खेल-खेल में बड़े खेल के शिकार हुए पांंड्या और राहुल

हार्दिक पांड्या का अभिजात्य ऐरोगेंस में यह कहना कि चीयरलीडर्स उन्हें आकर्षित नहीं करती हैं, चीयरलीडिंग का काम करने वाली लड़कियों को नीची नज़र से देखने की कोशिश है.

WrittenBy:स्वाति अर्जुन
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भारतीय क्रिकेट टीम के दो खिलाड़ी ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या और केएल राहुल को बीच दौरे से ऑस्ट्रेलिया से भारत लौटना पड़ा है. यह भारत के 82 साल के क्रिकेट इतिहास में दूसरी बार हुआ, जब विदेश दौरे से किसी खिलाड़ी को अनुशासनात्मक कार्रवाई कर उसे बीच दौरे से वापस भेज दिया गया. इससे पहले ऐसा क्रिकेटर लाला अमरनाथ के साथ हुआ था, जिन्हें 1936 में ब्रिटिश भारत की क्रिकेट टीम के, तत्कालीन कप्तान विजयनगरम के राजा विज्जी के साथ बहस करने के कारण, बीच दौरे से वापस भेज दिया गया था.

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हार्दिक पांड्या और लोकेश राहुल को पहले ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शनिवार को हुए पहले वनडे मैच से बाहर कर दिया गया था. प्रशासकों की समिति (सीओए) की सदस्य डायना एडुल्जी ने पांड्या और राहुल के खिलाफ ‘आगे की कार्रवाई तक निलंबन’ की सिफारिश की थी जिसे मान लिया गया है. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा है कि दोनों के खिलाफ़ अंतिम फैसला लीगल काउंसल की सलाह के बाद ही लिया जाएगा. दोनों पर भारतीय क्रिकेट की साख पर धब्बा लगाने, उसे बदनाम करने, क्रिकेटरों की छवि को ख़राब करने का आरोप लगा है.

मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक करण जौहर के टीवी शो ‘कॉफी विद करण’ में केएल राहुल और पांड्या ने महिलाओं के बारे में, उनके साथ बिताए पलों, उनके बारे में वे क्या सोचते हैं और अपने सेक्स जीवन से जुड़ी कुछ तथाकथित सनसनीखेज़ स्वीकारोक्तियां की थी.

करण जौहर का ये शो सेलेब्रिटीज़ की निजी ज़िंदगियों से जुड़ी जानकारियों को, मसालेदार बनाकर जनता के सामने पेश करने के लिए ही जाना जाता है. इसमें कहीं न कहीं करण जौहर का इंडस्ट्री में ए-लिस्टर होना, सबसे सफल फिल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर होना काफी मायने रखता है. ऐसी धारणा है फिल्म इंडस्ट्री में कि अगर कोई कलाकार करण के शो में मेहमान बनकर आ जाता है तो वो न सिर्फ़ उस ए-लिस्ट वाले क्लास का हिस्सा बन जाता है बल्कि उसकी किस्मत भी खुल जाती है.

बीसीसीआई की तमाम चिंताओं में एक डर इस बात का भी है कि पांड्या और राहुल ने जिस तरह के खुलासे करण के शो में किए हैं– उससे वो बहुत आसानी से मैच फिक्सिंग माफ़िया के निशाने पर आ सकते हैं और उनके द्वारा बिछाए गए ‘हनी ट्रैप’ में फंस सकते हैं.

भारत में क्रिकेटरों की छवि कमोबेश फिल्म स्टार्स जैसी ही होती है और उनकी फैन फॉलोइंग भी बड़ी तादात में होती है. जाहिर है हार्दिक और राहुल की भी अच्छी-खासी फैन फॉलोइंग मौजूद है. करण के शो में बातचीत के आवेग में हार्दिक ये बात भूल गए कि, किसी भी विषय पर अलोकप्रिय सोच रखना एक बात होती है और उस सोच का भौंडा प्रदर्शन करना दूसरी बात. जिस तरह से उन्होंने अपने सेक्स जीवन को कलरफुल करके पेश करने की कोशिश की, उसमें वो जाने-अनजाने ही महिला, उसकी डिग्निटी और उसके शरीर का अपमान कर गए.

जब हार्दिक एक अभिजात्य ऐरोगेंस से ये कहते हैं कि चीयरलीडर्स (आईपीएल में काम करने वाली लड़कियां) उन्हें आकर्षित नहीं करती हैं, तब वे उन लड़कियों का वर्गीकरण कर, उन्हें हेय दृष्टि से दिखाने की कोशिश करते हैं जो चीयरलीडिंग का काम करती हैं. जबकि– चीयरलीडर्स लड़कियां भी वहां अपना काम ही कर रहीं होती हैं. अगर वे उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं तो ये सवाल उठता है कि– क्या पूरे आईपीएल क्रिकेट प्रशासन का चीयरलीडर्स को लेकर यही रुख़ है?

पांड्या की दूसरी गलती ये है कि अपनी त्वचा के रंग और नैन-नक्श के आधार पर वे ख़ुद को अंदर थोड़ा ‘ब्लैक’ जीन मानते हैं, यानि कैरिबियाई या वेस्टइंडियन. हम सब इस बात को जानते हैं कि चाहे ब्लैक अमेरिकी हों या कैरिबियाई, उनका हाव-भाव, रहन-सहन और व्यवहार एशियाई या ब्रिटिश खिलाड़ियों से अलग होता है. क्रिस गेल इसका एक उदाहरण हैं, जो अक्सर क्रिकेट फील्ड के बाहर अपनी हरकतों के कारण सुर्खियों में रहते हैं. लेकिन, आज तक उनके क्रिकेट बोर्ड ने भी फील्ड के बाहर की उनकी विवादित हरकतों का साथ नहीं दिया है. पांड्या की यह बात एक नस्ली टिपप्णी की तरह सामने आयी, मानो मैं ब्लैक हूं तो, मेरे लिए इस तरह का व्यवहार करना सामान्य है.

शो के दौरान बातचीत के आवेग में उन्होंने अपने विचारों में अपने माता-पिता को भी शामिल कर लिया, पता नहीं इसमें कितना सच और कितना कल्पना मिली हुई थी. पांड्या के मुताबिक उनके मां-बाप इस व्यवहार से लगभग सहमत हैं– क्योंकि वे एक बड़े क्रिकेटर हैं.

निष्कर्ष यह कि अगर आप सफल हैं तो आपके माता-पिता भी आपकी जायज-नाजायज हरकतों का समर्थन करेंगे. यहां दिक्कत निजी और सार्वजनिक दायरे का है. पांड्या जैसे क्रिकेटर, जिन्हें हमारे देश में हज़ारों-लाखों बच्चे रोल-मॉडल मान लेते हैं, उनका इस तरह से निजी जीवन को सार्वजनिक प्रदर्शन की चीज बनाने के दो गलत संदेश गए. पहला ये कि– अगर आप सफल हैं तो औरतों के प्रति किसी भी तरह की आपत्तिजनक राय और भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं. दूसरा ये कि जब आप ऐसा करते हैं तो आपका परिवार, दोस्त, रिश्ते, समाज सब उसे स्वीकार कर लेते हैं. हार्दिक पांड्या को एक सफल क्रिकेटर होने के नाते कुछ विशेषाधिकार मिले हुए. उन्हें उन अधिकारों का तो भान है, लेकिन उन अधिकारों का इस्तेममाल कैसे करना है, उसके लिए क्या एहतियात बरतने हैं, उन अधिकारों के इस्तेमाल की न्यूनत अर्हताएएं क्या हैं, यह उन्हें नहीं पता.

इसका खामियाजा भी उन्हें उठाना पड़ रहा है. इसकी शुरूआत उनकी टीम से ही हो गई है. कप्तान विराट कोहली ने भी दोनों खिलाड़ियों का साथ देने से इंकार कर दिया है. पूर्व क्रिकेटर हरभजन सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि वे उस बस में अपनी बीवी-बेटी के साथ यात्रा नहीं कर सकते, जिसमें पांड्या और राहुल होंगे.

इसका व्यवसायिक असर भी दिखने लगा है. जिलेट और प्यूमा जैसी कंपनियों ने इन दोनों खिलाड़ियों के साथ अपना अनुबंध खत्म करने की घोषणा कर दी है. दोनों कंपनियों ने साफ किया है कि वे एक ब्रांड के तौर पर ऐसी सोच का समर्थन नहीं करते हैं.

ऐसा मानने वाले भी हैं जो मानते हैं कि इस मामले में पांड्या को बलि का बकरा बनाया गया है. अगर, कोई महिला कई पुरुषों के साथ संबंध होने की स्वीकरोक्ति करती तो शायद उसे सबसे बड़ी क्रांतिकारी कहा जाता. ऐसे लोगों को अब मिसोजिनिस्ट कहा जा रहा है. उनके मुताबिक पांड्या जो इस समय कुंवारे हैं, बस अपनी निजी ज़िंदगी की बातें खुलकर कह रहे हैं. लेकिन मामला इतना सीधा नहीं है.

प्रसिद्ध नारीवादी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने बड़े ही गंभीर दर्शकों के बीच कहा था कि हर औरत को कम से कम 300 मर्दों के साथ संबंध बनाना चाहिए तो उनके खिलाफ़ फ़तवा जारी कर दिया गया था. उन्हें देश छोड़ना पड़ा था, उन्हें हमारे ही देश में शरण नहीं मिली थी. जबकि, उनकी कही बात एक बेहद गंभीर किस्म की जेंडर-सेंट्रिक-बहस का हिस्सा थी.

सार ये है कि जब महिला- ऐसी बातें करती है तो उसकी ‘स्लट-शेमिंग’ शुरू हो जाती है, उसपर चारित्रिक हमले होते हैं, उसके बारे में दस तरह की बातें होती हैं. अगर हम मनोरंजन इंडस्ट्री की ही बातें करें तो हर दूसरे दिन महिलाओं के कपड़ों, बिकिनी, मेकअप, उनके पार्टनर्स और उनकी फिगर को लेकर ट्रोलिंग होती है. जो कई बार अनुचित भी होती है.

अब बात आती है बीसीसीआई की- कि क्या बीसीसीआई इस पूरे मामले में मॉरल पुलिसिंग कर रही है? इसका जवाब हां भी है और ना भी. ज़्यादा दिन नहीं हुए जब #मीटू कैंपेन के दौरान, बीसीसीआई के सीईओ राहुल जौहरी पर साथी महिलाकर्मी के साथ अभद्रता के आरोप लगे थे, लेकिन बोर्ड ने जिस तरह से उस मामले को रफादफा किया और जौहरी को क्लीनचिट दी वो किसी भी तरह से अच्छा तो नहीं कहा जाएगा.

भले ही राहुल जौहरी का अपराध साबित नहीं हुआ, लेकिन जिस संवेदनहीनता के साथ पूरे मामले को हैंडल किया उससे यही लगा कि बोर्ड की दिलचस्पी मामले रफादफा करने की है. ऐसे में ये सवाल लाज़िमी है कि– क्या पांड्या को एक आसान शिकार बनाया जा रहा है?

ये सही है कि किसी भी संस्थान की तरह ये बीसीसीआई की ज़िम्मदारियों में आता है कि वो खिलाड़ियों के प्रोफेशनल और फिज़िकल वर्क-स्पेस में खेल और व्यवहार से जुड़े नियम-क़ायदे लागू करे. लेकिन क्या इसके साथ उनकी ज़िम्मेदारी ये नहीं बनती है कि वे अपने क्रिकेटरों को जेंडर संवेदनशील बनाएं, उन्हें सिर्फ़ खेल नहीं बल्कि अन्य विषयों पर भी मीडिया और करण जौहर जैसे निर्माता बिज़नेसमैन के सवाल समझने और झेलने लायक बनाएं. उन्हें मीडिया और रिलेशनशिप मैनजमेंट के भी गुर सिखाएं. आख़िर यह वही बोर्ड है जिन्होंने विदेश दौरों के दौरान खिलाड़ियों को अपनी पत्नी और पार्टनर्स के साथ रहने की इजाज़त दे रखी है. ऐसे में पांड्या के साथ बोर्ड का व्यवहार भी कई सवालों के घेरे में आता है.

इस पूरे वाकए से जो सबक पांड्या या राहुल या किसी भी अन्य व्यक्ति को मिलता है वो सिर्फ़ ये है कि आप सार्वजनिक स्थलों पर जिन औरतों के बारे में बातें करते हैं, अगर उस वक्त़ वो औरत वहां मौजूद नहीं है तो एक दायरा बनाकर रखें, उनका अपमान न करें उन्हें ऑब्जेक्टिफाई न करें. क्योंकि जब आप देश का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो अपने साथ देश की भावनाओं को भी खेल के मैदान में लेकर जाते हैं.

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