मोदीजी की क्रूज़ परियोजना में बनारस के निषादों की तबाही है

वाराणसी में वादाख़िलाफ़ी और बड़ी कंपनियों के प्रमोशन से नाराज़ है वहां का निषाद समाज.

WrittenBy:हृदयेश जोशी
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वाराणसी में गंगा किनारे सूर्योदय से पहले तट पर बंधी सैकड़ों नावों के बंधन खुलने लगे हैं. नदी की लहरों पर सवार होकर पर्यटक शंख-घंटों की आवाज़ से घिरे घाटों और मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं. निषाद समुदाय के ये खेवनहार हर रोज़ इसी तरह अल-सुबह से देर शाम तक गंगा में नाव खेकर अपना जीविकोपार्जन करते हैं. निषाद काशी की पारंपरागत पारिस्थितिकी का वो हिस्सा हैं, जो इसके अस्तित्व में आने के साथ ही इस शहर से जुड़ गये थे. लेकिन इन दिनों इन नाविकों का मन खिन्न और मनोबल टूटा हुआ है.

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इस खिन्नता के पीछे सरकार का 5 साल पहले किया गया वादा है जो अब तक पूरा नहीं हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा के घाटों पर पर्यटन बढ़ाकर स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ाने का इरादा जताया था, लेकिन आज निषाद समुदाय को लगता है आमदनी बढ़ना तो दूर उनकी आजीविका ही संकट में पड़ गयी है.

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“अभी जो वर्तमान भाजपा की सरकार है उससे वाराणसी का निषाद समाज भयभीत है. यहां जो बड़ी-बड़ी नावें चल रही हैं, बड़े-बड़े जहाज चल रहे हैं और सरकार हमसे कहती है कि उसमें आप लोगों का योगदान होगा और आप लोगों को रोज़गार मिलेगा लेकिन कहीं से भी देखने को नहीं मिल रहा है कि हम लोगों को उसमें रोज़गार मिलेगा या हम लोगों का सिर्फ़ सहयोग लिया जायेगा,” 35 साल के वीरेंद्र निषाद कहते हैं.

काशी में निषाद समुदाय की आबादी करीब सवा लाख है. माना जाता है कि इस समुदाय ने 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को जमकर वोट दिया. नाराज़ वीरेन्द्र निषाद भी बीजेपी को “अपनी पार्टी” और नरेंद्र मोदी को “संत” कहते हैं, लेकिन आज वह हज़ार निषाद साथियों के साथ गंगा में विशालकाय क्रूज उतारे जाने का विरोध कर रहे हैं. उनके मुताबिक क्रूज उनके रोज़गार की दुश्मन होंगी और बड़ी कंपनियां परम्परागत नाविकों को बर्बाद कर देंगी.

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निषाद समाज के कई लोगों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनका रोज़गार नाव चलाने और मछली पकड़ने तक सीमित है और सरकार ने बड़ी नावों (क्रूज) की नीति बनाते समय उनसे मशविरा नहीं किया. इसके अलावा 2016 में प्रधानमंत्री ने ई-बोट की जो शुरुआत की वह भी कामयाब नहीं रही. “2016 में प्रधानमंत्री ने ई-बोट का उद्घाटन किया जो काफी अच्छी योजना थी, लेकिन उसके नाम पर भी कंपनियों ने हमारा शोषण ही किया,” निषाद कहते हैं.

आज बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने चुनाव में कोई बड़ी राजनीतिक चुनौती नहीं है और उनकी जीत तय मानी जा रही है लेकिन निषाद समुदाय का दिमाग विकास के उस मॉडल से उखड़ा हुआ है जिसकी पैरवी बीजेपी और नरेंद्र मोदी कर रहे हैं.

लेकिन इन सारी दिक्कतों के बीच बनारस में एक नयी पहल हुई है. बड़ी भारी भरकम बैटरियों के दम पर प्रस्तावित मॉडल भले ही फेल हो गया लेकिन छोटी लीथियम आयन बैटरियों के दम पर ई-नावों को बढ़ावा देने की शुरुआत हो चुकी है.

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“पहले इस्तेमाल होने वाले बोट इंजन में चार बड़ी बैटरियां लगानी पड़ती थी जिनका वजन करीब 300 किलो होता था और ऐसा करना एक नाव में पहले ही तीन से चार सवारी बिठाने जैसा था. इसलिये पहले जो ई-बोट की सोच थी वह कामयाब नहीं हो पायी लेकिन अब हमने हल्की बैटरियों की मदद से नया पायलट प्रोजक्ट चलाया है,” दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट से जुड़े जितेन्द्र तिवारी ये बात बताते हैं. उन्होंने बनारस की करीब 20 नावों में लाइट वेट लीथियम आयन बैटरी सिस्टम लगाया है.

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इन बैटरियों को सौर ऊर्जा से चार्ज किया जाता है. तिवारी बताते हैं कि सोलर चार्जिंग स्टेशन गंगा तट पर बनी दुकानों में लगाना एक समस्या थी. इसलिये नाविकों के घर पर ही सोलर पैनल और चार्जिंग स्टेशन लगाये जाने की योजना है.

नये बैटरी इंजन नाविकों को डीज़ल इंजनों से छुटकारा दिला सकते हैं जिससे ध्वनि और वायु प्रदूषण होता है. “डीज़ल इंजनों के शोर में हम पर्यटकों को घाटों के बारे में बताना तो दूर उनकी आवाज़ तक नहीं सुन पाते, लेकिन इस बैटरी इंजन से काफी राहत हुई है,” एक नाविक ने हमें बताया.

“निषादों की नावें उनके संपत्ति हैं और वे उसे अपनी ज़मीन जायदाद की तरह मानते हैं. सरकार की वादाखिलाफी और क्रूज की घोषणा से उनके रोज़गार पर हमला हुआ है. भरोसा दिलाने वाली कोई भी नयी शुरुआत उनके लिये हवा के झोंके की तरह होगी,” बनारस के वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह कहते हैं.

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