‘मैं इस मौके पर तटस्थ नहीं रह सकती’

धर्म के आधार पर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के निर्माण की ऐतिहासिक चूक को ठीक करने के लिए धर्म आधारित नागरिकता को मुद्दा बनाना पक्षपातपूर्ण और अन्यायपूर्ण है.

WrittenBy:सुनीता नारायण
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

मौजूदा वक्त में तटस्थ रह पाना संभव नहीं है. मैं मानती हूं कि कुछ धर्मों के शरणार्थियों को तुरंत भारतीय नागरिकता देने के लिए लाए गए नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (सीएए) में गंभीर त्रुटियां हैं. ये न केवल इस मुल्क के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के खिलाफ है, बल्कि ये पलायन के बेहद अहम मुद्दे की भी अनदेखी करता है. अवैध रूप से विदेशियों का भारत में प्रवेश; भारत के लोगों का दूसरे देशों में जाना (प्रायः अवैध तरीके से) ही केवल पलायन नहीं है. इसमें आंतरिक पलायन भी शामिल है. जब लोग दूसरे शहरों या देशों की तरफ रुख करते है, तो ये वहां “भीतरी” और “बाहरी” के बीच तनाव पैदा करते हैं. हमें इस पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए. सीएए इसे धर्म के आधार पर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के निर्माण की ऐतिहासिक चूक को ठीक करने के लिए धर्म आधारित नागरिकता देने का एक बेहद सामान्य मुद्दा बना देता है. ये पक्षपातपूर्ण, संकीर्ण और अन्यायपूर्ण है. यह (सीएए) हमें भीतरी और बाहरी के खांचे में बांट देगा और नफरत फैलाएगा.

अब सवाल है कि ये खत्म कब होगा? या कैंसर की तरह सिर्फ फैलेगा. इससे किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए कि जिस असम में इन लोगों को निकट भविष्य में भारत की नागरिकता दी जाएगी, वहां सीएए के पक्षपाती चरित्र को लेकर गुस्सा नहीं है. बल्कि असम के लोग बाहरी हिन्दू, मुस्लिम या जैनियों को नहीं रहने देना चाहते हैं, क्योंकि वे (बाहरी) लोग उनकी जमीन, जीविकोपार्जन के साधन छीन लेंगे और उनकी सांस्कृतिक पहचान को खतरे में डालेंगे. वे पहले से ही खत्म हो रहे अपने संसाधनों के लिए लड़ रहे हैं. लेकिन, ये लड़ाई उनकी पहचान के लिए भी है और यहीं पर ये मुद्दा और भी पेचीदा हो जाता है.

सच तो ये है कि प्रवासी नागरिकता का मुद्दा दुनिया के कई हिस्सों में राजनीति को परिभाषित कर रहा है. यूरोप में रिफ्यूजियों की फौज पर आक्रमण की तस्वीरें हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बाहरियों को बाहर रखने के लिए सीमा पर दीवार खड़ी करने को अपना मिशन बना लिया है. इस असुरक्षित समय में गुस्सा और खौफ बढ़ रहा है और यह ध्रुवीकृत सियासत के लिए ईंधन का काम कर रहा है.

ऐसा तब है जब जिनेवा की संस्था अंतरराष्ट्रीय ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) की वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट-2020 में कहा गया है कि साल 2019 में दुनिया की आबादी का महज 3.5 फीसदी हिस्सा ही एक देश से दूसरे देश में गया है. हालांकि, इनकी तादाद में अनुमान से ज्यादा तेजी से इजाफा हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले दो वर्षों में बड़े पैमाने पर प्रवासन और विस्थापन गतिविधियां हुई हैं. सीरिया से लेकर दक्षिणी सुडान तक हिंसक संघर्ष ने लोगों को अपना देश छोड़ने को विवश कर दिया. इसके बाद कठोर हिंसा या गंभीर आर्थिक व राजनीतिक अस्थिरता है और अब जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं ने और विवश कर दिया, जिससे लोग स्थायी तौर पर अपना घर-बार छोड़ने को मजबूर हैं.

इन सबका मतलब ये है कि वैश्विक स्तर पर 272 मिलियन लोग अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों की श्रेणी में हैं. इनमें से दो तिहाई लोग प्रवासी मजदूर हैं. इस आकलन के अनुसार, भारत के 17.5 मिलियन लोग बाहर प्रवास कर रहे हैं. आईओएम आंतरिक प्रवास का लेखा-जोखा नहीं रखता है. इसमें ये भी शामिल करिए कि अपने देश के लोग काम के लिए गांव से शहर और शहर से दूसरे देश में जा रहे हैं. लोग बाहर जा रहे हैं क्योंकि उनके पास विकल्प नहीं है या फिर वे ज्यादा विकल्प चाहते हैं.

पिछले साल जून में ऐरिजोना में गुरुप्रीत कौर नाम की छह साल की बच्ची की मौत हीट स्ट्रोक से हो गई थी. गुरुप्रीत का परिवार पंजाब छोड़ कर अवैध तरीके से अमेरिका जा रहा था. पंजाब में कोई युद्ध नहीं चल रहा है कि इस परिवार ने इतना कड़ा कदम उठा लिया, बल्कि गुरुप्रीत के परिजनों ने मीडिया को बताया कि वे काफी “निराश” थे और अपने तथा अपने बच्चों के लिए बेहतर जीवन चाहते थे.

अब जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापितों की संख्या में इजाफा होगा. आईओएम इस प्रवासन को ‘नया विस्थापन’ नाम देता है और इनमें से 60 प्रतिशत लोगों के विस्थापन तूफान, बाढ़ और सूखा जैसी मौसमी आपदाओं के कारण हुआ. हॉर्न ऑफ अफ्रीका के 8,00,000 लोगों का विस्थापन सूखे के कारण हुआ है. साल 2018 में फिलिपिंस में उष्णकटिबंधीय चक्रवात के तीव्र होने से बड़ी संख्या में नए लोगों को विस्थापित होना पड़ा. याद रखिए, जलवायु परिवर्तन गरीब तबकों पर बहुत बड़ा असर डालेगा क्योंकि वे लोग पहले से ही हाशिए पर हैं.

बढ़ती असमानता से से दबाव बढ़ रहा है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो रही है. मौसम संबंधित घटनाएं लोगों के लिए वापसी के सारे दरवाजे बंद कर देंगी और वे पलायन करने वालों की फौज में शामिल हो जाएंगे. इसे हम अपने शहरों में उग आई अवैध कालोनियों को देख कर समझ सकते हैं.

ऐसे में सवाल है कि क्या करना चाहिए? सबसे पहले तो ये साफ है कि हमें स्थानीय अर्थव्यवस्था विकसित करने के लिए रणनीति चाहिए ताकि लोगों को अपना घर छोड़ कर पलायन न करना पड़े. साल 1970 में महाराष्ट्र में आए भीषण सूखे से राहत के लिए लंबे समय से गुमनाम रहे गांधीवादी विचारक वीएस पागे देश में पहली बार रोजगार गारंटी स्कीम लेकर आए. मुंबई के पेशेवरों ने ग्रामीण क्षेत्र में गरीबों को घर देने के लिए टैक्स दिया. हमलोग आज निश्चित तौर पर काफी कुछ कर सकते हैं.

दूसरा और सबसे अहम ये कि हमें प्रवासन को लेकर विभाजनकारी एजेंडा तैयार नहीं करना चाहिए. हम एक बार बाहरियों को गिनना शुरू कर देंगे, तो फिर इसका कोई अंत नहीं आएगा. सच तो ये है कि वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में भारत को करीब 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर बतौर फॉरेन रेमिटेंस (विदेशी विप्रेषण) मिला है, जो विश्व में सबसे अधिक है. हमें यही याद रखना चाहिए. हमें अंकों को नहीं लोगों को याद रखने की जरूरत है.

(डाउन टू अर्थ की फीचर सेवा से साभार)

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like