‘कैफे कॉफी डे’ के फाउंडर वीजी सिद्धार्थ की लाश बुधवार को मैंगलौर के ‘होइगे बाज़ार’ के पास नेत्रावती नदी में मिली है.
36 घंटे तक लापता रहने के बाद ‘कैफे कॉफी डे’ के संस्थापक वीजी सिद्धार्थ की लाश बुधवार को मैंगलौर के ‘होइगे बाज़ार’ के पास नेत्रावती नदी में मिली है. भारतीय जनता पार्टी के नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री एसएम कृष्णा के दामाद, वीजी सिद्धार्थ सोमवार से लापता थे.
सिद्धार्थ आर्थिक संकटों से जूझ रहे थे. सीसीडी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर और कर्मचारियों को लिखे अपने पत्र में उन्होंने कहा, “अपनी पूरी क्षमताओं का प्रयोग करने के बाद भी मैं एक ‘प्रोफिटेबल बिज़नेस मॉडल’ स्थापित करने में असफ़ल रहा हूं.”
अपने पत्र में वह लिखते हैं, “सभी आर्थिक लेनदेन की ज़िम्मेदारी मेरी है. कानूनन इन सबके लिए सिर्फ मैं ही उतरदायी हूं. एक व्यवसायी के तौर पर मैं असफ़ल रहा हूं. मैं यह बात बेहद विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता हूं और मुझे उम्मीद है कि आप लोग मेरी बात समझेंगे और मुझे माफ़ कर देंगे.”
आयकर विभाग ने वीजी सिद्धार्थ के पत्र की सत्यता पर सवाल उठाए हैं.
जैसे ही उनका शव मिलने की ख़बर आई, लोगों द्वारा सीसीडी की विरासत पर चर्चा की जाने लगी. साथ ही इस बात पर भी चर्चा होने लगी कि सिद्धार्थ के पास न सिर्फ सीसीडी बल्कि कॉफी इंडस्ट्री को लेकर भी कितने बड़े-बड़े प्लान थे.
दूरदर्शी
उनके बारे में बात करते हुए कर्नाटक कॉफी एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष जयराम कहते हैं, “सिद्धार्थ कॉफी इंडस्ट्री को लेकर काफी दूरदर्शी सोच रखते थे. पेड़ लगाने से लेकर कॉफी बैरी चुनने, उसे ‘क्योर’ करने, उनके लिए ग्रेड देने, उनका मूल्य स्थापित करने और मार्केटिंग के जरिए सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि 6 अन्य देशों तक कॉफी पहुंचाने तक हर कदम पर वह दूरदर्शी सोच रखते थे. उन्होंने भारत में कॉफी के उत्पादन को 12 हज़ार टन प्रति वर्ष से एक लाख टन प्रति वर्ष तक पहुंचाया है.”
जयराम कहते हैं कि “12 साल पहले जब सीसीडी कॉफी के कच्चे बीज के व्यापार में शामिल हो रहा था तब कॉफी के सबसे बड़े उत्पादकों में शामिल होने के बावजूद रेट के लिए हमें लन्दन और अमेरिका के बाज़ार पर निर्भर रहना पड़ता है. मगर इससे पहले किसी को कुछ समझ आता, भारत ने विश्व के ट्रेडिंग सेंटर में अपनी इतनी उपस्थिति दर्ज करवा ली थी कि वह विश्व के लिए दाम तय कर सके. यह सब सिद्धार्थ की सादगी, दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत के कारण ही संभव हो पाया था.”
सिद्धार्थ के करीबी मित्र डॉ. इफ्तिकार कहते हैं कि सिद्धार्थ द्वारा अपने सहकर्मियों को लिखे गए पत्र की ख़बर सुनकर वे आश्चर्य में पड़ गये थे. इफ्तिकार कहते हैं, “उन्होंने अपने पत्र में यह बताया है कि कंपनी के पास 1993 से जमा कर्ज को चुकाने के लिए पर्याप्त संपत्ति थी. वह कंपनी को चलाए रखने के लिए इसका उपयोग कर सकते थे. मगर फिर भी उन्होंने इतना ख़तरनाक कदम उठाया? आर्थिक मामलों को सुलझाने के कई तरीके होते हैं. मुझे दुःख है कि उन्होंने दोस्त होने के बावजूद मुझसे यह बात नहीं कही. मुझे लगता है कि उनकी विनम्रता उन्हें ऐसा करने से रोकती थी.”
सिद्धार्थ के एक क़रीबी मित्र नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, “सिद्धार्थ अपने व्यापार में एक निरंतरता चाहते थे. मगर वह जिस तरह के बिजनेस में थे वहां ऐसा कर पाना मुश्किल होता है क्योंकि पूरा व्यापार उधार और क्रेडिट पर चलता है. ऐसा नहीं है की वे कोई दिखावटी व्यक्ति थे. वे अपने पैसों का दिखावा करने वालों में से नहीं थे. वे बेहद सादा जीवन जीने वालों में से थे मगर अपने व्यापार में विविधता, इनोवेशन, विस्तार लाने के लिए वे चले गये. लेकिन इसके लिए जान देने की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि उनके पास इनती संपत्ति थी की वह इस आर्थिक संकट से उबर सकते थे.”
वे लोग जिन्होंने कॉफी के व्यापार में रहते हुए सिद्धार्थ को काम करते देखा था वे सिद्धार्थ की तारीफ करते हैं. कर्नाटक कॉफ़ी एसोसिएशन के महासचिव केबी मनोहर कहते हैं, “उन्हें कॉफी के बारे में बहुत ज्ञान था. वे जब भी कारोबारियों की मीटिंग में आते थे अपने साथ कोई रिसर्च प्रोडक्ट ज़रूर लाते थे, वे उन्हें इस बारे में शिक्षा देते थे कि किस तरह वह अपना कारोबार बेहतर तरीके से चला सकते हैं. वे उन्हें बताते की किस तरह मिट्टी को सही पोषक तत्व दिए जाए, उन्हें कितना छांव दिया जाए और कीट से कैसे बचाव किया जाए इसके साथ ही पौधों में बौर आने पर किस तरह उनका विशेष ख्याल रखना चाहिए. तभी वे कॉफी मेकिंग के व्यवसाय में आए. वह अक्सर मुझे कॉफ़ी टेस्ट करने के लिए बुलाते थे, यह अधिकार सिर्फ कॉफी बोर्ड के पास होता है. इंडस्ट्री में इतने तेजी से उभरते हुए किसी शख्स को देखना दिलचस्प था.”
सिद्धार्थ के पारिवारिक मित्र और ‘मुदिगेरे तालुक पंचायत एंड कॉफी प्लान्टर’ के पूर्व अध्यक्ष कहते हैं, “हर दिन ज़रूरतमंद लोग उसके परिवार के पास मदद मांगने आते थे. सिद्धार्थ यह सुनिश्चित करते थे की उनकी मदद की जाए. उसने लोगों की शादी, शिक्षा, पशु पालन के लिए मदद की. साथ ही उसने नौजवानों को अपनी कंपनी में काम करने के लिए प्रशिक्षित किया.”
‘पब कैपिटल’ में कॉफ़ी को स्थापित करना
सीसीडी का पहला कॉफी आउटलेट बेंगलौर के ब्रिगेड रोड में स्थापित किया गया. उस दौरान यह इलाका ‘पब कैपिटल’ के तौर पर जाना जाता था. ऐसे में इस आउटलेट के स्थापित होने के बाद युवाओं ने यह जाना की वह कॉफी के साथ भी ‘हैंगआउट’ कर सकते हैं. इसी दौरान उन्होंने जाना की ‘एक कप कॉफी से बहुत कुछ हो सकता है.’
ब्रिगेड रोड पर सीसीडी के पुराने ग्राहक और सेंट जोसेफ़ डिग्री कॉलेज के छात्र रहे रिचर्ड डीसिल्वा कहते हैं, “सीसीडी में एक कप कॉफी के साथ घंटों हैंगआउट करने को कभी किसी ने गलत तरीके से नहीं देखा. उस ठन्डे माहौल में बैठ कर अपने असाइन्मेंट और होमवर्क करना, जोर से बातें करना, ठहाका मार कर हंसना या केवल बैठकर बाहर ब्रिटिश काल की सड़क पर आकार लेते जीवन को देखना, पब में शराबियों की तरह पड़े रहने से बेहतर था.”
मंगलौर का गर्व
तटीय शहर मैंगलौर के लिए सिद्धार्थ के दिल में एक विशेष स्थान था. उन्होंने सन 1975 में सेंट अलॉयसियस पियू कॉलेज में दाखिला लिया था और उसके बाद अपनी बीए की डिग्री तक उन्होंने सेंट अलॉयसियस फ़र्स्ट ग्रेड कॉलेज में पढ़ाई की. कॉलेज के रजिस्ट्रार प्रो. नरहरी बताते हैं, “मुझे याद आता है कि अपने कॉलेज के दिनों में वह एक औसत छात्र मगर काफी मिलनसार छात्र था.” वह आगे कहते हैं, “मुझे उसकी कोई ख़ास बात याद नहीं आती सिवाय इसके की वह हर रोज़ क्लास आता था और अपने साथी छात्रों के प्रति वह बेहद दयालु था.”
उनके कॉलेज की ओर से सिद्धार्थ को 10 मार्च 2017 को बतौर मुख्य अतिथि छात्रों को संबोधित करने के लिए बुलाया गया था. इस बारे में बात करते हुए प्रो. नरहरी कहते हैं कि “उसके 30 मिनट का संबोधन प्रेरित करने वाला था. उसने छात्रों को नौकरी तलाशने के बजाय खुद का व्यापार स्थापित करने के लिए कहा. मुझे उनके भाषण का ख़ास वाक्य याद है, उन्होंने कहा था ‘टीम प्लेयर बनिए’.”
कॉलेज के पूर्व प्राचार्य रेव. फ्रा. स्वेबर्ट डिसिल्वा उन्हें एक मददगार के रूप में याद करती हैं. वह कहती हैं, “जब कॉलेज ने एक बड़े स्विमिंग पूल का निर्माण करवाना चाहा था तब हमें सिर्फ उन्हें एक प्रार्थना पत्र भेजना पड़ा था और उनके द्वारा एक बड़ी रक़म के रूप में मदद करने का आश्वासन दिया गया था.” मैंगलौर के युवा छात्र कहते हैं की वह इस बात से उत्साहित हैं कि उनके शहर के एक छात्र ने एक इतनी बड़ी ‘चेन’ की शुरुआत की.
सीसीडी के कर्मचारी अजीत शेट्टी (परिवर्तित नाम) “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा दिन देखूंगा. मेरे बॉस, मेरे आदर्श ऐसा कोई कदम उठाएंगे. मैं अन्दर तक अकेलेपन को महसूस कर रहा हूं. जब वह 2017 में मैंगलौर आए थे तो वह हमारे आउटलेट में भी आए थे. मुझे उन्हें कॉफ़ी सर्व करने का मौका मिला था. उन्होंने मुझे बैठाया और मेरे साथ अपनी कॉफी साझा की. इतने बड़े आदमी की यह सादगी मेरे लिए कल्पना से परे थी.”
(लेखक मैंगलौर में फ्रीलांस पत्रकार और ‘101Reporters’ के सदस्य हैं.)