सौरभ शर्मा : दो महीने में डिग्री, 6 महीने में असिस्टेंट प्रोफेसर, बोनस में योग्यता का बदलाव

अगर आप सौरभ शर्मा हैं तो आपके लिए तमाम बाधाओं को हटाकर बिजली की गति से नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की जाएगी.

WrittenBy:बसंत कुमार
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खबरों की माने तो एबीवीपी कार्यकर्ता सौरभ शर्मा को जेएनयू में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति मिली है. सौरभ 2016 में जेएनयू में हुए विवाद  के दौरान एबीवीपी का मुख्य चेहरा थे और उन्हीं की तहरीर पर कन्हैया कुमार समेत तमाम छात्रों के खिलाफ एफआईआर और राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ था. सौरभ दक्षिणपंथी समूह का उसी तरह पोस्टर ब्वॉय हुआ करते थे जैसे वामपंथी समूह के लिए कन्हैया कुमार.

दो महीने में पीएचडी की डिग्री 

जेएनयू के स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटेशनल एंड इन्टेग्रेटिव साइंस में सौरभ शर्मा के साथ ही पीएचडी की डिग्री लेने वाले एक छात्र जो अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते, न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘सौरभ ने इसी साल (2019) 11 मार्च को अपना थीसिस जमा किया, 16 अप्रैल को उनका वायवा हुआ और 3 मई को उन्हें प्रोविजनल डिग्री दे दी गई. जबकि मैंने 21 जुलाई, 2018 अपना थीसिस जमा किया था. लगभग नौ महीने बाद 2 अप्रैल, 2019 को मुझे वायवा के लिए बुलाया गया और उसके एक महीने बाद मुझे प्रोविजनल डिग्री दी गई. सिर्फ मैं ही ऐसा नहीं हूं. थीसिस जमा करने के महीनों बाद छात्रों को वायवा के लिए बुलाया जाता है और फिर इसके कुछ महीने बाद उन्हें डिग्री दी जाती है.’’

जेएनयू में सौरभ शर्मा के पीएचडी सुपरवाईजर रहे आरके बरोजेन सिंह बताते हैं, ‘‘सौरभ को डिग्री नियमों के तहत दी गई है. थीसिस जमा करने के कम से कम डेढ़ महीने के बाद वायवा होता है. वायवा होने के एक महीने बाद प्रोविजनल डिग्री दे दी जाती है.’’

प्रोफेसर सिंह आगे कहते हैं, ‘‘मेरे तहत इस साल चार छात्रों को पीएचडी मिली है. उसमें से जसलीन गुंड छात्रा थी. उसे अपनी डिग्री जमा करने के बाद वायवा होने और डिग्री पाने में छह से सात महीने का वक़्त लगा था. एक दूसरा छात्र था राहुल उसे भी इसी के आसपास वक़्त लगा था.’’

तो सवाल उठता है कि सौरभ के मामले में इतनी तेजी क्यों दिखाई गई?

आरके बरोजेन सिंह से जब हमने यह सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘यह इवैल्यूएशन विभाग पर निर्भर करता है कि वह कितने दिनों में थीसिस बाहर के प्रोफेसर से जांच कराकर विभाग को भेजता है. उसके बाद ही वायवा का दिन तय होता है.’’

जेएनयू में पीएचडी डिग्री मिलने की प्रक्रिया

जेएनयू में पीएचडी के एक छात्र बताते हैं, ‘‘हम जब अपनी थीसिस जमा करते हैं, उसके बाद स्कूल थीसिस को इवैल्यूएशन विभाग में भेजता है. जिसके अंडर में छात्र पीएचडी पूरा करता है उनसे बाहर के पांच प्रोफेसर्स के नाम मांगा जाता है. उनके दिए गए नाम वाले प्रोफेसर से थीसिस देखने के लिए कहा जाता है. उसमें से जो भी थीसिस देखने की स्वीकृति देता है उसके पास थीसिस भेज दी जाती है. अब उस पर निर्भर करता है कि वो कितने दिनों में थीसिस को पढ़कर उस पर अपनी टिप्पणी दे. उसकी टिप्पणी आने के बाद वायवा के लिए छात्रों को समय दिया जाता है. वायवा के एक महीने बाद छात्र को प्रोविजनल डिग्री दे दी जाती है.’’

जिस छात्र ने हमें ये जानकारी दी उन्होंने इसी साल जुलाई में अपनी थीसिस जमा की है. थीसिस जमा किए हुए लगभग चार महीने हो गए, लेकिन अभी तक उनका वायवा नहीं हुआ है.

जेएनयू में 2016 में हुए विवाद के वक़्त चर्चा में रहे छात्र नेता उमर खालिद जिन्होंने मॉडर्न हिस्ट्री में जेएनयू से पीएचडी किया है. उन्होंने अपनी थीसिस जुलाई 2018 में जमा किया था और उनका वायवा मई 2019 में हुआ. यानी थीसिस जमा करने के लगभग दस महीने बाद लेकिन सौरभ शर्मा का यह पूरा प्रॉसेस एक महीने के अंदर निपट गया.

2015-16 में बतौर छात्र संघ अध्यक्ष ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन की तरफ चुनाव लड़ चुके विजय कुमार ने 28 जुलाई, 2018 को अपना थीसिस जमा किया था. जिसके बाद 3 जून, 2019 को उनका वायवा हुआ. विजय को अगस्त महीने में प्रोविजनल डिग्री दी गई.

इस मसले पर स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटेशनल एंड इन्टेग्रेटिव साइंस के डीन शानदार अहमद से न्यूज़लॉन्ड्री ने उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि जेएनयू प्रशासन ने किसी भी अध्यापक या डीन को मीडिया से बात करने से मना कर रखा है.

हमने इस संबंध में जेएनयू एबीवीपी के मौजूदा सेकेट्री मनीष जांगिड़ से पूछा तो उन्होंने कोई भी जवाब देने से इनकार करते हुए बस इतना कहा कि पीएचडी हो गया और अगर वो योग्य है तो है.

योग्यता के मानकों में बदलाव

जेएनयू में 9 मई को असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए भर्तियां निकली थीं. इसमें स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटेशनल एंड इन्टीग्रेटिव साइंस के लिए भी दो भर्तियां निकली थीं. एक पद ओबीसी के रिजर्व था जबकि एक अनारक्षित था. इसके अतिरिक्त सौरभ ने स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटर एंड सिस्टम साइंस विभाग में भी आवेदन किया था. सौरभ दोनो ही विभागों में शॉर्टलिस्ट हुए हैं.

स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटेशनल एंड इन्टेग्रेटिव साइंस के दस प्रोफेसरों ने 19 नवम्बर को एक प्रस्ताव पास किया जिसकी कॉपी न्यूज़लॉन्ड्री के पास है. इसमें लिखा गया है कि अस्सिटेंट प्रोफेसर के पद के लिए स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा जो मानदंड तय किया गया, वहीं विज्ञापन में भी छपा था. उसके अनुसार इस पद के लिए मास्टर और पीएचडी स्तर पर स्टेटिस्टिक्स / बायोस्टेटिस्टिक्स और कंप्यूटर कम्प्यूटर साइंस / इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की डिग्री रखने वाला व्यक्ति ही योग्य है. लेकिन जब छात्रों को शॉर्टलिस्ट किया गया तो स्कूल की स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा बताये गए योग्यता वाले मापदंड को बदल दिया गया. इसी के आधार पर उम्मीदवार भी शॉर्टलिस्ट किए गए. अब जो योग्यता मागी गई है उसके अनुसार साइंस में मास्टर होना चाहिए और कम्प्यूटेशनल बैकग्राउंड होना चाहिए.

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यानी विज्ञापन के दौरान जिस योग्यता के लिए अंग्रेजी में ‘मस्ट हैव’ शब्द का प्रयोग किया गया था उसे शॉर्टलिस्ट करते वक़्त भुला दिया गया. जेएनयू में ये चर्चा आम है कि आखिरी वक्त में योग्यता में ये बदलाव अखिल भारतीय विधार्थी परिषद के छात्र नेता और 2016 में छात्र संघ के संयुक्त सचिव रहे सौरभ शर्मा को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया. ऐसा दिखता भी है क्योंकि सौरभ की शैक्षिक योग्यता एमटेक कम्प्यूटेशनल सिस्टम्स बायोलॉजी और कम्प्यूटेशनल न्यूरोसाइंस में ही पीएचडी है. जबकि पूर्व में तय मापदंड पर वो खरा नहीं उतरते थे.

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स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटेशनल एंड इन्टेग्रेटिव साइंस के डीन शानदार अहमद समेत दस प्रोफेसर्स ने जेएनयू प्रशासन को लिखित तौर पर दिया है कि स्क्रीनिंग कमेटी ने अस्सिस्टेंट पद के लिए जो योग्यता बताई थी उससे चयन प्रक्रिया के दौरान बदल दिया गया है.

स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटेशनल एंड इन्टेग्रेटिव साइंस के एक प्रोफेसर न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘जो विज्ञापन निकला था उसमें स्क्रीनिंग कमेटी ने जो मानक तय किया था उसके अनुसार वो एमटेक कम्प्यूटेशनल सिस्टम्स बायोलॉजी और कम्प्यूटेशनल न्यूरोसाइंस में पीएचडी धारक इस पद के योग्य नहीं था, लेकिन सेलेक्शन कमिटी ने जब शॉर्टलिस्ट किया तो मापदंड में बदलाव कर दिया. जो बदलाव किया गया उसके अनुसार वो उस पद के योग्य हो गया.’’

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सौरभ शर्मा जेएनयू स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटेशनल एंड इन्टीग्रेटिव साइंस के अलावा कम्प्यूटर साइंस डिपार्टमेंट में भी शॉर्टलिस्ट हुए है. वहां के एक प्रोफेसर बताते है, ‘‘हमारे यहां भी सौरभ शॉर्टलिस्ट हुए हैं. यहां भी योग्यता में बदलाव किया गया है. सौरभ के लिए क्या बदलाव किया गया यह तो सेलेक्शन होने के बाद पता चलेगा. लेकिन मुझे लगता है कि बदलाव उन्हीं को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है, नहीं तो बदलाव करने की ज़रूरत क्या थी.’’

एडेक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार सौरभ शर्मा को स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटर एंड सिस्टम साइंस में अस्सिस्टेंट पद पर नियुक्त कर लिया गया है. रिपोर्ट के अनुसार योग्यता में बदलाव करते हुए सौरभ को नियुक्त किया गया है. जिस कमेटी ने 25 नवम्बर को सौरभ को नियुक्त किया है उसमें जेएनयू के वीसी जगदीश कुमार खुद भी मौजूद थे. हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री स्वतंत्र रूप से सौरभ की नियुक्ति की पुष्टि नहीं करता है.

जेएनयू के ज्यादातर प्रोफेसर और छात्र इस बदलाव से हैरान हैं. शॉर्टलिस्ट करते वक़्त मानकों में बदलाव बताता है कि कि जानबूझकर किसी को फायदा पहुंचाने के लिए यह बदलाव किया गया. बीच प्रक्रिया में मानकों में बदलाव से यह हुआ कि इसके लिए बाकी योग्य छात्र आवेदन नहीं कर सके.

आखिर क्यों छात्र ऐसा कह रहे हैं…

जेएनयू के प्रशासनिक भवन के सामने खड़े छात्रों की टोली से इस रिपोर्टर ने जब पूछा कि जेएनयू में थीसिस जमा करने के बाद पीएचडी की प्रोविजनल डिग्री मिलने में कितना वक़्त लगता है? एक लड़की ने जवाब दिया, “वैसे तो छह महीने से एक साल तक का समय लग जाता है, लेकिन अगर आप सौरभ शर्मा हैं तो एक महीने में भी मिल जाता है.”

इन दिनों में जेएनयू में फीस वृद्धि पर हो रहे प्रदर्शन के अलावा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता और 2016 में जवाहरलाल नेहरु छात्र संघ के महासचिव रहे सौरभ शर्मा को थीसिस जमा करने के एक महीने के अंदर पीएचडी की प्रोविजनल डिग्री मिलना भी लोगों के लिए अचरज की बात है. एक सीनियर प्रोफेसर कहते हैं, ‘‘सौरभ को जिस तेजी से डिग्री दी गई है उस तरह से जेएनयू के इतिहास में कभी नहीं है. मोदी सरकार की तरह अब जेएनयू प्रशासन भी दिन रात काम करने लगा है.’’

इस पूरे विवाद पर सौरभ शर्मा पक्ष जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने कई बार संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. उनका पक्ष सामने आने पर उसे इस स्टोरी में जोड़ दिया जाएगा.

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