'मोदी जी ये भूल गए हैं कि हम किसान हैं जो बंजर मिट्टी से भी अन्न उपजाना जानते हैं'

शुक्रवार को दिल्ली-हरियाणा के सिंधु बॉर्डर पर किसान और सुरक्षाकर्मी आमने सामने आ गए जिसके बाद सरकार को किसानों को दिल्ली आने की इजाजत देने पर मज़बूर होना पड़ा.

WrittenBy:बसंत कुमार
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संघर्ष के 40 से 45 मिनट

केंद्र और हरियाणा सरकार द्वारा किसानों के लिए बनाई गईं तमाम बाधाओं को तोड़ते हुए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान आखिरकार दिल्ली बॉर्डर पर पहुंच ही गए.

किसान दिल्ली बॉर्डर पर शुक्रवार की सुबह से ही पहुंचने लगे थे. दोपहर एक बजे के करीब जब भारी संख्या में इकठ्ठा हो गए तो वे दिल्ली की तरफ चल दिए. जहां उन्हें रोकने के लिए दो दिन से तैयारी करके दिल्ली पुलिस, बीएसएफ, सीआरपीएफ और सीआईएसएफ के जवान खड़े हुए थे.

बॉर्डर पर दिल्ली पुलिस, अर्धसैनिक बलों के सहयोग से जबरदस्त बैरिकेडिंग की हुई थी. बड़े-बड़े पत्थर और मिट्टी से भरी हुई ट्रकें सड़क के बीचोबीच खड़ी की गई थीं. कंटीली तार लगाई गई थी. कई स्तर पर हुई मज़बूत बैरिकेडिंग को देखते-देखते ही किसान तोड़ते हुए आगे बढ़ने लगे. इस दौरान किसानों और सुरक्षाकर्मियों, दोनों ही तरफ से पत्थरबाजी शुरू हो गई. पुलिस द्वारा लगाई गई कंटीली तारों को पंजाब के किसानों ने अपनी तलवार से काटकर अलग कर दिया.

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कुछ नौजवान किसान बैरिकेड तोड़ते हुए आगे बढ़े और पुलिस की पकड़ में आ गए. उस दौरान पुलिसकर्मियों ने उनकी बुरी तरह पिटाई की. गुरदासपुर से आया एक नौजवान किसान पुलिस के बीच में आ गया जिसके बाद पुलिस की पिटाई और आंसू गैस के गोले से उसका पैर फट गया. वहीं एक दूसरा नौजवान किसान भी जब पुलिस के बीच फंसा तो दिल्ली पुलिस के जवान कूद-कूदकर उसे मारते नज़र आए. पत्थरबाजी में एक पुलिसकर्मी के भी घायल होने की खबर आई.

इस सबके बावजूद किसान रुके नहीं. किसानों के आक्रामक रुख को देखते हुए पुलिस आंसू गैस के गोले दागने लगी. किसान अपने ट्रैक्टर से बैरिकेड तोड़ने की लगातार कोशिश करते रहे और वे आगे बढ़ने में सफल भी हुए. जिसके बाद पुलिस ने वाटर कैनन का इस्तेमाल किया लेकिन वाटर कैनन की मशीन की दुर्बलता कहे या कुछ और की शुरुआत में पानी किसानों तक पहुंच ही नहीं पा रहा था. बाद में पानी जब किसानों के ऊपर पड़ा भी तो भी उसका कोई असर नज़र नहीं आया. वे बैरिकेड से आगे बढ़ने की कोशिश लगातार करते रहे.

लगभग 40 से 45 मिनट चले इस संघर्ष के बाद खबर आई कि सरकार किसानों को दिल्ली प्रवेश की इजाजत दे चुकी है. उसके बाद यहां हालात स्थिर हुए और किसान अपने ट्रैक्टर के साथ सड़क पर ही जम गए.

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इस संघर्ष के दौरान किसान लगातार अपनी मांग रख रहे थे और सुरक्षाकर्मियों से कार्रवाई नहीं करने की मांग करते नज़र आ रहे थे. जब किसान और सुरक्षाकर्मी आमने-सामने थे तभी एक नौजवान किसान ने एक सुरक्षाकर्मी से बोला, ‘ताऊ रिटायर होकर तुम्हें भी खेती ही करनी है. ये सोचकर ही लठ चलाओ.’ इसके अलावा यहां आए तमाम किसानों से बात करते हुए जो सुनने को मिला वो कुछ ऐसा था….

‘मर जाएंगे, लेकिन तब तक वापस नहीं जाएंगे जब तक यह काला कानून वापस नहीं होता’

'2 दिन बैठना पड़े या 6 महीना हम तैयार है, अबकी जीतकर जाएंगे'

'खालिस्तानी, अरे नहीं किसानों के पीछे किसान और खेतों को लेकर मोह है'

'जिद्द बच्चे करते है मां-बाप नहीं, सरकार जिद्द छोड़े और कानून वापस ले'

'मोदी जी ये भूल गए हैं कि हम किसान हैं जो बंजर मिट्टी से भी अन्न उपजाना जानते हैं'

'ये पुलिस और बीएसएफ वाले, आधे तो हमारे ही भाई और ताऊ हैं. रिटायर होकर इन्हें भी खेती ही करनी है’

हमें जबरदस्ती क्यों फायदा पहुंचा रही सरकार?

देशभर के किसान यूनियन मोदी सरकार द्वारा बीते लोकसभा सत्र में पारित तीन कृषि कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन-कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020, को लेकर खफा है.

कानून बनने की प्रक्रिया के साथ ही देशभर के किसान संगठनों और पंजाब-हरियाणा के किसानों ने इसका विरोध शुरू कर दिया. इस बिल का विरोध लोकसभा और राज्यसभा में विपक्षी दल के नेताओं ने भी किया.

पंजाब के किसानों की नाराजगी को देखते हुए अकाली दल की नेता और केंद्र सरकार की मंत्री हरसिमरत कौर ने अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया, लेकिन सरकार एक ही रट लगाती रही कि किसान इस कानून को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं दरअसल यह बिल किसानों को फायदे के लिए सरकार ला रही है.

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किसानों की नाराजगी कम नहीं हुई और दो महीने पंजाब-हरियाणा में जगह-जगह प्रदर्शन करने के बाद जब सरकार उनकी एक बात नहीं सुनी तो वे 26-27 नवंबर को दिल्ली पहुंचने के लिए निकल पड़े.

पंजाब सरकार ने किसानों को रोका नहीं, लेकिन हरियाणा में किसानों को रोकने के लिए नक्सलियों के स्टाइल का इस्तेमाल किया गया. जगह-जगह सड़कों को काटकर बड़े-बड़े गढ्डे बना दिए गए. बैरिकेडिंग की गई. किसान गढ्ढों को भरते और बैरिकेड को तोड़ते हुए आगे बढ़ते रहे. जब किसान दिल्ली पहुंच गए तब केंद्र के कृषि मंत्री ने उनसे बातचीत करने की बात की और फिर वहीं पुराना राग अलापा की इस कानून से किसानों को फायदा है.

तीन दिसंबर को किसानों से बातचीत की पेशकश करते हुए कृषि मंत्री ने कहा, ‘‘सरकार के लाए नए कृषि कानूनों से किसानों के जीवन में बड़े बदलाव आएंगे.’’

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार लगातार इस कानून को किसानों की भलाई के लिए बता रही है पर आप लोग इसका विरोध क्यों कर रहे हैं? इस सवाल के जवाब में पंजाब के जलंधर के पास के ही एक गांव सरमस्तपुर से आए 55 एकड़ में खेती करने वाले किसान राजेश कुमार कहते हैं, ‘‘हम बड़े बदलाव ही तो नहीं चाहते और सरकार हमें जबदरस्ती ‘फायदा’ देना चाहती है. आप एक चीज बताओ अगर मैं आपको कुछ दूं और उस सामान से आपको कोई फायदा होने वाला हो तो आप लेने से मना करोगे? नहीं न. अगर यह कानून किसानों के हित में होता तो किसान इस ठंड में क्यों सड़कों पर होता? आंसू गैस के गोले और वाटर कैनन का पानी सहता. दरअसल ये कानून किसानों के पक्ष में है ही नहीं इसीलिए विरोध कर रहे हैं. सरकार हमें जबरदस्ती फायदा न दे.’’

जालंधर से तीन दिन पहले निकले राजेश कुमार 27 नवंबर को दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर पहुंचे

राजेश कुमार की ही तरह मंजीत सिंह भी सरकार को जबरदस्ती फायदा नहीं देने की गुहार लगाते नज़र आते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए मंजीत कहते हैं, ‘‘सरकार जिस कानून से हमें फायदा देने की बात कर रही है वो हमारे लिए काला कानून है. हम प्रदर्शन करते-करते मर जाएंगे लेकिन इस काले कानून को वापस कराये बिना वापस नहीं जाएंगे. हम शांतिमय ढंग से प्रदर्शन करना चाहते हैं. इस कानून से बाकि राज्यों के मुकाबले पंजाब और हरियाणा के किसानों पर सबसे ज़्यादा असर होगा. बिल में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लिखकर दे दें. फिर किसान मान जाएंगे. बोलते हैं कि एमएसपी खत्म नहीं कर रहे तो बिल बनाने में उन्हें क्या परेशानी है.’’

निरंकारी ग्राउंड जाने पर किसी का हां तो किसी का ना

सरकार ने दिल्ली के बुराड़ी स्थित निरंकारी ग्राउंड में किसानों को जमा होकर शांतिमय प्रदर्शन करने की इजाजत दी लेकिन देर रात तक वहां कुछ ही किसान पहुंचे. किसान अपने ट्रैक्टर के साथ दिल्ली-सोनीपत हाइवे पर जमे हुए हैं. लगभग चार से पांच किलोमीटर के बीच ट्रैक्टर ही ट्रैक्टर खड़े हुए हैं.

पूरी तैयारी के साथ पहुंचे किसानों ने शाम होते ही खाना बनाना शुरू कर दिया. यहां हमारी मुलाकात कई किसानों से हुई जिनसे हमने जानने की कोशिश की कि सरकार द्वारा तय किए गए ग्राउंड में जाकर वे अपना प्रदर्शन करेंगे? इस सवाल के जवाब में ज़्यादातर किसानों ने ना कहा लेकिन उनका यह भी कहना था कि उनके नेता जो कहेंगे उसे ही वो मानेंगे.

स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव ने बुराड़ी में सरकार द्वारा दी गई अनुमति को किसानों की आंशिक विजय बताते हुए अपनी राय दी कि किसानों को वहां जाना चाहिए जिसके बाद हरियाणा-पंजाब से आए युवा किसानों ने उनपर नाराजगी जाहिर की. युवाओं ने कहा कि हम एक ग्राउंड में जाकर बैठ गए तो सरकार हमारी बात नहीं सुनेगी. किसान बीते दो महीने से प्रदर्शन तो कर ही रहे हैं. सरकार पर कोई असर नहीं हो रहा है. अगर हम सड़क जाम नहीं करेंगे तो सरकार पर कोई असर नहीं होगा.

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बुराड़ी ग्राउंड में हमारी मुलाकात पाकिस्तान बॉर्डर के करीब लगने वाले जिला तरन तारण से आए मनकीत सिंह से हुई. चार दिन चलकर वे गुरुवार की रात सिंधु बॉर्डर होते हुए दिल्ली पहुंच गए. यहां गुरुद्वारा बंगला साहिब के पास से उन्हें उनके 15 साथियों के साथ पुलिस ने हिरासत में लिया और शुक्रवार शाम तक थाने में बैठाए रखा. इस दौरान पुलिस ने उनकी तीन गाड़ियां भी अपने कब्जे में ले लीं. मनकीत का दावा है कि दो गाड़ियां तो वापस दे दीं लेकिन तीसरी गाड़ी को लेकर पुलिस गोल-गोल घुमा रही है.

बुराड़ी के निरंकारी ग्राउंड में बैठकर प्रदर्शन करने के सवाल पर मनकीत साफ़ इंकार कर देते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हम सरकार को घेरने आए हैं न कि सरकार से घिरने के लिए. इस बड़े से ग्राउंड में सरकार हमें कैद कर देना चाहती है. मुझे लगता है कि हमें दिल्ली के जंतर-मंतर या रामलीला मैदान जाना चाहिए ताकि सरकार को परेशानी हो और वो हमारी बात मानें. इस ग्राउंड में हम बैठ गए तो सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा और हम प्रदर्शन करके वापस चले जाएंगे. अपना हर एक काम छोड़कर हम दिल्ली आए हैं अब यहां से खाली हाथ तो नहीं लौट सकते हैं.’’

देखने वाली बात होगी कि किसानों के नेता बुराड़ी के निरंकारी ग्राउंड में आकर प्रदर्शन करने के लिए राजी होते हैं या जंतर-मंतर और रामलीला मैदान आने की जिद्द पर अड़े रहते हैं. किसान नेता कोई भी फैसला लें लेकिन लगभग तीस साल बाद दिल्ली की सड़कों पर किसान अपने ट्रैक्टर के साथ हाजिर होंगे. आखिरी बार चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने साल 1988 में दिल्ली के वोट क्लब को घेर लिया था. उसके बाद दिल्ली में किसान आंदोलन करने तो कई दफा आए लेकिन ट्रैक्टर लेकर नहीं आए.

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देर रात जब हम सिंघु बॉर्डर से लौटने लगे तो हमारी मुलाकात एक महिला किसान और एक बीएसएफ के जवान से हुई.

अपने ट्रैक्टर में बैठी महिला किसान दलबीर कौर ने कहा, ‘‘पांच दिन लगे या पांच महीने हम न्याय लेकर ही जाएंगे. हम अपने बच्चों को बदहाल नहीं छोड़ने वाले हैं. मोदी को अपनी बात मनवा कर रहेंगे.’’

वहीं राजस्थान के रहने वाले एक बीएसएफ के जवान जो यहां सुरक्षा में तैनात थे ने कहा, ''आज पहली बार लाठी चलाने का मन नहीं कर रहा. वे (किसान) हमारे बाप हैं. किसी बड़े अधिकारी का बेटा थोड़े ही सेना में जाता है. किसानों का बेटा ही जाता है. हम अपने बाप पर लाठी कैसे चला दें.नहीं मन हो रहा है.’’

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किसान दिल्ली बॉर्डर पर शुक्रवार की सुबह से ही पहुंचने लगे थे. दोपहर एक बजे के करीब जब भारी संख्या में इकठ्ठा हो गए तो वे दिल्ली की तरफ चल दिए. जहां उन्हें रोकने के लिए दो दिन से तैयारी करके दिल्ली पुलिस, बीएसएफ, सीआरपीएफ और सीआईएसएफ के जवान खड़े हुए थे.

बॉर्डर पर दिल्ली पुलिस, अर्धसैनिक बलों के सहयोग से जबरदस्त बैरिकेडिंग की हुई थी. बड़े-बड़े पत्थर और मिट्टी से भरी हुई ट्रकें सड़क के बीचोबीच खड़ी की गई थीं. कंटीली तार लगाई गई थी. कई स्तर पर हुई मज़बूत बैरिकेडिंग को देखते-देखते ही किसान तोड़ते हुए आगे बढ़ने लगे. इस दौरान किसानों और सुरक्षाकर्मियों, दोनों ही तरफ से पत्थरबाजी शुरू हो गई. पुलिस द्वारा लगाई गई कंटीली तारों को पंजाब के किसानों ने अपनी तलवार से काटकर अलग कर दिया.

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इस सबके बावजूद किसान रुके नहीं. किसानों के आक्रामक रुख को देखते हुए पुलिस आंसू गैस के गोले दागने लगी. किसान अपने ट्रैक्टर से बैरिकेड तोड़ने की लगातार कोशिश करते रहे और वे आगे बढ़ने में सफल भी हुए. जिसके बाद पुलिस ने वाटर कैनन का इस्तेमाल किया लेकिन वाटर कैनन की मशीन की दुर्बलता कहे या कुछ और की शुरुआत में पानी किसानों तक पहुंच ही नहीं पा रहा था. बाद में पानी जब किसानों के ऊपर पड़ा भी तो भी उसका कोई असर नज़र नहीं आया. वे बैरिकेड से आगे बढ़ने की कोशिश लगातार करते रहे.

लगभग 40 से 45 मिनट चले इस संघर्ष के बाद खबर आई कि सरकार किसानों को दिल्ली प्रवेश की इजाजत दे चुकी है. उसके बाद यहां हालात स्थिर हुए और किसान अपने ट्रैक्टर के साथ सड़क पर ही जम गए.

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इस संघर्ष के दौरान किसान लगातार अपनी मांग रख रहे थे और सुरक्षाकर्मियों से कार्रवाई नहीं करने की मांग करते नज़र आ रहे थे. जब किसान और सुरक्षाकर्मी आमने-सामने थे तभी एक नौजवान किसान ने एक सुरक्षाकर्मी से बोला, ‘ताऊ रिटायर होकर तुम्हें भी खेती ही करनी है. ये सोचकर ही लठ चलाओ.’ इसके अलावा यहां आए तमाम किसानों से बात करते हुए जो सुनने को मिला वो कुछ ऐसा था….

‘मर जाएंगे, लेकिन तब तक वापस नहीं जाएंगे जब तक यह काला कानून वापस नहीं होता’

'2 दिन बैठना पड़े या 6 महीना हम तैयार है, अबकी जीतकर जाएंगे'

'खालिस्तानी, अरे नहीं किसानों के पीछे किसान और खेतों को लेकर मोह है'

'जिद्द बच्चे करते है मां-बाप नहीं, सरकार जिद्द छोड़े और कानून वापस ले'

'मोदी जी ये भूल गए हैं कि हम किसान हैं जो बंजर मिट्टी से भी अन्न उपजाना जानते हैं'

'ये पुलिस और बीएसएफ वाले, आधे तो हमारे ही भाई और ताऊ हैं. रिटायर होकर इन्हें भी खेती ही करनी है’

हमें जबरदस्ती क्यों फायदा पहुंचा रही सरकार?

देशभर के किसान यूनियन मोदी सरकार द्वारा बीते लोकसभा सत्र में पारित तीन कृषि कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन-कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020, को लेकर खफा है.

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किसानों की नाराजगी कम नहीं हुई और दो महीने पंजाब-हरियाणा में जगह-जगह प्रदर्शन करने के बाद जब सरकार उनकी एक बात नहीं सुनी तो वे 26-27 नवंबर को दिल्ली पहुंचने के लिए निकल पड़े.

पंजाब सरकार ने किसानों को रोका नहीं, लेकिन हरियाणा में किसानों को रोकने के लिए नक्सलियों के स्टाइल का इस्तेमाल किया गया. जगह-जगह सड़कों को काटकर बड़े-बड़े गढ्डे बना दिए गए. बैरिकेडिंग की गई. किसान गढ्ढों को भरते और बैरिकेड को तोड़ते हुए आगे बढ़ते रहे. जब किसान दिल्ली पहुंच गए तब केंद्र के कृषि मंत्री ने उनसे बातचीत करने की बात की और फिर वहीं पुराना राग अलापा की इस कानून से किसानों को फायदा है.

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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार लगातार इस कानून को किसानों की भलाई के लिए बता रही है पर आप लोग इसका विरोध क्यों कर रहे हैं? इस सवाल के जवाब में पंजाब के जलंधर के पास के ही एक गांव सरमस्तपुर से आए 55 एकड़ में खेती करने वाले किसान राजेश कुमार कहते हैं, ‘‘हम बड़े बदलाव ही तो नहीं चाहते और सरकार हमें जबदरस्ती ‘फायदा’ देना चाहती है. आप एक चीज बताओ अगर मैं आपको कुछ दूं और उस सामान से आपको कोई फायदा होने वाला हो तो आप लेने से मना करोगे? नहीं न. अगर यह कानून किसानों के हित में होता तो किसान इस ठंड में क्यों सड़कों पर होता? आंसू गैस के गोले और वाटर कैनन का पानी सहता. दरअसल ये कानून किसानों के पक्ष में है ही नहीं इसीलिए विरोध कर रहे हैं. सरकार हमें जबरदस्ती फायदा न दे.’’

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राजेश कुमार की ही तरह मंजीत सिंह भी सरकार को जबरदस्ती फायदा नहीं देने की गुहार लगाते नज़र आते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए मंजीत कहते हैं, ‘‘सरकार जिस कानून से हमें फायदा देने की बात कर रही है वो हमारे लिए काला कानून है. हम प्रदर्शन करते-करते मर जाएंगे लेकिन इस काले कानून को वापस कराये बिना वापस नहीं जाएंगे. हम शांतिमय ढंग से प्रदर्शन करना चाहते हैं. इस कानून से बाकि राज्यों के मुकाबले पंजाब और हरियाणा के किसानों पर सबसे ज़्यादा असर होगा. बिल में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लिखकर दे दें. फिर किसान मान जाएंगे. बोलते हैं कि एमएसपी खत्म नहीं कर रहे तो बिल बनाने में उन्हें क्या परेशानी है.’’

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पूरी तैयारी के साथ पहुंचे किसानों ने शाम होते ही खाना बनाना शुरू कर दिया. यहां हमारी मुलाकात कई किसानों से हुई जिनसे हमने जानने की कोशिश की कि सरकार द्वारा तय किए गए ग्राउंड में जाकर वे अपना प्रदर्शन करेंगे? इस सवाल के जवाब में ज़्यादातर किसानों ने ना कहा लेकिन उनका यह भी कहना था कि उनके नेता जो कहेंगे उसे ही वो मानेंगे.

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बुराड़ी के निरंकारी ग्राउंड में बैठकर प्रदर्शन करने के सवाल पर मनकीत साफ़ इंकार कर देते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हम सरकार को घेरने आए हैं न कि सरकार से घिरने के लिए. इस बड़े से ग्राउंड में सरकार हमें कैद कर देना चाहती है. मुझे लगता है कि हमें दिल्ली के जंतर-मंतर या रामलीला मैदान जाना चाहिए ताकि सरकार को परेशानी हो और वो हमारी बात मानें. इस ग्राउंड में हम बैठ गए तो सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा और हम प्रदर्शन करके वापस चले जाएंगे. अपना हर एक काम छोड़कर हम दिल्ली आए हैं अब यहां से खाली हाथ तो नहीं लौट सकते हैं.’’

देखने वाली बात होगी कि किसानों के नेता बुराड़ी के निरंकारी ग्राउंड में आकर प्रदर्शन करने के लिए राजी होते हैं या जंतर-मंतर और रामलीला मैदान आने की जिद्द पर अड़े रहते हैं. किसान नेता कोई भी फैसला लें लेकिन लगभग तीस साल बाद दिल्ली की सड़कों पर किसान अपने ट्रैक्टर के साथ हाजिर होंगे. आखिरी बार चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने साल 1988 में दिल्ली के वोट क्लब को घेर लिया था. उसके बाद दिल्ली में किसान आंदोलन करने तो कई दफा आए लेकिन ट्रैक्टर लेकर नहीं आए.

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देर रात जब हम सिंघु बॉर्डर से लौटने लगे तो हमारी मुलाकात एक महिला किसान और एक बीएसएफ के जवान से हुई.

अपने ट्रैक्टर में बैठी महिला किसान दलबीर कौर ने कहा, ‘‘पांच दिन लगे या पांच महीने हम न्याय लेकर ही जाएंगे. हम अपने बच्चों को बदहाल नहीं छोड़ने वाले हैं. मोदी को अपनी बात मनवा कर रहेंगे.’’

वहीं राजस्थान के रहने वाले एक बीएसएफ के जवान जो यहां सुरक्षा में तैनात थे ने कहा, ''आज पहली बार लाठी चलाने का मन नहीं कर रहा. वे (किसान) हमारे बाप हैं. किसी बड़े अधिकारी का बेटा थोड़े ही सेना में जाता है. किसानों का बेटा ही जाता है. हम अपने बाप पर लाठी कैसे चला दें.नहीं मन हो रहा है.’’

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