कोरोना वायरस: भारत में ‘कम्यूनिटी ट्रांसमिशन’ की आहट

भले ही अभी कोरोना के कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की आशंका को खारिज किया जा रहा है लेकिन भविष्य में ऐसा होने की हर परिस्थिति देश में मौजूद है.

Article image
  • Share this article on whatsapp

“भारत में कोरोना संक्रमण अभी लोकल ट्रांसमिशन स्टेज पर है, कम्यूनिटी ट्रांसमिशन के स्टेज पर नहीं पहुंचा है. पिछले 24 घंटे में संक्रमण के 92 नए मामले आए हैं और 4 नए लोगों की मौत हुई है.” केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने सोमवार, 30 मार्च को नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बातें कही.

उन्होंने कहा, “अभी तक लोकल ट्रांसमिशन ही है. हमें इज़ाजत दें कि समय और ज़रूरत के हिसाब से हम “कम्युनिटी” शब्द का इस्तेमाल कर सकें. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर समाज का एक भी व्यक्ति हमें सहयोग नहीं करेगा तो हमारा अब तक का प्रयास जीरो हो सकता है. तो कृपया करके जो भी सरकार की गाइडलाइन है उसका पालन करें.”

स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक देश में अब तक कोरोना वायरस के संक्रमण के 1,238 मामले आए हैं और 35 लोगों की जान जा चुकी है. देश में लोगों की टेस्टिंग भी बहुत कम संख्या में हो रही है. जिससे कोरोना से संक्रमित लोगों की सही स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा है. पिछले दिनों दिल्ली सहित देश के कई राज्यों से लोगों के हुए पलायन से भविष्य में स्थिति के और बिगड़ने का खतरा पैदा हो गया है. साथ ही इससे देश में कम्यूनिटी ट्रांसमिशन का खतरा कई गुना बढ़ गया है.

स्वास्थ्य मंत्रालय भले ही अभी तक देश में कोरोना के कम्यूनिटी ट्रांसमिशन स्टेज की बात को नकार रहा हो लेकिन भारत में इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता. इंडियन एक्सप्रेस और डाउन टू अर्थ में छपी रपटें बताती हैं कि भारत में बहुत से ऐसे लोगों में भी कोरोना के लक्षण मिले हैं जिनका कोई विदेशी यात्रा या अन्य किसी देश से सम्बन्ध नहीं था. इस तरह के कई मामले मुम्बई में सामने आए हैं. क्या कोरोना वायरस भारत में वाकई कम्यूनिटी ट्रांसमिशन स्टेज की और बढ़ रहा है. इसको समझने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने स्वास्थ्य और संक्रामक रोग से जुड़े कुछ विशेषज्ञों से वास्तविक स्थिति और खतरे को समझने का प्रयास किया.

वर्तमान में वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन (डब्ल्यूएमए) के कोषाध्यक्ष और सार्क मेडिकल एसोसिएशन के प्रेसीडेंट डॉ. रवि वानखेडकर से हमने भारत के कम्यूनिटी ट्रांसमिशन स्टेज के बारे में समझने की कोशिश की. उन्होंने बताया, “सबसे पहले तो जो प्रेस कॉन्फ्रेंस लव अग्रवाल ने की थी उसमें उन्होंने बड़ा ही गोलमोल सा प्रशासनिक तरीके का जवाब दिया कि ‘लिमिटेड कम्यूनिटी ट्रांसमिशन’ है. उन्होंने ये नहीं कहा कि कम्यूनिटी ट्रांसमिशन नहीं है बल्कि ये कहा कि सीमित ट्रांसफर हो रहा है. साथ ही कई लोगों की ट्रेवल हिस्ट्री में भी ट्रांसमिशन दिख रहा है. लगभग 10% मरीज ऐसे हैं जो कम्यूनिटी ट्रांसमिशन के जरिए कोरोना पोजिटिव हुए हैं.”

सरकार ने जो निमोनिया के टेस्ट एक हफ्ते पहले से करने की इजाजत दी है उसमें उसका खुद मानना है कि 10%मरीजों की कोई ट्रेवल हिस्ट्री नहीं है. साथ ही सरकार किसी की यात्रा के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं देती, जो उसे देनी ही चाहिए.

डॉ. रवि आगे कहते हैं, “देश में 30 मार्च तक कुल 38,500 टेस्ट किए हैं जिनमें 1,200 कोरोना पोजिटिव हैं. जबकि अमेरिका रोज एक लाख लोगों की टेस्टिंग कर रहा है.” इस सवाल के जवाब में कि सरकार अधिक लोगों का टेस्ट क्यों नहीं कर रही है, डॉ. रवि कहते हैं, “सरकार को दो बातों का डर है. एक, अगर ज्यादा टेस्ट होंगे तो ज्यादा मामले सामने आएंगे और दूसरा, आज सरकार अपनी सिर्फ 30% क्षमता का इस्तेमाल कर रही है. अभी भी सरकार के पास 70% टेस्ट क्षमता बची हुई है. सरकार को लगता है कि अगर हालत बिगड़ते हैं तो उसे इसकी जरूरत पड़ेगी. लेकिन सरकार, डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन-‘टेस्ट-टेस्ट-टेस्ट, ज्यादा से ज्यादा टेस्ट’- उसका पालन नहीं कर रही है. अगर टेस्ट नहीं करोगे तो उनका पता नहीं चलेगा. और अगर पता नहीं चलेगा तो लोग क्वॉरन्टीन नहीं होंगे, फिर ये बीमारी और बढ़ेगी. अमेरिका और जर्मनी में तो रास्ते चलते लोगों की भी टेस्टिंग हो रही है. इसलिए सरकार को टेस्टिंग का बढ़ाना बहुत जरूरी है.”

इस मौके पर एक वाजिब सा सवाल खड़ा होता है कि भारत जैसे विशाल देश में, जिसकी आबादी सवा अरब से ऊपर है, क्या वह इतने सारे लोगों का टेस्ट कर सकती है? क्या सरकार के पास पर्याप्त संसाधन हैं? इस पर डॉ. रवि साफ कहते हैं, “नहीं! नहीं हैं. अगर इटली, स्पेन, अमेरिका में कमी हो गई है तो हमारे पास तो उतनी क्षमता भी नहीं है.”

कल ही सरकार का ही एक सर्कुलर जारी हुआ कि पूरे देश में कोरोना के लिए हमारे पास 14,000 वेंटीलेटर हैं, जो काफी नहीं है. वेंटीलेटर रातोंरात तो आएंगे नहीं. ये मास्क और पीपीई के लिए ही कम से कम एक सप्ताह का समय लेते हैं.

लॉकडाउन के बाद दिल्ली में हुए मजदूरों के प्रवास पर डॉ. रवि कहते हैं, “ये बिल्कुल टाइमबम की तरह है. एक तो ये बेचारे सब गरीब लोग हैं और आगे इनकी टेस्टिंग भी नहीं हो पाएगी. क्योंकि इनको लगा कि मैं मरूं तो अपने घर ही मरूं. अगर यहां मर गया तो मेरी बॉडी कौन लेकर जाएगा. और उसका मानना सही भी है, एक तो मुम्बई में खाने को नहीं मिल रहा, भीड़भाड़ में रहना पड़ रहा है तो कुछ भी करके घर पहुंच जाओ. इसके बाद ये भीड़भाड़ से निकलकर जब अपने घर पहुंचेंगे तो कोरोना के बहुत बड़ी संख्या में फैलने की आशंका है.

21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा के बाद मची भगदड़ के बाद आने वाले दिन किस तरह के हो सकते हैं? क्या हम किसी खतरनाक स्थिति के मुहाने पर खड़े हैं. इसके जवाब में डॉ. रवि कहते हैं, “बिल्कुल. क्योंकि लोगों को भी अभी समझ नहीं आ रहा है कि घर में बैठने से अपना ही फायदा है. इसके लिए सरकार को भी ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर जैसे उन्होंने हर किसी व्यक्ति के खाते में 1,500 डॉलर की रकम जमा की है, करना चाहिए. क्योंकि इसके सिर्फ स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक नुकसान भी हैं. लॉकडाउन से सिर्फ अपना बचाव किया जा सकता है इससे वायरस को रोका नहीं जा सकता. इसके लिए आपको टेस्टिंग और फिर क्वॉरन्टीन, आइसोलेशन आदि की प्रक्रिया करनी पड़ेगी. बस भारत का कम से कम नसीब अच्छा है कि उसका ग्राफ तेजी से नहीं बढ़ रहा है.”

सरकार को इसकी रोकथाम के लिए डॉ. रवि सलाह देते हैं, “सरकार को कुछ ऐसे अस्पताल हर जिले में नियत करना चाहिए जो सिर्फ कोरोना के लिए हों. ये प्रक्रिया शुरू हो गई है. हर राज्य सरकार अभी अलग अस्पताल चिन्हित कर रहे हैं. बड़े अस्पतालों को इसमें मिक्स नहीं करना चाहिए.”

कम्युनिटी ट्रांसफर के सवाल पर एम्स, दिल्ली में पल्मोनरी मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विजय हड्डा कहते हैं, “अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है. आईसीएमआर ने भी अभी तक जो 3,000 टेस्ट किए हैं, उनमें कोई कन्फर्म केस नहीं मिला है. ये उनकी वेबसाईट पर भी दिया हुआ है. दूसरी बात ये है कि बहुत सारे लोगों को खांसी, बुखार न होने के बावजूद भी इन्फेक्शन हो सकता है, तो उनका तो हम अभी चेक ही नहीं कर रहे हैं. इसलिए हम अबी भरोसे से यह नहीं कह सकते कि कम्यूनिटी में इसका प्रसार नहीं हुआ है. इसकी कोई गारंटी नहीं ले सकता. हम ये जरूर कह सकते हैं कि अभी तक हमने जितने टेस्ट किए हैं उनमें नहीं है. हर कोई मान रहा है कि कम्यूनिटी में इसका प्रभाव बढ़ रहा है.जहां तक मेरी जानकारी है, अभी तक कन्फर्म नहीं हुआ है.”

लॉकडाउन के चलते दिल्ली और एनसीआर के इलाके से भारी संख्या में हुए मजदूरों के प्रवास से किस तरह की स्थितियां पैदा हो सकती हैं, इसके जवाब में डॉ. हड्डा कहते हैं कि जब लोग कम्यूनिटी में जाएंगे और आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंस आदि की एहतियात नहीं बरतेंगे तो इसके बढ़ने की पूरी आशंका है. अभी तक जो केस हैं उसके हिसाब से तो हम कह सकते हैं कि हम उन्हें सही तरह डील कर रहे हैं. लेकिन आगे अगर ये केस बढ़ते हैं, लाखों में पहुंचते हैं तो निश्चित ही हमें परेशानी का सामना करना पड़ेगा.

संसाधन के आभाव पर डॉ. विजय कहते हैं कि जब अचानक संकट आता है तभी हमें पता चलता है कि हमारे पास कितना रिजर्व है. ये भारत ही नहीं बल्कि सभी देशों का हाल है.

अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली में कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ. डोडल मंडल ने हमें बताया कि कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की स्तिथि पिलहाल तो काबू में दिखती है, अगर आप देखेंगे तो जितने कोरोना पोजिटिव हैं, उनका कहीं न कहीं विदेश से आए लोगों से सम्बन्ध मिल रहा है. अभी तक तो ऐसा कोई क्लियर केस नहीं है. जैसे कोलकाता में एक आदमी संक्रमित था, और उसके परिवार वालों ने कहा कि उनका विदेश से कोई सम्बन्ध नहीं है. लेकिन बाद में उनका सम्बन्ध निकला. इस तरह से बहुत हो रहा है. लोग जानकारी छिपा रहे हैं. इसका एक बड़ा कारण है कि हमारे देश केलोग बहुत ज्यादा गैर-जिम्मेदार हैं. इसमें अनपढ़ ही नहीं, पढ़े लिखे लोग भी शामिल हैं. क्वॉरन्टीन में रखो तो निकल कर भाग जाते हैं. ये ज्यादातर हाई-प्रोफाइल और पढ़े लिखे लोग कर रहे हैं. मेरा मानना है कि अगर ये लोग थोड़ा भी जिम्मेदारी से कम लेते तो जितनी समस्या आज हो रही है शायद इतनी भी नहीं होती.

डॉ. मंडल आगे कहते हैं, “हमारी केंद्र और राज्य सरकारें अन्य देशों (इटली, अमेरिका) के मुकाबले बहुत अच्छा काम कर रही हैं.”

दिल्ली से हुए भारी संक्या में पलायन को लेकर डॉ. मंडल कहते हैं, “इसके लिए हमें कम से कम 14 दिन का इंतजार करना होगा, अभी तो बता पाना नामुमकिन हैकि इसका सोसाइटी पर कोई प्रभाव हुआ है या नहीं. लेकिन इसका बड़ा खतरा है.”

डॉ. मंडल की बड़ी चिंता अस्पतालों में डॉक्टरों को मिलने वाले सुरक्षा उपकरणों की कमी है. वोकहते हैं,“अस्पतालों में डॉक्टरों को भी उपयुक्त सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराए जाएं. क्योंकि वे मरीज को सीधे डील करते हैं इससे उनके भी संक्रमित होने की संभावना भी बहुत रहती है.”

आईसीएमआर यानि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद जो कि देश में संक्रामक रोगों और चिकित्सकीय शोध की प्रमुख संस्था है, उसके महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव से भी हमने इस मुद्दे पर जानकारी लेने का प्रयास किया. उनके मीडिया प्रभारी ने हमें बताया कि फिलहाल ये निर्णय लिया गया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रतिदिन 4 बजे होने वाली प्रेस कांफ्रेंस में आईसीएमआर और मंत्रालय के लोग मौजूद होंगे, आपको सब जानकारी वहीं से मिल जाएगी.

सरकार ने भले ही अभी कोरोना के कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की आशंका को खारिज किया है, लेकिन भविष्य में इसके होने की हर परिस्थिति हमारे देश में मौजूद है. अगर समय रहते तेजी से कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति बेकाबू हो सकती है.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
Also see
article imageएनएच-24: धूल के गुबार के बीच कारवां के कारवां पलायन कर रहे हैं
article imageअमरीका और इटली में ध्वस्त होने के लिए व्यवस्था तो थी, हमारे यहां क्या है?
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like