कृषि क़ानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले किसान 'मीडिया' से क्यों हैं खफा?

कुछ बड़े मीडिया संस्थानों ने हालात और बिगाड़ दिए हैं. इससे अच्छा तो उन्होंने हमें कवर ही न किया होता.

WrittenBy:निधि सुरेश
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26 नवंबर को जब प्रदर्शन करने वाले किसान दिल्ली और हरियाणा के बीच सिंघु बॉर्डर पर आए तो उनकी एक शिकायत थी, "राष्ट्रीय मीडिया हमारे ऊपर कोई ध्यान क्यों नहीं दे रहा? क्या उन्हें बंद सड़कें दिखाई नहीं देतीं? क्या उन्हें किसानों की कोई परवाह नहीं?"

इसके चार दिन बाद, उनकी परेशानी दूसरी थी जो उनके नारे में दिखाई देती है, "गोदी मीडिया, वापस जाओ".

"गोदी मीडिया", अर्थात वो मीडिया संस्थान जो मोदी सरकार की तथाकथित "गोद" में बैठे हुए हैं, का उपयोग किसानों से होने वाली बातों और नारों में आम दिखता है. इन लोगों का मीडिया की तरफ गुस्सा 30 नवंबर को ज़ी पंजाबी के एक संवाददाता और उनके कैमरामैन के आने के बाद बहुत तेज़ी से बढ़ता चला गया.

दोपहर के 1:30 बजे, संवाददाता वासु मनचंदा लंगर बांटने के लिए बने एक मंच पर खड़े होकर अपने आसपास खड़े कुछ उम्र दराज किसानों का इंटरव्यू लेने लगे. लोगों ने बहुत तेजी से उन्हें चीख-चीख कर शांत कराया और कुछ ही मिनटों बाद प्रदर्शनकारियों ने उन्हें पुलिस बैरिकेड की तरफ दौड़ा दिया.

उन्हें दौड़ा देने वाली भीड़ में से एक किसान अर्शदीप सिंह ने कहा, “उन्होंने ‘गोदी मीडिया’ के खिलाफ नारे लगाते हुए संवाददाता पर पानी फेंका. वे कहते हैं कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वासु मनचंदा उनसे कृषि कानूनों के बारे में कुछ घुमावदार सवाल पूछ रहे थे जबकि वे लोग उन्हीं कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं.”

अर्शदीप पूछते हैं, "मीडिया को क्या हो गया है? आप कुछ वृद्ध और बिना पढ़े लिखे लोगों को इकट्ठा करके कृषि कानूनों के बारे में तकनीकी सवाल कैसे कर सकते हैं? हमें पता है कि आप आगे चलकर इन्हें हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल करेंगे. हमने पिछले कुछ दिनों में यह देख लिया है"

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इससे इतर, वासु मनचंदा का दावा है कि किसानों ने उन पर गर्म चाय फेंकी. परंतु अर्शदीप की मुख्य बात यानी ज़मीन पर मीडिया के खिलाफ गुस्सा पोस्टर, नारों और किसानों के कुछ मीडिया संस्थानों से बात करने से इनकार के रूप में फटकर सामने आया है. इसकी शुरुआत तब हुई जब ज़ी न्यूज़ और उसके जैसे कुछ और चैनलों ने किसानों के प्रदर्शन में एक खालिस्तानी एंगल होने की बात कही.

इसके जवाब में कुछ किसानों ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा, "असल में हमें खालिस्तानी कहने वाले खुद हिंदुस्तानी नहीं हैं."

पंजाब के एक और किसान करनदीप सिंह ने अपनी बात से इसका निचोड़ प्रस्तुत किया, "हम अभी भी चाहते हैं कि मीडिया हमारे बारे में बात करे. बस इतनी गुज़ारिश है कि आप मनगढ़ंत बातों के बजाय जो देखें उसे रिपोर्ट करें."

विश्वास का अंत

करनदीप सिंह कहते हैं कि मीडिया के खिलाफ किसानों का गुस्सा कोई एकदम से उभरा हुआ या सतही नहीं है, बल्कि उनकी माने तो पूरा आंदोलन ही अविश्वास के दौर से गुजर रहा है.

किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए पुलिस के द्वारा आंसू गैस और पानी की बौछार के उपयोग के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "हमें हर तरफ से निराशा ही मिल रही है. सरकारें जनता के विश्वास पर बनती हैं, पर वहां से निराशा हाथ लगी. एक सुरक्षाकर्मी पर भी हमारा भरोसा होना चाहिए पर उन्होंने भी हमें निराश ही किया."

मीडिया के बारे में करनदीप कहते हैं, "इन हालातों में मीडिया ही एकमात्र और आखरी सहारा होता है पर उन्होंने भी हमें निराश ही नहीं किया बल्कि हमारी पीठ में छुरा भोंका हैं. ऐसा कहा जाता है कि एक युद्ध में पहली बलि सत्य की ही चढ़ती है, परंतु बलि विश्वास की भी चढ़ती है."

राजस्थान के एक किसान सुरविंदर सिंह ने बताया कि मीडिया ने कुछ किसानों से यह तक पूछा कि उन्होंने जीन्स क्यों पहनी है या वह अंग्रेजी में बात क्यों कर रहे हैं. वह पूछ रहे थे, "यह किस तरह के सवाल हैं? आप हमसे यह सब बातें कैसे पूछ सकते हैं?"

उन्होंने यह भी कहा, “ऐसा लगता है कि मीडिया के दिमाग में एक छवि बनी हुई है कि किसान अंग्रेजी नहीं बोल सकता, किसान राजनीति नहीं समझता, बस फटे कपड़े पहनकर नंगे पांव चलता है. जब वह एक किसान देखते हैं जो उनके दिमाग की छवि में फिट नहीं बैठता, तो उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं.”

सुरविंदर ने शिकायत करते हुए कहा, "हमसे बुरा बर्ताव इसलिए क्योंकि हम उनके कथानक में फिट नहीं बैठते. हमारे अच्छे प्रकार से जीवन यापन करने की छवि उनकी टीआरपी में मदद नहीं करती."

सुरविंदर के दोस्त हरविंदर गिल भी राजस्थान से ही हैं, उन्होंने एक और बात जोड़ी, "क्या हमें ढंग के कपड़े पहनने का भी अधिकार नहीं है? हमें अपने अधिकार पता हैं और हम उन्हें अपनी और आपकी, दोनों भाषाओं में मांगेंगे."

सभी मीडिया नहीं

सोमवार को सिंधु बॉर्डर पर बहुत से पत्रकारों ने अच्छी तस्वीर लेने की उम्मीद में, प्रदर्शन स्थल के पास एक जर्जर हालत की इमारत के ऊपर चढ़ने की कोशिश की. पंजाब के किसान हैप्पी सिंह ने दृढ़ता से उन्हें नीचे उतारा और फिर खुद ही सीढ़ियों के आगे खड़े हो गए और कहा, "मैं आपको ऊपर जाने नहीं दे सकता. इस इमारत का मालिक आप मीडिया वालों से डरता है."

जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो हैप्पी सिंह नवदीप सिंह की बात सामने ले आए. नवदीप सिंह वह युवक है जिसकी पुलिस के पानी की बौछार को बंद करते हुए तस्वीरें वायरल होने के बाद उसे एक हीरो की तरह माना गया. बाद में पुलिस ने नवदीप पर हत्या के प्रयास का इल्जाम यह कहते हुए लगाया की उन्होंने पुलिस बैरिकेड तोड़कर पुलिस वालों के ऊपर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश की.

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हैप्पी कहते हैं, “इसमें मीडिया की कोई गलती नहीं, पर अगर आप यहां कुछ फोटो लें, फिर वह वायरल हो जाएं, और फिर प्रशासन आए और इमारत के ऊपर कुछ झूठे आरोप लगा दें तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? क्या आप हमारी मदद कर पाएंगे? हमारे पास मीडिया की तरफ से वैसे ही बहुत परेशानी है, उसमें हमें और कोई इजाफा नहीं करना."

यहां से करीब एक किलोमीटर ट्रक और गाड़ियों से बंद हाईवे पर आगे चलकर न्यूजलॉन्ड्री ने दिल्ली में रहने वाले पंजाबी स्टैंड अप कॉमेडियन इंद्रजीत सिंह से बात की. इंद्रजीत के अनुसार, “वे एक किसान परिवार से आते हैं और इसीलिए प्रदर्शन का हिस्सा बनना उनकी एक जिम्मेदारी थी.”

जिस तरह से कुछ मीडिया संस्थान प्रदर्शन को कवर कर रहे थे, उन्हें देखकर इंद्रजीत हक्के-बक्के रह गए और उन्होंने अंग्रेजी, हिंदी और पंजाबी में पोस्टर छपवाए जिन पर लिखा था, "ज़ी न्यूज़, रिपब्लिक, आज तक. हमें कवर मत करो. तुम फेक न्यूज़ हो. #गोदीमीडिया."

इंद्रजीत बताते हैं कि किसान सारी मीडिया से गुस्सा नहीं हैं बल्कि उनका गुस्सा मुख्यतः टीवी चैनलों पर है. वे कहते हैं, "यह बड़े और शक्तिशाली मीडिया संस्थान हैं और वह शालीनता से भी रिपोर्टिंग कर सकते थे. इन लोगों ने हालात और बिगाड़ दिए. इससे अच्छा तो यह होता कि उन्होंने हमारे बारे में कोई खबर ही न दिखाई होती." इंद्रजीत ने यह भी बताया कि ज़ी, रिपब्लिक और आज तक के संवाददाताओं का बहिष्कार करने के बारे में प्रदर्शनकारी किसानों के बीच एक आम सहमति बनती जा रही है.

वे कहते हैं, "हम मूर्ख नहीं हैं. “हम देखते आ रहे हैं कि अंजना ओम कश्यप और अर्णब गोस्वामी जैसे एंकर हमारे बारे में क्या कह रहे हैं. हमें उनका कोई कवरेज या मदद नहीं चाहिए."

रात के करीब 9:00 बजे तक "गोदी मीडिया" के खिलाफ गुस्सा आसमान छूने लगा था. वहां लगे काम चलाऊ मंच से कई अपील की गई कि किसी भी संवाददाता या पत्रकार से हाथापाई या उनकी कोई हानि न की जाए, केवल नम्रता से उन्हें वहां से चले जाने के लिए कहा जाए.

एक पंजाबी टीवी न्यूज़ चैनल के संवाददाता ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि उन्हें प्रदर्शन कवर करने में कोई दिक्कत नहीं आ रही है. अपनी पहचान न बताते हुए उन्होंने कहा, "मेरी नजर में मामला बिल्कुल सीधा साधा है. अपना काम करो, पत्रकार बनो और वह बताओ जो दिख रहा है. वैसे भी क्या यही पत्रकारिता नहीं है? हम स्थानीय पत्रकार तो पहले दिन से यही कर रहे हैं. हम स्थानीय संवाददाताओं के लिए यह प्रदर्शन दो महीने पुराना है, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया के लिए तीन से चार दिन पुराना नहीं."

न्यूजलॉन्ड्री ने बहुत से किसानों से बात की और उन सब ने यह माना कि हरियाणा और पंजाब के स्थानीय अखबारों और क्षेत्रीय न्यूज़ चैनलों ने उन्हें कवर करने में सराहनीय काम किया है. अर्शदीप सिंह कहते हैं, "अगर आप को पत्रकारिता सीखनी है तो स्थानीय पत्रकारों से सीखिए."

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26 नवंबर को जब प्रदर्शन करने वाले किसान दिल्ली और हरियाणा के बीच सिंघु बॉर्डर पर आए तो उनकी एक शिकायत थी, "राष्ट्रीय मीडिया हमारे ऊपर कोई ध्यान क्यों नहीं दे रहा? क्या उन्हें बंद सड़कें दिखाई नहीं देतीं? क्या उन्हें किसानों की कोई परवाह नहीं?"

इसके चार दिन बाद, उनकी परेशानी दूसरी थी जो उनके नारे में दिखाई देती है, "गोदी मीडिया, वापस जाओ".

"गोदी मीडिया", अर्थात वो मीडिया संस्थान जो मोदी सरकार की तथाकथित "गोद" में बैठे हुए हैं, का उपयोग किसानों से होने वाली बातों और नारों में आम दिखता है. इन लोगों का मीडिया की तरफ गुस्सा 30 नवंबर को ज़ी पंजाबी के एक संवाददाता और उनके कैमरामैन के आने के बाद बहुत तेज़ी से बढ़ता चला गया.

दोपहर के 1:30 बजे, संवाददाता वासु मनचंदा लंगर बांटने के लिए बने एक मंच पर खड़े होकर अपने आसपास खड़े कुछ उम्र दराज किसानों का इंटरव्यू लेने लगे. लोगों ने बहुत तेजी से उन्हें चीख-चीख कर शांत कराया और कुछ ही मिनटों बाद प्रदर्शनकारियों ने उन्हें पुलिस बैरिकेड की तरफ दौड़ा दिया.

उन्हें दौड़ा देने वाली भीड़ में से एक किसान अर्शदीप सिंह ने कहा, “उन्होंने ‘गोदी मीडिया’ के खिलाफ नारे लगाते हुए संवाददाता पर पानी फेंका. वे कहते हैं कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वासु मनचंदा उनसे कृषि कानूनों के बारे में कुछ घुमावदार सवाल पूछ रहे थे जबकि वे लोग उन्हीं कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं.”

अर्शदीप पूछते हैं, "मीडिया को क्या हो गया है? आप कुछ वृद्ध और बिना पढ़े लिखे लोगों को इकट्ठा करके कृषि कानूनों के बारे में तकनीकी सवाल कैसे कर सकते हैं? हमें पता है कि आप आगे चलकर इन्हें हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल करेंगे. हमने पिछले कुछ दिनों में यह देख लिया है"

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इससे इतर, वासु मनचंदा का दावा है कि किसानों ने उन पर गर्म चाय फेंकी. परंतु अर्शदीप की मुख्य बात यानी ज़मीन पर मीडिया के खिलाफ गुस्सा पोस्टर, नारों और किसानों के कुछ मीडिया संस्थानों से बात करने से इनकार के रूप में फटकर सामने आया है. इसकी शुरुआत तब हुई जब ज़ी न्यूज़ और उसके जैसे कुछ और चैनलों ने किसानों के प्रदर्शन में एक खालिस्तानी एंगल होने की बात कही.

इसके जवाब में कुछ किसानों ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा, "असल में हमें खालिस्तानी कहने वाले खुद हिंदुस्तानी नहीं हैं."

पंजाब के एक और किसान करनदीप सिंह ने अपनी बात से इसका निचोड़ प्रस्तुत किया, "हम अभी भी चाहते हैं कि मीडिया हमारे बारे में बात करे. बस इतनी गुज़ारिश है कि आप मनगढ़ंत बातों के बजाय जो देखें उसे रिपोर्ट करें."

विश्वास का अंत

करनदीप सिंह कहते हैं कि मीडिया के खिलाफ किसानों का गुस्सा कोई एकदम से उभरा हुआ या सतही नहीं है, बल्कि उनकी माने तो पूरा आंदोलन ही अविश्वास के दौर से गुजर रहा है.

किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए पुलिस के द्वारा आंसू गैस और पानी की बौछार के उपयोग के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "हमें हर तरफ से निराशा ही मिल रही है. सरकारें जनता के विश्वास पर बनती हैं, पर वहां से निराशा हाथ लगी. एक सुरक्षाकर्मी पर भी हमारा भरोसा होना चाहिए पर उन्होंने भी हमें निराश ही किया."

मीडिया के बारे में करनदीप कहते हैं, "इन हालातों में मीडिया ही एकमात्र और आखरी सहारा होता है पर उन्होंने भी हमें निराश ही नहीं किया बल्कि हमारी पीठ में छुरा भोंका हैं. ऐसा कहा जाता है कि एक युद्ध में पहली बलि सत्य की ही चढ़ती है, परंतु बलि विश्वास की भी चढ़ती है."

राजस्थान के एक किसान सुरविंदर सिंह ने बताया कि मीडिया ने कुछ किसानों से यह तक पूछा कि उन्होंने जीन्स क्यों पहनी है या वह अंग्रेजी में बात क्यों कर रहे हैं. वह पूछ रहे थे, "यह किस तरह के सवाल हैं? आप हमसे यह सब बातें कैसे पूछ सकते हैं?"

उन्होंने यह भी कहा, “ऐसा लगता है कि मीडिया के दिमाग में एक छवि बनी हुई है कि किसान अंग्रेजी नहीं बोल सकता, किसान राजनीति नहीं समझता, बस फटे कपड़े पहनकर नंगे पांव चलता है. जब वह एक किसान देखते हैं जो उनके दिमाग की छवि में फिट नहीं बैठता, तो उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं.”

सुरविंदर ने शिकायत करते हुए कहा, "हमसे बुरा बर्ताव इसलिए क्योंकि हम उनके कथानक में फिट नहीं बैठते. हमारे अच्छे प्रकार से जीवन यापन करने की छवि उनकी टीआरपी में मदद नहीं करती."

सुरविंदर के दोस्त हरविंदर गिल भी राजस्थान से ही हैं, उन्होंने एक और बात जोड़ी, "क्या हमें ढंग के कपड़े पहनने का भी अधिकार नहीं है? हमें अपने अधिकार पता हैं और हम उन्हें अपनी और आपकी, दोनों भाषाओं में मांगेंगे."

सभी मीडिया नहीं

सोमवार को सिंधु बॉर्डर पर बहुत से पत्रकारों ने अच्छी तस्वीर लेने की उम्मीद में, प्रदर्शन स्थल के पास एक जर्जर हालत की इमारत के ऊपर चढ़ने की कोशिश की. पंजाब के किसान हैप्पी सिंह ने दृढ़ता से उन्हें नीचे उतारा और फिर खुद ही सीढ़ियों के आगे खड़े हो गए और कहा, "मैं आपको ऊपर जाने नहीं दे सकता. इस इमारत का मालिक आप मीडिया वालों से डरता है."

जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो हैप्पी सिंह नवदीप सिंह की बात सामने ले आए. नवदीप सिंह वह युवक है जिसकी पुलिस के पानी की बौछार को बंद करते हुए तस्वीरें वायरल होने के बाद उसे एक हीरो की तरह माना गया. बाद में पुलिस ने नवदीप पर हत्या के प्रयास का इल्जाम यह कहते हुए लगाया की उन्होंने पुलिस बैरिकेड तोड़कर पुलिस वालों के ऊपर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश की.

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हैप्पी कहते हैं, “इसमें मीडिया की कोई गलती नहीं, पर अगर आप यहां कुछ फोटो लें, फिर वह वायरल हो जाएं, और फिर प्रशासन आए और इमारत के ऊपर कुछ झूठे आरोप लगा दें तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? क्या आप हमारी मदद कर पाएंगे? हमारे पास मीडिया की तरफ से वैसे ही बहुत परेशानी है, उसमें हमें और कोई इजाफा नहीं करना."

यहां से करीब एक किलोमीटर ट्रक और गाड़ियों से बंद हाईवे पर आगे चलकर न्यूजलॉन्ड्री ने दिल्ली में रहने वाले पंजाबी स्टैंड अप कॉमेडियन इंद्रजीत सिंह से बात की. इंद्रजीत के अनुसार, “वे एक किसान परिवार से आते हैं और इसीलिए प्रदर्शन का हिस्सा बनना उनकी एक जिम्मेदारी थी.”

जिस तरह से कुछ मीडिया संस्थान प्रदर्शन को कवर कर रहे थे, उन्हें देखकर इंद्रजीत हक्के-बक्के रह गए और उन्होंने अंग्रेजी, हिंदी और पंजाबी में पोस्टर छपवाए जिन पर लिखा था, "ज़ी न्यूज़, रिपब्लिक, आज तक. हमें कवर मत करो. तुम फेक न्यूज़ हो. #गोदीमीडिया."

इंद्रजीत बताते हैं कि किसान सारी मीडिया से गुस्सा नहीं हैं बल्कि उनका गुस्सा मुख्यतः टीवी चैनलों पर है. वे कहते हैं, "यह बड़े और शक्तिशाली मीडिया संस्थान हैं और वह शालीनता से भी रिपोर्टिंग कर सकते थे. इन लोगों ने हालात और बिगाड़ दिए. इससे अच्छा तो यह होता कि उन्होंने हमारे बारे में कोई खबर ही न दिखाई होती." इंद्रजीत ने यह भी बताया कि ज़ी, रिपब्लिक और आज तक के संवाददाताओं का बहिष्कार करने के बारे में प्रदर्शनकारी किसानों के बीच एक आम सहमति बनती जा रही है.

वे कहते हैं, "हम मूर्ख नहीं हैं. “हम देखते आ रहे हैं कि अंजना ओम कश्यप और अर्णब गोस्वामी जैसे एंकर हमारे बारे में क्या कह रहे हैं. हमें उनका कोई कवरेज या मदद नहीं चाहिए."

रात के करीब 9:00 बजे तक "गोदी मीडिया" के खिलाफ गुस्सा आसमान छूने लगा था. वहां लगे काम चलाऊ मंच से कई अपील की गई कि किसी भी संवाददाता या पत्रकार से हाथापाई या उनकी कोई हानि न की जाए, केवल नम्रता से उन्हें वहां से चले जाने के लिए कहा जाए.

एक पंजाबी टीवी न्यूज़ चैनल के संवाददाता ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि उन्हें प्रदर्शन कवर करने में कोई दिक्कत नहीं आ रही है. अपनी पहचान न बताते हुए उन्होंने कहा, "मेरी नजर में मामला बिल्कुल सीधा साधा है. अपना काम करो, पत्रकार बनो और वह बताओ जो दिख रहा है. वैसे भी क्या यही पत्रकारिता नहीं है? हम स्थानीय पत्रकार तो पहले दिन से यही कर रहे हैं. हम स्थानीय संवाददाताओं के लिए यह प्रदर्शन दो महीने पुराना है, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया के लिए तीन से चार दिन पुराना नहीं."

न्यूजलॉन्ड्री ने बहुत से किसानों से बात की और उन सब ने यह माना कि हरियाणा और पंजाब के स्थानीय अखबारों और क्षेत्रीय न्यूज़ चैनलों ने उन्हें कवर करने में सराहनीय काम किया है. अर्शदीप सिंह कहते हैं, "अगर आप को पत्रकारिता सीखनी है तो स्थानीय पत्रकारों से सीखिए."

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