दिनों दिन कमतर हो रहे पत्रकारिता के स्पेस में एक और कील ठोंकी गई है सत्ताधारी भाजपा की तरफ से.
सुप्रीम कोर्ट ने रविवार, 14 जून को वरिष्ठ पत्रकार और एचडब्ल्यू न्यूज़ नेटवर्क के कंसल्टिंग एडिटर विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल प्रदेश में दर्ज हुई एफआईआर के मामले में विशेष सुनवाई करते हुए पत्रकार की गिरफ्तारी पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी. न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, मोहन एम शांतन गौदर और विनीत सरन की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया. मामले की अगली सुनवाई 6 जुलाई को होगी.
लेकिन कोर्ट ने पत्रकार विनोद दुआ की विभिन्न राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने की मांग वाली याचिका पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. इस दौरान पीठ ने राज्य सरकार से जांच की स्थिति रिपोर्ट मांगी है और कहा कि हिमाचल प्रदेश पुलिस के जांच अधिकारी कानून के अनुसार पूछताछ करने से 24 घंटे पूर्व दुआ को सूचना देंगे और दुआ से भी जांच में सहयोग करने के लिए कहा है.अदालत ने केंद्र और हिमाचल प्रदेश सरकार से इस मामले में विस्तृत जवाब भी मांगा है.
दरअसल विनोद दुआ के खिलाफ कथित सांप्रदायिक नफरत फैलाने के आरोप में हिमाचल प्रदेश के कुमार सेन पुलिस स्टेशन में बीजेपी नेता अजय श्याम की शिकायत पर 11 जून को राजद्रोह समेत कई धाराओं में मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद हिमाचल प्रदेश पुलिस तत्परता दिखाते हुए 12 जून को विनोद दुआ के दिल्ली स्थित घर पहुंच गई और उन्हें 13 जून को कुमार सेन पुलिस थाने में हाजिर होने का नोटिस पकड़ा दिया.
गिरफ्तारी से बचने और एफआईआर को खत्म कराने को लेकर दुआ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. पुलिस के नोटिस में आरोप है कि दुआ ने एचडब्ल्यू न्यूज़ नेटवर्क पर प्रसारित होने वाले अपने यूट्यूब शो “द विनोद दुआ शो” के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वोटबैंक की राजनीति के लिए मौत और आतंकी हमलों का इस्तेमाल करने का झूठा दावा किया है. साथ ही शिकायत में दुआ पर फेक न्यूज फैलाने तथा सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ हिंसा भड़काने का आरोप भी है.
हिमाचल प्रदेश के कुमार सेन पुलिस स्टेशन के एसएचओ केसी ठाकुर से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की. ठाकुर ने कहा, “हम फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार इस मामले की जांच कर रहे हैं, इन पर मुख्यत: तो राजद्रोह का मामला ही दर्ज किया है. क्योंकि कोर्ट ने अभी दुआ की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है तो उनकी कोई गिरफ्तारी नहीं होगी. कोर्ट अब 6 जुलाई को इस मामले की सुनवाई करेगा, तब तक हम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार अपनी जांच आगे बढ़ा रहे हैं. जो भी निकल कर आएगा, बता दिया जाएगा.”
दुआ के खिलाफ हाल के दिनों में एफआईआर दर्ज करने का सिलसिला देखने को मिला है. पहले दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता नवीन कुमार ने दुआ पर कथित तौर पर ‘दिल्ली दंगों को लेकर गलत रिपोर्टिंग और शाहीन बाग के बारे में गलत सूचनाएं देने का आरोप लगा कर दिल्ली में उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था. नवीन ने ही दुआ के एचडब्ल्यू न्यूज़ चैनल पर प्रसारित होने वाले ‘द विनोद दुआ शो’ के माध्यम से ‘फर्जी सूचनाएं फैलाने’ का आरोप लगाया था. साथ ही उनकी गिरफ्तारी की मांग भी की थी. जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने दुआ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 290, 505 और 505 (2) के तहत मामला दर्ज किया था.
इसकी जानकारी खुद विनोद दुआ ने 5 जून को अपने फेसबुक पेज पर दी थी. फेसबुक पर दुआ ने लिखा, “प्रिय दोस्तों, बीजेपी ने दिल्ली पुलिस में मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है. क्या मैं इतना महत्व रखता हूं?”
इस एफआईआर को रद्द करवाने के लिए विनोद दुआ ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. जिसमें दुआ ने पुलिस की कथित दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई को लेकर जांच कराने और अपने अधिकारों का उल्लंघन करने को लेकर एक करोड़ रुपए के मुआवजे की मांग भी की थी.
इस पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति अनूप जयराम भवानी की एकल पीठ ने यह कहते हुए कि विनोद दुआ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए कोई भी प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता, एफआईआर पर रोक लगा दी थी. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि इसमें ऐसा कोई आरोप नहीं है और इस प्रसारण से विभिन्न समुदाओं के बीच नफरत या शांति में खलल नहीं पड़ता है. इस कारण अदालत ने दुआ को अग्रिम जमानत दे दी
हाईकोर्ट की इस रोक के दो दिन बाद ही हिमाचल प्रदेश पुलिस ने विनोद दुआ को नया समन थमा दिया.
भाजपा प्रवक्ता नवीन कुमार द्वारा विनोद दुआ पर एफआईआर के बारे में नवीन का कहना है, “दुआ ने अपनी मर्जी से गलत तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर जनता के सामने पेश किया है. जैसे, दिल्ली दंगों को उन्होंने प्रधानमंत्री और अमित शाह की शह पर कराना बताया और शाहीन बाग में शांतिपूर्ण धरने पर बैठी औरतों को बदनाम करने के लिए ये किया गया. इस तरह की बातें उन्होंने कहीं, जो बिल्कुल गलत हैं. और मैंने कई वीडियो क्लिप कोर्ट में दी है.”
कुमार बताते हैं, “अपने शो में दुआ ने कहा- कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के खिलाफ आतंकवादियों जैसी कार्यवाही होनी चाहिए थी, जो नहीं हुई. जबकि जो शाहीन बाग में शांतिपूर्ण धरने पर थे उन्हें पुलिस जानबूझकर झूठे मामलों में जेल में डाल रही है.”
लेकिन हाईकोर्ट ने तो खुद माना है कि इन शो में कोई भड़काऊ या आपत्तिजनक बात नहीं है. इसके जवाब में कुमार कहते हैं, “कोर्ट ने ऐसा माना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में अभी ये मामला सब ज्यूडिस है. लोअर कोर्ट में इन्होंने कहा, गिरफ्तार न किया जाए तो कोर्ट ने कह दिया गिरफ्तार नहीं करेंगे. हाईकोर्ट में भी अभी जुलाई में सुनवाई होनी है. और अगर दुआ कह रहे हैं कि उनके खिलाफ गलत एफआईआर कराई गई है, तो जांच होने दीजिए न, जांच होने में क्या प्रॉब्लम है. आपके पास प्रावधान है. ये कौन सा नियम है कि आप ही बोलो, आप ही तय करो और फिर आप ही ये कह दो के ये गलत है. जांच होने दो.”
नवीन कुमार खुद भी पत्रकार रहे हैं. ये सवाल करने पर कि आपने भी पत्रकारिता की है, क्या आपको नहीं लगता कि ये पत्रकार के बोलने की आजादी पर हमला है? इस पर नवीन कुमार कहते हैं, “मैंने 30 साल तक पत्रकारिता की है. इन 30 सालों में कभी भी कोई तोड़-मरोड़ किया, झूठा किया, लोगों को गुमराह किया या देश के प्रधानमंत्री या सरकार के खिलाफ जानबूझकर गलत रिपोर्ट की हो, ऐसा एक भी घटनाक्रम मुझे बता दें तो जो आप कहोगे, मैं जीवन में वो त्याग करने को तैयार हूं. पत्रकारिता करने का मतलब ये नहीं है कि आप झूठ बोलेंगे, और भ्रम फैलाएंगे. ये तो नहीं है कि आपको सर्टिफिकेट मिल गया आप देश के किसी भी कोने में जाकर लोगों को भड़काइए, दंगे कराइए. ये तो नहीं है ना.”
एडिटर्स गिल्ड पर बरसते हुए कुमार कहते हैं, “एडिटर्स गिल्ड है ना, मैं उसे गिल्ट कहता हूं, गिल्ड नहीं. उसे क्या करना चाहिए, जब ये लोग इस प्रकार की बात कर रहे थे, उसको जाकर इन्हें समझाना चाहिए था या नहीं चाहिए था. उन्हें कहना था कि आप गलत पत्रकारिता कर रहे हो, क्या उन्होंने ऐसा किया? केवल नेतागिरी करने के लिए संगठन नहीं होना चाहिए. पत्रकार अगर गलत दिशा में भटक जाए तो उसे सुधारने का काम भी होना चाहिए. पत्रकारिता का मतलब ये नहीं है कि आप राजद्रोह करना शुरु कर दें आपका कोई कुछ नहीं कर सकता. पत्रकारिता के अपने मानदंड हैं. सरकार की जिम्मेदारी को आईना दिखाना पत्रकारिता है. उसका दायित्व है कि अगर सरकार गलत करती है तो उसे आईना दिखाए. लेकिन ये नहीं कि सरकार गलत न भी करे, आप फर्जी फैक्ट इकट्ठा करो और बदनाम करो.”
तो आप ये कह रहे हैं कि ये सब फर्जी फैक्ट के आधार पर रिपोर्टें की हैं. इस पर कुमार कहते हैं, “तभी तो मुकदमा दर्ज हुआ, वर्ना क्यूं होता.”
क्या वाकई विनोद दुआ ने राजद्रोह के दर्जे का अपराध किया है. क्या पत्रकार का सरकार से सवाल करना वाकई ऐसा अपराध है जिसे राजद्रोह के दायरे में रखा जाय? क्या सरकार की नीतियों पर सवाल करना भी अपराध हो गया है? और क्या देश में मीडिया वाकई अब स्वतंत्र रह गया है? देश में पत्रकारों पर हमले और मामले दर्ज होने की घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ रही हैं. जिस पर देश-विदेश में भी चिंता जताई जा रही है. रिपोटर्स विदआउट बॉर्डर्स की मीडिया की आजादी की ताजा रैंकिग में हम पहले ही शर्मनाक रूप से 180 देशों में 142वें पायदान पर हैं.
3 जून को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश जस्टिस मार्कण्डेय काटजू और एडवोकेट अमील गुलजार ने भी प्रसिद्ध मैगजीन द वीक के अंक में “भारतीय उपमहाद्वीप में मीडिया की आजादी के दिन खत्म” शीर्षक से लेख लिखकर भारतीय मीडिया की आजादी और उस पर होने वाले हमलों पर आगाह किया था.
विनोद दुआ जैसे बड़े पत्रकार पर राजद्रोह जैसी धाराओं में की गई एफआईआर कहीं न कहीं उस लेख की पुष्टि करती है कि देश में मीडिया की आजादी एक हद तक छिन चुकी है. जो भी सरकार से सवाल करता है उसकी आवाज को किसी न किसी तरह दबाने की कोशिश की जा रही है.
विनोद दुआ पर हुई इन एफआईआर से देश के बड़े पत्रकारों में काफी गुस्सा है. और उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए इसे जाहिर भी किया. साथ ही विनोद दुआ को अपना खुला समर्थन दिया है.
एचडब्ल्यू न्यूज नेटवर्क जिससे विनोद दुआ इन दिनों जुड़े हुए हैं और जहां उन्होंने यह शो किया था, इसके मैनेजिंग एडिटर सुजीत नायर ने विनोद दुआ का पूरी तरह से समर्थन किया. और इससे जुड़ा एक वीडियो भी अपने चैनल पर पोस्ट किया.
संपादकों की शीर्ष संस्था ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने भी इस मामले पर चिंता जताई है.
गिल्ड की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता नवीन कुमार की शिकायत पर दिल्ली पुलिस द्वारा वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ विभिन्न धाराओं में एफआईआर दर्ज करना उनकी बोलने की आजादी और स्वतंत्रता के अधिकार पर एक बड़ा हमला है. इस पर आधारित एफआईआर उत्पीड़न का एक साधन है और यह ऐसी प्रक्रिया को शुरू करता है जो खुद एक सजा है.”
एडिटर्स गिल्ड ने इस तरह की प्रवृत्ति की कड़ी निंदा की है और पुलिस से अपील की है कि वह संविधान द्वारा दी गई इस आजादी का सम्मान करें, न कि ऐसा व्यवहार करे जिससे उसकी खुद की स्वतंत्रता पर सवाल उठने लगें.
साथ ही एडिटर्स गिल्ड ने देश के विभिन्न हिस्सों में पुलिस द्वारा पत्रकारों के खिलाफ विभिन्न आरोपोंमें संज्ञान लेकर उनके खिलाफ एफआईआर करने की बढ़ती घटनाओं को लेकर भी गहरी चिंता जताई है.
अपने खिलाफ दो-दो एफआईआर दर्ज होने पर विनोद दुआ न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट ने उस पर अभी फैसला सुना दिया है, 6 तारीख को फिर सुनवाई होगी. मामला अभी कोर्ट में है तो हमारा कहना कुछ उचित नहीं बनता. हमें उम्मीद है कि कोर्ट से हमें इंसाफ मिलेगा.”
विनोद दुआ आगे कहते हैं, “ये मामला सिर्फ मुझ तक सीमित नहीं है, बल्कि सारा मीडिया इसमें शामिल है. इसलिए हमने सुप्रीम कोर्ट से सारे मीडिया के लिए एक गाइडलाइन की मांग की है. ताकि उनको परेशान करने से रोका जाए. बेवजह पत्रकारों और मीडिया वालों पर एफआईआर न लगाई जाए. हमें उम्मीद है कि जो भी कोर्ट का निर्णय आएगा वह एक लैंडमार्क निर्णय होगा.”