डीयू: नॉर्थ कैंपस के पास बहुमंजिला इमारत को लेकर छात्र सड़क पर

दिल्ली मेट्रो ने पब्लिक यूज़ के लिए ली गई ज़मीन निजी बिल्डर को सौंपा. 

WrittenBy:दीपांकर पटेल
Date:
Article image

नई दिल्ली का विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन. गेट नम्बर चार से निकलते ही शरद ऋतु का स्वागत करते सप्तपर्णी के फूलों की खुशबू के अलावा एक और चीज आपका ध्यान खींचती है. वो है मेट्रो स्टेशन के ठीक बगल में पैंतीस-चालीस फुट ऊंची विशालकाय बैरेकेटिंग शीटें जिन्हें लोहे के ऊंचे-ऊंचे एंगलों पर कस दिया गया है. दिल्ली के प्रदूषण की धुंध के बीच इन बैरीकेटिंग शीटों से बनी बाउंड्री का दूसरा छोर आसानी से दिखाई नहीं देता. चहरदीवारी बनाने के लिए असेम्बल्ड इन शीटों के बीच से झांकने पर ज़मीन का एक विशालकाय टुकड़ा नजर आता है, जिसे बुलडोज़र से समतल किया जा रहा है. झाड़ियों और छोटे-बड़े पौधों की मिट्टी में दबी पड़ी आधी सड़ चुकी पत्तियों और टहनियों के निशान इस बात की गवाही देते हैं कि निर्माण के इस प्रयास से पूर्व यहां काफी “जैव-विविधता” मौजूद रही होगी.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
imageby :

मल्टी स्टोरी प्राइवेट रेजीडेंसियल कॉम्प्लेक्स बनाने के लिए घेरे गये इस भूखंड की बैरिकेटिंग पर लाल रंग के पेंट से लिखा है- “यह रक्षा मंत्रालय की भूमि है.” इस सूचना के ठीक नीचे दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने लाल रंग के ही ग्रैफिटी कलर से इस संदेश का विस्तार भी किया है और लिखा है, “स्टॉप कन्स्ट्रक्शन, बिल्ड हॉस्टल.”

रक्षा मंत्रालय की भूमि होने की सूचना देने और डीयू के छात्रों की हास्टल की बेहद जरूरी मांग के बीच अनुमानित ”एक हजार करोड़” से ज्यादा मूल्य के इस भूभाग की कहानी में कई परतें हैं, जो रक्षा मंत्रालय की भूमि को प्राइवेट बिल्डर के हाथों में सौंपने से लेकर लैंड यूज बदलने, पर्यावरण को दरकिनार करने, विश्वविद्यालय की सुरक्षा को ताक पर रखने, प्रशासन-राजनीति-कारपोरेट सम्बन्ध और न्यायिक तर्कों के कई “सच” उजागर करती हैं.

imageby :

हालांकि प्रदूषण के मद्देनजर दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली-एनसीआर में कन्स्ट्रक्शन पर रोक लगाए जाने के बाद से ही यहां बुलडोजर रुके हुए हैं और क्रेन ठप्प है लेकिन फिर भी एक तरफ विश्वविद्यालय के छात्र मार्ग, सामने से मॉल रोड और तीसरी तरफ कैवलरी रोड के बीचोबीच स्थित इस भूभाग पर 39 मंजिला निजी आवासीय परिसर का निर्माण कार्य शुरू होने की आहट महसूस की जा सकती है. इस आहट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों और आसपास के लोगों को बेचैन कर दिया है.

सुरक्षा, संसाधनों पर दबाव, आवागमन की चिंता और विश्वविद्यालय के आसपास होने वाले जनसांख्यिकीय बदलाव सम्बन्धी भविष्य की चिन्ताओं को लेकर 4 नवम्बर से ही विश्वविद्यालय के छात्र लगातार इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं.

निर्माणाधीन परिसर के ठीक पीछे दिल्ली स्कूल ऑफ ओपेन लर्निंग है ये डीयू के वाइस चांसलर की आवासीय चहरदीवारी से बिल्कुल सटा हुआ है, वीसी आवास और निर्माणाधीन भूभाग के पश्चिमी गेट के बीच छात्र मार्ग के किनारे विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों ने टेंट लगा दिया है और “सेव डीयू” का बैनर तान दिया है.

एमए पॉलिटिकल साइंस की छात्रा पल्लवी राज प्रदर्शन स्थल पर बैठकर इन्डोलॉजिकल स्टडीज़ की किताब पढ़ रही हैं. नवम्बर के आखिरी सप्ताह से उनके सेमेस्टर एक्जॉम शुरू होने को हैं लेकिन वो इस विरोध प्रदर्शन में अपने साथियों के साथ ‘सेव डीयू’ के बैनर तले हिस्सा ले रही हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बताचीत में वो कहती हैं, “39 मंजिला इस इस इमारत के बनने के दौरान काफी ध्वनि और वायु प्रदूषण उत्पन्न होने वाला है और इसके बनने के बाद विश्वविद्यालय के आसपास के संसाधनों पर दबाव और बढ़ जाएगा. ये विशालकाय रिहायशी परिसर विश्वविद्यालय के शैक्षिक वातावरण को पूरी तरह बदल कर रख देगा. विश्वविद्यालय पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहा है इतना बड़ा प्राइवेट आवासीय परिसर बनने के बाद पता नहीं क्या होगा.”

imageby :

प्रदर्शन में शामिल एलएलबी फाइनल ईयर के छात्र और विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव लड़ चुके राजा चौधरी कहते हैं, “39 मंजिला इमारत के निर्माण की अनुमति देना ‘दिल्ली मास्टर प्लान-2021′ के क्लॉज़- 11’ का खुला उल्लंघन है. दिल्ली विश्वविद्याल लुटियन जोन-3 का हिस्सा है. इसमें तीन मंजिल से ज्यादा का प्राइवेट कन्स्ट्रक्शन नहीं हो सकता. डीयू हॉस्टल की कमी से जूझ रहा है, पांच फीसदी से भी कम छात्रों को यहां हास्टल मिल पाता है, पीजी और प्राइवेट हास्टलों का खर्च वहन कर पाना आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों के लिए मुश्किल होता है. प्राइवेट बिल्डर के बजाय इस जमीन पर ज्यादा हक डीयू का बनता है.”

यही नहीं दिल्ली मास्टर प्लान-2021 में दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ और साउथ कैंपस को क्लोज कैंपस (एकीकृत कैंपस) के रूप में विकसित करने की बात कही गई है, जिससे कैंपस के भीतर आउटर इंटरफेस को कम किया जा सके. शनिवार को हुई एक्जीक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग में वाइस चांसलर योगेश त्यागी ने भी विश्वविद्यालय को एक साल के भीतर क्लोज कैंपस बनाने की बात दोहराई है. वाइस चांसलर ने प्रदर्शनकारी छात्रों से मुलाकात की और उनके विरोध प्रदर्शन को अपना समर्थन दिया है.

प्रदर्शन में शामिल राजा चौधरी दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन द्वारा प्राइवेट बिल्डर को जमीन दिये जाने को जनता के साथ धोखा करार देते हैं. वो कहते हैं कि जब इस जमीन का उपयोग मेट्रो द्वारा नहीं किया गया तो डीएमआरसी को यह जमीन को रक्षा मंत्रालय को वापस कर देना चाहिए था लेकिन मेट्रो ने ऐसा नहीं किया और मुनाफ़ा कमाने के लिए ज़मीन प्राइवेट बिल्डर के हाथों सौंप दिया.”

1911 में जब राजधानी को कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट किया गया तो डीयू नॉर्थ कैंपस का इलाक़ा अस्थायी राजधानी के तौर पर विकसित हुआ, जब मुख्य लूटियन जोन में स्थायी राजधानी शिफ्ट हुई तो वॉयसरीगल लॉज के साथ-साथ विभिन्न प्रशासनिक विभागों की इमारतें और जमीनें दिल्ली विश्वविद्यालय को दे दी गईं और दिल्ली विश्वविद्यालय का विस्तार होता चला गया. लेकिन ये ज़मीन रक्षा मंत्रालय ने अपने पास ही रखी. साल 2000 से पहले इस ज़मीन पर रक्षा मंत्रालय का भवन हुआ करता था, जिसमें रक्षा विभाग के लोग आते थे और ठहरते थे.

साल 2001 में, दिल्ली सरकार ने विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के निर्माण हेतु रक्षा मंत्रालय से इस 3.05 एकड़ क्षेत्रफल ज़मीन का 42.4 करोड़ रुपए में अधिग्रहण किया. दिल्ली सरकार की तरफ से कहा गया कि “जनता के पैसे से जनता के लिए ‘मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम’ हेतु इस जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है.”

अधिग्रहित की गई करीब तीन एकड़ भूमि में से विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के निर्माण में एक एकड़ से थोड़ी कम जमीन का ही उपयोग हो सका और दो एकड़ से ज्यादा जमीन खाली बची रह गई. 2005 में चुपके से दिल्ली मेट्रो ने बची हुई जमीन का भू-उपयोग बदल कर रेसीडेंशियल करवा लिया. फिर 15 दिसम्बर, 2008 को डीएमआरसी ने रक्षा मंत्रालय से “अनुमति लिये बिना” यंग बिल्डर प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक लीज एग्रीमेंट साइन किया. इसके तहत यब जमीन 218 करोड़ रुपये में यंग बिल्डर को 91 साल 9 महीने के लिए लीज़ पर दे दिया.

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा इस निर्माणाधीन बिल्डिंग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल गौतम, एलएलबी तृतीय वर्ष के छात्र हैं, वो जमीन को लीज पर दिये जाने की वैधानिकता पर सवाल उठाते हुए दिल्ली मेट्रो पर कारपोरेट से सांठगांठ का आरोप लगाते हैं और कहते हैं, “डीएमआरसी को किसने ये अधिकार दिया कि पब्लिक यूज़ के लिए अधिग्रहित की गई ज़मीन को प्राइवेट बिल्डर को दे दे, क्या डीएमआरसी को ये पता नहीं था कि यहां क्या होने जा रहा है. ये धोखे से लैंड यूज बदलने का मामला है. इस मामले में डीएमआरसी पर भी कार्रवाई होनी चाहिए.”

लीज एग्रीमेंट करने के बाद अब यंग बिल्डर्स यहां दिल्ली के सबसे ऊंचे ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट की प्लानिंग कर रहा है. तकरीबन 1800 लोगों के रहने के लिए 117 मीटर ऊंची और 39 मंजिला भवन में 410 फ्लैट्स बनाया जाना प्रस्तावित है. इस विशालकाय परियोजना के लेआऊट को एन्वायरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, नई दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन, मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर, दिल्ली जल बोर्ड से एक के बाद एक अनापत्ति प्रमाणपत्र और क्लीयरेंस मिलती चली गई.

imageby :

नॉर्दर्न रिज बायोडायवर्सिटी पार्क से इस निर्माणाधीन परिसर की दूरी 600 मीटर के आसपास होगी. नॉर्दर्न रिज में बिलायती बाबुल, नीलगाय, पाइथन, सियार जैसी पशु पक्षियों की सैकड़ो प्रजातियां मौजूद हैं. इसके अलावा इसे नॉर्दर्न अरावली लेपर्ड कोरीडोर के रूप में भी जाना जाता है. ऐसे में 117 मीटर ऊंचे, 39 मंजिला इमारत से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण रिज की जैवविविधता को प्रभावित कर सकता है. दुनिया भर में हुए शोध बताते हैं कि रिहाइशी इलाकों से सटे बायोपार्क के वन्य जीवों पर असर पड़ता है.

एमए पॉलिटिकल साइंस के स्टूडेंट सागर सौरभ भी यूनिवर्सिटी परिसर से बिल्कुल सटे इस बहुमंजिला इमारत के निर्माण के विरोध में हो रहे प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बातचीत में वो कहते हैं, “इस आवासीय परिसर के निर्माण के बाद विश्वविद्यालय के आस-पास जनसंख्या दबाव काफी बढ़ जाएगा. ट्रैफिक, पार्किंग के अलावा मेट्रो स्टेशन पर भी दबाव बढ़ेगा, ऐसे ही मेट्रो में यहां यूनिवर्सिटी ऑवर्स में छात्र-छात्राओं की लंबी कतारें लगी रहती हैं.”

इसके अलावा वो जल बोर्ड द्वारा दिए गए क्लियरेंस पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, “जल बोर्ड दिल्ली विश्वविद्यालय की पानी की जरूरतें तो पूरी नहीं कर पा रहा इतने बड़े परिसर की रिहायशी जरूरतों के लिए किसके पानी में और कटौती करेगा?”

दिल्ली विश्वविद्यालय के हॉस्टलों में पानी की समस्या आम है. सिर्फ विश्वविद्यालय ही नहीं कैम्प, क्रिश्चियन कॉलोनी, विजय नगर, मुखर्जी नगर, बत्रा और नेहरू विहार जैसे इलाके गर्मियों में पानी की कमी से बेतहाशा परेशान रहते हैं. ऐसे में इतनी बड़ी हाउसिंग सोसाइटी क्या पानी की किल्लत को और ज्यादा नहीं बढ़ाएगी?

4 नवम्बर से चल रहे इस विरोध प्रदर्शन को स्थानीय लोगों, ई-रिक्शा चालकों का भी समर्थन मिल रहा है. ई-रिक्शा चालकों को डर है कि इतनी ऊंची इमारत बनने के बाद जब भीड़-भाड़ बढ़ेगी तो कहीं ट्रैफिक मैनेजमेंट के नाम पर उन्हें यहां से हटा ना दिया जाय. केवलरी लेन में रहने वाले राजेश्वर नाथ इस बात पर हैरानी जताते हैं कि इतनी ऊंची इमारत बनाने की परमिशन बिल्डर को मिल कैसे गई. वो कहते हैं, “दिल्ली में जो थोड़ी बहुत ओपेन लैंड है उस पर भी अगर कंक्रीट के जंगल खड़े हो जाएंगे तो लोगों की पार्किंग, कन्जेशन की तमाम दिक्कतें बढ़ जाएंगी. 39 मंजिला इस इमारत को वो आसपास के निवासियों की प्राइवेसी पर भी बड़ा ख़तरा मानते हैं. वो ये कहते हैं विश्वविद्यालय के स्टेडियम पर सीधे-सीधे इस इमारत से नजर रखी जा सकती है.”

व्हील चेयर पर बैठी थोड़ा बातूनी कनिका मिरांडा हाउस कालेज में बीए प्रथम वर्ष की छात्रा हैं, वो 39 मंजिला इस इमारत के निर्माण को विश्वविद्यालय की सुरक्षा और छात्र/छात्राओं की प्राइवेसी पर बड़ा खतरा मानती हैं. प्रस्तावित इमारत से सौ मीटर से भी कम दूरी पर मेघदूत, डब्ल्यूयूएस समेत विश्वविद्यालय के 6 महिला छात्रावास हैं. साथ ही सेन्ट्रल इन्सिटट्यूट ऑफ एजूकेशन का कैंपस इससे 50 मीटर की दूरी पर स्थित है जो इमारत बनने के बाद इसकी स्क्रीनिंग के दायरे में आ जायेगा.

कनिका कहती हैं कि इस इमारत के बनने के बाद छात्र/छात्राओं की गोपनियता पूरी तरह खत्म हो जाएगी. कनिका पिजरा तोड़ मूवमेंट से भी जुड़ी हुई हैं. वो कहती हैं, “छात्राओं के लम्बे संघर्ष के बाद हास्टल कर्फ्यू की टाइमिंग बढ़ाई गई है. इस इमारत के बनने के बाद विश्वविद्यालय को हमारी सुरक्षा चिंताओं को लेकर एक बहाना और मिल जाएगा.”

imageby :

छात्रों का कहना है कि 117 मीटर ऊंची और 20 हजार मीटर में फैली  इस प्रस्तावित इमारत की लोकेशन ऐसी है कि तकरीबन पूरे नार्थ कैंपस का ‘बर्ड आई व्यू’ इसके टॉप से लिया जा सकेगा, छात्र इसे निजता पर हमले की तरह देखते हैं.

लॉ की छात्रा अमीशा नंदा इस इमारत को दृष्टिबाधित और शारीरिक रूप से विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के आवागमन में मुश्किल पैदा करने वाले भविष्य के कारक के रूप में देखती हैं. उनका कहना है छात्र मार्ग पर पहले से ही काफी ट्रैफिक रहता है विशेष आवश्यकता वाले छात्रों की चुनौतियां अभी भी कम नहीं हैं इस इमारत के बनने के बाद ट्रैफिक पर बोझ और बढ़ेगा तो विशेष आवश्यकता वाले बच्चों का आवागमन दूभर हो जाएगा.”

दीपक कुमार पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट से पीएचडी कर रहे हैं. वो इस रिहायशी परिसर के बनने के बाद यूनिवर्सिटी शैक्षिक माहौल पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव से चिन्तित दिखते हैं. 100 साल पुराने दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस का एक अलग सामाजिक-सांस्कृतिक ताना-बाना है जिसके लिए ये देश भर में प्रमुखता से जाना जाता है. ये शिक्षण-प्रशिक्षण का प्रमुख केन्द्र है जहां 40 से अधिक देशों के छात्र पढ़ाई करते हैं. अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के साथ-साथ विश्वविद्यालय निश्चित रूप से वैज्ञानिकों, उन्नत अनुसंधान प्रयोगशालाओं और गहन अध्ययन-केंद्रों के कारण देश भर में विख्यात है.

विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय एन्क्लेव में निर्माण के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय से परामर्श आवश्यक है. भूमि के उपयोग के सम्बन्ध में वर्णित प्रावधानों का ये खुला उल्लंघन है.

रक्षा मंत्रालय और विश्वविद्यालय प्रशासन दोनों ने इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय में हलफनामें दायर किए हैं. लेकिन रक्षा मंत्रालय द्वारा हलफनामा वापस लेने का आवेदन पत्र दिये जाने की सूचना है.

विश्वस्त सूत्रों ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया है कि “रक्षा मंत्रालय हलफनामें को वापस नहीं लेना चाहता.”

रक्षा मंत्रालय को तो DMRC की तरफ से अधिग्रहण के लिए तय किये गए 42.4 करोड़ रुपये भी नहीं चुकाए गये हैं. इसलिए रक्षा मंत्रालय की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया है- “जब दिल्ली मेट्रो ने उसे ही अधिग्रहण के पैसे नहीं चुकाए तो मेट्रो कारपोरेशन इस जमीन को प्राइवेट बिल्डर को दोबारा लीज कैसे दे सकता है?”

imageby :

इसके अलावा रक्षा मंत्रालय की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दिए गए एफिडेविट में कहा गया था कि “उससे जमीन लेते समय कहा गया था कि ये जमीन पब्लिक यूज के लिए ली जा रही है.” इसे लोग रक्षा मंत्रालय के साथ हुई वादा-खिलाफी के तौर पर भी देख रहे हैं. न्यूजलॉन्ड्री के पास रक्षा मंत्रालय की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में सबमिट की गई एफिडेविट की कॉपी मौजूद है.

रक्षा मंत्रालय द्वारा हलफनामे को वापस लिए जाने के लिए डाली गई एप्लिकेशन को प्रदर्शन कर रहे छात्र रक्षा मंत्रालय पर पड़ रहा राजनीतिक दबाव करार देते हैं, छात्रों ने इस बाबत पीएमओ को पत्र भी लिखा है. छात्रों ने विरोध प्रदर्शन से आम लोगों को जोड़ने के लिए 7 नवम्बर को लिट्टी-चोखा पार्टी का भी आयोजन किया साथ ही पब्लिक लेक्चर सिरीज के माध्यम से विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स इस प्रदर्शन के समर्थन में आकर छात्रों और आम नागरिकों से सीधा संवाद कर रहे हैं.

साल 2008-09 में जब विश्वविद्यालय प्रशासन को दिल्ली मेट्रो द्वारा प्राइवेट बिल्डर को ज़मीन दिये जाने के सम्बन्ध में जानकारी हुई तो तत्कालीन वाइस चांसलर प्रोफेसर दीपक पेंटल ने लेफ्टिनेट गवर्नर तेजेन्दर खन्ना को आपत्ति दर्ज करते हुए चिट्ठी लिखी. लेफ्टिनेंट गवर्नर के आदेश पर डीडीए ने तीन सदस्यीय समिति बनाई. समित ने रिपोर्ट में बताया कि इस अल्ट्रा हाई राइज कॉम्प्लेक्स से विश्वविद्यालय की सुरक्षा और गोपनीयता को कोई ख़तरा नहीं है.

2012 में विश्वविद्यालय इस मामले को लेकर उच्च न्यायालय पहुंचा. हाइकोर्ट ने अपने फैसले में डीडीए के उस तर्क को मान लिया कि इससे विश्वविद्यालय को कोई ख़तरा नहीं है और यह क्षेत्र नॉर्थ कैंपस के अंतर्गत नहीं आता है. उच्च न्ययालय की सिंगल जज बेंच ने 2015 में डीडीए की रिपोर्ट को आधार यंग बिल्डर के पक्ष में फैसला दे दिया. जबकि यह भूभाग विश्वविद्यालय परिसर से बिल्कुल सटा हुआ है. प्रदर्शनकारी छात्र डीडीए की रिपोर्ट में तथ्यों की अनदेखी करने का गंभीर आरोप लगाते हैं.

इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने तीन साल बाद 2018 में इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन डाला. प्रदर्शन कर रहे छात्र तत्कालीन विश्वविद्यालय प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि जान बूझकर विश्वविद्यालय प्रशासन ने ढीला रवैया अपनाया और तीन साल बाद रिव्यू पिटीशन दायर करने के लिए हाईकोर्ट गया, जबकि लेटर पेटेंट अपील (एलपीए) को एकल पीठ के फैसले के 30 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिए थी. इस देरी को कारण बताकर हाईकोर्ट ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी, जबकि इस मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि वीसी उपलब्ध ना होने के कारण और दूसरे तर्क-तथ्य जुटाने में उसे समय लग गया.

हाइकोर्ट से पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गया. वहां मामला लंबित है. लेकिन उक्त परिसर के भीतर कन्स्ट्रक्शन शुरू हो चुका है जिसकी वजह से विश्वविद्यालय के छात्र सड़कों पर हैं.

विश्वविद्यालय ने इस सम्बन्ध में 20 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया है. टास्क फोर्स में शामिल डिप्टी डीन (वर्क्स) विपिन तिवारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि विश्वविद्यालय पूरी ताकत से कोर्ट में अपना पक्ष रख रहा है. उन्होंने इस पूरे मामले पर विस्तार से बात की और रक्षा मंत्रालय की भूमि को प्राइवेट बिल्डर को दिये जाने की प्रक्रिया के दौरान सरकारी संस्थाओं की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाये. उन्होंने कहा, “निजी जमीन तो सरकार एक्वायर करती है लेकिन यहां देखिए सरकारी जमीन ही निजी बिल्डर के हाथ में चली गई है.”

वो आगे कहते हैं कि डीडीए ने खुद ही इस मामले पर आपत्ति दर्ज की थी फिर डीडीए ने मंजूर कर दिया. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में वो सरकारी संस्थानों के चार यू-टर्न लेने की बात बताते हैं, “पहला यू-टर्न डीडीए के बाद दूसरा यू टर्न एमसीडी ने लिया पहले प्रोजेक्ट को क्लियरेंस नहीं दिया फिर मंजूरी दे दी. तीसरा यू टर्न दिल्ली अर्बन ऑर्ट कमीशन का है जिसने पहले मंजूरी नहीं दी फिर मंजूरी दे दी. और अब चौथा यू-टर्न मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस ने लिया है सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा वापस लेने के लिए एप्लीकेशन लगाया है.”

विपिन तिवारी आगे कहते हैं कि हम रक्षा मंत्रालय को हलफनामा वापस नहीं लेने देंगे. जब कोई तथ्य बदला ही नहीं तो रक्षा मंत्रालय हलफनामा कैसे वापस ले सकता है.”

दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस सम्बन्ध में एनडीडएमसी राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, केन्द्र सरकार और लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप की मांग की है.

उत्तरी दिल्ली नगर निगम के मेयर अवतार सिंह ने दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा आपत्ति दर्ज करने के सम्बन्ध में मीडिया से बताचीत में कहा कि “विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के बगल में 39 मंजिला इमारत के बिल्डिंग प्लान को दी गई मंजूरी के बारे में मुझे सूचना मिली है, मैंने जांच का आदेश दिया है और अधिकारियों से मामले को देखने को कहा है. अगर कोई दोषी पाया जाता है, तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. हम यह सुनिश्चित करेंगे कि छात्रों की सुरक्षा को खतरे में न डाला जाए. यदि निर्माण शुरू हो गया है, तो हम इसे रोक देंगे.”

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस पूरे मामले पर दिल्ली मेट्रो से उसका पक्ष जानने के लिए डीएमआरसी के एक्जिक्यूटिव डॉयरेक्टर अनुज दयाल से बात की. उन्होने न्यूजलॉन्ड्री को दिये लिखित स्टेटमेंट बताया, “अधिग्रहण की सभी उचित प्रक्रियाओं का पालन करने के बाद ही जमीन का डीएमआरसी ने अधिग्रहण किया. डीएमआरसी को आय के लिए अधिशेष भूमि का उपयोग करने की अनुमति है. यहां उपलब्ध दो हेक्टेयर भूमि के संपत्ति विकास गतिविधियों के उपयोग के लिए, सभी अनिवार्य अनुमोदन और मंजूरी प्राप्त की गई थी और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही भूमि को लीज पर दिया गया है.”

न्यूज़लॉन्ड्री ने यंग बिल्डर के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स से उनका पक्ष जानने के लिए फोन और मैसेज किया है लेकिन अब तक उनका कोई जवाब नहीं मिला है. उनका उत्तर मिलने पर उसे इस रिपोर्ट में सामिल किया जाएगा. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई जल्द ही होने वाली है. छात्रों का कहना है कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की तरफ से अब तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है. विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने अब अपने टेंट के ऊपर हंगर स्ट्राइक का फ्लैक्स भी टांग दिया है.

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like