के मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता. आज हिंसा हुई तो सब चिल्ला रहे हैं. ठंड में रहते-रहते, हर रोज अपनों को खोते हुए सब परेशान हो गए है. गलती है लेकिन मज़बूरी में की गई. सरकार सुन नहीं रही है."

थोड़ी देर बाद किसानों को पुलिस ने लाल किले से बाहर कर दिया, लेकिन तभी निहंग सिखों का एक जत्था वहां पहुंच गया. निहंग, सिख समुदाय का वो तबका जो योद्धा कहलाता है. उनके पास अक्सर कई तरह के शस्त्र होते हैं. निहंगों के पहुंचने के बाद एक बार फिर से किसान लाल किले के भीतर आ गए. उसके बाद देर रात तक आते जाते रहे. लाल किले के बाहर सेल्फी लेते रहे. पुलिस के नियंत्रण से लाल किला बाहर हो गया था.

लाल किले के पास गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल अलग अलग राज्यों का झांकियां रखी हुई थी. किसान उस पर चढ़ गए. किसानों के चेहरे पर जीत का भाव था. अब धीरे-धीरे वे वहां से लौटने लगे. देर रात को पुलिस ने भारतीय झंडे के अलावा बाकी झंडों को लाल किले से उतार दिया. कुछेक किसान नीचे हंगामा करते रहे.

कुछ सवाल

एक तरफ पुलिस ने हंगामा करने वालों की जांच की बात की है वहीं किसान संगठनों ने आंदोलन जारी रखने की बात कही है. आरोप-प्रत्यारोप का दौर जा रही है. नेशनल मीडिया दो हिस्सों में बंट गया है. एक हिस्सा आंदोलन को कोस रहा है दूसरा हिस्सा सरकार के रवैये को कोस रहा है. लेकिन कुछ सवाल हैं जिनका जवाब आना अभी बाकी है.

1. गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में सबसे ज़्यादा सुरक्षा होती है. तमाम सुरक्षा एजेंसियां सक्रिय रहती है. कहां चूक हुई कि यह पता नहीं चल पाया कि किसानों का एक हिस्सा दिल्ली आने की बात कर रहा है. जबकि प्रदर्शन स्थलों पर कई लोग इस तरह की बात करते नजर आ रहे थे कि वे सरकारी रूट को नहीं मानेंगे और दिल्ली जाएंगे.

2. दिल्ली पुलिस जो प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए कई स्तर पर बैरिकेड लगाती है लेकिन कल एक हद तक खामोश क्यों रही. आईटीओ और लाल किले को छोड़ दिया जाए तो कहीं भी पुलिस इन्हें रोकने की कोशिश करती नज़र नहीं आई.

3. दो महीने से दिल्ली में किसानों का जो आंदोलन शांतिमय चल रहा था. पुलिसकर्मियों को जो किसान लंगर खिलाते नजर आए थे. वे उनसे ही क्यों लड़ने को तैयार हो गए?

4. लाल किला पर जो भीड़ गई वो नेतृत्वहीन थी. कम से कम मैंने पूरी यात्रा के दौरान ऐसा ही पाया. उनका कोई नेता नहीं था. हमें तो कोई नेता नजर नहीं आया. किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने दीप सिधु को इसके लिए जिम्मेदार बताया है. क्या उन्होंने ऐसा किया?

5. अब आंदोलन का क्या होगा? सरकार क्या तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेगी. अभी तक इसका कोई संकेत नहीं मिला. वहीं किसान संगठन अपने आंदोलन को सफल बताते हुए आगे इसे जारी रखने का ऐलान कर चुके हैं.

6. सबसे बड़ा सवाल एक साल के भीतर दिल्ली में दो बड़े हादसे हुए. बीते साल दिल्ली दंगा, हुआ जिसमें 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई. दंगे की बरसी से पहले ही एक और हादसा. इसके लिए कौन जिम्मेदार है? किसी की जिम्मेदारी बनती भी है या नहीं?

कल जो कुछ हुआ वो ऐतिहासिक था या कलंक यह एक अलग बहस है.

Also see
article imageकौन हैं वे किसान संगठन जो कृषि क़ानूनों पर मोदी सरकार को दे रहे हैं समर्थन?
article image'मोदी जी ये भूल गए हैं कि हम किसान हैं जो बंजर मिट्टी से भी अन्न उपजाना जानते हैं'

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like