अभिनंदन वर्धमान ने जो किया उसे एक योद्धा और भद्रता का संगम कहते हैं.
विंग कमांडर अभिनंदन से जुड़ी ख़बरें, वीडियो और तस्वीरें इंटरनेट पर फैलने लगी, तो सालों पहले इस बहादुर नौजवान से हुई मुलाकात की यादें ताज़ा हो गईं. 2011 में जब वो फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे, तब हमने उनके साथ ‘जय हिंद’ सीरीज के लिए एक वीडियो शूट किया था. रॉकी और मयूर के साथ. उस समय कुछ कारणों से हमने यह निश्चय किया कि हम उनसे जुड़ी कोई भी वीडियो या क्लिप हम सार्वजनिक नहीं करेंगे. यही कारण रहा कि रॉकी और मयूर ने तमाम टेलीविज़न स्टूडियो द्वारा प्राइम टाइम शो में बुलावे के बावजूद पाकिस्तान की हिरासत में मौजूद अभिनंदन पर कोई बातचीत करने से मना कर दिया.
हमें उनकी वापसी की बेहद ख़ुशी है.
रॉकी और मयूर के साथ मिलकर बनाई गई ‘जय हिंद’ की शूटिंग के दौरान हमने सेना के अधिकारियों, जवानों, पैरा कमांडो, नौसेना के अधिकारियों, सेना के इंजीनियरों और एयर फ़ोर्स कर्मियों के साथ काफ़ी वक़्त बिताया. यह बेहद रोमांचक और फायदेमंद सिरीज़ रही. इस दौरान हमारी ज़िंदगी के कुछ बेहद शानदार तज़ुर्बों हुए. हम तीनों- रॉकी, मयूर और अभिनंदन सेखरी (देश को गौरवान्वित करने वाले बहादुर जवान अभिनंदन वर्धमान नहीं) फौजियों के परिवार से हैं. रॉकी के पिता मेजर अमरजीत सिंह 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हो गए, तब रॉकी की उम्र महज़ 2 बरस थी. लिहाजा यह हमारे लिए महज़ एक शो भर नहीं था.
हमारे लिए, भारतीय सशस्त्र बलों के उस पवित्र दायरे में क़दम रखना, उनसे बातचीत करना, उनके अनुभवों से गुजरना और यह समझने की कोशिश करना कि उनके भीतर देशप्रेम का जज़्बा कायम कैसे रहता हैं, यह सब न केवल सम्मान की बात थी बल्कि हम एक तरह से भाग्यशाली भी थे. सैनिक बैकग्राउंड से होने के कारण हम बहादुरी, वीरता, समर्पण और सबसे ज़्यादा अपने बहादुर जवानों की महानता किस्से सुनते हुए बड़े हुए हैं.
जब हम भारतीय वायुसेना के ‘सुख़ोई’ विमान की शूटिंग कर रहे थे, उसी दौरान हमारी मुलाकात तत्कालीन फ्लाइट लेफ्टिनेंट अभिनंदन वर्धमान से हुई. मशीनों से ज़्यादा हमें उनके इस्पाती चरित्र ने प्रभावित किया जिसने हमारे मन में उनके लिए एक अमिट छाप छोड़ दी. अभिनंदन के अंदर विनम्रता और अपने सामर्थ्य पर पक्का यकीन था जो कि अपनी सैनिक टुकड़ी और वायुसेना की छवि और सम्मान का संपूर्णता से प्रतिनिधित्व करती थी. वो नपा-तुला बोलते थे विनम्रता के साथ उसमें निश्चय और साफगोई थी जो कि बेहद ख़ास थी. उनकी हंसी स्वच्छंद और उन्मुक्त थी. उनकी विनम्र मुस्कान किसी दूसरों को भी प्रभावित करने वाली थी. हमें याद है कि अभिनंदन और उनके उड़नदस्ते के साथियों की हंसी-ठिठोली और चुटकुलों की वजह से शूटिंग के वक़्त कई बार रीटेक करना पड़ा था.
इस श्रृंखला के दौरान हमने जिन अधिकारियों से मुलाकात की, उनसे कई बातों पर चर्चा की. उनमें से बहुतों ने बेहद क़रीब से लड़ाईयां देखी थी. हमें उस युवा अफ़सर की बात बेतरह याद है जो अपनी पहली मुठभेड़ के किस्से हमें बता रहा था. उसकी उम्र बीस बरस से कुछ ही ज़्यादा रही होगी जब वह गोली चलने और धमाकों के बीच पहली बार था और लोग अपनी जान गंवा रहे थे. दिलो-दिमाग में तब क्या चल रहा था, उसने हमें बताया. उसने हमें कश्मीर की एक घटना के बारे में बताया. अपने काम से तनिक बेरुखी के साथ जब इन मुठभेड़ों के बारे में (ऑफ़ कैमरा रहते हुए) बताया जा रहा था, तब माहौल बेहद गंभीर था और तनाव की आशंका थी. इसका मतलब टेलीविजन की सुर्ख़ियों और तमाशों से बिल्कुल परे है. अभिनंदन की यूनिट के साथ डॉक्यूमेंट्री शूट करने के दौरान एक तरफ पायलटों से हमारी बातचीत में तमाम वाकये रहे जिनमें हंसी-ठिठोली हुई, व्यंग्य था, साथ ही उनके काम की संवेदनशीलता और उसके महत्व को भी हमने समझा. ऐसा कोई वाकया नहीं हुआ कि जब किसी भी पायलट ने अपने पेशे के अनुशासन को भंग किया हो और अंधराष्ट्रीयता की डींगें हांकी हो. वे हमसे पूरी संजीदगी के साथ ऐसे युवा की तरह मिले जिसे अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी अहसास हो, उस इन्सान की तरह भी जिसे न केवल इसकी समझ हो बल्कि वह सयंम और मर्यादा को भी महत्व देता है. जैसा कि अभिनंदन ने भी हमें बताया कि उनसे क़ैद में भी इसकी अपेक्षा की जाती है. हमारी मीडिया को भी इनसे बहुत कुछ सीखना चाहिए.
अभिनंदन ने काफ़ी विस्तार से बताया (उसका कुछ हिस्सा ही सम्पादित एपिसोड में आ पाया) कि क्यों बहुत ज़्यादा या बहुत कम खाना एक पायलट के लिए अच्छा नहीं है. विशेष तौर पर तब जब गुरुत्वाकर्षण के ख़िलाफ़ जाकर सुपरसोनिक स्पीड से हवा में कलाबाजियां दिखाते हुए उड़ान भरनी हो. मुझे अभी भी अभिनंदन (सेखरी) का कथन याद है, “शुक्र है मुझे वह नहीं करना जो आप लोग करते हैं, मैं तो महीने भर में भी खुद को कॉकपिट में रहने के लायक न बना पाऊं.”
इन युवाओं ने हमारे दिलो-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ दी थी और सालों बाद आज जब हमने अपने पकड़ लिए गये पायलट की झलकियां देखीं और हमें ध्यान आया कि वह कौन है, खून से सना उसका चेहरा देखकर हमारा दिल बैठ गया. हमारे मन में उसकी तस्वीर थी कि वह मुस्कुरा रहा था, अपनी बातों से हमारा ध्यान खींच रहा था, हंस रहा था और हवाई जहाजों के बारे में तमाम बातें बता रहा था, जैसे हम उम्र में उससे कुछेक दशक छोटे हों. लेकिन खतरे की उस घड़ी में भी जिसका अनुभव हममें से अधिकतर शायद कभी न कर पाएं, जो आज भी न बदला था वो ये कि आज भी बोलने में वही साफ़गोई, वही विनम्रता थी. यह देखकर हमारा सिर सम्मान में झुक गया कि खून से लथपथ होकर, आंखों पर पट्टी बंधे होने और हाथों के पीछे बंधे होने के बाद भी उन्होंने न केवल धैर्य बनाए रखा बल्कि अपने ईमान से ज़रा भी विचलित न हुए.
अभिनंदन! हमें आप पर गर्व है. अपने साथियों को आपने गौरवान्वित कर दिया है, पूरे देश को आप पर गर्व है. आपने दिखा दिया कि सही अर्थों में योद्धा होना क्या है. जबकि आपने देश के दुश्मनों से लोहा लेने का प्रशिक्षण हासिल किया है और अपने काम में निपुण और प्रभावशाली हैं, आपके अंदर का सहज इंसान तब हमसे अछूता न रहा था और आज पूरा देश उसे देख रहा है. आपके जैसे योद्धा न डींगें हांकते हैं, न ही 56 इंची छाती का ढिंढोरा पीटते हैं. आपकी शिष्टता और आपका मर्यादित व्यवहार इस बात की गवाही देते हैं कि आप एक सम्मानजनक, गौरवशाली सेना के अंग हैं, जिसका जब भी आह्वान किया जाए, वह देश के लिए मर-मिटने को तैयार रहती है.
हमारे सैनिक हमारे प्रहरी हैं, लेकिन साथ ही वो किसी के बेटे-बेटियाँ भी हैं, भाई और बहन हैं, शौहर हैं, बीवी हैं और उनके परिवार को उनके लिए फिक्रमंद रहने का पूरा हक़ है. बावजूद इसके कि देश उनसे किसी भी कीमत पर सुरक्षा की उम्मीद करता है. और हम जानते हैं कि वे कभी भी इससे पीछे नहीं हटेंगे. हमें अपनी सलामती का यकीन है क्योंकि हमारे और दुश्मनों के बीच आप जैसे लोग हैं.
अभिनंदन! घर लौटने पर आपका अभिनंदन है. हमें गर्व है कि हम आप से मिले हैं, आपके साथ दावत की है. आपका आभारी देश तहेदिल से आपका स्वागत करता है. जय हिंद!