सुधीर चौधरी आखिरी बार ग्राउंड पर कब गए थे?

शाहीन बाग़ से बारंबार 'डिजाइनर पत्रकारों' को ग्राउंड पर नहीं जाने के लिए कोसने वाले सुधीर चौधरी की ग्राउंड रिपोर्टिंग का एक समग्र मूल्यांकन.

WrittenBy:बसंत कुमार
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नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी को लेकर दक्षिणी दिल्ली के शाहीन बाग़ में चल रहा विरोध प्रदर्शन अब दिल्ली चुनाव में भी मुद्दा बनने लगा है. भारतीय जनता पार्टी के नेता शाहीन बाग़ को लेकर काफी सांप्रदायिक और हमलावर बयानबाजी करते नज़र आ रहे हैं.

भाजपा के राजनीतिक बयानों के बीच 27 जनवरी की दोपहर ज़ी न्यूज़ के एडिटर इन चीफ/एंकर सुधीर चौधरी और न्यूज़ नेशन चैनल के सलाहकार संपादक दीपक चौरसिया शाहीन बाग़ पहुंचे और दोनों ने साथ में मिलकर वहां से रिपोर्टिंग की.

दीपक चौरसिया ने दोनों चैनलों के साथ आकर काम करने को टीवी दुनिया में ‘इतिहास’ का हिस्सा बताया था. सुधीर चौधरी की पत्रकारिता में ‘इतिहास’ शब्द का बड़ा महत्व है. उनके संपादकीय नेतृत्व में एक फर्जी ख़बर के जरिए शिक्षिका उमा खुराना को मौत के मुहाने पर पहुंचाने का ‘इतिहास’ है. उनका एक स्टिंग वीडियो ख़बर की सौदेबाजी करने का ‘इतिहास’ बताता है. उनके नाम एक पत्रकार के आपराधिक मामले में तिहाड़ जेल की यात्रा करने का ‘इतिहास’ भी दर्ज है. चुनांचे सुधीर चौधरी की पत्रकारिता में ‘इतिहास’ से नीचे कुछ नहीं है.

सुधीर चौधरी दीपक चौरसिया के साथ शाहीन बाग़ पहुंचे थे. प्रदर्शनकारियों ने उनसे बात नहीं की और ‘गोदी मीडिया गो बैक’ के नारे लगाए. जिसके बाद अपने स्टूडियो लौटकर प्राइम टाइम शो डीएनए में सुधीर चौधरी ने दावा किया, ‘‘मैं सीरिया में जाकर रिपोर्टिंग कर चुका हूं. वहां रिपोर्टिंग करना शाहीन बाग़ की तुलना में आसान है.’’

सुधीर चौधरी अपने शो में बारंबार एंकरों को ग्राउंड से रिपोर्टिंग करने के लिए कोसते रहे, आह्वान करते रहे.

सुधीर चौधरी ने डीएनए में कहा, ‘‘टाई और सूट पहनकर स्टूडियो में बैठकर कुछ भी कह देना, लम्बे-लम्बे भाषण दे देना बहुत आसान होता है और हमारे देश के ज्यादातर संपादक और ज्यादातर बड़े-बड़े प्राइम टाइम एंकर यहीं करते हैं. स्टूडियो में बैठे, अच्छा शूट पहना, टाई पहनी, जैसे की आज मैंने भी पहनी है. यहां से कुछ भी कह दिया लेकिन ग्राउंड जीरो की जो असलियत होती है, हकीकत होती है. वह अलग होती है. और यही असलियत हमारे देश के बड़े-बड़े पत्रकारों को दिखाई नहीं देती. यहां स्टूडियो में बैठकर. इसलिए हमारी कोशिश होती है कि हम जब-जब मौका मिले ग्राउंड जीरो पर जाकर आपके लिए रिपोर्टिंग करें.’’

ग्राउंड से रिपोर्टिंग का जिक्र सुधीर चौधरी अपने शो के दौरान कई दफा करते हैं. बाकी एंकरों को कमतर पत्रकार होने की बात कहते हैं. तो ये लाजिम है कि पाठक जान लें कि खुद सुधीर चौधरी कितना ग्राउंड जीरो पर जाते हैं, ग्राउंड रिपोर्ट के लिए कब-कब स्टूडियो से बाहर निकले हैं. यकीन मानिए 2000 के नोट में नैनो चिप टेक्नोलॉजी ढूंढ़ लाने वाले इस विशेषज्ञ पत्रकार का रिकॉर्ड आपको अचंभे में डाल देगा.

हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या. सो न्यूज़लॉन्ड्री ने सुधीर चौधरी के बीते कुछ समय की पत्रकारिता की गणना कर डाली. हमने सुधीर के प्राइम टाइम शो डीएनए का अप्रैल 2019 से लेकर 28 जनवरी, 2020 के बीच किए गए शो को देखा जिसमें सुधीर महज एक बार ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए स्टूडियो से बाहर निकले. वो दिन यही दिन था- 27 जनवरी- जब वो दीपक चौरसिया के साथ शाहीन बाग़ का रुख किए.

सुधीर चौधरी द्वारा अपने फेसबुक वॉल पर शेयर किए डीनएए शो के कार्यक्रमों को देखते हुए हमने पाया कि चौधरी इन दौरान महज दो बार स्टूडियो से बाहर का रुख किया. एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करने के लिए और दूसरी बार गृहमंत्री अमित शाह का इंटरव्यू करने के लिए. पतझड़, सावन, बसंत बहार, आए गए. देश का लोकसभा चुनाव भी इसी दौरान बीत गया. पर चौधरी स्टूडियो में जमे रहे. अपवाद के तौर पर 9 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू और 15 अक्टूबर को अमित शाह का इंटरव्यू रहा. यहां स्पष्ट कर लें कि इंटरव्यू ग्राउंड रिपोर्ट नहीं होती.

चौधरी लगभग हर रोज अपने शो को फेसबुक पर साझा करते हैं. उनके फेसबुक पेज पर मौजूद डीएनए शो को देखने पर हमने पाया कि जनवरी 2020 में एक जनवरी से 27 जनवरी के बीच 15 एपिसोड उन्होंने साझा किया है जिसमें से किसी भी दिन वे ग्राउंड से रिपोर्ट करते नज़र नहीं आए. वहीं दिसंबर 2019 में उन्होंने 20 एपिसोड साझा किया है. उसमें भी किसी दिन उनके ग्राउंड पर जाने के सबूत हमें नहीं मिला. यही हाल बाकी महीनों का भी रहा. ग्राउंड तरसता रहा, चौधरी स्टूडियो में डटे रहे.

चौधरी का 2019 का रिकॉर्ड

दिसंबर शो- 20 ग्राउंड रिपोर्ट 0

नवंबर शो- 19 ग्राउंड रिपोर्ट-0

अक्टूबर शो- 19 ग्राउंड रिपोर्ट- 0 ( अमित शाह का इंटरव्यू किया था)

सितंबर शो-20 ग्राउंड रिपोर्ट- 0

अगस्त शो-20 ग्राउंड रिपोर्ट-0

जुलाई शो-16 ग्राउंड रिपोर्ट-0

जून शो -16 ग्राउंड रिपोर्ट-0

मई शो-16 ग्राउंड रिपोर्ट -0

अप्रैल शो-12 ग्राउंड रिपोर्ट 0

हैरानी की बात ये है कि साल 2019 में लोकसभा चुनाव भी था. आमतौर पर स्टूडियो की चमक-दमक में जीवन काट देने वाला हर एंकर इस महाकुंभ के अवसर पर संगम स्नान करके अपने पुराने पापों का प्रयश्चित कर लेता है. लेकिन सुधीर चौधरी स्टूडियो में डटे रहे. टस से मस नहीं.

लोकसभा चुनाव के बाद देश का साबका महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा के विधानसभा चुनावों से भी पड़ा, लेकिन ग्राउंड ज़ीरो सुधीर के कदमों की बाट जोहता रहा. बिहार की राजधानी पटना कई दिनों तक जलमग्न रही. बिहार में सैकड़ों बच्चों की मौत हो गई. राजस्थान में सैकड़ों बच्चे इलाज की अभाव में मर गए. कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया गया, ट्रिपल तलाक कानून बन गया, लेकिन वे स्टूडियो में रहे.

इस दौरान सुधीर चौधरी ने जो शो किया उसके विषय कुछ इस तरह हैं-

देखिए #DNA LIVE Sudhir Chaudhary के साथ

· प्रदर्शनकारियों के 'हिंसक चरित्र' का DNA टेस्ट

· लोकतंत्र में 'छीन कर लेंगे आज़ादी' वाली सोच का विश्लेषण

· हिंसा की राजनीति के खिलाफ 'विजय दिवस' कब ?

देखिए #DNA LIVE Sudhir Chaudhary के साथ

· असम के 'आक्रोश' का 'संपूर्ण सत्य'

· नागरिकता क्रांति से हारे तो नॉर्थ ईस्ट में 'हिंसा' के सहारे ?

· 'नागरिकता क्रांति' पर आग वाली साजिश का DNA टेस्ट

· सास, बहू और दामाद के 'नए रिश्तों' का पारिवारिक विश्लेषण

देखिए #DNA LIVE Sudhir Chaudhary के साथ

· भ्रष्टाचार में कभी मंदी नहीं आती

· भ्रष्टाचार की 'आर्थिक प्रगति' का विश्लेषण

· भ्रष्टाचार को भारत का NOC

· भ्रष्टाचार को मिली 'सामाजिक मान्यता' का विश्लेषण

· भ्रष्टाचार की नींव पर खड़े भारत का DNA टेस्ट

· धर्म के नाम पर देश का 'बंटवारा' सही, शरण गलत ?

· धर्म के आधार पर विभाजन वाली सियासत का विश्लेषण

#DNA LIVE :

· श्रीराम के जन्म के 'वैज्ञानिक प्रमाण' का विश्लेषण

· श्रीराम के 'अंतरराष्ट्रीय दर्शन' का विश्लेषण

· मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से आप क्या सीख सकते हैं ?

· SPG सुरक्षा को 'जन्मसिद्ध अधिकार' मानने वाली सोच का विश्लेषण

· SPG सुरक्षा पर कांग्रेस की सियासत का DNA टेस्ट

#DNA LIVE

· क्या भारतीयों का दिमाग छोटा होता है?

· सऊदी अरब में मोदी के 'आर्थिक अश्वमेध' का विश्लेषण.

· इमरान के 'इस्लामिक एजेंडे' पर 'मोदी ग्रहण' का विश्लेषण.

· यूरोपीय सांसदों के 'कश्मीर दर्शन' का विश्लेषण.

· बधाई हो! प्रदूषण हुआ है.

· बड़े कारनामे वाले छोटे दिमाग का DNA टेस्ट

परमाणु हमले के दौरान बचाव का उपाय बचाते नजर आए

सुधीर चौधरी सबसे ज्यादा जेएनयू, टुकड़े-टुकड़े गैंग, पाकिस्तान में गरीबी, हिन्दुओं की कम होती आबादी, मुस्लिम समुदाय में अशिक्षा, गांधी परिवार, कश्मीर और हिंदी भाषा आदि विषयों पर डीएनए शो करते नज़र आए.

27 जनवरी को शाहीन बाग़ से रिपोर्टिंग करने के अनुभव को सुधीर ने ट्वीट पर लिखा, ‘‘हर शहर में एक मोहल्ला होता है जहां पुलिस भी जाने से डरती है, वहां देश का कनून नहीं चलता है. दिल्ली में वो मुहल्ला शाहीन बाग़ है. आज मैं और दीपक चौरसिया जब शाहीन बाग़ पहुंचे तो पाया कि यहां देश का कानून नहीं चलता. आर्टिकल 370 अब शाहीन बाग़ में लागू है.’

ऐसा नहीं है कि सुधीर ने पहली बार कश्मीर के अलावा किसी और जगह आर्टिकल 370 लगाये जाने का इस्तेमाल किया. इससे पहले 15 नवंबर को अपने शो के दौरान सुधीर कहते हैं कि “ऐसा लगता है कि धारा 370 अब जम्मू-कश्मीर से हटने के बाद जेएनयू में लग गई है.’’

सुधीर अपने शो के दौरान 29 अगस्त को परमाणु हमले की स्थिति में बचाव के उपाय बताते नज़र आए. वे दर्शकों को बताते हैं, “जब तक मदद न पहुंचे, बाहर निकलने की भूल ना करें,” ‘परमाणु हमले के केंद्र को अपनी आंखों से देखने की कोशिश ना करें’, ‘आसपास मौजूद सबसे मजबूत बिल्डिंग में शरण लें’, ‘जितनी जल्द हो सकें बिल्डिंग के बेसमेंट में पहुंचने की कोशिश करें’, ‘बेसमेंट में शरण लेने के बाद जल्दी से अपने कपड़े उतारकर नहा लें’, और ‘अपने शरीर को साबुन या शैंपू से साफ़ करें’.

इस पूरे कार्यक्रम के दौरान उनकी गंभीरता बकोध्यानम् जितनी या उससे थोड़ा ज्यादा ही गंभीर नज़र आई.

शाहीन बाग़ और ज़ी न्यूज़

शाहीनबाग़ को लेकर भी जी न्यूज़ की रिपोर्टिंग अफवाहों पर आधारित है. ज़ी न्यूज़ के सहयोगी चैनल जी हिंदुस्तान की वेबसाइट पर शाहीन बाग़ को लेकर जो खबरें की गई उसका शीर्षक हैरान करने वाला है.

शाहीनबाग़ में प्रदर्शन के लिए महिलाओं को मिलता है 500-500 रुपया, लगती है शिफ्ट

अगर शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारी नहीं माने तो वहां बन सकता है जंग का मैदान

बच्चों-बड़ों को परेशान करके किस मुंह से अधिकार मांग रहे हैं शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारी

CAA विरोधी कट्टरपंथियों पर भरोसे से पहले याद कीजिए कश्मीरी पंडितों का हाल

आखिर क्यों पीएम मोदी शाहीन बाग़ के गद्दारों को बर्दाश्त कर रहे हैं? जानिए 6 प्रमुख कारण

‘आखिर क्यों पीएम मोदी शाहीन बाग़ के गद्दारों को बर्दाश्त कर रहे हैं? जानिए 6 प्रमुख कारण’ शीर्षक से लिखी रिपोर्ट को अंशुमान आनंद ने लिखा है. इसके इंट्रो में वो लिखते हैं, ‘‘शाहीन बाग़ एकबार फिर देश विरोधी और एक खास तरह के धर्मांध मजहबी नारों से गूंज रहा है. लेकिन इसके खिलाफ सरकार को जो कार्रवाई करनी चाहिए वह नहीं हो रही है. ये देखकर बहुत से राष्ट्रप्रेमियों को आश्चर्य हो रहा है.’’

इसके बाद जो छह कारण बताए गए हैं वो और भी हैरान करने वाला है.

बिलों से निकल कर बाहर आ रहे हैं देश के विरोधी जहरीले आतंकी सांप

तिरंगे और संविधान की आड़ में छिपे अराजकतावादी गुंडों के चेहरों की पहचान.

विपक्षी दलों का आतंकी समर्थक चेहरा खुला.

मीडिया में छिपे देश विरोधी तत्वों की पहचान.

बिकाऊ प्रदर्शनकारियों का खुलासा.

देशभर में के मजहबी कट्टरपंथियों के इकठ्ठा होने का सबूत.

imageby :

ये सब किसी न किसी के ट्वीट के आधार पर लिखा गया.

ज़ी न्यूज़ शुरू से ही इस आन्दोलन को मजहबी रंग देने के लिए किसी भी हद तक जाता दिखा लेकिन वहां जाकर रिपोर्टिंग करने के दौरान इस रिपोर्टर ने पाया कि शाहीन बाग़ का आन्दोलन मजहबी नहीं है. वहां लंगर लगाने के लिए पंजाब से सिख समुदाय के लोग पहुंचे तो हरियाणा से भी लोग लंगर लगाने पहुंचे थे.

शाहीन बाग़ से लगातार रिपोर्टिंग हो रही है लेकिन सुधीर चौधरी और दीपक चौरसिया को रिपोर्टिंग करने से प्रदर्शनकारियों ने रोक दिया. उससे दो दिन पहले दीपक चौरसिया ने आरोप लगाया कि वे रिपोर्टिंग के लिए प्रदर्शनकारियों के बीच गए तो उनके साथ हाथापाई की गई. उनका कैमरा तोड़ दिया गया. इसका वीडियो भी न्यूज़ नेशन ने दिखाया.

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इन विवादों पर शाहीन बाग़ में प्रदर्शन करने वाली जैनब जो पेशे से मेकअप आर्टिस्ट हैं और प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आजकल वो अपना काम नहीं कर पा रही हैं, कहती हैं, ‘‘देखिए तमाम पत्रकार यहां रोजाना आते हैं. स्टेज के पास लोग फोन और कैमरे लेकर खड़े रहते हैं किसी को कोई मना नहीं करता है लेकिन इनको मना किया गया. इसके पीछे वजह यह है कि इन्होंने तो हमें बिकाऊ साबित कर दिया था. जो मन में आया वो बोला टीवी पर. ट्रैफिक जाम के नाम पर रिपोर्ट किया. ये बताइए जनवरी की ठंड में किसको मन होता सड़क पर आधी रात में बैठने का. इनको परेशानी नजर नहीं आती तो जनता भगाएगी ही. यहां किसी को इन पर भरोसा नहीं है.’’

एक दूसरे प्रदर्शनकारी रिजवान खान कहते हैं, ‘‘रिपोर्टिंग करनी थी तो खुद आते लेकिन साथ में पुलिस लेकर आए. यहां मीडिया से नाराज़ लोगों को समझाने के लिए सैकड़ों लोग हैं. वे दोनों जब आए थे तो उनके साथ कई पुलिस वाले भी थे. पुलिस को देख जनता और डर गई. यूपी में पुलिस का रवैया देखकर लोगों में खौफ भर गया. पुलिस के आने की अफवाह भी फैलती है तो जो लोग घर पर होते हैं वे प्रदर्शन स्थल पर पहुंच जाते हैं. दिल्ली पुलिस तो अमित शाह के पास है न और उनका शाहीन बाग़ वालों के प्रति जो नजरिया है सबको पता है.’’

टीवी से ग्राउंड रिपोर्टिंग गायब

टेलीवीजन मीडिया में ग्राउंड रिपोर्टिंग की कमी का पता इस साल मिले रामनाथ गोयनका अवार्ड से चलता है. साल 2018 के लिए हाल ही में मिले गोयनका पुरस्कार में किसी भी टीवी पत्रकार को यह अवार्ड नहीं मिला है.

इसको लेकर भारतीय जन संचार संस्थान के प्रोफेसर आनन्द प्रधान कहते हैं, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ सालों से ग्राउंड रिपोर्टिंग टेलीविजन से खत्म कर दिया गया. ग्राउंड रिपोर्टिंग का मतलब ये नहीं है कि सिर्फ दिल्ली से रिपोर्टिंग हो. हम जब ग्राउंड रिपोर्टिंग कहते हैं तो इसका मतलब हुआ कि कभी आप गन्ना किसानों को समस्यायों, नार्थ-ईस्ट के बारे में, किसानों और मजदूरों के बारे में यानी देश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे लोगों की कहानियों और परेशानियों को लाने की बात करते है. ऐसा करने में टेलीविजन तो असफल हो चुका है. उसका इस तरह की रिपोर्टिंग में कोई चाहत नहीं बची है.’’

किसी टेलीविजन मीडियाकर्मी को रामनाथ गोयनका नहीं मिलने पर आनंद प्रधान कहते हैं, ‘‘यह बिलकुल सही फैसला लिया गया. पत्रकारिता का मतलब टीवी डिबेट नहीं है. वह ठीक वैसे ही एक हिस्सा है जैसे अख़बार में संपादकीय पन्ना होता है.’’

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