दुनिया जहां कोरोना के संकट से निपटने के लिए अपने सारे संसाधन झोंक रही है वहीं भारत सरकार ने अपने जीडीपी का महज 0.85% राहत पैकेज के लिए घोषित किया है.
देश में कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के कारण जारी लॉकडाउन से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 1.70 लाख करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया है. सरकार इस पैकेज के तहत देश के निचले तबके को एक निश्चित दर पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के अलावा अन्य जरूरतों के लिए डीबीटी यानि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के तहत उनके अकाउंट में कुछ पैसे भी भेजेगी. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को प्रेस कांफ्रेंस कर ये ऐलान किया. यह राशि केंद्र सरकार के कुल बजट का लगभग 6 फ़ीसदी है.
सरकार के इस कदम का कांग्रेस के नेता राहुल गांधी सहित, फिक्की और कई दिनों से हांफ रहे शेयर बाजार ने भी स्वागत किया है. घोषणा के तुरंत बाद सेंसेक्स में 1,410 अंको की तेजी देखी गई.
कोरोना का प्रकोप भारत में भी दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. भारत में अब तक 19 लोगों की मौत इससे हो चुकी है और 800 से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं.
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रेस कांफ्रेंस में लॉक डाउन से प्रभावित श्रमिकों, किसानों, बुजुर्गों, विकलांगों, मनरेगा मजदूरों आदि पर विशेष जोर दिया. सीतारमण ने कहा, “अभी लॉकडाउन को 36 घंटे ही हुए हैं, लॉकडाउन में कोई भूखा न रहे और पैसों की कमी न आए, इसलिए हम 1.70 लाख करोड़ का पैकेज लाए हैं. यह पैकेज विशेष रूप से उन गरीबों का ध्यान रखेगा, जिन्हें तुरंत मदद की जरूरत है. प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत सरकार प्रभावितों, गरीबों और मज़दूरों की मदद करेगी.”
प्रेस कांफ्रेंस में वित्तमंत्री ने कहा कि कोई गरीब भूखा न रहे इसके लिएप्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत सरकार अगले 3 महीने तक 5 किलो गेहूं या चावल और 1 किलो दाल प्रतिमाह मुफ्त में देगी और यह सामग्री लोगों को अभी मिलने वाले गेहूं या चावल के अतिरिक्त होगी. जिसका फायदा लगभग 80 करोड़ लोगों को मिलेगा. हालांकि इससे पहले 25 मार्च को केन्द्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने भी एक ट्वीट करते हुए लिखा था, “खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अब सभी पीडीएस लाभार्थियों को 2 किलो अतिरिक्त अर्थात् 7 किलो अनाज (गेहूं 2 रु. और चावल 3 रु. किलो) मिलेगा.” वित्तमंत्री ने उसी घोषणा को नए सिरे से बताया है. इसके अलावा 8.3 करोड़ बीपीएल परिवारों को उज्ज्वला योजना के तहत 3 महीने तक हर महीने 1 सिलेंडर मुफ्त दिया जाएगा.
देश के किसानों को कोई परेशानी न हो इसे देखते हुए, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत किसानों को हर साल मिलने वाली 2,000 रुपए की तीन किस्तों की पहली किस्त भी अप्रैल के पहले हफ्ते में ही दे दी जाएगी. इससे देश के लगभग 8.5 करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा. हालांकि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की वेबसाइट पर इस योजना के कुल लाभार्थी किसानों की संख्या 14.5 करोड़ है. वेबसाइट पर लिखा है, “हाल ही में हुए एक बदलाब की वजह से अब इस योजना का लाभ देश के सभी किसानों को मिल सकेगा, बेशक उनके पास कितनी भी जमीन हो. ऐसा करने से अब योजना के कुल लाभार्थियों की संख्या 14.5 करोड़ हो गई है.”
जबकि वित्तमंत्री के अनुसार, 8.5 करोड़ किसानों को ही इसका लाभ मिलेगा. तो सवाल यह है कि वित्तमंत्री की घोषणा और वेबसाइट में जो अंतर है उसे कैसे पाटा जाएगा.
देश में मनरेगा योजना का लाभ लगभग 5 करोड़ परिवारों को मिलता है. राहत पैकेज में मनरेगा दिहाड़ी 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये कर दी गई है. सरकार के मुताबिक, इससे ग्रामीण क्षेत्रों के उन लोगों को लाभ होगा जो मनरेगा के माध्यम से अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. सरकार के मुताबिक इससे उनकी आय में क़रीब 2000 रुपये की वृद्धि होगी. हालांकि लॉकडाउन के चलते देश में ज्यादातर काम-धंधे लगभग बंद पड़े हैं. तो इन्हें कैसे मजदूरी मिलेगी, ये एक बड़ा सवाल है.
मनरेगा की तरह ही वृद्धों, विधवाओं और दिव्यांगों के लिए भी अलग से 1000 रुपये दो अलग-अलग किश्तों में पेंशन के तौर पर दिए जाएंगे. कोई बिचौलिया इसे न हड़प जाए इसलिए यह पैसा सीधे उनके बैंक खातों में ट्रांसफर किया जाएगा. इससे लगभग 3 करोड़ लोगों को फायदा मिलने का अनुमान है.
इस वैश्विक आपदा में अपनी जान जोखिम में डालने के अलावा और अन्य सामाजिक समस्याएं झेल रहे देश के डॉक्टरों की भी सरकार ने सुध ली है. राहत पैकेज में कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे डॉक्टर, नर्स, आशा सहयोगी और अन्य मेडिकल स्टॉफ के लिए सरकार ने 50 लाख के मेडिकल बीमा का ऐलान किया है. इसका लाभ करीब 20 लाख मेडिकल कर्मियों को मिलेगा. गौरतलब है कि देश भर से डॉक्टरों ने सोशल मिडिया के जरिए अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगा कर कहा था की उनके पास अस्पतालों में मास्क व सुरक्षा उपकरण तक मौजूद नहीं हैं. ऐसे में वे कैसे काम करें. यही नहीं लखनऊ में तो डॉक्टरों ने हड़ताल तक की चेतावनी दे दी थी.
देश में महिलाओं के नाम पर करीब 20 करोड़ जनधन खाते खुले हैं. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने महिलाओं के लिए इन खातों में 3 महीने तक 500-500 रुपये डालने का ऐलान किया है. जिससे महिलाओं को परेशानी न हो. साथ ही महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप के लिए 10 लाख तक के लोन की सीमा को बढ़कर 20 लाख करने का ऐलान किया गया है. दावा है कि इसका लाभ 7 करोड़ परिवारों को मिलेगा.
राहत पैकेज में संगठित व असंगठित मजदूरों के लिए भी कुछ घोषणाएं की गई हैं. कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में काम करने वाले असंगठित मजदूरों (छोटे और सीमांत किसान, भूमिहीन खेतिहर मजदूर, हिस्सा साझा करने वाले, मछुआरे, पशुपालक, बीड़ी रोलिंग करने वाले, ईंट भट्टों, चमड़े के कारीगर, बुनकर, कारीगर, नमक मजदूर आदि) की संख्या लगभग 3.5 करोड़ है. वित्त मंत्री ने राज्य सरकारों से कहा कि वे इनके लिए बनाए गए 31,000 करोड़ रुपये के फंड का उचित इस्तेमाल करें.
साथ ही संगठित क्षेत्र के मजदूर, जो नौकरी करने वाले या देने वाले हैं और जहां 100 से कम कर्मचारी काम करते हैं और उनमें से 90 प्रतिशत की सैलरी अगर 15 हजार से कम है तो इनके लिए सरकार पीएफ का कुल पैसा (यानि करीब 24 फ़ीसदी) तीन महीने तक ख़ुद वहन करेगी.इससे 80 लाख कर्मचारियों को लाभ मिलने की उम्मीद है.
अब बड़ा सवाल यह है कि हमारे देश में रजिस्टर्ड मजदूरों की संख्या बेहद कम है क्योंकि अधिकतर मजदूर असंगठित क्षेत्र में कम करते हैं, इस लिहाज नॉन रजिस्टर्ड मजदूरों को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा.
दुनिया में राहत पैकेज
इस वैश्विक महामारी से हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए भारत ही नही पूरी दुनिया के देश राहत पैकेजों की घोषणा कर रहे हैं. बुधवार 25 मार्च को अमेरिकी सीनेट ने अब तक के सबसे बड़े व ऐतिहासिक बचाव पैकेज को मंजूरी दी है. उन्होंने अपनी जीडीपी का लगभग 10 प्रतिशत पैकेज का प्रस्ताव पारित किया था. इसके लिए सरकार ने 2 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा जारी किए हैं. इससे अमेरिका में जिन लोगों की एडजस्टेड ग्रॉस इनकम 75,000 डॉलर सालाना से कम है, उन्हें सीधे तौर पर 1200 डॉलर प्रदान किए जाएंगे. अगर भारत सरकार द्वारा जारी पैकेज की बात करें तो यह हमारी जीडीपी का सिर्फ 0.85 प्रतिशत है.
तुलनात्मक रूप से बात करें तो भारत की आबादी 138 करोड़ और अमेरिका की 33 करोड़ है. इस तरह भारत सरकार राहत पैकेज के जरिए एक नागरिक पर औसतन करीब 1200 रुपए जबकि अमेरिकी सरकार राहत पैकेज से हर एक नागरिक पर औसतन 4.55 लाख रुपए खर्च करेगी.
भारत सरकार के इस राहत पैकेज पर देश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार से हमने फोन पर बात की. अरुण कुमार ने कहा, “ये तो जरूरी था कि इस तरह के किसी पैकेज की घोषणा की जाए. बल्कि ये तो पहले ही हो जाना चाहिए था. और अगर अन्य देशों के मुकाबले देखा जाए तो ये बहुत कम है. अमेरिका ने जहां अपनी जीडीपी का लगभग 10% पैकेज के लिए दिया है वहीं भारत का पैकेज हमारी जीडीपी का सिर्फ 0.85% है. और इसका बहुत सारा पैसा बजट से भी आएगा क्योंकि इसमें से कई चीजें पहले ही बजट में घोषित हो चुकी थीं.”
क्या ये राहत पैकेज पूरी तरह जमीन पर लागू हो पाएगा. इस सवाल पर डॉ अरुण कहते हैं, “ये बहुत बड़ा सवाल है क्योंकि देश में बहुत सी चीजें हैं जिनकी घोषणा तो हो जाती है पर वो सही से लागू नहीं हो पाती. उनमें भ्रष्टाचार होता है, जैसे उज्ज्वला योजना के बारे में काफी देखा गया कि लोगों को सिलेंडर नहीं मिल पा रहे हैं. तो सरकार ये भरोसा दिलाए कि ऐसा नही होगा.”
मनरेगा मजदूरी बढ़ने पर डॉ अरुण कहते हैं कि वैसे तो ये गांव के लिए है और वहां तो इतना लॉकडाउन नहीं होगा लेकिन फिर भी सरकार अगर रजिस्टर्ड लोगों को सीधा पैसा दे देती तो ज्यादा अच्छा था.
डॉ अरुण कुमार आगे कहते हैं, “एक बहुत महत्वपूर्ण चीज स्वास्थ्य की थी जिसके ऊपर सरकार को खर्चा करना था. जैसे कि 4500 रूपये का टेस्ट है, तो कोई गरीब आदमी तो इतना महंगा टेस्ट कराने नहीं आएगा. तो इसे मुफ्त करना चाहिए था. इसके अलावा अस्पतालों की कमी है, डॉक्टर की कमी है. ऐसे में जो नर्सिंग के छात्र हैं उन्हें तैयार कर लेना चाहिए था.”
अंत में सरकार को सुझाव देते हुए डॉ अरुण कुमार कहते हैं कि सबसे पहले तो जो लोग घरों में फंसे हुए हैं उनको कुछ राशन वगैरह घर तक पहुंचाने की कोशिश करे. क्योंकि अगर ये लोग बाहर दुकानों पर जाएंगे तो वहां भीड़ लगेगी और लॉकडाउन में परेशानी भी होगी. दूसरे किसानों की फसल की खरीद के बारे में सरकार कोई कदम उठाए. अभी किसानों की फसल तैयार है और अगले एक महीने में वो बिकेगी. लेकिन लॉकडाउन के कारण किसान उसे बेच नहीं पाएगा. तो एक तरफ तो किसान को अपनी फसल का पैसा नहीं मिल पाएगा और दूसरी तरफ आपूर्ति की कमी होने से शहरों में चीजें महंगी हो जाएंगी. तो सरकार को जल्द से जल्द इस पर कोई प्रभावी कदम उठाना होगा.