घरेलू उड़ानों की शुरुआत: ज्यादा किराया और उड़ान रद्द होने से परेशान मुसाफिर

दो महीने बाद देश भर के एयरपोर्ट फिर से खुले. पहले दिन का सूरत-ए-हाल.

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
   

कोरोना संक्रमण को कम करने के मकसद से लगाए गए लॉकडाउन के पूरे दो महीने बाद सोमवार 25 मई से देश में घरेलू उड़ानों की इजाजत मिली जिसके बाद एयरपोर्ट पर चहल-पहल नज़र आई. मुसाफिर अपने घरों को लौटने के लिए बेताब दिखे.

दोपहर के 12 बज रहे हैं. इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के टर्मिनल थ्री के सामने फ्लाइट का इंतजार करने वालों की लम्बी भीड़ है. इन चेहरों पर इंतजार से ज्यादा घर पहुंचने की उत्सुकता नजर आती है. ज्यादातर लोग मज़बूरी में सफर करने की बात करते हैं.

कोरोना के डर के बीच जो लोग अलग-अलग शहरों से दिल्ली लौट रहे हैं उनके चेहरे पर घर वापसी की ख़ुशी आसानी से दिख जाती है. वहीं कुछ चहेरे हमें ऐसे भी मिले जिनपे मायूसी छायी थी. ये वो लोग थे जिनकी फ्लाइट अंतिम वक्त में रद्द होने की सूचना दी गई थी.

दो महीने के बाद दिल्ली का एयरपोर्ट खुला तो सबकुछ बदला-बदला नज़र आया. ज्यादातर लोग मास्क लगाकर ही वहां पहुंच रहे हैं. विमान कंपनियों द्वारा भी उन्हें मास्क और बाकी सुरक्षा के सामान उपलब्ध कराए जा रहे हैं.

टर्मिनल थ्री के जांच केंद्र के पास में दो मास्क और सेनेटाइजर की दुकानें भी खुल गई हैं. बड़े बैग स्कैनिंग मशीनें लगाई गई जिसमें सामान को सेनेटाइज किया जा रहा है. लोग खुद ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते नज़र आते हैं. जो लोग ऐसा नहीं कर रहे हैं, उन्हें पुलिस समझाती नजर आती है.

इसके अलावा पुलिस के कर्मचारी कंधे पर स्पीकर लेकर लगातार लोगों को आपस में दूरी बनाकर रहने की सलाह और हिदायत देते नज़र आते हैं.

मज़बूरी में महंगा सफर

दो महीने के इंतजार के बाद जब हवाई जहाज उड़ान भरने लगे तो उसके किराए ने कई लोगों को परेशान कर दिया. समान्य दिनों की तुलना में किराए में इजाफा कर दिया गया है, जिसका खामियाजा मुसाफिर भुगत रहे हैं.

बिहार के लखीसराय जिले के रहने वाले सौरभ कुमार दिल्ली के मुखर्जी नगर में सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हैं. दो महीने से दिल्ली में फंसे थे.

सौरभ बताते हैं, ‘‘जैसे तैसे काम चल रहा था. खाना बनाने वाली नहीं आ रही थी तो मजबूर में रोजाना दाल-चावल खाते थे. 19 मई को मेरे दादाजी का निधन हो गया. मुझे उसमें जाना था, लेकिन कोई साधन नहीं मिल पाया. ट्रेन का टिकट कराने की कोशिश किया लेकिन वो भी नहीं मिला.’’

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
खाली पड़े एयरपोर्ट

सौरभ आगे कहते हैं, ‘‘जैसे ही मुझे जानकारी मिली की 25 मई से हवाई जहाज काम करने लगेंगे तो मैंने टिकट करा लिया. मैंने अब तक प्लेन में सफर नहीं किया था, लेकिन ये पता है कि दिल्ली से पटना तक का किराया समान्य दिनों में 3 हज़ार से चार हज़ार रुपए होता था, लेकिन मेरा टिकट 9 हज़ार रुपए का पड़ गया. पर क्या कर सकते हैं. मज़बूरी है. अब दादाजी के श्राद्ध कर्म में पहुंच जाऊंगा.’’

मुम्बई के लिए फ्लाइट का इंतजार कर रहे सम्राट ने हमें बताया, ‘‘मुझे मुंबई जाना है क्योंकि मेरे भाई को हार्ट अटैक आया है. जिस दिन उन्हें अटैक आया उस दिन मैं गाड़ी से जाना चाह रहा था पर जा नहीं पाया. जब हवाई जहाज चलने की जानकरी मिली तो मैंने टिकट करा लिया. हालांकि अब उनकी स्थिति बेहतर है, लेकिन ऐसे हालात में मुझे वहां पहुंचना ही पहुंचना है.’’

सम्राट किराये को लेकर कहते हैं, ‘‘जहां तक किराये की बात है तो अभी मेरी जो स्थिति है वैसे में मैं पैसे नहीं देख रहा हूं. एक तरफ मेरा भाई बीमार है. ऐसे में मैं पैसे का ख्याल नहीं कर सकता हूं. हालांकि समान्य दिनों की तुलना में ज्यादा किराया वसूला जा रहा है. समान्य दिनों में मुंबई से दिल्ली आने में 3000-3500 का किराया लगता था, लेकिन अभी जो टिकट मिल रहा है वो 6,500 है. पर जाना है तो क्या ही किया जा सकता है.’’

उड़ीसा के भुवनेश्वर के रहने वाले 54 वर्षीय आरिफ गुजरात के अहमदाबाद में एक कंपनी में सिलाई का काम करते थे. उन्हें घर पर कुछ ज़रूरी काम से लौटना था, लेकिन लॉकडाउन के दौरान उन्हें जाने का कोई साधन नहीं मिला जिस वजह से वे वहां फंस गए. जैसे ही हवाई जहाज चलने की शुरुआत हुई वे अहमदाबाद से दिल्ली पहुंचे और यहां से उन्हें भुवनेश्वर जाना है.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए आरिफ बताते हैं, ‘‘मैं अहमदाबाद में एक कंपनी में सिलाई का का करता था. काम के आधार पर महीने का वेतन मिल जाता था. लॉकडाउन लगने के बाद से काम बंद हो गया. जो कमाकर बचाया था वो खाकर खर्च कर दिया. घर पर बहुत ज़रूरी काम है जिसका जिक्र मैं आपसे नहीं कर सकता, लेकिन जाना था तो घर से पैसे मंगाकर जा रहा हूं. कुल 14 हज़ार रुपए किराए किराए के रूप में खर्च हो रहे हैं. गांव से लड़के कर्ज लेकर पैसे मुझे भेजे हैं.’’

आरिफ ज़िन्दगी में पहली बार हवाई जवाज पर सफर किए वो भी कर्ज के पैसे से.

‘28 मई तक एयरपोर्ट पर ही बैठूंगा’

केंद्र सरकार की जल्दबाजी और बिना राज्यों से पूरी बातचीत किए हवाई जहाजों की आवाजाही की घोषणा का असर यहां साफ़ दिखा. पहले ही दिन यानी सोमवार को देशभर में 1,162 उड़ानों में से 630 फ्लाइट रद्द हो गई. आईजीआई पर 82 फ्लाइट रद्द हुई.

उड़ाने रद्द होने के पीछे हाल ही में आया अम्फान तूफान और कुछ राज्यों द्वारा इसकी इजाजत नहीं देने और कम जहाजों के उतरने की इजाजत देना रहा.

फ्लाइटस की जानकारी वाला बोर्ड

पहले तो टिकट बुक करने की सुविधा दे दी गई. तमाम लोगों ने टिकट बुक भी कर लिया. लेकिन जब उनकी उड़ाने रद्द हो गई तो उन्हें समय रहते इसकी सूचना नहीं दी गई. ऐसे में ये लोग एयरपोर्ट पर पहुंच गए. एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद जब इन्हें पता चला कि उनकी फ्लाइट रद्द हो गई है, ऐसे तमाम यात्री परेशान नजर आए.

पश्चिम बंगाल के मालदा टाउन के रहने वाले शरीफुल और उनके दो तीन साथियों के लिए फ्लाइट का रद्द होना एक मुसीबत की तरह आया है.

टर्मिनल थ्री के एक चेयर पर थके-हारे बैठे 21 वर्षीय शरीफुल बताते हैं कि वे और उनके साथी जनवरी महीने में हरियाणा के सोनीपत में बिजली का काम करने के लिए आए थे. यहां अभी दो महीने ही काम किए थे. इसके बाद लॉकडाउन लग गया. जिसके साथ काम कर रहे थे उसने काम से निकाल दिया और पैसे भी नहीं दिए. दो महीना बहुत मुश्किल से बीता है. कई दिनों तक तो एक वक्त का ही खाना खाकर रहना पड़ा.’’

शरिफुल कहते हैं, “लोग पैदल जा रहे थे तो हमने भी सोचा कि पैदल ही निकल जाएं लेकिन मेरा गांव काफी दूर है. ऐसे में हम जैसे तैसे यहां रुके. लेकिन जब हवाई जहाज चलने की जानकरी खबरों में मिली तो हमने अपने-अपने घरों से छह हज़ार रुपए मंगाए और सोनीपत में ही एक पास के दुकानदार से टिकट कराए. 5400 रुपए का टिकट मिला. हम आज जब यहां पहुंच रहे थे तो आधे घंटे पहले पता चला कि हमारी फ्लाइट कैंसल हो गई है. अब समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें. कमरे पर जा नहीं सकते. वहां जाने का और रहने का पैसा भी नहीं हमारे पास. मैं 28 मई तक अब यहीं बैठूंगा.’’

शरिफुल के साथी एमडी रफीक, डालिम और रकीब चारों की उम्र 22 साल से कम है और परिवार की बदहाली के कारण वे मजदूरी करने को विवश हुए. लेकिन अब घर लौटना चाहते हैं जिसका कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है.

दो महीने से फंसे लोग अपनों से मिलने के उम्मीद में एयरपोर्ट पर पहुंच जा रहे हैं और यहां पहुंचने के बाद जब उन्हें फ्लाइट कैंसल होने की सूचना मिलती है तो वे उदास होकर लौट जाते हैं. अभी एयरपोर्ट आने और जाने में भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

अपने चार साथियों के साथ शरिफुल एयरपोर्ट पर इंतजार करते

सबके चेहरे पर डर का भाव

एयरपोर्ट पर काम करने वाले तमाम कर्मचारियों को भी मास्क और ग्लब्स पहने देखा जा सकता है. एयरपोर्ट बंद होने के बावजूद इन कर्मचारियों को वेतन मिला है इसकी जानकरी कई कर्मचारी देते हैं. हालांकि इनमें भी एक डर साफ़ नजर आता कि जल्द से जल्द हालात बेहतर नहीं हुए तो कईयों की नौकरी जा सकती है. दो महीने से काम बंद होने से करोड़ों का नुकसान एयरलाइंस कंपनियों को हुआ है.

एयरपोर्ट पर आए बदलाव को लेकर एक कर्मचारी बताते हैं कि मैं यहां छह साल से काम कर रहा हूं. यहां कभी इस तरह की उदासी नहीं देखी. लोग हंसते हुए नजर आते हैं, लेकिन अभी तो सबके चेहरे पर डर और उदासी साफ़ दिख रही है.

एक दूसरे कर्मचारी बताते हैं कि एयरपोर्ट पर लोगों की सुरक्षा के तमाम इंतजाम किए गए है. सामान को सेनेटाइज किया जा रहा है. लोगों को बिना मास्क के आने जाने नहीं दिया जा रहा है. किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरती जा रही है.

हवाई जहाज में बैठने से पहले तमाम सुरक्षा के उपाय किए जा रहे हैं, जो दिख भी रहा है. लेकिन अंदर जाने पर लोग आसपास ही बैठकर सफर कर रहे हैं. जहाज के अंदर सोशल डिस्टेंसिंग नहीं रखा जा रहा है. तो सवाल उठना लाजिमी है कि बाहर इस तरह से सुरक्षा का ख्याल रखने का क्या फायदा होगा? क्या यह यात्रियों के साथ गलत नहीं हो रहा है.

Also see
article image7 मजदूर, 7 दिन, 7 रात, विनोद कापड़ी के साथ
article imageपलायन और मजदूर: ‘मरेंगे तो वहीं जहां उनकी जिंदगी है’
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like