दैनिक जागरण का फर्जी नाद, लव जिहाद

देश के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अख़बार की भ्रामक और आगलगाऊ रिपोर्ट का सच.

WrittenBy:आयुष तिवारी
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19 सितंबर को भारत में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले हिंदी अख़बार दैनिक जागरण के दिल्ली संस्करण में एक खबर प्रकाशित हुई जिसका शीर्षक था, “लव जिहाद में गंवा चुके हैं एक बेटी, अब दूसरी पर भी खतरा.’ यह खबर दक्षिण दिल्ली के इलाके संगम विहार में घटी कुछ घटनाओं से संबद्ध थी.

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ख़बर की शुरुआत में लिखा है, “संगम विहार की तंग गलियों में लव जिहाद की जड़ें तेजी से पनप रही हैं.” खबर में बताया गया है कि पीड़ित परिवार जो की बिहार का रहने वाला है, की बड़ी बेटी को अपने जाल में फंसाकर ले गया धर्म विशेष का युवक, जिसका नाम शब्बीर है. अब पीड़ित की छोटी बेटी को भी शब्बीर, उसका भाई और उनके कुछ साथी लगातार परेशान कर रहे हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि दैनिक जागरण की रिपोर्ट कई मामलों में भ्रामक और तथ्यहीन है, खासकर “लव जिहाद” का आरोप. इसकी पहली वजह तो यही है कि इसमें न तो कथित पीड़िता लड़की से बातचीत है न ही पुलिस से. पुलिस और पीड़ित परिवार से बातचीत करने पर एकदम अलग ही कहानी सामने आती है.

46 वर्षीय शंकर और उनकी पत्नी गीता (दोनों नाम बदले हुए) अपने तीन बेटियों और एक बेटा के साथ संगम विहार में रहते हैं. ये मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं. 19 साल की बेटी आशा ( बदला नाम)  और 14 साल का बेटा जय ( बदला नाम)  मां-बाप के साथ रहते हैं. वहीं सबसे बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है. दूसरी बेटी पूनम जिसे ‘लव जिहाद’ का शिकार बताया जा रहा है, उसने हाल ही में दिल्ली युनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है.

जागरण की रिपोर्ट के अनुसार इसी साल अप्रैल में पूनम को तब इस्लाम धर्म अपनाने का लालच दिया गया जब वो गोविंदपुरी स्थित एक स्टोर में काम कर रही थी. स्टोर पर पूनम के साथ काम करने वाली एक मुस्लिम लड़की उससे इस्लाम पर बातें करती और उसने पूनम को दो-तीन ताबीज पहनने के लिए दिए. कुछ ही दिन में युवती ने पूनम की पहचान अपने चचेरे भाई शब्बीर से करा दी. इसके बाद दोनों को अपने घर ले जाने लगी. 16 अप्रैल की रात जब लड़की अपने घर लौटी तो उसके गले, कंधे व हाथ पर खरोंच व चोट के निशान थे. पूछने पर उसने बताया कि रिक्शे से गिरकर चोटिल हुई है. 17 अप्रैल की सुबह घर से जाने के बाद वह वापस नहीं आई. आखिर में जब परिजनों की पूनम से बात हुई तो उसने बताया कि वो शब्बीर नाम के लड़के से शादी कर चुकी है.

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इसके बाद पूनम के माता-पिता पुलिस के पास गए. जागरण की स्टोरी के अनुसार पुलिस ने पूनम और शब्बीर को थाने बुलाया और उनके बयान दर्ज किए. चूंकि दोनों वयस्क थे, इसलिए पुलिस ने आगे कोई कार्रवाई नहीं की.

जागरण के रिपोर्टर अरविंद द्विवेदी ने अपने स्टोरी के दौरान तीन कॉल रिकॉर्डिंग का जिक्र किया है. जिसमें शब्बीर और उसके दोस्त, पूनम और उसके मुस्लिम सहयोगी के बीच बातचीत शामिल है.

कॉल रिकॉर्डिंग के आधार पर जागरण का दावा है कि शब्बीर के दोस्तों को यह कहते सुना गया है कि पूनम को पुलिस के सामने अपना बयान नहीं बदलना चाहिए. उसे कहना चाहिए कि उसने अपनी मर्जी से घर छोड़ा. पुलिस स्टेशन में अपने माता-पिता से मिलने के बाद उसे अपना बयान नहीं बदलना चाहिए. यह रिकॉर्डिंग न्यूज़लॉन्ड्री के पास भी मौजूद है.

जागरण की रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया है कि कॉल रिकॉर्डिंग में जो शब्बीर से बात कर रहा है और उसे समझा रहा है कि पूनम को अपना बयान नहीं बदलना चाहिए, उसका नाम राज है. राज शब्बीर का पड़ोसी है. न्यूज़लॉन्ड्री ने जब राज के बारे में पता किया तो जानकारी मिली की वो हिन्दू है और शब्बीर का दोस्त है. जागरण ये बात अपनी स्टोरी में आसानी से छुपा ले जाता है.

एक दूसरे ऑडियो में पूनम एक पुलिस अधिकारी से यह कहती है कि उसने अपनी मर्जी से अपना घर छोड़ा था. लड़के का परिवार बुरा नहीं मानता, लेकिन मेरा परिवार मुझे परेशान कर रहा है. जागरण की रिपोर्ट में यह जानकरी भी गायब है.

दरअसल ऑडियो रिकॉर्डिंग में पूनम द्वारा कही गई बातें उनके और उनके परिजनों के रिश्ते के रूप में देखा जाना चाहिए था जिसमें उसे सलाह दी जा रही है कि अपने परिवार के दबाव में न आए. जबकि जागरण का कहना है कि उस पर दबाव बनाया जा रहा था.

जागरण की रिपोर्ट में हिन्दू लड़की और मुस्लिम लड़के से होने वाली शादी, करने के लिए दबाव बनाने की बात पूरी तरह से लड़की के पिता की तरफ से लिखा गया है. जिसके जरिए अख़बार को मामले को ‘लव जिहाद’ का नाम देने में आसानी हुई है.

सच्चाई क्या है?

मामले की सच्चाई जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने पूनम से मुलाकात की. संगम विहार में अपने माता-पिता के कमरे से महज दो सौ मीटर की दूरी पर अपने छोटे से घर में रह रही पूनम ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वह शब्बीर के घर अपने मन से गई थी. बगल में बैठे पूनम का पति शब्बीर, जो इलाके में सुबह का दूध पहुंचाता है, बीच में कहता है,  “ये मुझे लेकर आई है, ना कि मैंने इसे भगाया.’’

पूनम बताती हैं, ‘‘उसके परिजन इसी साल जनवरी से सरकारी नौकरी करने वाले एक बुजुर्ग शख्स से उसकी शादी करना चाह रहे थे. उस शख्स को सबसे पहले पूनम की बड़ी बहन से मिलवाया गया, जो 27 साल की है, लेकिन उसने पूनम से शादी करने की इच्छा जताई थी.’’

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अपने पति के साथ पूनम 

पूनम सरकारी नौकरी करने वाले बुजुर्ग शख्स से शादी नहीं करना चाहती थी. जागरण की रिपोर्ट के अनुसार पूनम, शब्बीर को केवल दो सप्ताह से जानती थी लेकिन हमने पाया कि दोनों एक-दूसरे को पिछले चार साल से जानते हैं. पूनम के एक पड़ोसी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘दोनों के बीच दो साल से प्रेम था और यह बात मुहल्ले का बच्चा-बच्चा जानता था.’’

लेकिन पूनम इस बात से भलीभांति वाकिफ थी कि उसके परिजन उसे किसी मुस्लिम शख्स से शादी नहीं करने देंगे. पूनम कहती हैं, “मेरे परिजन मुसलमानों से नफरत करते हैं. मुझे पता था कि वे मेरे रिश्ते को कबूल नहीं करेंगे.’’

पूनम के पिता से बातचीत के बाद लगता है कि उसका ऐसा सोचना सही भी था. शंकर कहते हैं, ‘‘हम मुलसमानों को पसंद नहीं करते. यहां तक की हम उन्हें हम अपने घर में प्रवेश तक नहीं करने देते हैं.’’

तीन दशक पहले बिहार से रोजी-रोटी के लिए दिल्ली आए शंकर नोएडा स्थित एक कपड़े की कंपनी में काम करते हैं जहां उन्हें दस हज़ार महीने की पगार मिलती है. शंकर अफ़सोस जताते हुए कहते हैं, ‘‘मैंने अपनी बेटी को आज़ादी दी और वो एक मुस्लिम युवक के साथ भाग गई. मोदीजी कहते हैं ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’. हमने ऐसा किया और जिसका अब अफ़सोस हो रहा है.’’

पूनम के घर से जाने के बाद उनकी मां की तबीयत खराब रहती है. वो उदास होकर कहती हैं, ‘‘अगर वह एक अच्छे मुस्लिम परिवार में जाती तो भी मैं खुद को समझा लेती, लेकिन वो अपराधी किस्म के लोगों के यहां गई है. मैं जिस बेटी को 23 सालों तक पाली उससे आज 23 मिनट भी नहीं मिल पाती हूं.’’

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17 अप्रैल को जब पूनम की मां दूध खरीदने के लिए निकली थी उसी वक़्त पूनम घर से चली गई. और फिर नहीं लौटी. पूनम कहती हैं, “अगर मैं घर वापस जाती तो वे लोग मुझ पर काफी दबाव बनाते. मैं अपने मां से मिलूंगी पर अभी हालात मिलने के नहीं है.’’

क्या आप इस्लाम धर्म अपना कर शादी कर चुकी हैं. इस सवाल के जवाब में पूनम कहती हैं, ‘‘हां, अब मैं मुस्लिम हूं. मैंने इस्लाम धर्म अपना लिया है. ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं यहां रहना चाहती हूं. हम लोग शादी के लिए कोर्ट गए, लेकिन मेरे माता-पिता ने मेरे पहचान पत्र और बाकी कागजात के साथ कोर्ट में आने से इनकार कर दिया. जिसके बाद हम हरियाणा के पानीपत के एक मस्जिद में जाकर 26 अप्रैल को निकाह कर लिए.’’

अप्रैल महीने के आखिर में पूनम के परिजन पुलिस स्टेशन गए और अपनी बेटी के कथित अपहरण के बारे में बताया. जिसके बाद पुलिस द्वारा शब्बीर और पूनम को थाने में बुलाया गया. संगम विहार थाने के एसएचओ योगेश मल्होत्रा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘परिजनों के आरोप के बाद हमने दोनों को थाने बुलाया था जहां दोनों ने कहा कि वे साथ रहना चाहते हैं.’’

इस पूरे मामले को जागरण ने ‘लव जिहाद’ लिखा है. यह जानकर पूनम अजीब सा चेहरा बना लेती है. वहीं शब्बीर इस पर थोड़ी नाराजगी दर्ज करते हुए कहता हैं, ‘‘मेरी अपनी दो बहनें हिन्दू लड़कों के साथ चली गई. तो इसे क्या ‘लव जिहाद’ का बदला कहा जाए?” उसमें से एक बहन जीनत, वहीं है जिसका जिक्र जागरण की स्टोरी में पूनम के साथ काम करने वाली लड़की के रूप में हुआ है. जो कथित तौर पर पूनम को इस्लाम का ज्ञान देती है.’’

जागरण की स्टोरी में बताया गया है कि पूनम के साथ जीनत  गोविन्दपुरी के एक स्टोर में काम करने जाती थी और उसी दौरान उसने पूनम को इस्लाम के बारे में बताया और अपने भाई शब्बीर से मिलवाई. जबकि न्यूज़लॉन्ड्री ने जब उस गोविन्दपुरी स्थित स्टोर मालिक से बात की तो उन्होंने जीनत के दुकान पर काम करने की जानकारी को गलत बताया. पूनम के पिता जिन्होंने जागरण को जीनत को स्टोर पर काम करने की जानकरी दी है, न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं कि जीनत स्टोर पर काम करती थी यह जानकरी स्टोर के मालिक ने उनके एक रिश्तेदार को दिया था. रिश्तेदार से उन्हें यह जानकरी मिली थी.

दूसरी लड़की के साथ छेड़छाड़

जागरण की स्टोरी में दावा किया गया है कि पूनम के शब्बीर के साथ जाने के बाद अब उसकी छोटी बहन आशा को शब्बीर के भाइयों और उसके दोस्तों द्वारा परेशान किया जा रहा है. कथित तौर पर उससे छेड़छाड़ करने, अपहरण करने और उस पर तेजाब फेंकने की धमकी दी जा रही है.

पूनम की मां  इस आरोप को दोहराते हुए कहती हैं, ‘‘शब्बीर और दूसरे अन्य लोग उसके घर के पास आकर ड्रग्स लेते हैं और उनके परिवार के लोगों को परेशान करते हैं. एक दफा मुझे चाकू दिखाकर घर में घुसने की कोशिश की. उन्होंने मेरी छोटी बेटी आशा को कहा कि हमने तुम्हारी बड़ी बहन को भगा लिया अब तुम्हारी बारी है.’’

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बीते 6 मई को संगम विहार पुलिस ने शब्बीर, उसके भाई जाहिद और उसके दोस्त फिरोज के खिलाफ एफआईआर दर्ज की. शंकर परिवार ने पुलिस को एक वीडियो उपलब्ध कराया जिसमें उनके घर के बाहर जाहिद और फिरोज जोर से चिल्लाते नजर आते है. इसके बाद पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया, लेकिन उन्हें स्थानीय अदालत ने 17 दिनों के बाद जमानत दे दी.

पुलिस सूत्रों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि आरोपियों को इसलिए जमानत मिल गई क्योंकि शंकर परिवार अदालत में अपने दावे को साबित नहीं कर सका. सूत्रों ने बताया कि अदालत में न्यायाधीश ने कहा कि आरोपी पड़ोसी हैं. और पड़ोसियों का घर के आसपास जाना किसी का उत्पीड़न नहीं है.’’

शंकर परिवार इस मामले में पुलिस की निष्क्रियता के तरफ इशारा करता है. अपनी छोटी बेटी आशा को कथित तौर पर परेशान करने और भगा लेने जाने की धमकी के तुरंत बाद परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीब आ गया है. आरएसएस के सदस्यों ने शंकर परिवार को पुलिस से संपर्क करने और प्राथमिकी दर्ज करने में मदद की थी. उन्होंने ने ही इस मामले के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली पुलिस को एक ईमेल भेजने की सलाह दी.

जो ईमेल प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और दिल्ली पुलिस को भेजा गया है उसका विषय है ‘‘ मुस्लिम लड़के (शब्बीर) द्वारा मेरी बेटी को बहला-फुसलाकर जबरन अपने घर में कैद करने के संबंध में’’. ईमेल में कहा गया है कि पूनम का शब्बीर द्वारा ब्रेनवाश किया गया. जिसमें संगम विहार पुलिस स्टेशन के जांच अधिकारी अजय कुमार यादव ने उनकी मदद की.

ईमेल के बाद दिल्ली पुलिस के दक्षिणी जोन के जॉइंट कमिश्नर को मामले की जांच करने के आदेश दिए गए.

इस पूरे विवाद के बाद शंकर के दोनों बच्चे आशा और जय आरएसएस में शामिल हो गए. आशा तो जून महीने में लाजपत नगर में दो सप्ताह चले आरएसएसके शिविर में रहकर आ चुकी हैं, वहीं जय पास के शाखा में शामिल होता है.

दो सप्ताह बाद आरएसएस की शिविर से लौटी आशा न्यूज़लॉन्ड्री को बताती हैं, ‘‘वहां हमें बताया जाता है कि अपनी रक्षा कैसे करें. इसके अलावा देशभक्ति भी सिखाई जाती है.’’

निष्कर्ष

दैनिक जागरण की संगम विहार में “लव जिहाद” की स्टोरी एक मनगढ़ंत कहानी जैसा है. लेकिन इस तरह की कहानियों में भी मुख्य किरदारों को बोलने-सुनने का मौका दिया जाता है विशेषकर इसके केंद्रीय पात्र को. जागरण की स्टोरी में केंद्रीय पात्र पूनम है. लेकिन रिपोर्टर ने पूनम से बात करने की जहमत तक नहीं उठाई. पूरी स्टोरी में पूनम के बदले उनके पिता बोल रहे हैं. पूनम से बात करने पर उसके पति के खिलाफ लगाए गए अधिकांश आरोप झूठे निकले. जागरण की रिपोर्ट, वास्तव में पूनम के पिता शंकर के अपने पूर्वाग्रहों से भरी हुई है.

भारत में सबसे ज्यादा पढ़े जाने का दावा करने वाला अख़बार ने पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों को भुलाकर एक भ्रामक स्टोरी प्रकाशित किया जिससे बचा जा सकता था, खासकर ऐसी ख़बर से जिससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है.

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